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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशआतंक विरोधी कानून लगाकर 9 क्रिकेट खिलाड़ियों की गिरफ्तारी से कैसे रविवार को शोपियां का मैदान सूना हो गया है

आतंक विरोधी कानून लगाकर 9 क्रिकेट खिलाड़ियों की गिरफ्तारी से कैसे रविवार को शोपियां का मैदान सूना हो गया है

जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 9 नौजवानों पर यूएपीए के तहत मुकदमा दायर कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया है. उन पर आरोप है कि उन्होंने नाज़नीनपुरा के एक मारे गए आतंकी की याद में आयोजित क्रिकेट मैच में हिस्सा लिया था.

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शोपियां: पिछले हफ्ते तक दक्षिण कश्मीर के शोपियां ज़िले के नाज़नीनपुरा गांव का खेल का मैदान हर रविवार को गांव के युवाओं से भर जाता था, जो सफेद कपड़ों में सुबह सवेरे से शाम तक क्रिकेट खेलते थे.

गांव के बड़े लोग मैदान के किनारे बैठकर मैच का मज़ा लिया करते थे जबकि छोटी उम्र के लड़के आसपास खेलते हुए खुद को बिज़ी रखते थे और कभी-कभी रामबियार नदी में डुबकी लगा लेते थे जो मैदान के पास से होकर बहती थी.

लेकिन इस रविवार ऐसा कुछ नहीं दिखा. उस घटना के बाद ये पहला रविवार था जब जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 9 नौजवानों को गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत, इस आरोप में गिरफ्तार कर लिया कि उन्होंने मारे गए एक आतंकवादी की याद में आयोजित एक क्रिकेट मैच में हिस्सा लिया था जिसका ताल्लुक नाज़नीनपुरा से था.

1995 में टाडा (टैररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज़ प्रीवेंशन एक्ट) और 2004 में पोटा (प्रीवेंशन ऑफ टैररिज़्म एक्ट) के रद्द हो जाने के बाद भारत में आतंकवाद से निपटने के लिए यूएपीए अकेला कानून बचा है.

स्थानीय गांव वालों ने कहा कि मनोरंजन का कोई और साधन न होने की वजह से यहां के नौजवान इस क्रिकेट मैदान में ही चले जाया करते थे. गिरफ्तार हुए एक नौजवान के भाई नज़ीर अहमद ने कहा कि पिछले कुछ समय से इसकी अहमियत और बढ़ गई थी. उन्होंने आगे कहा कि यहां के युवाओं के लिए क्रिकेट मनोरंजन से कहीं ज़्यादा था, वो यहां के नौजवानों के लिए कैरियर का एक विकल्प बन सकती है.

कोविड-19 महामारी के शुरूआती दिनों में इस मैदान में ज़्यादा हलचल नहीं रहती थी लेकिन लॉकडाउन में ढील दिए जाने के बाद मैदान में खासकर रविवार के दिन फिर से चहल-पहल होने लगी थी.

‘इस इलाक़े में अकसर लॉकडाउन, कर्फ्यू या गोलीबारी हो जाती है. ये सिर्फ क्रिकेट ही है जो युवा लोगों को इन सबसे थोड़ी राहत देता है. पिछले साल अगस्त के बाद से जब संचार के सभी चैनल्स बंद थे, क्रिकेट ही एक ऐसी चीज़ थी जिससे गांव के नौजवान अपना दिल बहला सकते थे’.

अहमद ने बताया कि यहां के बच्चे इस रविवार को मैदान में नहीं गए क्योंकि गिरफ्तारियों ने ‘एक डर का माहौल’ बना दिया है और अब लोगों को लगता है कि ‘मैदान में क्रिकेट खेलने से उन्हें भी उस केस से जोड़ा जा सकता है’.

दिप्रिंट ने गांव के बहुत से लड़कों से बात की और वो सब अहमद की बात से सहमत थे.

बीस साल से कुछ अधिक उम्र के एक नौजवान ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘हम अफवाहें सुनते रहते हैं कि और लड़कों को गिरफ्तार किया जाएगा. अब ऐसे में कौन क्रिकेट फील्ड में जाना चाहेगा’.

रविवार को क्रिकेटर्स की जगह एक चरवाहा, नाज़नीनपुरा के इस मैदान में अपनी भेड़ें चरा रहा था और सोच रहा था कि ‘वो सब लड़के कहां गायब हो गए’.

वो यूएपीए केस और ‘कड़ी कार्रवाई’ से पूरी तरह वाक़िफ नहीं था जिसने इस पूरे गांव और आसपास की कुछ बस्तियों को हिलाकर रख दिया है.

पुलिस ने इन नौ युवाओं पर कश्मीर विद्रोह को ग्लैमरस बनाने का आरोप लगाया है जबकि उनके परिवारों का कहना है कि एक गुज़रे हुए साथी ग्रामीण की याद में क्रिकेट मैच खेलने पर इतनी सख्त कार्रवाई नहीं होनी चाहिए थी.

उन्होंने कहा कि इलाके के ज़्यादातर नौजवान मारे गए उग्रवादी कमांडर सैयद रूबन को बचपन से जानते थे.

सैयद रूबन जुलाई 2018 में उग्रवादी संस्था अल-बद्र में शामिल हुआ था और 6 महीने बाद बड़गांम में एक गोलीबारी के दौरान मारा गया था.

