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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशकोरोनावायरस कैसे ‘गुमशुदा’ सीएम केसीआर की 'निरंकुश' लीडरशिप की पोल खोल रहा

कोरोनावायरस कैसे ‘गुमशुदा’ सीएम केसीआर की ‘निरंकुश’ लीडरशिप की पोल खोल रहा

तेलंगाना के वजूद में आने के बाद से, मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव या केसीआर ने तानाशाही रवैये के साथ शासन किया है और महामारी में भी कुछ बदला नहीं है.

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बेंगलुरू: तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव या केसीआर, जैसा कि उन्हें बुलाया जाता है, 28 जून के बाद से सार्वजनिक रूप से नज़र नहीं आए हैं. इस कारण उनकी ग़ैर-मौजूदगी पर न सिर्फ सियासी हलकों, बल्कि तेलंगाना हाईकोर्ट में भी सवाल उठ रहे हैं.

कम टेस्टिंग और मौक़े से ग़ायब मुख्यमंत्री को लेकर, कोविड लड़ाई से जूझ रहे तेलंगाना में, एक याचिका तेलंगाना हाईकोर्ट में दायर की गई है, जिसमें केसीआर के ठौर-ठिकाने की डीटेल्स मांगी गई हैं. याचिका में कहा गया है कि मुख्यमंत्री कार्यालय में 30 लोग कोविड पॉज़िटिव पाए गए हैं, जिससे केसीआर के स्वास्थ्य को लेकर अटकलबाज़ियां होने लगीं हैं.

याचिकाकर्ता, राजनीतिक कार्यकर्ता नवीन कुमार ने अदालत को बताया कि सीएम आख़िरी बार 28 जून को पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के जन्म शताब्दी समारोह में दिखाई दिए थे, जहां वो कथित रूप से, मास्क पहने बिना शरीक हुए थे.

लेकिन सरकार ने ऐसी किसी भी बात से इनकार किया है.

तेलंगाना सरकार के सलाहकार अशोक टंकशाला ने दिप्रिंट से कहा, ‘झूठी अफवाहों पर मत जाइए. ऐसी बहुत अफवाहें फैल रही हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘सीएम प्रगति भवन से काम कर रहे हैं जो उनका कैंप ऑफिस है. किसी को ये परवाह नहीं करनी चाहिए कि सीएम कहां से काम कर रहे हैं, अहम बात से है कि प्रदेश अच्छे से शासित हो’.

लेकिन हैदराबाद पुलिस ने तीन पत्रकारों पर मुक़दमा दर्ज किया है जिनमें तेलुगू अख़बार आदाब हैदराबाद के संपादक भी शामिल हैं. इन्होंने ख़बरें छापीं थीं जिनमें दावा किया गया था कि सीएम का कोविड-19 टेस्ट पॉज़िटिव निकला था.

हालांकि अपनी ‘गुमशुदगी’ से पहले मुख्यमंत्री खुल्लम-खुल्ला बाहर निकले हुए थे और तेलंगाना के लड़खड़ाते कोविड प्रबंधन के बीच, ज़ोर देकर कह रहे थे कि हालात क़ाबू में हैं.

केसीआर का ये एक ख़ास अंदाज़ है, जिन्होंने जून 2014 में सत्ता में आने के बाद से तानाशाही रवैये के साथ शासन किया है. उन्होंने अपने राजनीतिक विरोधियों की उपेक्षा की है, प्रेस की आलोचना की है, अपने परिवार को आगे बढ़ाया है और कथित रूप से ज्योतिष और वास्तु के आधार पर फैसले लिए हैं.

नया सचिवालय, नई छवि

महामारी के बीच, जिस चीज़ ने केसीआर के आलोचकों को हैरान किया है, वो है बहुत समय से लंबित चला आ रहा, एक बिल्कुल नए सचिवालय का सपना पूरा करने का उनका इरादा. शासन की सीट, जिस पर अविभाजित आंध्र प्रदेश के 14 मुख्यमंत्री आसीन हुए हैं, एक-एक विंग करके गिराई जा रही है.

जून 2019 में केसीआर ने एक नए सचिवालय की नींव रखी थी और एक नए विधानसभा परिसर की जगह चिन्हित की थी, जिसे प्रतिष्ठित इरम मंज़िल में 500 करोड़ रुपए की लागत से बनाया जाएगा. मंगलवार को पुराने परिसर को गिराने का काम शुरू हो गया.

टंकशाला ने इस फैसले के पीछे का तर्क समझाते हुए कहा, ‘केसीआर का कहना है कि हमारे पास एक शानदार बिल्डिंग होनी चाहिए, एक भव्य ढांचा. नई इमारत तेलंगाना का गर्व होगी’. उन्होंने आगे कहा, ‘जब दूसरे राज्यों के पास भव्य बिल्डिंग हो सकती है तो तेलंगाना के पास क्यों नहीं? पुराना ढांचा बहुत ख़स्ता हालत में था’.

