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Thursday, 25 April, 2024
होमदेश‘कट्टरता’ ने कैसे इंजीनियर दीपेंद्र को नफरत फैलाने वाला डासना का महंत यति नरसिंहानंद बना दिया

‘कट्टरता’ ने कैसे इंजीनियर दीपेंद्र को नफरत फैलाने वाला डासना का महंत यति नरसिंहानंद बना दिया

डासना देवी मंदिर के महंत नरसिंहानंद को दिसंबर 2021 में हरिद्वार में उनकी ‘हेट स्पीच के करीब एक महीने बाद गिरफ्तार किया गया. दिप्रिंट ने यह पता लगाने की कोशिश की कि वह एक कट्टर हिंदुत्ववादी विचारक कैसे बने.

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डासना/मेरठ/हरिद्वार: उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद जिले के डासना क्षेत्र के तमाम हिंदू और मुस्लिम निवासी निश्चित तौर पर इस बात से सहमत होंगे कि करीब एक दशक पहले जबसे यति नरसिंहानंद सरस्वती ने डासना देवी के महंत के तौर पर पदभार संभाला है, तबसे उनके शहर की सूरत बदल गई है.

नरसिंहानंद, जो प्रभावशाली जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर भी हैं, को एक धर्म संसद में गत 1 दिसंबर को दिए अपने भाषण के लिए पिछले हफ्ते हरिद्वार में गंगा तट से गिरफ्तार किया गया था. अपने भाषण में उन्होंने हिंदुओं से मुसलमानों के खिलाफ हथियार उठाने को कहा था. उन पर महिलाओं के बारे में ‘आपत्तिजनक’ टिप्पणी करने का भी मामला दर्ज किया गया था और उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

डासना-गाजियाबाद बेल्ट में दंगों और अभद्र भाषा के इस्तेमाल को लेकर कई एफआईआर में नामजद होने के बावजूद अब तक महंत पर बहुत ही कम आरोप टिक पाए हैं. उन्हें पहले भी दो बार गिरफ्तार किया जा चुका है लेकिन हर बार जमानत पाने में कामयाब रहे. दरअसल, न केवल लोगों का एक ऐसा वर्ग है जो नरसिंहानंद के इन भड़काऊ भाषणों का समर्थक है, बल्कि उन्हें हिंदुत्ववादी राजनेताओं का संरक्षण भी हासिल है.

लेकिन डासना में नरसिंहानंद का प्रभाव कितना ज्यादा है, इसे खास तौर पर मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगे एक बोर्ड से भी समझा जा सकता है, जो स्पष्ट चेतावनी देता है, ‘ये मंदिर हिंदुओं का पवित्र स्थल है, यहां मुसलमानों का प्रवेश वर्जित है.’

करीब एक सदी पुराने इस मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों को प्रवेश द्वार के बाहर तैनात पुलिसकर्मी को वैध पहचानपत्र दिखाना होता है जबकि पहले इसके दरवाजे सभी धर्मों के लोगों के लिए खुले रहते थे. पिछले साल मार्च में नरसिंहानंद के शागिर्दों में से एक ने एक 14 वर्षीय मुस्लिम लड़के को बेरहमी से पीट दिया था, जो पानी पीने के लिए मंदिर के अंदर चला आया था.

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पिछले साल अगस्त से यूपी पुलिस के एक दर्जन से अधिक जवानों को चौबीसों घंटे मंदिर की सुरक्षा के लिए तैनात कर दिया गया है. हालांकि ये तैनाती ऐसे मुस्लिम युवाओं की रक्षा के लिए नहीं है जो भूले-भटके यहां आ जाएं, बल्कि एक पुजारी पर चाकू से हमले की घटना के बाद महंत नरसिंहानंद की सुरक्षा को ध्यान में रखकर की गई है.

हालांकि, कुछ स्थानीय निवासी इस बात से काफी खुश हैं कि नरसिंहानंद ने अपने भाषणों और यूट्यूब वीडियो के जरिये कभी गुमनाम रहे इस प्राचीन मंदिर को सुर्खियों में ला दिया है. इसमें से कुछ वीडियो में मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान किया गया है तो कुछ में उन्हें भारत को इस्लामी देश बनाने का इरादा रखने वाले जिहादी करार दिया गया है. इन्हें देखकर दूर-दूर से आने वाले तमाम लोग महंत के भक्त बन चुके हैं.