उसके पिता मोहम्मद हुसैन ने दिप्रिंट को बताया कि रूबन क्रिकेट का बहुत शौकीन था और कई-कई दिन अपनी उम्र के लोगों के साथ क्रिकेट खेलता रहता था. उन्होंने बताया कि मैच के दिन एक फोटोग्राफ खींचकर शेयर किया गया था जिसकी वजह से खिलाड़ी मुसीबत में फंसे.

50 साल के सरकारी कर्मचारी हुसैन ने कहा, ‘हमारे गांव के बच्चे रूबन के साथ बड़े हुए थे और उसके उग्रवादी बनने से पहले उसके साथ खेला करते थे. जीतने वाली टीम ने तय किया कि वो रूबन की कब्र के पास नमाज़ पढ़ेंगे. रूबन के लिए क्रिकेट ही सब कुछ थी और उसके दोस्त उसे इसी तरह याद रखना चाहते थे’.

उन्होंने कहा, ‘बदकिस्मती से रूबन की कब्र पर उन्होंने जो फोटो खींचा, उसे सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया जिसकी वजह से फोटो में दिख रहे नौ लोग अब पुलिस हिरासत में हैं’.

अपने बेटे के बारे में बात करते हुए हुसैन ने कहा कि गणित में ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद रूबन कश्मीर सिविल सर्विसेज़ में जाना चाहता था. उन्होंने कहा कि पढ़ाई में खासकर उर्दू शायरी में, रूबन की दिलचस्पी को देखते हुए परिवार ने कभी सोचा भी नहीं था कि वो एक उग्रवादी बन जाएगा. उन्होंने आगे कहा कि चीज़ें तब बदलीं जब उनके कज़िन का बेटा नवीद बाबू जो जम्मू-कश्मीर पुलिस में रहा था, हिज़्बुल मुजाहिद्दीन में शामिल हो गया. उन्होंने आरोप लगाया कि नवीद के इस कदम के बाद ‘अथॉरिटीज़ रूबन को परेशान कर रहीं थीं’.

लेकिन शोपियां पुलिस ने इस इल्ज़ाम से इनकार किया है.

A file photo of the slain militant commander Ruban. | Photo: Special arrangement
मिलिटेंट कमांडर सैयद रूबन की फाइल फोटो | फोटो: अज़ान जावेद/ दिप्रिंट

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‘सिर्फ क्रिकेट शौकीनों की मदद कर रहा था’

पिछले हफ्ते का मैच हुसैन के दूसरे बेटे सैयद तजम्मुल ने आयोजित कराया था जो गिरफ्तार हुए नौ युवाओं में से एक हैं.

हुसैन ने कहा, ‘मेरा बेटा (तजम्मुल) अपने भाई (रूबन) को याद करना चाहता था. उसने खिलाड़ियों को क्रिकेट यूनिफॉर्म्स भी बांटीं, यहां तक कि उन लोगों को भी जो मैच देखने आए थे. क्या मारे गए आदमी को याद करना गुनाह है? तजम्मुल ने हथियार उठाने की बात नहीं की थी बल्कि सिर्फ उन युवाओं की मदद कर रहा था जो क्रिकेट के शौकीन हैं’.

मैच से पहले एक प्रेस बयान में तजम्मुल ने कहा था, ‘मैं ये क्रिकेट यूनिफॉर्म्स बांट रहा हूं क्योंकि ये मेरा भाई का पसंदीदा खेल था. वो एक होनहार क्रिकेटर था और उसके दोस्त खेल से उसके प्यार और उसकी प्रतिभा की वजह से उसे बहुत चाहते थे’.

बयान में आगे कहा गया, ‘हमें उनकी हौसला अफज़ाई करनी चाहिए, वरना वो ड्रग्स या दूसरी सामाजिक बुराईयों में पड़ सकते हैं. बाकी उन्हें आज़ादी है जिस फील्ड में भी वो जाना चाहें’.


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पूछताछ जारी

मैदान से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा सा गांव पशपोरा है जहां नौ में से चार नौजवान रहते थे. उनमें से एक 27 साल का गौहर अहमद है. उसकी मां अमीना ने दिप्रिंट से कहा कि उनके बेटे ने ऐसा काम नहीं किया कि उसपर यूएपीए केस लगाया जाए.

अमीना ने कहा, ‘वो क्रिकेट खेलते थे और उन्होंने जो यूनिफॉर्म्स पहनीं वो रूबन के भाई ने डोनेट की थीं. बचपन में भी वो (रूबन के) साथ खेला करते थे और अगर ये लड़के अपने एक दोस्त को याद करना चाहते थे, उसके साथ खेल के दिनों की यादों को ताज़ा करना चाहते थे तो क्या ये कोई गुनाह है?’

सफिया फारूक का बेटा उमर फारूक भी गिरफ्तार हुए लोगों में है. कुछ परिवार तो अपने बच्चों पर लगे यूएपीए आरोपों की गंभीरता को समझते हैं लेकिन सफिया को उम्मीद थी कि उनका बेटा जल्द छूट जाएगा.

सफिया ने आगे कहा, ‘उन्होंने हमें अभी तक अपने बेटों से मिलने नहीं दिया है. मैं उम्मीद कर रही हूं कि वो हमें उनसे मिलकर बात करने देंगे. हमें उम्मीद है कि लड़कों को जल्द ही छोड़ दिया जाएगा’.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि लड़कों को हिरासत में लिया गया है और फिलहाल उनसे पूछताछ हो रही है.

नाम न बताने की शर्त पर उस अधिकारी ने कहा कि जांच का मकसद ये पता लगाना है कि इन लड़कों ने विद्रोहियों को ग्लैमराइज़ करने की कोशिश तो नहीं की और ऐसा करने के पीछे उनका मकसद क्या था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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