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Sunday, 22 December, 2024
होमदेश‘सैटेलाइट इमेजरी, रिमोट सेंसर’, भारत में अवैध रेत खनन से लड़ने के लिए नए प्लेटफ़ॉर्म की क्या है योजना

‘सैटेलाइट इमेजरी, रिमोट सेंसर’, भारत में अवैध रेत खनन से लड़ने के लिए नए प्लेटफ़ॉर्म की क्या है योजना

'इंडिया सैंड वॉच' का उद्देश्य पूरे भारत में रेत-खनन गतिविधियों पर नज़र रखना और पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और शोधकर्ताओं की मदद करना है.

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नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल के एक गैर-सरकारी संगठन ने एक नया पोर्टल लॉन्च किया है जो यूजर्स को पूरे भारत में अवैध रेत-खनन संबंधित गतिविधियों को लेकर जानकारी देगा. इस ओपन-डेटा प्रोजेक्ट, जिसे इंडिया सैंड वॉच का नाम दिया गया है, पिछले सप्ताह से लाइव हुआ है. वेदितुम इंडिया फाउंडेशन द्वारा लॉन्च किए गए इस पोर्टल का उद्देश्य रेत-खनन का डेटा एकत्र करना, एनोटेट करना और उसे संग्रहीत करना है.

इसकी वेबसाइट के अनुसार, वेदितुम इंडिया फाउंडेशन एक गैर-लाभकारी अनुसंधान और मीडिया संगठन है जो “पर्यावरण, सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियों के लिए काम करता है”.

अवैध रेत खनन में बिना लाइसेंस या परमिट के नदी तल से रेत का खनन शामिल है. वैध और अवैध दोनों प्रकार के रेत खनन का पर्यावरण पर बड़ा प्रभाव पड़ता है, जैसे नदी तल का कटाव जो अंततः बाढ़ का कारण बनता है.

हालांकि, अवैध रेत खनन को भारत में एक बड़ी समस्या के रूप में देखा जाता है, लेकिन इसे ट्रैकिंग के लिए बड़े पैमाने पर कोई तंत्र नहीं हैं.

यहीं पर इंडिया सैंड वॉच चलन में आता है. संस्थापक सिद्धार्थ अग्रवाल के अनुसार, रेत खनन पर नज़र रखने के लिए एक तंत्र का विचार उन्हें 2016 में आया था.

10 अगस्त को प्लेटफ़ॉर्म के वर्चुअल लॉन्च पर संस्थापक सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा, “जब मैं गंगा के किनारे घूम रहा था, तब मैंने पहली बार इतने बड़े पैमाने पर रेत खनन देखा, जिसकी मैं पहले कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था.”

इसके बाद उन्होंने समाधान खोजने के लिए ओलोई लैब्स के अपने दोस्त अक्षय रूंगटा के साथ मिलकर- एक प्रौद्योगिकी कंपनी जो सामाजिक और पारिस्थितिक कारणों के लिए काम करती है- काम किया.

मंच के लॉन्च पर उन्होंने कहा, “हमने खुद से पूछा क्या होगा अगर हम इसे बड़े पैमाने पर कर सकें- उन स्थानों की पहचान करें और उनका नक्शा तैयार करें जहां अवैध रूप से रेत का खनन किया जा रहा है.”

संस्थापकों के अनुसार, प्लेटफ़ॉर्म पर वर्तमान में रेत खनन पर 800 सार्वजनिक दस्तावेज़ हैं. साथ ही 679 समाचार रिपोर्ट, 123 निविदा दस्तावेज़ और 76 जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट भी शामिल है.

पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन करने के प्रयास में किसी भी खनन योजना का आकलन करने के लिए जिला सर्वेक्षण रिपोर्टें में की जाती हैं. किसी खनन परियोजना को हरी झंडी मिलने से पहले प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा यह कार्य किया जाता है.

अग्रवाल ने कहा, “प्लेटफार्म के साथ हमारा उद्देश्य ऐसी जानकारी प्रदान करना है जो देश में रेत खनन के संबंध में जवाबदेही की भावना पैदा करने में मदद करे.”

