बेंगलुरु: भारत का उभरता हुआ कॉमर्शियल स्पेस सेक्टर भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक्सप्लोरेशन और रिसर्च के क्षेत्र में सहयोग के नए अवसरों को लेकर उत्साहित है.
जी20 शिखर सम्मेलन से इतर द्विपक्षीय वार्ता के बाद पीएम नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा शुक्रवार को जारी संयुक्त बयान में, दोनों पक्षों ने प्रधानमंत्री की जून की वॉशिंगटन यात्रा के दौरान की गई प्रतिबद्धताओं को दोहराया.
इसमें ह्यूमन स्पेस फ्लाइट को लेकर सहयोग और 2024 में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए इसरो-नासा का संयुक्त प्रयास शामिल है.
बयान में कहा गया है, “अंतरिक्ष सहयोग के सभी क्षेत्रों में नई ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए एक दिशा तय करने के बाद, नेताओं ने मौजूदा इंडिया-यूएस सिविल स्पेस ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप के तहत वाणिज्यिक अंतरिक्ष सहयोग के लिए एक वर्किंग ग्रुप की स्थापना के प्रयासों का स्वागत किया.”
अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का निर्माण करने वाले बेंगलुरु स्थित स्पेस स्टार्टअप बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस के संस्थापक रोहन गणपति ने कहा, “हम न केवल दोनों देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच, बल्कि उनके उद्योगों के स्तर पर भी सहयोग के समर्थन में एक सकारात्मक बदलाव देख रहे हैं.”
चंद्रयान-3 की सफलता और सोलर ऑब्ज़र्वेशन मिशन, आदित्य-एल1 के लॉन्च के साथ, भारत-अमेरिका में कंपनियों के लिए एक आकर्षक उभरता हुआ बाजार बनता जा रहा है.
गणपति ने कहा, “अविश्वसनीय रूप से कम लागत पर हाई-क्वालिटी टेक्नॉलजी विकसित करने और निर्माण करने की भारत की क्षमता दोनों देशों के लिए अंतरिक्ष को सभी के लिए अधिक सुलभ बनाने की दिशा में काम करने का एक तरीका है.”
आईआईएसईआर कोलकाता के सौर भौतिक विज्ञानी और आदित्य-एल1 मिशन में शामिल वैज्ञानिकों में से एक दिब्येंदु नंदी ने कहा, “यह आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी को अंतरिक्ष क्षेत्र तक बढ़ाया जा रहा है जहां दोनों देशों ने पहले भी सहयोग किया है.”
उन्होंने कहा, “मानवता के लिए अगला लक्ष्य स्पष्ट रूप से अंतरिक्ष है, जहां सहयोग और संघर्ष दोनों की संभावना है.”
नंदी ने कहा, “यह एक-दूसरे के साथ मित्रतापूर्ण रवैया अपनाने का समय है जो परिभाषित करेगा कि आप अंतरिक्ष में व्यापक अवसरों का कितनी अच्छी तरह लाभ उठा सकते हैं और अपनी संपत्ति की सुरक्षा कर सकते हैं.” उन्होंने कहा, “इस घोषणा में नया तत्व कॉमर्शियल स्पेस एप्लीकेशन्स पर एक ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप है”.
उन्होंने कहा, “यह एक स्वागत योग्य कदम है और उम्मीद है कि इससे अधिक कुशल और टिकाऊ सहयोग मिलेगा और बाजारों तक पहुंच आसान होगी जो सरकारी एजेंसियों की जड़ता से बाधित नहीं होगी.”
भारतीयों से ISS
भारत-अमेरिका के संयुक्त बयान में भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को वर्तमान में पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर भेजने पर चर्चा की गई.
भारतीय मूल के केवल दो लोग – सुनीता विलियम्स और राजा चारी – आईएसएस गए हैं और अपनी फ्लाइट के समय दोनों अमेरिकी नागरिक थे.
मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए एक संयुक्त अभ्यास के हिस्से के रूप में, इसरो और नासा ने 2024 में भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को आईएसएस तक ले जाने के लिए क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण पर चर्चा शुरू की है.
संयुक्त बयान में कहा गया है कि इस साल के अंत तक इसकी रूपरेखा को अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है.
