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Sunday, 22 December, 2024
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भारतीय जवानों ने 15 जून की रात गलवान में कैसे चीनियों को एलएसी पार एक किमी तक खदेड़ा

15 जून की रात और उसके पहले जो कुछ भी हुआ, उसका ब्योरा हमें बताता है कि आखिर गलवान घाटी में हिंसक झड़प कैसे शुरू हुई.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी से पता चलता है कि चीन के छल और एक समझौते को तोड़े जाने की वजह से ही 15 जून की रात गलवान घाटी में हिंसक झड़प की नौबत आई थी जिसमें भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए और कई अन्य घायल हो गए.

यद्यपि, सूत्रों ने बताया कि यह एकतरफा झड़प नहीं थी और वो रात 16 बिहार रेजीमेंट और अन्य यूनिट के जवानों द्वारा चीनियों को करीब एक किलोमीटर खदेड़े जाने की गवाह बनी, जब चीनी सैनिकों को सुरक्षा के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास स्थित अपनी यूनिट की तरफ भागना पड़ा.

दिप्रिंट ने ऐसे कई लोगों से बात की जो इस मामले के जानकार हैं और कुछ समय के लिए गलवान घाटी में एक किलोमीटर तक घुस आए चीनियों को खदेड़े जाने के पूरे घटनाक्रम से वाकिफ हैं.

15 जून से पहले: एक सैन्य करार

सोमवार रात की घटना गलवान नदी के पास इलाके में हुई, जो अक्साई चीन से निकलती है और रिवर ऑफ डेथ कही जाने वाले श्योक नदी में जाकर मिलती है. एक खास जगह पर गलवान नदी बाईं तरफ तीखा मोड़ लेती है और फिर श्योक नदी में मिल जाती है.

श्योक-गलवान नदियों के इसी संगम के पास पेट्रोल प्वाइंट 14 (पीपी 14) स्थित है.

भारतीय सैनिक पारंपरिक तौर पर पीपी 14 के पास तक गश्त करते हैं लेकिन दोनों पक्षों के बीच स्थानीय स्तर पर बनी सहमति के आधार पर वहां पर कोई शिविर या चौकी नहीं बनाई गई.

इसी तरह, समय-समय पर चीनी फौजी भी पीपी 14 तक गश्त करते हैं. यही वह जगह है जहां दोनों पक्ष बातचीत के लिए मिलते हैं.

मई के शुरू में पीपी 14 के पास चीन का एक तंबू नजर आया था. इसे भारतीय क्षेत्र माना जाता है और मई में भारत की तरफ से इस निर्माण का विरोध किया गया. इस दौरान श्योक नदी की तरफ नीचे उतरने का प्रयास कर रहे कुछ चीनी सैनिकों से झड़प भी हुई.

सूत्रों के मुताबिक, चीनियों ने बाद में इस तंबू को हटा लिया और पीपी 14 से हटकर अपने इलाके में लौट गए.

हालांकि, दोनों पक्षों ने वहां अपने सैनिक बढ़ा दिए और पीपी 14 पर एक तरह से गतिरोध की स्थिति बन गई.

14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और उनके चीनी समकक्ष, दक्षिणी शिनजियांग सैन्य डिस्ट्रिक्ट के कमांडर, मेजर जनरल लिन लियू के बीच 6 जून की बैठक में तय हुआ कि दोनों पक्ष पीपी 14 पर अपनी मौजूदा स्थितियों से करीब दो किलोमीटर पीछे लौट जाएंगे.

इसके मुताबिक, भारतीय सैनिक पीछे लौटे और चीनियों ने भी ऐसा ही किया.

हालांकि, सूत्रों के मुताबिक, कुछ दिन बाद ही भारत ने पाया कि चीनियों ने समझौते का उल्लंघन किया है और ढलान पर दो नए तंबू लगा लिए हैं जिसमें एक के निगरानी चौकी होने का अंदेशा है.

