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Thursday, 25 April, 2024
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आरएसएस आदिवासी विमर्श के रास्ते अपनी विचारधारा IIT के छात्रों के बीच फैला रहा

मानव संसाधन विकास मंत्रालय की उन्नत भारत योजना के तहत आदिवासियों के विकास विषय पर आईआईटी दिल्ली ने अब तक दो वेबिनार आयोजित किये हैं. वेबिनार में वक्ताओं के तौर पर संघ और उसकी विचारधारा से जुड़े लोगों को बुलाया गया.

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नई दिल्ली: देश के प्रीमियर टेक्निकल इंस्टीट्यूट आईआईटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में ‘उन्नत भारत अभियान’ जिसे शिक्षा मंत्रालय आगे बढ़ा रहा है, के ज़रिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े संगठनों की विचारधारा पहुंचाई जा रही है.

भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास महासंघ (ट्राइफेड) ने जनजातीय समुदायों की आजीविका और आय के अवसर बढ़ाने को लेकर शिक्षा मंत्रालय (मानव संसाधन विकास मंत्रालय) की उन्नत भारत योजना के तहत आईआईटी दिल्ली के साथ एक साझेदारी की है.

मंत्रालय इस योजना में ग्रामीण क्षेत्रों की सामाजिक और आर्थिक बेहतरी के लिए गांव के साथ उच्च शिक्षण संस्थानों को जोड़ता है. इसमें ट्राइफेड, आईआईटी दिल्ली और स्वदेशी विज्ञान अभियान, विज्ञान भारती के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता ​भी हुआ है. आईआईटी दिल्ली उन्नत भारत योजना के लिये राष्ट्रीय समन्वय संस्थान है.

इस कार्यक्रम के तहत आदिवासियों के विकास के विषय पर आईआईटी दिल्ली ने अब तक दो वेबिनार आयोजित किये हैं. वेबिनार में वक्ताओं के तौर पर संघ और उसकी विचारधारा से जुड़े लोगों को बुलाया गया. वक्ताओं के प्रेजेंटेशन पर नज़र डालें तो वे इंजीनियरिंग पढ़ रहे छात्रों के बीच ‘शहरी नक्सली’ और ‘मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण’ जैसे विचारों पर बात उठा रहें हैं.


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कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने दिप्रिंट से कहा, ‘आईआईटी और आईआईएम देश के आधुनिक शिक्षा के मंदिर हैं. एक विचारधारा के जरिए इन्हें किसी भी सरकार ने दूषित करने का प्रयास ​नहीं किया है.’

वल्लभ कहते हैं, ‘ऐसे लोगों से वेबिनार कराया जाना चाहिए था जो आदिवासियों के बीच रहकर उनके लिए काम करते हैं या करते आ रहे हैं.’ उन्होंने कहा, ‘अपने एजेंडे के लिए आईआईटी के मंच को इस्तेमाल करना गलत है.’

दिल्ली आईआईटी के प्रोफेसर और उन्नत भारत योजना के नेशनल कोऑर्डिनेटर वी.के. विजय ने दिप्रिंट को बताया, ‘उन्नत भारत प्रोग्राम बीते चार वर्ष से चल रहा है. इसी प्रोग्राम के तहत हाल ही में दिल्ली आईआईटी ने ट्राइफेड के साथ एक एमओयू साइन किया है.’

विजय ने आगे कहा, ‘इसी क्रम में उन्नत भारत अभियान के तहत देश के अलग-अलग क्षेत्रों के आदिवासियों के विषयों के साथ ही ग्रामीण विकास समेत अन्य विषयों को लेकर भी हम वेबिनार आयोजित कर रहे हैं. इन वेबिनार में दिल्ली आईआईटी के शिक्षक, छात्र समेत सभी अन्य आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी समेत देश के अन्य रीजन में आने वाले अन्य शैक्षणिक संस्थाएं और उसके शिक्षक और छात्र भी जुड़ते हैं.

उन्होंने कहा, ‘आगामी दिनों में आदिवासियों की आजीविका को लेकर वेबिनार करने पर विचार कर रहे हैं.’

उन्नत भारत योजना के नेशनल कोऑर्डिनेटर ने बताया, ‘हमारा किसी विशेष विचाराधारा से कोई लेना-देना नहीं है. वेबिनार में उन लोगों को बुलाया जाता है जिन्होंने धरातल पर काम किया है. इस वेबिनार का मकसद आदिवासियों के जीवन को बेहतर ​कैसे बनाया जाए के साथ इस बात पर भी विचार किया जाता है कि नई तकनीक के जरिए उनके लिए क्या किया जा सकता है.’

