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Saturday, 9 August, 2025
होमदेश'सिर्फ आरोप'—कैसे मालेगांव फैसले ने RDX और साजिश बैठकों पर ATS और NIA के दावों को खारिज कर दिया

‘सिर्फ आरोप’—कैसे मालेगांव फैसले ने RDX और साजिश बैठकों पर ATS और NIA के दावों को खारिज कर दिया

स्पेशल एनआईए कोर्ट ने 2008 धमाके के 7 आरोपियों को बरी किया. कोर्ट ने कहा कि बयानों में बड़ी विसंगतियां और विरोधाभास हैं, जिससे जांच एजेंसी का केस कमजोर हुआ और आरोपियों का दोष संदेह से परे साबित नहीं हो सका.

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नई दिल्ली: 2008 मालेगांव बम धमाका केस में सभी सात आरोपियों को बरी करते हुए मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने एनआईए और महाराष्ट्र एटीएस दोनों की ओर से पेश किए गए अभियोजन की सभी थ्योरी खारिज कर दी हैं.

विशेष न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने कहा कि अभियोजन एक भी भरोसेमंद गवाह पेश नहीं कर सका जो यह साबित कर सके कि साजिश की सिलसिलेवार बैठकें हुई थीं, धमाके में इस्तेमाल विस्फोटक का स्रोत क्या था, और उसे कैसे संभाला और घटनास्थल तक पहुंचाया गया.

शुक्रवार को जारी 1036 पन्नों के विस्तृत फैसले में पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त), अजय रहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी को 17 साल पुराने इस मामले में बरी कर दिया गया.

यह मामला पहले एटीएस ने जांचा था, बाद में केंद्र सरकार के आदेश पर एनआईए ने इसे अपने हाथ में लिया. एटीएस ने जनवरी 2009 में पहली चार्जशीट दाखिल की, जबकि एनआईए ने मई 2016 में चार्जशीट दाखिल की.

“रिकॉर्ड पर उपलब्ध सभी सबूतों के व्यापक मूल्यांकन के बाद मेरा मानना है कि अभियोजन ठोस, भरोसेमंद और कानूनी रूप से स्वीकार्य सबूत पेश करने में नाकाम रहा. अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही में गंभीर विरोधाभास और असंगतियां हैं. ऐसे अंतर अभियोजन के मामले की विश्वसनीयता को कमजोर करते हैं और संदेह से परे दोष साबित करने में नाकाम रहते हैं,” जज लाहोटी ने कहा.

अदालत ने अभियोजन पक्ष के मामले में कई खामियां गिनाईं और संदेह का लाभ देते हुए आरोपियों को बरी किया.

कैसे फैल हुई आरडीएक्स की थ्योरी

29 सितंबर 2008 की रात, रमजान के महीने और नवरात्रि की पूर्व संध्या पर, मालेगांव में अंजुमन चौक और भीकू चौक के बीच स्थित शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट कंपनी के सामने बम फट गया. विस्फोटकों को एक मोटरसाइकिल में छुपाया गया था. धमाके में छह लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए.

धमाके के कुछ घंटों बाद, नासिक ग्रामीण पुलिस ने आईपीसी और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज किया. कुछ हफ्तों बाद, स्थानीय पुलिस ने यूएपीए की धाराएं जोड़ीं. 21 अक्टूबर 2008 को महाराष्ट्र एटीएस ने केस दर्ज कर जांच अपने हाथ में ले ली.

अगले दो महीनों में, एटीएस ने पुरोहित और ठाकुर समेत 11 आरोपियों को साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया.

एटीएस का दावा था कि सभी आरोपी अभिनव भारत नाम के एक दक्षिणपंथी संगठन से जुड़े हैं. जनवरी 2009 में उन पर मकोका लगाया गया.

आरडीएक्स के स्रोत को लेकर एटीएस ने आरोप लगाया कि पुरोहित ने इसे जम्मू-कश्मीर में सेना अधिकारी के रूप में तैनाती के दौरान हासिल किया और इसे एक अलमारी में रखा. फिर यह चतुर्वेदी के घर में असेंबल हुआ. इसके बाद एक रामजी ने इसका इस्तेमाल धमाके के लिए किया और इसे प्रज्ञा ठाकुर की एलएमएल फ्रीडम मोटरसाइकिल में फिट किया गया.

एनआईए ने अपनी थ्योरी में कहा कि रामजी और एक अन्य आरोपी संदीप डांगे इस बाइक का इस्तेमाल धमाके से एक साल पहले से कर रहे थे और इसे मध्य प्रदेश के सेंधवा पहुंचाया गया था.