महंत के एक ऐसे ही भक्त हैं 27 वर्षीय कृष्ण बल्लभ भारद्वाज, जो पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर हैं और पिछले एक साल से डासना देवी मंदिर में ही रह रहे हैं. भारद्वाज ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने कॉलेज में उनके वीडियो देखे थे जो मुझे काफी पसंद आए. कॉलेज खत्म होने के बाद मैंने यहां नोएडा में ही एक निजी कंपनी ज्वाइन की. और फिर मेरी पहली बार गुरुजी से मुलाकात हुई. मैंने तब फैसला किया कि मैं जीवन भर उनका शिष्य बना रहूंगा और डासना आ गया.’

हालांकि, क्षेत्र के मुसलमान खुद को खतरे में महसूस करते हैं और कुछ हिंदू भी महंत नरसिंहानंद के ‘कट्टरतापूर्ण’ भाषणों को लेकर कुछ अलग ही राय रखते हैं.

दिप्रिंट ने यह पता लगाने के लिए डासना के तमाम नागरिकों, नरसिंहानंद के सहयोगियों और उनके पिता राजेश्वर दयाल त्यागी से बात की कि आखिर मॉस्को में पढ़े-लिखे इंजीनियर में धार्मिक कट्टरता के बीज कैसे पड़े और यूपी के इस इस छोटे से शहर में उन्होंने अपना कितना दबदबा बना लिया है.

‘एक मेधावी छात्र, मास्को में कैटरिंग सेवा शुरू की’

दिप्रिंट ने नरसिंहानंद के 83 वर्षीय पिता राजेश्वर दयाल त्यागी से उनके मेरठ स्थित साधारण से एक मंजिला घर में मुलाकात की, जहां पर वह अपनी 106 वर्षीय मां और छोटे बेटे के परिवार के साथ रहते हैं. नरसिंहानंद की पत्नी भी इसी घर में रहती हैं लेकिन अपनी पहचान जाहिर नहीं करने के लिए उन्होंने इंटरव्यू देने से मना कर दिया.

रक्षा लेखा विभाग (रक्षा मंत्रालय के तहत) से रिटायर अधिकारी राजेश्वर दयाल त्यागी ने दिप्रिंट को बताया कि नरसिंहानंद का असली नाम दीपेंद्र नारायण सिंह है और उनका जन्म 1972 में बुलंदशहर के हिरनोट गांव में हुआ था. त्यागी ने बताया कि दीपेंद्र और उनके चार छोटे भाई-बहनों की परवरिश सामान्य तरीके से हुई थी. उनके मुताबिक, नरसिंहानंद एक मेधावी छात्र थे लेकिन हमेशा से ही धार्मिक प्रवृत्ति की ओर रुझान रखते थे.

त्यागी ने बताया, ‘अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान वह हमेशा क्लास में अव्वल आता था. कोई उसकी बराबरी नहीं कर पाता था. गणित विषय में भी वह काफी अच्छा था. छोटी अवस्था में ही दीपेंद्र का रुझान धर्म की तरफ था. वह स्नान और पूजा करने के बाद ही भोजन करता था और उसकी यह आदत हमेशा जारी रही.’

त्यागी ने दिप्रिंट को बताया कि दीपेंद्र ने अपनी स्कूली शिक्षा हापुड़ के ताराचंद इंटर कॉलेज से पूरी की, जहां वह अपनी मौसी के परिवार के साथ रहता था. 12वीं कक्षा पास करने के तुरंत बाद उसे विदेश, तत्कालीन सोवियत संघ, जाने का अवसर मिला.

त्यागी ने बताया, ‘भारत-सोवियत कल्चर एसोसिएशन की ओर से रूस में पढ़ाई के लिए मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति दी जाती थी. दीपेंद्र को मॉस्को की स्टेट एकेडमी केमिकल एंड मशीन बिल्डिंग में फूड एंड केमिकल टेक्नोलॉजी की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति मिली थी.’

उनके पिता ने बताया कि 1991 में दीपेंद्र बीटेक और एमटेक कोर्स के लिए मास्को गए, और वहां भी पढ़ाई के दौरान उनका प्रदर्शन अच्छा रहा.

नरसिंहानंद के पिता मास्को में अपने युवा बेटे की एक तस्वीर दिखाते हुए/मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
नरसिंहानंद के पिता मास्को में अपने युवा बेटे की एक तस्वीर दिखाते हुए/मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

मॉस्को संस्थान में दीपेंद्र के जूनियर रहे हापुड़ निवासी अरुण त्यागी ने बताया कि वह भारतीय छात्र समुदाय के बीच काफी लोकप्रिय थे, खासकर अपनी पाक कला के कारण.

