लखनऊ: भगवा कपड़े और धूप का चश्मा लगाए दो व्यक्तियों ने आधिकारिक तौर पर अपने नाम के पहले ‘योगी’ लगा लिया और उनमें से एक ने यह भी दावा किया कि वो उत्तर प्रदेश के अगला मुख्यमंत्री होगा.
हर्ष चौहान और केदार नाथ अग्रहरि ने पिछले साल अपना नाम बदलकर ‘योगी हर्ष’ और ‘योगी केदार नाथ’ कर लिया था. फिर दोनों ने कथित तौर पर राज्य सरकार के पोर्टल पर ‘योगी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया’ नाम से एक फर्ज़ी एमएसएमई रजिस्टर्ड कराया और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के एक पदाधिकारी सहित करीब कम से कम 90 लोगों को धोखा देकर लाखों रुपये जमा कर लिए.
अपने लक्ष्य निर्धारित करने के बाद वो पीड़ितों को अपने उद्यम का क्षेत्रीय प्रमुख बनाने का वादा करते थे, या पैसे के बदले में उन्हें सरकार से संबंधित कोई भी काम करवाने का आश्वासन देते थे.
उन्होंने यहां तक दावा किया गया कि ‘योगी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया’ द्वारा किए गए सभी कार्यों की निगरानी “सीएम द्वारा की जाती थी”.
चौहान और अग्रहरि को भाजपा की कानपुर मंडल सचिव रंजना सिंह की शिकायत पर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज़ होने के दो दिन बाद रविवार को गिरफ्तार किया गया था, जिन्हें उद्यम का जिला प्रभारी बनाने के बहाने कथित तौर पर 1,100 रुपये की ठगी की गई थी.
दोनों के खिलाफ आईपीसी की धारा 419 (प्रतिरूपण द्वारा धोखाधड़ी), 420 (धोखाधड़ी), 467 (मूल्यवान वसीयत, सुरक्षा आदि की जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 469 (किसी पार्टी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक को असली के रूप में उपयोग करना), 504 (शांति भड़काने के लिए जानबूझकर अपमान), 506 (आपराधिक धमकी) और 34 (सामान्य इरादा) के तहत गोरखपुर के कैंट थाने में एफआईआर दर्ज़ की गई थी.
आरोपियों के पास से बरामद ‘योगी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के आईडी कार्ड’ पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और गुरु गोरखनाथ की तस्वीरें थीं. उनके पास ‘योगी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया’ का भारत सरकार का रजिस्ट्रेशन नंबर भी था.
गोरखपुर पुलिस के मुताबिक, आरोपी का ‘योगी ग्रुप’ नाम से एक व्हाट्सएप ग्रुप भी था, जिसमें बीजेपी कार्यकर्ताओं समेत एक हज़ार से ज्यादा लोग मेंबर थे. इस ग्रुप में आरोपी कथित तौर पर सदस्यों से अपनी सरकार से संबंधित शिकायतें दर्ज़ करने के लिए कहते थे और पैसे के बदले में उनका हल देने का वादा किया करते थे. उन्होंने लोगों को उनके साप्ताहिक जनता दरबार में आदित्यनाथ से मिलने में मदद करने का भी दावा किया.
दिप्रिंट से बात करते हुए गोरखपुर के पुलिस अधीक्षक (शहर) कृष्ण कुमार बिश्नोई ने कहा कि आरोपी जनता के उन सदस्यों से आवेदन लेते थे जो ऐसी बैठकों में शामिल होना चाहते थे और उनके कब्जे से ऐसे 60 आवेदन बरामद किए गए.
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धोखेबाजों से मिलिए
पुलिस के अनुसार, मूल रूप से महाराजगंज और गाजियाबाद के रहने वाले केदार नाथ और हर्ष चौहान की पिछले साल लखनऊ में एक धार्मिक उपदेशक के माध्यम से मुलाकात हुई और इस साल अप्रैल में उन्होंने एमएसएमई शुरू किया.
2022 में किसी समय उन्होंने इस आशय के एक नोटरीकृत दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने के बाद अपना नाम बदलकर ‘योगी हर्ष’ और ‘योगी केदार नाथ’ कर लिया था.