लेकिन विपक्ष इससे सहमत नहीं है.

तेलंगाना जन समिति (टीजेएस) के प्रमुख प्रोफेसर कोडंडारम, जिन्होंने तेलंगाना के अलग राज्य के लिए, केसीआर के साथ मिलकर छात्रों के आंदोलन की अगुवाई की थी, और जो बाद में केसीआर से अलग हो गए थे, का मानना है कि इसके कारण कुछ और हैं.

कोडंडारम ने कहा, ‘पहले तो, केसीआर ऐसी किसी चीज़ से वास्ता नहीं रखना चाहते, जो उन्हें अपने पूर्ववर्तियों की याद दिलाती हो’. इसमें लीडर की सामंती मानसिकता झलकती है. उन्हें लगता है कि अगर सचिवालय बड़ा और भव्य होगा तो उससे राज्य की छवि सुधरेगी’.

उन्होंने आगे कहा, ‘वो ये पैसा और अधिक कोविड सुविधाएं बनाने में क्यों नहीं ख़र्च कर सकते? तेलंगाना में पॉज़िटिव रेट सबसे अधिक है और टेस्टिंग रेट सबसे कम है’.

केसीआर के क़रीबी लोगों का कहना है कि अंकज्योतिष, ज्योतिष, और वास्तु में गहरा विश्वास रखने के कारण, केसीआर को लगा कि पुराना सचिवालय उन्हें रास नहीं आ रहा था. एक सहायक ने कहा, ‘बतौर सीएम वो कई बार सचिवालय गए, जिसके बाद उन्हें बताया गया कि परिसर में वास्तु दोष था’.

एक ‘निरंकुश’ लीडर

मुख्यमंत्री के नाते केसीआर के पूरे कार्यकाल में, उनके ऊपर ख़ासकर शासन के मामलों में, तानाशाही रवैये के आरोप लगते रहे हैं.

कोडंडारम ने कहा, ‘हर फाइल, हर फैसले पर उनकी मुहर होनी चाहिए. उनकी मर्ज़ी के बिना कुछ नहीं होता’.

2018 में दूसरे कार्यकाल के लिए सीएम चुने जाने के बाद मुख्यमंत्री ने तक़रीबन 60 दिनों तक, अकेले मंत्री के तौर पर काम किया था.

राजनीतिक विश्लेषक तेल्कापल्ली रवि ने कहा, ‘उनके सामने कोई मज़बूत विपक्ष नहीं है और कांग्रेस अंधेरे में हाथ-पांव मार रही है. केसीआर विपक्ष को हिक़ारत की नज़र से भी देखते हैं’.

सियासत के मैदान में दूसरे नेताओं की तरह, राव के परिवार को तेलंगाना की ‘फर्स्ट फैमिली’ माना जाता है, क्योंकि सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) लगभग उन्हीं के कंट्रोल में है.

उनके बेटे केटी रामा राव और भतीजे हरीश राव पहले ही मंत्री हैं और अब उन्होंने अपनी बेटी के कविता के लिए भी, मंत्रिमंडल में जगह सुनिश्चित कर दी है. कविता 2018 में निज़ामाबाद सीट पर, बीजेपी के धर्मापुरी अरविंद से हार गईं थीं.

राजनीतिक विश्लेषक पलवाई राघवेंद्र रेड्डी का कहना है, ‘राजनीतिक गलियारों में हर कोई जानता है कि केसीआर, अपने बेटे केटी रामाराव को अगला मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं, ताकि उनकी सियासी विरासत बरक़रार रहे’.

लेकिन मुख्यमंत्री ने राजनीतिक चतुराई भी दिखाई है. चुनाव जीतने के लिए केसीआर ने, अपनी कल्याणकारी योजनाओं का सहारा लिया है. 2018 के चुनावों में प्रजा कल्याण नीति के तहत, टीआरएस ने अपनी बहुत सारी योजनाओं से, तेलुगू देशम (टीडीपी) और कांग्रेस के ‘प्रजाकुटुमी’ या लोगों के गठबंधन को, बुरी तरह पछाड़ दिया था.

मतदाताओं को लुभाने के लिए, उन्होंने अपना चुनाव प्रचार तीन पहलुओं- नीलू, निधुलू, नियामा कालू (पानी, फंड्स, और रोज़गार) पर केंद्रित किया था.