दीपेंद्र के साथ एक ही हॉस्टल में रहने वाले अरुण त्यागी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे लिए तो वह गुरुजी थे. उन्होंने एक छोटी-सी कैटरिंग सर्विस भी शुरू की थी…जहां भारतीय छात्रों को घर का बना जैन खाना मिल जाता था. छात्रों के लिए भोजन मुफ्त था, हालांकि हम उन व्यापारियों से पैसे लेते थे जो हमसे ऑर्डर मंगाते थे.’

यह पूछे जाने पर कि क्या वह अभी भी दीपेंद्र सिंह उर्फ नरसिंहानंद के संपर्क में हैं, अरुण त्यागी ने बताया कि वह उन्हें एक दोस्त मानते हैं.

उन्होंने कहा, ‘वह एक दोस्त है, लेकिन हमारी जीवन काफी अलग-अलग है. मैं उनके कुछ विचारों से सहमत हूं, लेकिन बस यह यहीं तक सीमित है. हमारे दोस्तों का एक छोटा-सा समूह है जो मॉस्को में साथ पढ़ते थे और भारत लौटने के बाद कभी-कभार मिल लेते हैं. वह बहुत मददगार हैं और मुझे पता है कि अगर कभी जरूरत पड़ी तो वह मेरा पूरा साथ देने के लिए मौजूद रहेंगे.’


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‘पारिवारिक व्यक्ति’ से धार्मिक विचारक तक

राजेश्वर त्यागी के मुताबिक, दीपेंद्र 1997 में शादी के लिए भारत लौटे थे. त्यागी ने कहा, ‘उसकी मां की तबीयत ठीक नहीं रहती थी और हम चाहते थे कि उन्हें कुछ होने से पहले उसकी शादी हो जाए. यह एक अरेंज मैरिज थी, लेकिन लड़की उसे पसंद थी.’ साथ ही बताया कि 2003 में उसकी मां का निधन हो गया.

बीते दिनों की याद करते हुए पिता ने कहा, ‘विदेश से लौटते ही दीपेंद्र को राजस्थान में हल्दीराम (लोकप्रिय खाद्य श्रृंखला) से नौकरी का ऑफर मिला. उस समय इसके लिए 30 हजार रुपये मिल रहे थे. क्योंकि वह उन गिने-चुने लोगों में था, जिन्होंने मास्को से फूड इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी.’

हालांकि, दीपेंद्र ने नौकरी का प्रस्ताव नहीं स्वीकारा. इसके बजाय वह गाजियाबाद चले गए और एक कोचिंग संस्थान खोला, जहां कंप्यूटर साइंस और गणित पढ़ाते थे.

त्यागी ने दिप्रिंट को बताया कि लगभग इसी समय, 2000 के दशक के मध्य में, दीपेंद्र का संपर्क भाजपा के वरिष्ठ नेता बैकुंठ लाल शर्मा उर्फ प्रेम से हुआ, जो उत्तर-पूर्वी दिल्ली से दो बार सांसद रह चुके थे. शर्मा (जिनका 2019 में निधन हो गया) को कांग्रेस के कद्दावर नेता एच.के.एल. भगत को 1991 में हराने के लिए याद किया जाता है. वह एक कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी विचारक भी थे और राम मंदिर आंदोलन में एक अहम भूमिका निभाई थी.

त्यागी ने बताया, ‘मेरा बेटा उन कार्यक्रमों में शामिल होता था जिन्हें प्रेमजी संबोधित करते थे और वह उनके उपदेशों से प्रेरित होता था, खासकर मुस्लिम विरोधी सख्त रुख से. वह उनका अनुयायी बन गया. एक तरह से प्रेमजी मेरे बेटे के गुरु थे और उन्होंने ही मुसलमानों के बारे में उसके विचारों को ऐसा आकार दिया.’

अपने अनुयायियों से बातचीत करते यति नरसिंहानंद/फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
अपने अनुयायियों से बातचीत करते यति नरसिंहानंद/फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

यही नहीं, जब नरसिंहानंद ने डासना देवी मंदिर के मुख्य महंत की जिम्मेदारी संभाली तो उन्होंने मंदिर के अंदर मुख्य सभा हॉल के एक कोने में प्रेम शर्मा की एक प्रतिमा भी लगवाई, जिसमें राम जन्मभूमि आंदोलन में उनकी भूमिका का उल्लेख है. इस कमरे में भित्ति चित्र भी हैं जो बताते हैं कि मुसलमान कथित तौर पर सदियों से हिंदुओं का उत्पीड़न करते रहे हैं.