चीनियों को कई बार इन्हें हटाने के लिए कहा गया और बाद में रविवार, 14 जून की रात भारतीय जवानों ने जबरन दो में से एक तंबू को तोड़ दिया और उसे आग के हवाले कर दिया.

15 जून : एक बड़ा संघर्ष

15 जून को 16 बिहार रेजीमेंट के कमांडिंग अफसर कर्नल संतोष बाबू ने पीपी 14 पर अपने चीनी समकक्ष के साथ बैठक की. यह तय किया गया कि दोनों पक्ष 6 जून के फैसले का कड़ाई से पालन करेंगे जिसका मतलब था कि चीनियों को ढलान पर खड़ा किया गया अपना ढांचा हटाना होगा.

शाम लगभग 7 बजे के करीब, जैसा दिप्रिंट ने प्रकाशित किया था, कर्नल संतोष बाबू सैन्य अधिकारियों और जवानों की एक छोटी टुकड़ी के साथ यह पता लगाने के लिए गए थे कि चीन की तरफ से समझौते का अनुपालन किया गया या नहीं.

इसके बाद जो हुआ इसकी जानकारी कुछ स्पष्ट नहीं हो पाती है. कुछ सूत्रों का कहना है कि शुरू में एक मेजर और कुछ नॉन-कमीशंड अधिकारी पीपी 14 की तरफ गए थे और उन्हें वहां बंधक बना लिया गया, जबकि अन्य का कहना है कि कर्नल बाबू गए थे.

इतना तो पुष्ट है कि कर्नल संतोष बाबू जब पीपी 14 के पास पहुंचे तो उनके साथ 40 अन्य सैन्यकर्मी मौजूद थे जिसमें अधिकारी और यूनिट के फोटोग्राफर भी.

यह देखकर की तंबू अभी भी लगे हुए हैं कमांडिंग ऑफिसर ने अपने जवानों को उन्हें हटाने का आदेश दे दिया. इस पर वहां पहुंचे चीनी सैनिकों के एक छोटे समूह के साथ बहस शुरू हो गई.

सूत्रों के मुताबिक, धीरे-धीरे बात धक्का-मुक्की और हाथापाई पर पहुंच गई. इसमें भारतीय जवान चीनियों पर भारी पड़े.

करीब डेढ़ घंटे तक यह सब चलता रहा और इसी झड़प के बीच अस्थायी ढांचा तोड़ दिया गया.

इसी बीच, चीनी सैनिकों एक बड़ा समूह घटनास्थल पर पहुंच गया जो लोहे की छड़ों व पत्थरों के अलावा कीलें और नुकीले तार लगी लाठियां भी लिए थे.

संख्या बल और हथियारों के लिहाज से तो चीनी मजबूत स्थिति में थे ही, भौगोलिक स्थिति भी उनके पक्ष में थी.

चीनियों ने भारतीय जवानों पर हमला कर दिया और मोर्चे में आगे ही होने के कारण कमांडिंग ऑफिसर (सीओ) इसकी जद में आकर घायल हो गए.

वह गलवान नदी के बर्फीले पानी में गिर गए जबकि उनके साथ मौजूद जवान अपनी लाठियों के सहारे ही मुकाबला करते रहे.

सूत्रों के मुताबिक, सीओ पर हमले से भारतीय जवान गुस्से से भड़क उठे और उन्होंने चीनियों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे हथियारों को छीनकर उसी से उन पर वार करना शुरू कर दिया. वह अपनी पूरी शारीरिक क्षमता के मुताबिक लड़े.

एक सूत्र ने बताया, चीन की तरफ से छल किया गया था. भारतीय दल पर हमला सुनियोजित था. सीओ तो सद्भाव में अपनी टीम के साथ वहां गए थे क्योंकि दिन में एकदम सकारात्मक वातावरण में बातचीत हुई थी.

सूत्रों के मुताबिक, यह झड़प एक चट्टान की कगार पर होने के कारण दोनों तरफ के कई जवान नदी के बर्फीले पानी में गिर गए.