यह संभवतः इंडियन ह्यूमन स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम (आईएचएसपी) के साथ मिलकर काम करेगा, जिससे अगले दो वर्षों के भीतर भारत से पहला मानव अंतरिक्ष उड़ान ‘गगनयान’ लॉन्च होने की उम्मीद है.
भारत-अमेरिका अंतरिक्ष सहयोग
पिछले कुछ सालों में, भारत धीरे-धीरे रूस जैसे अन्य देशों के साथ इंजीनियरिंग और विनिर्माण में सहयोग से हटकर स्वदेशी रूप से निर्मित उपकरणों पर ध्यान केंद्रित करने लगा है.
1962 में, जब भारत ने इसरो की पूर्ववर्ती इंडियन नेशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च (INCOSPAR) की स्थापना की, तो यह उन कुछ चुनिंदा देशों में शुमार हो गया जिनकी खुद की स्पेस एजेंसी थी.
1960 के दशक में, इसरो (तब INCOSPAR) और NASA ने थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन से संयुक्त परीक्षण किया था.
1975-76 में, दोनों एजेंसियों ने सैटेलाइट इंस्ट्रुमेंटल टेलीविज़न एक्सपेरिमेंट या SITE पर सहयोग किया. इस कार्यक्रम के तहत, नासा का एटीएस-6 उपग्रह प्रारंभिक टेलीविजन के माध्यम से 2,000 से अधिक सुदूर भारतीय गांवों में शैक्षिक कार्यक्रम प्रसारित करने में लगा हुआ था, जहां बच्चे और वयस्क उन्हें देखने के लिए एकत्र होते थे.
1980 के दशक में, अमेरिका ने रॉकेट और अंतरिक्ष शटल पर भारतीय उपग्रहों को लॉन्च किया.
हालांकि, मई 1998 में भारतीय सेना के पोखरण परीक्षण रेंज में भारत द्वारा किए गए पोखरण-द्वितीय परमाणु परीक्षणों के बाद, अमेरिका ने कई आर्थिक, व्यापार और सैन्य प्रतिबंध लगाए, जिससे अमेरिका के साथ इसरो का सहयोग प्रभावित हुआ.
वर्तमान में, भारत आर्टेमिस समझौते का पक्षकार है, जो अमेरिका के नेतृत्व वाला गैर-बाध्यकारी समझौता है जो सिविल स्पेस एक्स्प्लोरेशन के लिए नियमों के बारे में बताता है. भारत जून में समझौते पर हस्ताक्षरकर्ता बन गया.
गणपति ने कहा, “भारत के आर्टेमिस समझौते पर हस्ताक्षरकर्ता बनने से दोनों भौगोलिक क्षेत्रों के उद्योगों के बीच तालमेल लाने के कई रास्ते खुल गए हैं.”
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निजी अंतरिक्ष मिशन
भारत-अमेरिका संयुक्त वक्तव्य नागरिक अंतरिक्ष सहयोग पर 2005 में स्थापित किए गए भारत-अमेरिका ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप के तहत कॉमर्शियल स्पेस मिशन पर सहयोग के भी बारे में बात करता है. इस पहला सीधा परिणाम चंद्रयान -1 में नासा पेलोड का भेजा जाना था.
इसके तहत एक और कार्य समूह के गठन की उम्मीद है, विशेष रूप से दोनों देशों के बीच वाणिज्यिक अंतरिक्ष सहयोग से निपटने के लिए.
जबकि अमेरिका के पास अंतरिक्ष उद्योग में एक मजबूत प्राइवेट ईको सिस्टम है, भारत इस क्षेत्र में एक नया प्लेयर है.
एक स्वतंत्र निकाय इंडिनय नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड अथराइज़ेशन सेंटर (IN-SPACe) की स्थापना इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जिसने एमओयू के रूप में संसाधनों तक पहुंच और नॉलेज ट्रांसफर की पेशकश करके भारत के अंतरिक्ष व्यवसाय में निजी स्टार्टअप को शामिल करने की सुविधा प्रदान की है.
बेंगलुरु स्थित स्पेस-टेक कंपनी Pixxel के संस्थापक अवैस अहमद ने कहा कि भारत-अमेरिका सहयोग बढ़ना घरेलू स्टार्टअप के लिए अच्छा संकेत है.