हालांकि, खुद नरसिंहानंद का दावा है कि उनका मुस्लिम विरोधी रुख एक व्यक्तिगत अनुभव के कारण उपजा है जिससे उन्हें गुजरना पड़ा था.

अक्टूबर 2019 में दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में नरसिंहानंद ने दावा किया था कि मुसलमानों के प्रति उनका रवैया तब बदला जब गाजियाबाद के एक कॉलेज की एक लड़की ने उन पर अपने मुस्लिम दोस्तों से उसकी रक्षा नहीं करने का आरोप लगाया, जो उसे परेशान कर रहे थे. इसी इंटरव्यू में नरसिंहानंद ने दावा किया कि वह समाजवादी पार्टी (सपा) की युवा ब्रिगेड में शामिल हो गए थे.

दिप्रिंट स्वतंत्र तौर पर यह पता लगाने में सक्षम नहीं था कि नरसिंहानंद का सपा से जुड़ाव रहा है. हालांकि, राजेश्वर त्यागी ने दिप्रिंट को बताया कि 2005 के आसपास ‘मतभेद’ उत्पन्न होने तक उनका बेटा पार्टी से ही जुड़ा था. ये मतभेद सपा की तरफ से गाजियाबाद में आला हजरत हज हाउस का निर्माण शुरू कराए जाने को लेकर उपजे थे. उनके पिता ने बताया कि दीपेंद्र ने ‘निर्माण के विरोध में गाजियाबाद कलेक्ट्रेट के बाहर धरना भी दिया था.’

इसके तुरंत बाद ही दीपेंद्र ने राजनीतिक गतिविधियों से किनारा कर लिया और पारिवारिक जीवन भी त्याग दिया. उन्होंने संन्यास ले लिया और यति नरसिंहानंद सरस्वती का नाम ग्रहण कर लिया.

उनके पिता उस समय को याद करते हुए बताते हैं, ‘उसने संन्यास लेकर घर आना बंद कर दिया और भगवा वस्त्र पहनने लगा. उसने अपने उपदेशों का वीडियो बनाना और धार्मिक सभाओं में बोलना शुरू कर दिया.’

राजेश्वर त्यागी के मुताबिक, नरसिंहानंद की पत्नी और बेटी (जो दूसरे राज्य में रहती है) कभी-कभार उनसे मिलने डासना देवी मंदिर जाती हैं. उन्होंने कहा, ‘लेकिन हम अब अपना अलग जीवन जी रहें हैं. मैं तो चाहता था कि बुढ़ापे में वह मेरा सहारा बने. लेकिन जब कोई सुनता ही नहीं है तो आप क्या कर सकते हैं? हम जीना तो छोड़ नहीं देंगे. अब इस घर का मुखिया मैं ही हूं.’

त्यागी ने बताया कि उन्होंने अपने बेटे से उसके उत्तेजक भाषणों पर बात करने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

उन्होंने कहा, ‘मैंने उससे कहा कि तुम साधु हो, ऐसी आक्रामकता, ऐसी घृणा की भावना साधु को शोभा नहीं देती. यह सही है कि आतंकवादी हैं जो मुसलमान हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सभी मुसलमान आतंकवादी हैं. लेकिन कौन सुनता है? वह तो खुद समझदार है.’

उन्होंने कहा कि नरसिंहानंद ने डासना में हिंदुओं को ‘सुरक्षित’ महसूस कराने की कोशिश की है. उन्होंने कहा, ‘डासना देवी मंदिर में चारदीवारी नहीं थी. उसने एक दीवार का निर्माण कराया, मंदिर में जो भी बदलाव हुए हैं, वह उसके समय में ही हुए हैं.’

हालांकि, नरसिंहानंद डासना तक कैसे पहुंचे और कैसे वहां के महंत बने, इस बारे में थोड़ी जानकारी तो उपलब्ध है लेकिन कुछ भी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है.

एक ‘दबंग’ नेता जिसने डासना को बदल दिया

डासना के पूर्व भाजपा नगर पार्षद सत्येंद्र चौहान ने दिप्रिंट को बताया कि वह और शहर के कुछ अन्य प्रबुद्ध लोग ही 2007 में नरसिंहानंद को महंत बनाकर लाए थे.