उन्होंने आगे कहा कि भारत की तरफ से 20 जवान शहीद हुए हैं, इसमें से आठ की मौत हाइपोर्थमिया के कारण हुई, क्योंकि वह चट्टान से नीचे नदी में गिरने के कारण घायल हो गए थे. मंगलवार सुबह के पहले वहां कोई राहत पहुंचने की गुंजाइश नहीं थी.

भारतीय पक्ष ने संघर्ष बढ़ने का अनुमान लगते ही बैकअप टीम को बुला लिया. इसमें 16 बिहार के जवानों के अलावा अन्य यूनिट शामिल थीं जो गतिरोध के मद्देनजर क्षेत्र में तैनात की गई थीं.

सुरक्षा और सामरिक कारणों से इन यूनिट के नाम का खुलासा नहीं किया जा रहा है.

लाठी-डंडों से लैस और भारतीय जवान जब वहां पहुंचे तो चीनियों ने उन पर पथराव शुरू कर दिया और यहां तक कि भारतीय टीम की तरफ बड़े-बड़े पत्थर लुढ़काने शुरू कर दिए.

सूत्रों के मुताबिक, हिंसक झड़प के दौरान कई चीनी सैनिक बुरी तरह घायल हो गए थे.

दोनों पक्षों की तरफ से पथराव के कारण हालात ऐसे बन गए थे कि कई बार तो सैनिकों की तरफ से फेंके जा रहे पत्थर उनके अपने साथियों को ही लग रहे थे.

एक सूत्र ने बताया, जहां पर लड़ाई हो रही थी वो जगह बेहद संकरी थी. संघर्ष के बीच एक जगह पर आकर भारतीय जवान फिर चीनियों पर भारी पड़ने लगे और तब वे पीपी 14 के मुख्य क्षेत्र की तरफ भागे जिसके पीछे चीनियों ने निर्माण कर रखा था.

भारतीय जवानों का एक दल तब उन्हें खदेड़ते हुए एक अनदेखी रेखा, जिसे वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) माना जाता है, के पार चला गया.

सूत्रों ने बताया कि वहीं पर 10 भारतीय जवानों को बंधक बना लिया गया, जहां चीन ने एक बड़ा निर्माण कर रखा था.

दोनों पक्षों के बीच खींचतान जारी रहने के कारण कई घंटों तक अंधेरे में ही यह लड़ाई चलती रही.

16 जून: सुबह के बाद

सुबह दोनों पक्षों ने लड़ाई रोकने का फैसला किया और शव ले जाने के साथ-साथ घायलों को मदद पहुंचाई गई.

कुछ सैनिक जो दूसरे पक्ष की हिरासत में रह गए थे उन्हें पीपी 14 पर मेजर जनरल स्तर की वार्ता के बाद छोड़ दिया गया.

दोनों पक्षों ने तय किया कि घायलों की देखभाल की जाए.

हालांकि, चीन की तरफ से उन 10 जवानों को गुरुवार को ही छोड़ा गया जो पीछा करते हुए एलएसी पार कर गए थे.

एक सूत्र ने कहा, यह एक ऐसी लड़ाई थी जो चीन की धोखेबाजी से शुरू हुई थी. यह वहां पर तैनात सैनिकों की साहसिक जंग भी है जिन्होंने न केवल चीनियों का जमकर मुकाबला किया बल्कि उन्हें भारत के साथ ना उलझने का सबक भी सिखा दिया.

सोमवार को हुई झड़प के बाद चीनी पीपी 14 पर भारतीय क्षेत्र से पीछे हट गए हैं और 6 जून को लिए गए फैसले के अनुरूप वापस अपनी जगह पर लौट गए हैं.

भारतीय भी पीछे लौटे हैं लेकिन कड़ी सतर्कता बरत रहे हैं. 22 जून की वार्ता की तरह आने वाले समय में होने वाली अन्य बैठकें भी गश्त के नए तौर-तरीकों के अलावा तनाव और घटाने और यह स्पष्ट करने वाली नीति के अनुपालन पर केंद्रित होंगी कि एलएसी से कितनी दूरी पर और कितने सैनिक तैनात होंगे.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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