एसपी बिश्नोई ने कहा, “केदारनाथ ने अपने ही गांव में कई लोगों को धोखा दिया है. वो एक कथा वाचक को जानता था जिसने अपने एक कार्यक्रम के दौरान उसे हर्ष चौहान से मिलवाया था. हर्ष 12वीं तक पढ़ा हुआ है और गाजियाबाद में बैंक फ्रेंड के रूप में कार्यरत था. केदार नाथ आठवीं पास हैं. हर्ष ने उसे सुझाव दिया कि वो एक एमएसएमई शुरू करे और इसे रजिस्टर्ड कराए. उन्होंने सरकार के एमएसएमई पंजीकरण पोर्टल पर “योगी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया” को पंजीकृत करवाया और अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए लोगों से संपर्क करना शुरू किया.”
उन्होंने बताया कि पुलिस को अब तक आरोपियों के दो बैंक खातों का पता चला है.
एसपी ने कहा, “एक के पास कोई पैसा नहीं है, लेकिन दूसरा बैंक खाता है जिसमें 4-5 लाख रुपये का लेनदेन किया गया है.”
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‘आदित्यनाथ के बाद अगले सीएम’
दोनों ने कथित तौर पर यूपी, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश आदि राज्यों के कई भाजपा पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से संपर्क किया और उन्हें ‘योगी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया’ के क्षेत्रीय प्रमुख, जिला प्रमुख, सलाहकार आदि पदों की पेशकश की.
इलाहाबाद की एक वकील और कार्यकर्ता सहर नकवी ने दिप्रिंट को बताया कि जुलाई में केदार नाथ ने उनसे फेसबुक पर संपर्क किया था.
नकवी ने कहा, “उसने (केदारनाथ) कहा कि योगी आदित्यनाथ के बाद योगी हर्ष अगले सीएम बनेगा. दावा किया गया कि वो करपात्री महाराज द्वारा गठित राम राज्य परिषद से जुड़ा है. उसने उद्यम का कानूनी सलाहकार बनाने की पेशकश की थी, पर मुझे मंदिर के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी.”
नकवी ने कहा कि केदारनाथ ने उसी महीने उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट परिसर में मिलने की पेशकश की और जब वो मिले, तो उसने भगवा कपड़े और धूप का चश्मा पहन रखा था.
उन्होंने आगे कहा, “मैं सीएम योगी आदित्यनाथ की प्रशंसक हूं और मैंने उनके काम के बारे में फेसबुक पर रील्स और पोस्ट किए हैं. केदार नाथ ने सबसे पहले मुझे यह कहकर प्रभावित किया कि उसने मेरी पोस्ट देखी और उन्हें पसंद भी किया. उसने दावा किया कि उद्यम के कामकाज की निगरानी सीएम द्वारा की जा रही है और सीएम चाहते हैं कि मैं इसके साथ जुड़ जाऊं. मैं खुश हुई और सहमत हो गई. बतौर फीस मुझसे 5,000 रुपये की मांग की, जिसे मैंने फोनपे के जरिए से ट्रांसफर कर दिया.”
जबकि पुलिस ने आरोपी के कब्जे से नकवी के नाम वाला एक आईडी कार्ड बरामद किया है — जिसमें ‘योगी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया’ के सलाहकार के रूप में उनका पदनाम दिखाया गया है. उन्होंने कहा कि उन्हें अपने नाम पर जारी की गई ऐसी किसी भी आईडी के बारे में पता नहीं था.
केदार नाथ और हर्ष चौहान ने कथित तौर पर उद्यम के क्षेत्रीय प्रमुख बनाने के नाम पर विभिन्न राज्यों के भाजपा पदाधिकारियों से पैसे लेकर उन्हें ठगा.
उनमें से एक भाजपा की कानपुर मंडल सचिव रंजना सिंह थीं, जिनकी पुलिस शिकायत पर ये मामला दर्ज किया गया और बाद में गिरफ्तार कर लिया गया.
दिप्रिंट से बात करते हुए रंजना ने कहा कि नवंबर में उन्हें व्हाट्सएप “योगी ग्रुप” के बारे में पता चला, जिसमें जनता के सदस्य “अपनी सरकार से संबंधित शिकायतें साझा कर रहे थे और उनकी शिकायतों का समाधान किया जा रहा था.”