चौहान के मुताबिक, उस समय मंदिर और आसपास के क्षेत्र बहुत ‘असुरक्षित’ थे और लूटपाट की तमाम घटनाएं होती रहती थीं. चौहान ने कहा, उस समय यहां एक ‘दबंग’ नेता की जरूरत थी और और नरसिंहानंद इसमें एकदम फिट बैठते थे.

चौहान ने कहा, ‘मैंने गाजियाबाद में उनके जोरदार भाषण सुने थे. वे युवाओं में लोकप्रिय थे और उनकी संगठनात्मक क्षमता भी काफी अच्छी थी. हमने सोचा था कि वह मुस्लिम इलाकों के बीच स्थित इस मंदिर का प्रबंधन संभालेंगे और इसकी सुरक्षा करेंगे.’

बहरहाल, यह क्षेत्र फिर कभी पहले जैसा नहीं रहा, लेकिन स्थानीय निवासी इस बदलाव के बारे में अलग-अलग राय रखते हैं. कुछ का कहना है कि डासना को बेहतरी के लिए बदला गया है, जबकि अन्य इसके उलट राय रखते हैं.

रविवार को डासना देवी मंदिर में प्रार्थना करने आईं 27 वर्षीय गृहिणी और डीसीएम कॉलोनी निवासी मोहिनी चतुर्वेदी ने दिप्रिंट को बताया कि वह नरसिंहानंद की वजह से ‘सुरक्षित’ महसूस करती हैं. उन्होंने कहा, ‘हम मुस्लिम इलाकों में अकेले आने-जाने में सुरक्षित महसूस नहीं करते. स्वामी जी ने उनसे खुलकर मोर्चा ले लिया है. मैं स्वामी जी की उपस्थिति में सुरक्षित महसूस करती हूं. यहां के अन्य हिंदू भी ऐसा ही महसूस करते हैं, लेकिन मुसलमानों के विरोध के डर से खुले तौर पर ऐसा कहते नहीं हैं.’

हालांकि, क्षेत्र के कुछ हिंदू नागरिक जो शुरू में नरसिंहानंद के समर्थक होते थे, अब उनके बारे में बहुत ज्यादा अच्छी राय नहीं रखते हैं.

मंदिर के ठीक सामने वाली गली में रहने वाले सतीश शर्मा ने दिप्रिंट को बताया कि मंदिर पिछले कुछ समय से ‘असामाजिक तत्वों’ का अड्डा बनता जा रहा है.

शर्मा ने कहा, ‘उनके भक्त बंदूक लेकर मंदिर परिसर में घूमते रहते हैं. उन्होंने हाल ही में मंदिर परिसर में एक जिम बनवाया है, जहां बाहर से कुछ लोग आकर अभ्यास करते हैं. हम पहले तो उनका समर्थन करते थे. लेकिन चार-पांच साल बाद जब हमने उसका कट्टरपंथी रूप देखा तो हमने उनसे दूरी बना ली.

नरसिंहानंद के अनुयायियों का कहना है कि बंदूकों पर भले ही सवाल उठाया जा रहा हो लेकिन वे लाइसेंसी हैं और स्थानीय निवासियों की रक्षा के लिए ही हैं. लेकिन आसपास रहने वाले मुसलमानों ने दिप्रिंट से कहा कि वे इलाके में सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं और इस बात से परेशान हैं कि यहां किस कदर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हो गया है.

दूधिया पीपल चौराहा निवासी मोहम्मद दिलशाद, जो इलाके की सबसे पुरानी मिठाई की दुकानों में से एक के मालिक हैं, बताते हैं कि डासना देवी मंदिर के जीर्णोद्धार में उनके परिवार ने भी मदद की थी और अब इस बात से आहत हैं कि वे अब इसमें प्रवेश नहीं कर सकते.

डासना में तेलियो वाली मस्जिद/ मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
डासना में तेलियो वाली मस्जिद/ मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

दिलशाद ने कहा, ‘हम यहां रहने वाले मुसलमानों की तीसरी पीढ़ी में आते हैं. मुझे अच्छी तरह याद है कि जब मैं बच्चा था तो शेरावाली झांकी के दौरान डासना देवी मंदिर जाता था. मेरे परिवार ने मंदिर के जीर्णोद्धार में मदद भी की थी. और अब उन्होंने एक बोर्ड लगा दिया है जिसमें कहा गया है कि मुसलमान प्रवेश नहीं कर सकते, आखिर क्यों?’

