चंडीगढ़: हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को किसानों का आंदोलन राज्यभर में फैलने के कारण तो दबाव झेलना ही पड़ रहा है, उन्हें एक और मोर्चे पर भी जूझना पड़ रहा है—यह हैं उनके कृषि मंत्री जयप्रकाश दलाल जो लगातार शर्मिंदगी का सबब बन रहे हैं.
सितंबर में किसानों के सड़कों पर उतरने के बाद से उनके आंदोलन को पटरी से उतारने की कोशिश में जुटे दलाल कुछ न कुछ ऐसा कहते-करते रहते हैं जो उन्हें और उनकी सरकार को मुश्किल में डाल देता है.
पिछले शनिवार को उन्होंने फिर यही किया, जब उन्होंने दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले रहने के दौरान अपनी जान गंवाने वाले किसानों को लेकर अपनी टिप्पणी से एक अन्य विवाद खड़ा कर दिया.
एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान मंत्री से आंदोलन के दौरान लगभग 200 किसानों की मौत पर उनकी प्रतिक्रिया पूछी गई थी. इस पर दलाल ने हंसते हुए कहा, ‘अगर वे अपने घरों में होते तो क्या नहीं मरते? यहां पर जब एक लाख, दो लाख लोग हैं तो क्या छह महीनों में उनमें से 200 लोग मरेंगे नहीं? कुछ दिल का दौरा पड़ने से मर रहे हैं, और कुछ सर्दी से. भारत में औसत आयु कितनी है और एक वर्ष में कितने लोग मरते हैं. वे उसी अनुपात में मर रहे हैं.’
दलाल आगे यह कह बैठे कि कुछ किसानों ने ‘आत्महत्या कर ली है.’ यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने किसानों की मौत पर शोक जताया, दलाल ने हंसते हुए कहा, ‘मैं तो किसी की भी मौत पर शोक जताता हूं.’
शनिवार की इस प्रेस कांफ्रेंस का एक वीडियो वायरल हो गया है और विपक्ष और किसान संगठनों ने इस पर खासी नाराजगी जताई. दलाल ने इस पर रविवार को अपने फेसबुक पेज पर डाले एक वीडियो संदेश के जरिये माफी मांगी और दावा किया कि उनकी बातों को गलत संदर्भ में पेश किया गया है.
हालांकि, यह पहला मौका नहीं है जब पहली बार विधायक और मंत्री बने दलाल आंदोलन पर अपनी टिप्पणियों के कारण मुसीबत में आए हैं.
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एक सीरियल ‘ऑफेंडर’
आंदोलनकारी किसानों से दुश्मनी मोल लेने की बात आती है तो भिवानी जिले के लोहारू से विधायक ये मंत्री एक सीरियल ऑफेंडर नजर आते हैं.
नवंबर अंत में जब आंदोलनकारी किसान दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे थे तब उन्होंने दावा किया था कि किसानों के जरिये चीन और पाकिस्तान भारत को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं.
एक हफ्ते बाद ही दिसंबर के शुरू में दलाल ने हरियाणा में एक राज्यव्यापी अभियान शुरू करने का प्रयास किया ताकि राज्य के किसानों की तरफ से पंजाब के किसानों का समर्थन न किया जाना सुनिश्चित हो सके. उन्होंने यह कहते हुए प्रदर्शनकारियों के बीच फूट डालने की कोशिश की कि हरियाणा के किसानों को सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के जरिये अपने हिस्से का पानी मांगना चाहिए.
राज्य की भाजपा इकाई ने तब एसवाईएल के पानी को लेकर प्रदर्शन शुरू किया लेकिन यह सिरे नहीं चढ़ पाया.
दिसंबर के अंत में आंदोलनकारी किसानों ने दलाल के निर्वाचन क्षेत्र लोहारू के गांवों में सत्तारूढ़ भाजपा-जेजेपी नेताओं के घुसने पर रोक लगा दी.
बहिष्कार के कारण दलाल को अपने निर्वाचन क्षेत्र स्थित बेहल मंडी में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की रैली स्थगित करनी पड़ी.