आरडीएक्स के असेंबली और ट्रांसपोर्टेशन को लेकर अदालत ने एनआईए की थ्योरी को खारिज कर दिया और कहा कि इसे इंदौर से मालेगांव लाने का कोई सबूत नहीं है.

चतुर्वेदी के घर में आरडीएक्स फिट किए जाने के एटीएस के दावे को समर्थन देने वाले गवाह जिरह के दौरान पलट गए.

एटीएस का दावा था कि उसने चतुर्वेदी के घर छापा मारा और फर्श से स्वैब लिया गया, जिसमें विस्फोटक के अंश मिले.

लेकिन सेना के दो गवाहों ने कहा कि उन्होंने एक एटीएस अधिकारी को वहां बैग के साथ देखा था, जो फर्श को रगड़ रहा था. बाद में वहीं से विस्फोटक के अंश मिले. उन्होंने बताया कि जांच में पहले यह बात नहीं कही गई थी क्योंकि अधिकारी ने अपनी नौकरी जाने का डर जताया था.

अदालत ने संभावना जताई कि वहां विस्फोटक सामग्री रखी गई हो सकती है.

गवाहों ने बदले बयान

आरडीएक्स की खरीद को लेकर अदालत ने अभियोजन पक्ष के पांच गवाहों—शैलेश रैकर, शिरीष यशवंत डेट, कैप्टन नितिन जोशी, मिलिंद अविनाश जोशी राव और महाराष्ट्र एटीएस के एसीपी मोहन कुलकर्णी—पर भरोसा करने का जिक्र किया.

रैकर मार्च 2008 तक भारतीय सेना में कार्यरत थे और एटीएस ने उनका बयान पेश किया जिसमें पुरोहित को उनकी कश्मीर में पोस्टिंग और आरडीएक्स के संभावित स्रोत के संदर्भ में फंसाया गया था.

इसी तरह, एटीएस ने व्यापारी डेट का भी बयान पेश किया जो पुरोहित के खिलाफ था. लेकिन जिरह के दौरान दोनों ने कहा कि एटीएस ने उन पर पुरोहित के खिलाफ बयान देने का दबाव डाला था. अदालत ने उनके बयानों को खारिज कर दिया.

एटीएस ने जोशी को, जो नासिक के भोंसला मिलिट्री स्कूल में मुख्य प्रशासन और प्रशिक्षण अधिकारी के रूप में तैनात थे, अपना मुख्य गवाह बताया और आरोप लगाया कि पुरोहित ने उनके सामने कबूल किया था कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर से आरडीएक्स लाकर अपने घर की अलमारी में रखा था.

लेकिन जिरह के दौरान जोशी ने एटीएस द्वारा उनसे जोड़ा गया बयान वापस ले लिया. उन्होंने कहा कि उन्होंने 2007 में कभी पुरोहित से मुलाकात नहीं की और न ही आरडीएक्स पर कोई बातचीत हुई. उन्होंने कहा कि लंबी पूछताछ और एटीएस के दबाव के कारण उन्होंने पुरोहित के खिलाफ बयान दिया था.

इसी तरह, लिफ्ट व्यवसाय में काम करने वाले व्यापारी जोशी राव ने कहा कि उन्हें 28 अक्टूबर से 7 नवंबर 2008 के बीच हिरासत में लिया गया और इस दौरान एटीएस ने उनसे पुरोहित के खिलाफ बयान दिलवाया.

सबसे बड़ा खुलासा कुलकर्णी से हुआ, जो एटीएस के मुख्य जांच अधिकारी थे. उन्होंने अदालत में कहा कि उन्होंने कभी यह जांच नहीं की कि पुरोहित कश्मीर से आरडीएक्स लाए थे या वहां उनकी पोस्टिंग थी.

उनके इस बयान के बाद पुरोहित के खिलाफ एटीएस का पूरा मामला ध्वस्त हो गया.

जज ने कहा, “पीडब्ल्यू-320 (एसीपी मोहन कुलकर्णी) के बयानों से स्पष्ट है कि उन्होंने ए-9 (पुरोहित) से संबंधित आरडीएक्स के स्रोत, खरीद और परिवहन के बारे में कोई जानकारी इकट्ठा नहीं की.”

उन्होंने आगे कहा, “रिकॉर्ड में कुछ नहीं है जो यह दिखाए कि ए-9 ने कश्मीर से आरडीएक्स कैसे लाया, सिवाय आरोपों के. इसलिए पीडब्ल्यू-320 की गवाही भी अभियोजन पक्ष के लिए मददगार नहीं है.”

साजिश बैठकों का सवाल

अभियोजन पक्ष का मामला मुख्य रूप से आरोपियों के बीच धमाके से पहले हुई कथित बैठकों पर टिका था.