डासना स्थित तेलियो वाली मस्जिद के पास रहने वाले 40 वर्षीय बढ़ई नईम सैफी भी वह दौर याद करते हैं जब हिंदू और मुसलमान यहां साथ मिलकर रहते थे. सैफी ने कहा, ‘हम यहीं पले-बढ़े हैं. बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद भी हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे के साथ सद्भाव के साथ रहते थे.’

उन्होंने पास ही स्थित श्री पीपलेश्वर महादेव मंदिर की ओर इशारा करते हुए बताया, ‘वह मंदिर तेलियो वाली मस्जिद से सिर्फ 200 मीटर की दूरी पर है. यहां मिली-जुली संस्कृति बिना किसी बाधा के बरकरार है. यहां मुसलमानों पर पाबंदी वाला कोई पोस्टर नहीं है.

एक बात जिस पर मुसलमान और हिंदू दोनों समुदाय के लोग सहमत नजर आते हैं कि दोनों समुदायों का ध्रुवीकरण हुआ है.

पहले मेरठ में तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, जो डासना की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं, ने दिप्रिंट को बताया कि कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी है.’

उक्त अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘क्षेत्र में अपराध बढ़ा है. यह सच है कि दो समुदायों के बीच दुश्मनी के कारण माहौल बहुत अस्थिर हो गया है.’

शक्तिशाली समर्थक?

हेट स्पीच के कारण विवादों में घिरी हरिद्वार की धर्म संसद में मौजूद लोगों में दिल्ली भाजपा के पूर्व प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय भी शामिल थे, हालांकि, बाद में उन्होंने यह कहते हुए कार्यक्रम से दूरी बना ली कि वह केवल थोड़े समय के लिए वहां गए थे.

हालांकि, भाजपा के आला पदाधिकारी आमतौर पर नरसिंहानंद से सुरक्षित दूरी बनाकर रखते हैं, लेकिन उनके समर्थकों ने दावा है कि स्थानीय भाजपा उम्मीदवार अक्सर अपने अभियानों के दौरान प्रचार के लिए महंत की मदद लेते हैं.

डासना देवी मंदिर के प्रबंधक अनिल यादव, जो अब खुद को ‘छोटा नरसिंहानंद’ बताते हैं, का कहना है कि ‘विधायक बनने के इच्छुक भाजपा के कई उम्मीदवारों’ ने अपने चुनाव अभियानों में नरसिंहानंद की मदद ली. कुछ खबरों के मुताबिक अलीगढ़ के विधायक अनिल पाराशर भी इसी माह नरसिंहानंद के समर्थन में एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे.

पूर्व नगर पार्षद सत्येंद्र चौहान ने दिप्रिंट को बताया कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पिछले महीने डासना आई थीं. चौहान ने दावा किया, ‘वह 2019 के संसदीय चुनावों के दौरान प्रचार के लिए गुरुजी को भोपाल ले गई थीं, गिरिराज सिंह उन्हें चुनाव प्रचार के लिए बेगूसराय ले गए थे, जब 2019 में वह इस सीट से चुनाव लड़ रहे थे.’ महंत के भक्तों का दावा है कि विहिप में भी उनके कई उत्साही अनुयायी हैं.

डासना देवी मंदिर में एक हॉल की फोटो/फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
डासना देवी मंदिर में एक हॉल की फोटो/फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

बहरहाल, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि नरसिंहानंद देश के सबसे ताकतवर साधुओं में से एक हैं. पिछले साल उनका जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर के रूप में अभिषेक किया गया था, जिसे देश के 13 अखाड़ों या हिंदू मठों के क्रम में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है.

वह दिसंबर में हरिद्वार में आयोजित उस धर्म संसद के मुख्य आयोजनकर्ता भी थे, जहां उन्होंने हिंदुओं से मुसलमानों के खिलाफ हथियार उठाने का आह्वान किया गया.

हालांकि, हरिद्वार का साधु समुदाय नरसिंहानंद की गिरफ्तारी को लेकर विभाजित नजर आता है. जहां धर्म संसद से जुड़ा रहा संतों का एक वर्ग उनकी रिहाई की मांग कर रहा है, वहीं दूसरे वर्ग ने दूरी बना रखी है.

शांभवी धाम के प्रमुख और हरिद्वार में धार्मिक संस्था शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष आनंद स्वरूप भारती ने दिप्रिंट से कहा कि वह नरसिंहानंद का समर्थन करते हैं.

भारती ने कहा, ‘यति नरसिंहानंद हमारा गौरव हैं. वह नहीं चाहते कि भारत एक इस्लामिक राष्ट्र बने. तो इसमें गलत क्या है?’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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