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भिवानी के पूर्व कांग्रेसी नेता
65 वर्षीय दलाल करीब छह साल पहले तक, 2014 के विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा में शामिल होने से पूर्व, एक खांटी कांग्रेसी नेता हुआ करते थे.
दलाल का जन्म 1956 में भिवानी के घुसकनी गांव में हुआ था और रोहतक के एक कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के बाद 1978 में उन्होंने कला में स्नातक किया.
उन्होंने 1986 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल के बेटे सुरेंद्र चौधरी के साथ राजनीति में कदम रखा.
दस साल बाद बंसीलाल ने जब हरियाणा विकास पार्टी (एचवीपी) बनाई, तो दलाल उसके संस्थापक सदस्यों में से एक थे. 2004 में इस क्षेत्रीय दल के राष्ट्रीय पार्टी में विलय से पहले वह एचवीपी और फिर कांग्रेस में विभिन्न पदों पर आसीन रहे. हालांकि, उन्हें चुनाव लड़ने के लिए टिकट कभी नहीं मिला.
दलाल को सुरेंद्र चौधरी का काफी करीबी माना जाता था. 2005 में जब सुरेंद्र चौधरी की हेलीकॉप्टर हादसे में मौत हो गई और उनकी पत्नी किरण चौधरी ने अपने पति की राजनीतिक विरासत संभाली तब भी दलाल चौधरी परिवार के प्रति वफादार बने रहे.
वह चार दशक तक चौधरी परिवार के साथ जुड़े रहे. किरण चौधरी की नेता बेटी और पूर्व सांसद श्रुति चौधरी ने दलाल से कर्ज भी लिया था जो अब भी उनके चुनावी हलफनामे में नजर आता है. श्रुति ने भी 70 लाख के इस कर्ज का अपने चुनावी हलफनामे में जिक्र किया है.
इसके अलावा, दलाल ने सुरेंद्र सिंह मेमोरियल ट्रस्ट पर 1.75 करोड़ रुपये का कर्ज बाकी होना दिखाया है. वह किरण चौधरी द्वारा संचालित एक कंपनी में बोर्ड निदेशक भी रहे हैं.
2009 में श्रुति ने जब भिवानी-महेंद्रगढ़ संसदीय सीट से चुनाव जीता तो दलाल को उम्मीद थी कि उन्हें लोहारू से कांग्रेस का टिकट मिलेगा. लेकिन टिकट बंसीलाल के दामाद सोमवीर सिंह को दिया गया.
दलाल तब लोहारू सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े और 621 मतों के मामूली अंतर से इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के धर्मपाल से हार गए.
पाला बदलकर भाजपा में
दलाल 2014 के विधानसभा चुनावों से पहले पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो गए और पार्टी ने भी उनका जोरदारी से स्वागत किया क्योंकि उस समय उसके पास बहुत कम जाट नेता थे.
भाजपा ने दलाल को लोहारू सीट से टिकट दिया, लेकिन वह इनेलो के ओमप्रकाश बरवा से 2,095 वोटों से हार गए. 2016 में उन्हें राज्य भाजपा उपाध्यक्ष बनाया गया. 2018 में दलाल जींद के भाजपा प्रभारी बनाए गए और फिर भाजपा किसान मोर्चा के प्रभारी पद की जिम्मेदारी मिली.
2019 में उन्हें फिर लोहारू से भाजपा का टिकट मिला और इस बार उन्होंने कांग्रेस के सोमवीर सिंह को 17,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया. इस चुनाव में भाजपा के लगभग पूरे मंत्रिमंडल को हार का सामना करना पड़ा था और दलाल को कृषि मंत्री बनाया गया.
दलाल ‘प्रगतिशील किसान’ होने का दावा करते हैं और चुनाव में करोडपति उम्मीदवारों में एक थे. वह कृषि भूमि के कई टुकड़ों के अलावा आवासीय और वाणिज्यिक भवनों के मालिक है. उनके पास रियल एस्टेट और कृषि से जुड़ी कंपनियों के करोड़ों के शेयर भी हैं.
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