आरोप था कि महाराष्ट्र के रायगढ़ किले में हुई एक बैठक में दक्षिणपंथी संगठन बनाने का विचार पुरोहित का था. इसमें वह और अन्य आरोपी मौजूद थे जिन्हें बाद में अभियोजन गवाह बनाया गया.

इन गवाहों ने अदालत में किसी भी बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया.

अभियोजन ने यह भी आरोप लगाया कि जनवरी 2008 में फरीदाबाद में अभिनव भारत की बैठक में पुरोहित ने धमाकों के लिए लोगों की व्यवस्था करने और भड़काऊ भाषण देने की बात कही थी.

अभियोजन ने दावा साबित करने के लिए छह गवाह पेश किए, जो कथित तौर पर फरीदाबाद बैठक में मौजूद थे. लेकिन उन्होंने अभियोजन का साथ नहीं दिया और मुकर गए.

अभियोजन ने आगे कहा कि 11 और 12 अप्रैल 2008 को भोपाल में हुई बैठक में मालेगांव में घनी आबादी वाले इलाके में बम धमाका करने की योजना बनी थी. इसमें ठाकुर, पुरोहित और तीन अन्य, जिनमें चतुर्वेदी भी थे, शामिल हुए थे.

अभियोजन ने दावा किया कि इस बैठक में पुरोहित ने धमाके के लिए विस्फोटक और लोगों की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी ली थी.

लेकिन अभियोजन का मुख्य गवाह यशपाल भदाना, जो फरीदाबाद का रहने वाला है, अपने बयान से पलट गया. उसने कहा कि उसने कभी भोपाल की बैठक में हिस्सा नहीं लिया और यह भी नहीं जानता कि उसमें कौन शामिल था. उसने आरोप लगाया कि एटीएस ने उससे भोपाल बैठक पर बयान लेने के लिए पांच दिन तक सुबह से शाम तक पूछताछ की.

अभियोजन का एक और मुख्य गवाह, जो भोपाल बैठक में मौजूद था, ने अदालत में यह पुष्टि नहीं की कि पुरोहित और ठाकुर ने मालेगांव में धमाका करने की बात कही थी.

‘मामला परिस्थितिजन्य सबूतों पर टिका है’

एनआईए ने अपने आरोपपत्र में कहा कि वांछित आरोपी रामजी ने अपने दो सहायकों—धन सिंह और अमित हकला—को मालेगांव का दौरा कर धमाके के लिए जगह चुनने का निर्देश दिया था और यह काम धमाके वाले महीने में ही किया गया था.

लेकिन अदालत ने कहा कि 323 गवाहों से पूछताछ और एनआईए द्वारा धन सिंह से पूछताछ के बावजूद इसे साबित करने के लिए कोई गवाह या सबूत नहीं मिला.

जज ने कहा, “मुझे लगता है कि कथित रेकी सिर्फ शब्दों तक ही सीमित रही. इन शब्दों के अलावा एक भी सबूत नहीं है और इसलिए इसमें कुछ नहीं बचता.”

अदालत ने यह भी कहा, “घटना के दिन, या उससे पहले या बाद में, मालेगांव में आरोपियों की मौजूदगी के बारे में कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है.”

अदालत ने यह भी खारिज कर दिया कि मोटरसाइकिल को धमाके वाली जगह पर खड़ा किया गया था. कहा कि रमजान के मौके पर बाजार में भीड़ के कारण भारी पुलिस तैनाती और बाहर से वाहनों के प्रवेश पर रोक के चलते, उस मोटरसाइकिल को लाना असंभव था, जिसके बारे में दावा किया गया था कि उसका इस्तेमाल धमाके में हुआ था.

आदेश में कहा गया, “इन परिस्थितियों में बाहर से वाहन लाना और उसे खड़ा करना असंभव लगता है. इस बात का भी कोई सबूत नहीं है कि आरडीएक्स से लदी/फिट मोटरसाइकिल को शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट के सामने किसी आरोपी ने या आरोपी की ओर से किसी और ने खड़ा किया हो.”

जज ने कहा, “उपरोक्त बिंदुओं पर पूरा मामला परिस्थितिजन्य सबूतों पर टिका है.”

आरोपियों को बरी करते हुए आदेश में जज ने कहा, “इस नतीजे पर पहुंचने के लिए कि कथित साजिश के अनुसार बम धमाका आरोपियों ने किया था या नहीं, रिकॉर्ड पर मौजूद पूरे सबूतों को देखना जरूरी है. यह अच्छी तरह स्थापित सिद्धांत है कि परिस्थितियां आपस में इस तरह जुड़ी होनी चाहिए कि एक पूरी कड़ी बने और उस कड़ी में किसी और के अपराध करने की संभावना न हो.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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