संयुक्त आंध्र का अतीत मिटाने की ज़रूरत

आलोचक केसीआर पर आरोप लगाते हैं, कि वो निरंतर अतीत के उस हिस्से को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं जिसमें तेलंगाना आंध्र प्रदेश का हिस्सा था. उन्होंने बार-बार ज़ोर देकर कहा है कि ये वही थे जिन्होंने तेलंगाना बनाने के लिए संघर्ष किया जिसके नतीजे में राज्य में आंध्र-विरोधी भावना पैदा हुई.

उनके एक पुराने सहयोगी ने कहा, ‘अब वो उन तमाम योजनाओं, इमारतों या प्रतीकों को हटा देना चाहते हैं जो उन्हें (आंध्र के) दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों- टीडीपी के एन चंद्रबाबू नायडू और कांग्रेस के वाईएस राजशेखर रेड्डी- की याद दिलाते हैं. उन्होंने आगे कहा, ‘वो किसी भी क़ीमत पर तेलंगाना में अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं. सचिवालय ऐसा ही एक प्रतीक है’.

केसीआर ने टीडीपी और वाईएसआर सरकारों की सिंचाई परियोजनाओं को या तो ख़ारिज कर दिया या उन्हें नया रूप दे दिया. मिसाल के तौर पर, गोदावरी पर करोड़ों की लागत से बन रही, कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई परियोजना को ही ले लीजिए.

वाईएसआर के समय में इसे प्रान्हिता चेवुला लिफ्ट इरिगेशन प्रोजेक्ट कहा जाता था और ये तुम्मादिहट्टी गांव में स्थित थी. केसीआर ने बाद में इसका डिज़ाइन बदलकर, इसके स्कोप को बढ़ा दिया और इसे नीचे की ओर, जयशंकर भूपालपल्ली ज़िले में मेदीगड्डा ले गए जहां इसका नाम बदलकर कालेश्वरम लिफ्ट इरिगेशन प्रोजेक्ट रख दिया गया.

विश्लेषकों का कहना है कि इस फैसले की आर्थिक लागत बहुत अधिक आई है.

लेकिन टंकशाला इस बात से सहमत नहीं हैं कि सीएम अतीत को मिटाना चाहते हैं या आंध्र वालों को बहुत बुरा दिखाना चाहते हैं.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘उन्होंने हर किसी को आरामदायक और सुरक्षित महसूस कराया है. आंध्र के लोगों के साथ बहुत सम्मान से पेश आया गया है’. उन्होंने आगे कहा, ‘आंध्र के लोगों पर एक भी हमला नहीं हुआ, जो कि 1969 के उलट था, जब आंदोलन हिंसक था. आंध्र और रायलसीमा के लोग केसीआर का बहुत आदर करते हैं’.

पीवी नरसिम्हा राव को अपना बना लेना

केसीआर ने बीजेपी की उस रणनीति से भी कुछ सीख ली है जिसमें उसने अपने राजनीतिक हित साधने के लिए सरदार पटेल और सुभाष चंद्र बोस जैसे कांग्रेसी नेताओं को अपना बना लिया.

आलोचकों का कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव या पीवी जैसा उन्हें पुकारा जाता था, के प्रति केसीआर के नए-नए प्यार के पीछे उनकी मंशा, राजनीति में एक राष्ट्रीय विरासत क़ायम करने की है.

राव का जन्म वारंगल ज़िले के लकनेपल्ली गांव में हुआ था, जो अब तेलंगाना में पड़ता है.

इस साल जून में, केसीआर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी का नाम बदलकर, पूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर रख दिया जाए.

फिर 28 जून को, सारे राष्ट्रीय और स्थानीय अख़बारों में, राव की प्रशंसा में एक पूरे पेज का विज्ञापन सामने आ गया. टीवी कॉमर्शियल्स में नरसिम्हा राव की प्रशंसा करते हुए, उन्हें ‘मुद्दू-बिद्दा’ या धरती पुत्र के तौर पर दिखाया गया. केसीआर ने मोदी से ये भी आग्रह किया कि नरसिम्हा राव को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया जाए.

हालांकि उन्होंने कहा कि ये सब राव को सम्मानित करने और उनकी जन्म शताब्दी मनाने के लिए था लेकिन आलोचकों का आरोप है कि केसीआर ख़ुद प्रधानमंत्री बनने की आकांक्षा रखते हैं.

कोंडंडारम ने कहा, ‘जहां तक तेलंगाना का ताल्लुक़ है, राव की शख़्सियत यक़ीनन बहुत बड़ी थी और उनकी विरासत को हथिया कर केसीआर, बीजेपी और कांग्रेस पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. ये सिर्फ उनकी राजनीतिक चाल है’.