विजय ने यह भी कहा, ‘हमें किसी विचाराधारा से कोई मतलब नहीं है.’

आरएसएस के अनुषांगिक संगठन वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकारिणी सदस्य हर्ष चौहान ने भी एक वेबिनार में हिस्सा लिया था. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘उन्नत भारत कार्यक्रम के तहत ग्राम विकास और आदिवासी उत्थान को लेकर वेबिनार आयोजित हो रहे हैं. इसमें एक वेबिनार में मैं भी शामिल हुआ था. इस कार्यक्रम में खासतौर पर उन्हें बुलाया जा रहा है जिन्होंने ग्रामीण विकास और आदिवासियों के लिए काम किया है.

आरएसएस से जुड़े हर्ष चौहान शिवगंगा समागम ग्राम विकास परिषद के सह संस्थापक भी हैं.

धर्मांतरण का सीधा प्रभाव राष्ट्रीयता के भाव को कमज़ोर करता है

20 जून को उन्नत भारत के तहत ‘अंडरस्टैंडिंग वैरीयस मोड्स ऑफ ट्राइबल डेवलपमेंट प्रोटेक्टिंग देअर इंडिजिनियस कल्चर फ्रॉम एक्सटर्नल इन्फ़्लूयन्स’ को लेकर एक वेबिनार आयोजित हुआ था.

इसमें फरीदाबाद स्थित राष्ट्रीय जल विद्युत निगम में वरिष्ठ प्रबंधक (पर्यावरण) और छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र पर कई पुस्तक लिखने वाले राजीव रंजन प्रसाद भी शामिल हुए. उन्होंने कहा, विश्वविद्यालय के विमर्श ने आदिवासी विमर्श की वास्तविकता को प्रभावित किया है. विश्वविद्यालय में बैठे प्रोफेसर और अकादमिक जगत के लोगों ने आदिवासी विमर्श को अपने सुविधा के अनुकूल उपयोग किया है. इसकी शुरुआत वहां से होनी चाहिए जहां आदिवासियों का रहना होता है.

राजीव रंजन प्रसाद ने अपने प्रेजेंटेशन में बताया, ‘शहरी नक्सली कोई भी हो सकता है यह बड़ी भयावह स्थिति है.’

वह आगे बताते हैं, यह समझने वाली बात है कि भारतीय पटल पर फैले विभिन्न तरह के आंदोलन, गैर सरकारी संगठन और समाजसेवी संस्थाएं आपस में मिलकर वृहद कम्युनिस्ट छतरी के भीतर हैं और विभिन्न नामों और उद्देश्य की आड़ में सम्मिलित रूप से एक ही उद्देश्य के लिए कार्य कर रहे हैं.

राजीव  रंजन कहते हैं, ‘थोड़ा ध्यान देकर ध्वनियों को सुनें तो कश्मीर मांगे आजादी बोलने वाले भी वही स्वर हैं जो बस्तर मांगे आजादी चिल्ला रहे हैं.’

प्रो. रंजन ने अपने प्रेजेंटेशन में बौद्धि​क आतंकवाद के बारे में कहा, ‘नक्सलियों के प्रति बौद्धिक वर्ग में एक खास तरह की सहानुभूति है. पीयूसीएल, पीयूडीआर, डॉ. दर्शन पॉल (पीडीएफआई), प्रो. जी.एन साईंबाबा, ऐनाविल्सन, गौतम नवलखा, डेमोक्रैटिक स्टूडेंट यूनियन, आरडीएफ आदि के नाम प्रमुख हैं. बेशक ये चेहरे और संगठन विगत कई वर्षों से सक्रिय हैं और उनकी मानसिकता भी स्पष्ट है. उन पर ये संगीन आरोप हैं कि वे सीपीआई माओवादी के आधार को विस्तार देने में जुटे हुए हैं.’

इसी कार्यक्रम में हर्ष चौहान भी शामिल हुए थे. उन्होंने कहा था प्रत्येक आदिवासी क्षेत्र का अपना जीवन जीने का तरीका है. अलग-अलग प्रांतों के आधार पर उनकी भाषा और संस्कृति है. जिस समाज में हमें काम करना है उस समाज को समझना जरूरी है. वर्तमान दौर में छात्रों को समझ विकसित करना आवश्यक है. हमें आदिवासी समाज को उनके आधार पर समझना होगा.’