उसने कहा, “मुझे इस ग्रुप के बारे में पता चला जहां लोग अपनी शिकायतें साझा करेंगे और उनकी समस्याओं का समाधान किया जाएगा. मैं ग्रुप के कुछ सदस्यों को जानती थी और मुझे भी इसमें जोड़ा गया था. मेरे जुड़ने के बाद, केदार नाथ ने मुझे मैसेज किया और बताया कि वो मुझे उद्यम के लिए जिला प्रभारी बनाना चाहता है. चूंकि मैं सामाजिक और राजनीतिक रूप से सक्रिय हूं, इसलिए मैं सहमत हो गई.”
रंजना ने कहा कि व्हाट्सएप ग्रुप पर आरोपी आदित्यनाथ के दैनिक कार्यक्रमों, उसके जनता दरबार की बैठकों के कार्यक्रम और आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के स्थानांतरण का विवरण पोस्ट करते थे.
बाद में उन्हें ‘योगी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के जिला प्रभारी’ के रूप में एक आईडी कार्ड जारी किया गया, जिसमें उद्यम के ‘निदेशक और सीईओ’ के रूप में ‘योगी हर्ष नाथ और योगी केदार नाथ’ के नाम और संपर्क नंबर थे. दिप्रिंट ने आरोपियों द्वारा यूपी, गुजरात और मध्य प्रदेश के विभिन्न व्यक्तियों को जारी किए गए पांच आईडी कार्ड देखे हैं.
उसने कहा, “वो जो विवरण साझा करते थे वह आमतौर पर सही साबित होता था, यही कारण है कि लोगों ने उन पर विश्वास करना शुरू कर दिया. हालांकि, मुझे उद्यम के पते के कारण संदेह हुआ, जिसे गोरखनाथ मंदिर दिखाया गया था. मैंने गोरखपुर में बीजेपी पदाधिकारियों से जांच करने को कहा. जब उन्होंने पुष्टि की कि मंदिर में ऐसा कोई कार्यालय नहीं है, तो मैंने हमारे स्थानीय सचेंडी थाने को सूचित किया, जिसने बदले में गोरखपुर पुलिस को इस बारे में सूचित किया.”
आरोपी ने कथित तौर पर गुजरात स्थित कमल कुमार चौहान को एक आईडी कार्ड भी जारी किया था, जिसे गुजरात में उद्यम के लिए “जिला प्रभारी” के रूप में नियुक्त किया गया था.
दिप्रिंट से बात करते हुए चौहान ने कहा कि उन्हें एक स्थानीय बीजेपी कार्यकर्ता से व्हाट्सएप ग्रुप के बारे में पता चला.
उसने कहा, “मैं इंजीनियरों को समन्वय मापने वाली मशीनों (सीएमएम) को संभालने का प्रशिक्षण प्रदान करता हूं और मान्यता प्राप्त करने की उम्मीद में सरकार से जुड़ना चाहता था. मेरे ग्रुप में शामिल होने के दो दिन बाद, उन्होंने मुझे उद्यम का जिला प्रभारी बनाने की पेशकश की. चूंकि योगी जी का यूपी में बड़ा नाम है तो मैं उनसे जुड़ना चाहता था. उन्होंने मेरा आधार कार्ड और विवरण मांगा जो मैंने प्रदान किया, जिसके बाद उन्होंने मुझे एक आईडी कार्ड जारी किया.”
एक पत्रकार और सचिवालय क्लर्क की भूमिका
एसपी बिश्नोई ने दिप्रिंट को बताया कि आरोपियों को रविवार को गोरखपुर के धर्मशाला इलाके के पास से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.
उन्होंने कहा, “उनके पास से विभिन्न व्यक्तियों को जारी किए गए 87 जाली आईडी कार्ड बरामद किए गए हैं. इस मामले में लखनऊ में यूपी सचिवालय में कार्यरत एक पत्रकार और एक क्लर्क का नाम भी सामने आया है और उन्हें भी उनके रैकेट का हिस्सा होने के आरोप में गिरफ्तार किया जाएगा. दोनों जनता दरबार की बैठकों में शिकायतकर्ताओं को सीएम से मिलने में मदद करने का दावा करते थे और उनके आवेदन लेते थे.”
यह पूछे जाने पर कि आरोपियों को सीएम के ठिकाने और सरकारी तबादलों के बारे में सटीक जानकारी कैसे होगी, एसपी ने कहा कि उन्हें पत्रकार और सचिवालय क्लर्क द्वारा मदद की जा रही थी.
उन्होंने कहा, “केदार नाथ भाजपा के राज्य महासचिव होने का दावा करता था और उसने इसका एक जाली आईडी कार्ड बनाया था.”
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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