तेलकापल्ली रवि ने कहा, ‘वो पीवी को तेलंगाना से पहले पीएम के तौर पर दिखाना चाहते हैं और अगले वो ख़ुद होंगे’.

‘लोगों के दिमाग़ में एक अहसास है कि केसीआर उन नाइंसाफी को दुरुस्त कर रहे हैं जो कांग्रेस ने पीवी के साथ की थी. पीवी की मौत के बाद उनके साथ हुआ सलूक जिसमें उनके शव को दाह-संस्कार के लिए हैदराबाद लाना पड़ा, एक ऐसी चीज़ है जिसे लोग न तो भूलेंगे और न ही माफ कर पाएंगे. केसीआर उसी भावना को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं’.

लेकिन सीएम के सलाहकार टंकशाला ने कहा कि किसी भी दूसरे सीनियर लीडर की तरह केसीआर की भी राजनीतिक आकांक्षाएं हैं लेकिन 2019 में फेडरल फ्रंट शुरू करने के पीछे विचार ये था कि सामाजिक और मानव विकास के साथ साथ, आर्थिक विकास के लिए एक मंच तैयार किया जाए.

उन्होंने कहा, ‘केसीआर का एक विज़न था लेकिन दूसरी रीजनल पार्टियां जो कांग्रेस और बीजेपी को मिटाना चाहतीं थीं, उनके पास केसीआर जैसा एजेंडा और विज़न नहीं था’.

कोविड संकट

ऐसी तमाम आकांक्षाओं के बावजूद, कोविड संकट के प्रबंधन में केसीआर कमज़ोर साबित हुए हैं. तेलंगाना में कोविड-19 की टेस्टिंग दर, देशभर में दूसरी सबसे कम है लेकिन यहां की सकारात्मकता दर सबसे ऊंची है.

लेकिन मुख्यमंत्री प्रेस पर निशाना साधते आ रहे हैं. जून में उन्होंने अपनी सरकार के बारे में नकारात्मक ख़बरें लिखने के लिए, मीडिया पर तीखा हमला किया.

मुख्यमंत्री को ये कहते हुए उद्घृत किया गया, ‘अच्छी बातें लिखिए अगर आप लिख सकते हैं, या फिर घर जाकर सो जाइए…आपको कोरोना होना चाहिए, मैं आपको शाप दे रहा हूं’. उन्होंने ये भी कहा, ‘ऐसे समय में वो इस तरह क्यों लिख रहे हैं?’

अधिकतर आलोचना टेस्टिंग रेट्स को लेकर रही हैं. राज्य में हर दिन केवल 2,000 टेस्ट किए जा रहे थे, आलोचना होने के बाद ही इनमें इज़ाफा हुआ.

9 जुलाई तक 5,954 टेस्ट किए जा रहे थे, और आज तक कुल मिलाकर 1,40,755 टेस्ट किए किए गए हैं.

निजी लैब्स के सहयोग से इनकार करने के लिए भी, केसीआर की आलोचना हुई है. चार करोड़ आबादी के इलाज के लिए, केवल एक कोविड अस्पताल की उनकी घोषणा की भी, विपक्ष ने उन्हें आड़े हाथों लिया, और उनके काम को ‘कोरा कुप्रबंधन’ क़रार दिया.

केसीआर सरकार ने अपना बचाव करते हुए दावा किया है कि उसने आईसीएमआर गाइडलाइन्स का पालन किया है. टंकशाला ने कहा, ‘एक टीम हमारे यहां आई थी लेकिन वो हमारे तरीकों में ख़ामी नहीं निकाल पाई, चूंकि हम आईसीएमआर गाइडलाइन्स पर चल रहे थे. हम महामारी को मैनेज करते आ रहे हैं’.

मुख्यमंत्री ने ये भी दावा किया कि कोविड-19 के एक एक्सपर्ट ने उन्हें आश्वस्त किया है कि कोरोनावायरस ख़त्म हो जाएगा क्योंकि तेलंगाना के तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर है और ऐसी स्थिति में वायरस के बचे रहने का कोई चांस नहीं है. उन्होंने कहा था ‘पैरेसिटेमॉल का एक पत्ता काफी है’.

इस घोषणा के साथ कि राज्य में वायरस की रोकथाम के लिए उनकी सरकार 500 करोड़ रुपए ख़र्च करने को तैयार है, मास्क, सूट्स और सैनिटाइज़र्स का स्टॉक होने की भी डींग हांकी थी.

लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि लीडर संकट को इसलिए कम आंकते रहे हैं ताकि ये सुनिश्चित रहे कि इन्फ्रास्ट्रक्चर योजनाओं में देरी न हो, क्योंकि डर ये है कि वायरस के फैलने के ख़ौफ से मज़दूर लोग राज्य से भाग जाएंगे.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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