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Friday, 22 November, 2024
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3 घंटे में 38 लाख रुपए: ओडिशा के रैपर और जाति-विरोधी कार्यकर्त्ता ने कैसे पूरा किया अपना ऑक्सफोर्ड का सपना

जेएनयू का एक पूर्व छात्र सुमीत समोस तुरुक, ऑक्सफोर्ड की किसी भी स्कॉलरशिप के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाया. अपने सपने को पूरा करने के लिए, उसने फिर क्राउडफंडिंग का सहारा लेने की कोशिश की.

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नई दिल्ली: 27 वर्षीय जाति-विरोधी कार्यकर्त्ता और रैपर सुमीत समोस तुरुक, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की ट्यूशन फीस भरने के लिए, क्राउडफंडिंग के ज़रिए 38 लाख रुपए जुटाने में कामयाब हो गया है.

तुरुक, जो दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) का पूर्व छात्र है, दक्षिण ओडिशा के कोरापुट का एक दलित है, जहां उसके पिता एक प्राइमरी स्कूल अध्यापक हैं. उसकी मां एक पूर्व सहायक नर्सिंग मिडवाइफ (एएनएम) कार्यकर्त्ता हैं.

जनवरी में जब ऑक्सफोर्ड में उसका आवेदन स्वीकार किया गया, तो वो यूनिवर्सिटी की किसी छात्रवृत्ति के लिए क्वालिफाई नहीं कर सका, और अपने सपने को पूरा करने के लिए, उसे क्राउडफंडिंग का सहारा लेना पड़ा.

तुरुक ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं कोई भी स्कॉलरशिप हासिल नहीं कर पाया, चूंकि मेरे अंग्रेज़ी के सत्पापन पेपर्स भी देरी से आए थे, इसलिए मैं छात्रवृत्ति की प्रक्रिया समय रहते पूरी नहीं कर पाया. जो स्कॉलरशिप्स उपलब्ध थीं, मैं उनके किसी न किसी मानदंड पर पूरा नहीं उतरता था, और आख़िरकार मुझे कुछ नहीं मिला’. तुरुक ने आगे कहा, ‘मैंने फिर ओडिशा सरकार को पत्र लिखकर, मेरी पढ़ाई स्पॉन्सर करने का आग्रह किया. शुरू में तो उन्होंने मेरे कोर्स के एक हिस्से को, स्पॉन्सर करने का वादा किया, लेकिन बाद में मुझसे कहा गया, कि ये संभव नहीं होगा, चूंकि ये मेरी दूसरी मास्टर्स डिग्री है’.

तब सुमीत को याद आया कि कश्मीर की एक छात्रा, ऑक्सफोर्ड की अपनी पढ़ाई के लिए, किस तरह क्राउडफंडिंग की सहायता से, फंड्स जुटाने में कामयाब हो गई थी. उसने कहा, ‘मुझे याद आया कि वो छात्रा किस तरह, ऑनलाइन फंड्स जुटाने में कामयाब हो गई थी, और अब वो ऑक्सफोर्ड में पढ़ रही है. इसलिए मैंने अपने दोस्तों से संपर्क किया, और हमने इसे ऑनलाइन डाल दिया’. उसने आगे कहा, ‘मुझे यक़ीन था कि समुदाय मेरी सहायता के लिए आगे आएगा, लेकिन मैंने ये नहीं सोचा था कि मैं, केवल 3 घंटे में 38 लाख रुपए जुटा पाउंगा’.


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जाति के मुद्दों पर फोकस

तुरुक ने अपनी अंडरग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट डिग्रियां, स्पेनिश तथा लेटिन अमेरिकी साहित्य में जेएनयू से लीं थीं, और अब वो अक्तूबर में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में, मॉडर्न साउथ एशियन स्टडीज़ के एमएससी प्रोग्राम में शामिल होगा. उसकी रिसर्च का फोकस जाति-विरोधी सक्रियतावाद होगा, एक ऐसा विषय जो उसके दिल के क़रीब है.

उसने कहा, ‘मेरी शोध थीसिस में 90 के दशक में हैदराबाद यूनिवर्सिटी से लेकर जेएनयू तक, जाति-विरोधी छात्र सक्रियतावाद पर नज़र डाली गई है, कि किस तरह डिजिटल मीडिया ने, जाति से जुड़ी चर्चाओं में एक निर्णायक शिफ्ट लाने में मदद की है’. उसने आगे कहा, ‘मेरे लिए ये विषय बहुत निजी है, और इससे बड़े समुदाय को समझने में भी सहायता मिलेगी’.

तुरुक के जाति-विरोधी सक्रियतावाद ने, संगीत का रूप ले लिया है. वो एक लोकप्रिय जाति-विरोधी रैपर है, जिसके यूट्यूब पर 4,000 से अधिक फॉलोअर्स हैं. अंग्रेज़ी, हिंदी और उड़िया में उनके गीत, जाति विभाजन, आम्बेडकरवाद, और बतौर दलित उसके अनुभवों से जुड़े हैं. उसने कहा, ‘पहले मैं केवल लेख लिखा करता था, लेकिन फिर मैं जेएनयू आया, और मैंने अपने विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करना सीखा. तब मुझे समझ आया, कि जागरूकता फैलाने के लिए मुझे अपनी सीमाओं को, दूसरे क्षेत्रों में भी विस्तार देना होगा, इसलिए मैंने गीत लिखने शुरू कर दिए, और ख़ुद को व्यक्त करने, तथा दलित मुद्दों को उठाने के लिए, रैप संगीत बजाना शुरू कर दिया’.

‘दलित के तौर पर सहायता नहीं मांगी’

तुरुक भले ही ऑक्सफोर्ड में अपनी पढ़ाई का ख़र्च उठाने के लिए, पैसा जुटाने में कामयाब हो गया, लेकिन अपने निवेदन को ऑलनाइन डालने पर, उसे नफरत और गालियों का भी शिकार होना पड़ा.

उसने बताया, ‘मुझे अपने अनुरोध को वहां से हटाना पड़ा, हालांकि फ्लाइट टिकट्स, स्वास्थ्य बीमा, और कुछ दूसरी मदों के लिए, मुझे अभी और 9 लाख रुपए की ज़रूरत है’. उसने आगे कहा, ‘मुझे बहुत सारे नफरत भरे संदेश मिले. लोगों ने मुझपर आरोप लगाया, कि मैं जाति के नाम पर पैसा ले रहा हूं; उन्होंने यहां तक कहा ‘दूसरे लोगों से पैसा मांगने की बजाय, मैं लोन क्यों नहीं ले सकता?’.

उसने कहा, ‘लेकिन, मैंने किसी से ये कहकर सहायता नहीं मांगी थी, कि मैं दलित हूं. मैंने केवल ये कहा कि ये मेरा रिसर्च टॉपिक है, और मुझे पैसे की ज़रूरत है, और मैंने अपने सारे सर्टिफिकेट्स भी लगा दिए’. उसने आगे कहा, ‘लोगों ने इसमें जाति का पेंच लगाना शुरू कर दिया. लेकिन मैं बस पैसा जुटाना चाहता था, ताकि जाकर पढ़ाई कर सकूं’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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