लेकिन कुछ लोगों को इसके लेकर संशय भी है. साउथ एशियन नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (SANDRP) के समन्वयक हिमांशु ठक्कर – जो नदियों और बांधों जैसे बड़े पैमाने पर जल बुनियादी ढांचे से संबंधित मुद्दों पर काम करने वाला एक नेटवर्क है- इंडिया सैंड वॉच के काम के दायरे पर सवाल उठाते हैं.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “रेत खनन मूलतः एक विकेन्द्रीकृत गतिविधि है, जो भारत के 700 जिलों में फैली हुई है. यहां तक ​​कि एक जिले के भीतर भी, कई फैक्टर इसमें भूमिका निभाते हैं. एक व्यापक दृष्टिकोण के बजाय इस क्षेत्र में एक केंद्रित प्रयास की आवश्यकता है.”


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यूजर्स का योगदान, रिमोट सेंसर – पाइपलाइन में कौन सा प्लेटफ़ॉर्म है

रेत को खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत एक लघु खनिज के रूप में वर्गीकृत किया गया है. 2022 संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की रिपोर्ट के अनुसार, यह दुनिया का दूसरा सबसे अधिक दोहन किया जाने वाला संसाधन भी है.

भारत में, अवैध रेत खनन एक महत्वपूर्ण समस्या है, मीडिया रिपोर्ट्स में अक्सर रेत माफियाओं द्वारा पत्रकारों और सरकारी अधिकारियों पर हमले की खबरें आती रहती हैं.

अग्रवाल के अनुसार, इंडिया सैंड वॉच को बनने में एक दशक का समय लग गया है, जिसका जन्म वेदितम के ओलोई लैब्स, पर्यावरण गैर-लाभकारी रेनमैटर फाउंडेशन और वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन ट्रस्ट और कैलिफोर्निया स्थित यूसी बर्कले की ग्लोबल पॉलिसी लैब के सहयोग से हुआ है.

लेकिन इसके संस्थापक अवैध रेत खनन पर जानकारी एकत्र करने के अलावा और भी बहुत कुछ करना चाहते थे. उन्होंने कहा, इसका उद्देश्य इंडिया सैंड वॉच को पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और शोधकर्ताओं के लिए एक प्लेटफार्म के रूप में बनाना है.

अग्रवाल ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था, “बहुत सारे समाचार रिपोर्ट्स से हमें रेत खनन के बारे में जानकारी मिली, लेकिन साथ ही यह भी पता चला कि लोग इसका विरोध कैसे कर रहे हैं. हमने सोचा कि हम इस जानकारी को अदालतों और राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण तक कैसे पहुंचा सकते हैं. हमारे वेबसाइट पर रिपोर्ट्स देश भर से शामिल किया गया है.”

अग्रवाल ने कहा, प्लेटफ़ॉर्म जल्द ही यूजर्स को भी अपनी जानकारी देने की अनुमति देगा. उन्होंने कहा, “हम ऐसे डेटा को सत्यापित करने के लिए एक तंत्र स्थापित करेंगे और साथ ही यूजर्स को प्लेटफ़ॉर्म पर नेविगेट करने में मदद करने के लिए ट्यूटोरियल की व्यवस्था भी करेंगे.”

इसके ट्रैकिंग टूल का विस्तार करने की अन्य योजनाएं भी हैं, जैसे रिमोट सेंसिंग और सैटेलाइट इमेजरी की शुरुआत आदि. अग्रवाल ने कहा, इनके अलावा, प्लेटफार्म “भारत के पांच राज्यों में रेत खनन की स्थिति पर” रिपोर्ट भी जारी करेगा.

प्रोजेक्ट में भागीदार अक्षय रूंगटा ने भारत में अवैध रेत खनन के खिलाफ लड़ाई में इंडिया सैंड वॉच को “पारिस्थितिकी तंत्र को सक्षम बनाने वाला” कहा.

उन्होंने लॉन्च के समय कहा, “यह लॉन्च सिर्फ शुरुआत है, और हम सहयोगियों को एक ऐसा मंच बनाने में मदद करने के लिए आमंत्रित करते हैं जो रेत खनन के संबंध में नीति, पर्यावरण और शासन से जुड़े सवालों का समाधान कर सके.”

लेकिन SANDRP के ठक्कर, जिनका पहले हवाला दिया गया था, का मानना ​​है कि जब अवैध रेत खनन की बात आती है तो असली समस्या कानून प्रवर्तन है.

उन्होंने का, “अदालत के दस्तावेज़ और जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध हैं. असली समस्या उनका कार्यान्वयन है – जिसे हम तभी हासिल कर सकते हैं जब राज्य इसपर ध्यान देगा.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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