1 अगस्त को फिर ‘अंडरस्टैंडिंग वैरीयस मोड्स ऑफ ट्राइबल डेवलपमेंट प्रोटेक्टिंग देअर इंडिजिनियस कल्चर फ्रॉम एक्सटर्नल इन्फ़्लूयन्-2’ विषय पर वेबिनार हुआ.

इसमें त्रिपुरा विधानसभा में भाजपा के सदस्य डॉ. अतुल देबबर्मा भी इस शामिल हुए. देबबर्मा त्रिपुरा में लंबे समय से आरएसएस के सहयोग से आदिवासियों के बीच सामाजिक मुद्दे पर काम कर रहे हैं.

डॉ. अतुल देबबर्मा ने वेबिनार में सवालों का जवाब देते हुए कहा, ‘आदिवासियों को लेकर चर्च की रणनीति बहुत ही आक्रमक रही है. आमतौर पर चर्च भगवान को एक बताता हैं और उसका ही प्रचार प्रसार करता है, लेकिन भारत में उन्होंने अपनी रणनीति के तहत कई सारे भगवान बना लिए हैं.’


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कार्यक्रम में गुवाहाटी विश्वविद्यालय में लोकगीत अनुसंधान विभाग के प्रमुख और कला व प्रदर्शन ​केंद्र प्रभारी निदेशक प्रोफेसर अनिल बोरो ने स्वदेशी संस्कृतियों और विकासात्मक मॉडल के दृष्टिकोण पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा, आदिवासी समाज को राजनीतिक दृष्टिकोण से देखने के बजाए स्वदेशी को अकादमिक और संबंधपरक अवधारणा के रूप में समझना चाहिए.

धर्मांतरण और बाहरी प्रभावों के खतरे के बारे में उन्होंने वेबिनार में कहा इसने प्रकृति से स्वदेशी लोगों को अलग कर दिया है. आदिवासी समाज की नई पीढ़ी स्वदेशी संस्कृति और पारंपरिक सामुदायिक संस्कृति को बचाने में विश्वास रखती है.

कार्यक्रम में पूर्वोत्तर के आदिवासियों के बारे में जिक्र करते हुए संघ के अनुशांषिक संगठन विद्या भारती के पूर्णकालिक सदस्य और ज़ेलियनग्रोंग हेरका एसोसिएशन के वरिष्ठ सचिव मोटिंग जुमे ने वेबिनार में कहा, ‘1820 के लगभग ईसाई मिशनरी का प्रवेश पूर्वोत्तर में हुआ, जिसके कारण यहां धर्मांतरण किया गया. नागालैंड में मिशनरी ने हर प्रकार के हथकंडे अपनाकर लोगों का धर्मांतरण किया.’

‘धर्मांतरण का सीधा प्रभाव राष्ट्रीयता के भाव को कमजोर करता है. आज सरकार और पूर्वोत्तर के बाहरी लोगों को हमारी संस्कृति समझनी होगी. अगर इसी प्रकार से धर्मांतरण होता रहा तो आने वाले समय में जनजातीय समाज विलुप्त हो जाएगा.’

पूर्वोत्तर क्षेत्र और वहां की जनजातियों में बाहरी प्रभाव का क्या असर पड़ा रहा है इस सवाल के जवाब में मोटिंग जुमे ने कहा, ‘बाहरी प्रभावों का समाज और संस्कृति पर नाकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है. इन प्रभाव के चलते लोग अपनी संस्कृति और धर्म की रक्षा करने में नाकाम हो गए हैं. अंतराष्ट्रीयता भाव भी जागृत हो गए हैं. अपने देश को अपना देश नहीं मानना- मैं अलग हूं मानना. लोगों में देशभक्ति की कमी दिखाई दे रही है.’

वेबिनार में सवाल के जवाब देते हुए जुमे ने आगे कहा, ‘धर्मांतरण के मामले में पूरा रोल चर्चा का ही है. इनका एक पूरा जाल है. कैसे काम करना है और लोगों को किस तरह से टारगेट करना है. बकायदा पूरी तैयारी से इनका काम होता है. हमारे यहां भी ऐसा ही हो रहा है. कोई भी व्यक्ति या मिशनरी के लोग चर्च की बात को टालते नहीं हैं.’

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2 टिप्पणी

  1. ITnse sallo se Left vale ghoom ghoom ke gyan de rahe the har colleget main university main esa news to kabhi nahi suna, dekha. AAJ RSS vale gaye to front news ban gya. Accha hai apko isse darna chahye kyunki leftist ke din khatam ho rahe hai.

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