उन्होंने कहा, “भारत में तकनीक का निर्माण करके बड़े अमेरिकी बाजार तक पहुंचने में सक्षम होने से स्टार्टअप्स को व्यावसायिक विकास दिखाने में मदद मिलेगी जो अभी भारत में करना काफी कठिन है. मुख्य रूप से इसलिए क्योंकि भारतीय खरीददार का ईको सिस्टम अभी भी बढ़ रहा है.”
उन्होंने कहा, “उम्मीद है, भविष्य में किसी समय, इससे भारतीय स्टार्टअप सीएलपीएस जैसे कार्यक्रमों के लिए पात्र हो जाएंगे”.
कॉमर्शियल लूनर पेलोड सर्विसेज या सीएलपीएस एक पहल है जिसके तहत नासा चंद्रमा की सतह पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी पहुंचाने के लिए कई अमेरिकी कंपनियों के साथ काम कर रहा है.
उन्होंने कहा, “और शायद, भारतीय स्टार्टअप एनआईएसएआर (NASA-ISRO Earth-observing project) जैसी यूएस-इंडिया ज्वाइंट प्रोजेक्ट्स के बड़े मिशन जैसे स्पेस स्टेशन या ज्वाइंट प्लैनेटरी मिशन जैसे बड़े पैमाने पर भाग ले सकते हैं.”
NEO सुरक्षा
इसरो और नासा – बल्कि भारतीय और अमेरिकी सरकारें – भी पृथ्वी की रक्षा – एलियंस से नहीं, बल्कि चट्टानों से – पर सहयोग और समन्वय बढ़ाने पर सहमत हुए हैं.
NEO (Near-Earth-Objects) पृथ्वी के निकट सूर्य की परिक्रमा कर रहे सैकड़ों क्षुद्रग्रहों या एस्टेरॉयड को कहते हैं जो कि संभावित रूप से पृथ्वी से टकराने का खतरा पैदा करते हैं. यह विशेष रूप से सूर्य की ओर से आने वाले उन एस्टेरॉयड्स के लिए काफी महत्वपूर्ण है जिनको देख पाना मुश्किल होता है, जिसकी वजह से एस्ट्रोनॉमर्स ज्यादा देर तक इसको ऑब्ज़र्व नहीं कर पाते हैं.
इस तरह के डिफेंस का एक परीक्षण नासा के DART मिशन के हिस्से के रूप में किया गया था, जहां एक इंपैक्टर ने पृथ्वी से बहुत दूर एक गैर-हानिकारक एस्टेरॉयड के चंद्रमा से टकराया और उसकी कक्षा में अपेक्षित बदलाव कर दिया.
किसी ऑब्जेक्ट के ऑर्बिट में बदलाव के लिए पृथ्वी से भेजा गया यह अपनी तरह का पहला मिशन था. यह उम्मीद की जाती है कि जब कोई NEO पृथ्वी के बहुत करीब आएगा, तो उसका पहले ही पता लगा लिया जाएगा ताकि उससे टकराने के लिए एक यान भेजा जा सके, ताकि वह अपना रास्ता बदल ले और पृथ्वी से न टकराए.
संयुक्त बयान में कहा गया है कि भारत और अमेरिका “पृथ्वी और अंतरिक्ष का संपत्तियों को एस्टेरॉयड्स और पृथ्वी के निकट के वस्तुओं के प्रभाव से बचाने के लिए प्लैनेटरी डिफेंस पर समन्वय बढ़ाने का इरादा रखते हैं, जिसमें माइनर प्लैनेट सेंटर के माध्यम से एस्टेरॉयड्स का पता लगाने और ट्रैकिंग में भारत की भागीदारी के लिए अमेरिकी समर्थन भी शामिल है.”
स्मिथसोनियन एस्ट्रोफिजिकल ऑब्जर्वेटरी में संचालित, माइनर प्लैनेट सेंटर सौर मंडल में एस्टेरॉयड्स, कॉमेट्स और अन्य छोटे पिंडों का ऑब्ज़र्वेशन करने और उन्हें ट्रैक करने का काम करता है.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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