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Friday, 29 March, 2024
होमदेशबिना डॉक्टर के अस्पताल, बिजली कटौती—पंजाब की ‘बिगड़ी’ वित्तीय स्थिति AAP के बजट की सबसे बड़ी परीक्षा

बिना डॉक्टर के अस्पताल, बिजली कटौती—पंजाब की ‘बिगड़ी’ वित्तीय स्थिति AAP के बजट की सबसे बड़ी परीक्षा

पंजाब की वित्तीय स्थिति आप सरकार के समक्ष अपना पहला बजट पेश करने की सबसे बड़ी चुनौती है. वित्त मंत्री चीमा का कहना है कि ‘नए कर लगाए बिना राजस्व बढ़ाना’ प्राथमिकता है.

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नई दिल्ली: 2021 की दूसरी छमाही में पंजाब ने हाल के वर्षों में डेंगू का सबसे बड़ा प्रकोप देखा. राज्य के स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि अक्टूबर अंत तक मुक्तसर जिले में 1,000 से अधिक मामले और दो मौतें दर्ज की जा चुकी थीं. हालांकि, जिले के किसी भी सरकारी अस्पताल में डेंगू का एक भी मरीज भर्ती नहीं हुआ. कारण—जैसा अधिकारी ने बताया कि इनमें से किसी भी स्वास्थ्य केंद्र में कोई विशेषज्ञ नहीं है जो डेंगू के मरीजों का इलाज कर सके.

अधिकारी ने आगे कहा कि पंजाब पिछले कई सालों से डॉक्टरों की भारी कमी से जूझ रहा है, और सरकारी अस्पतालों में शायद ही कोई स्त्री रोग विशेषज्ञ, न्यूरोसर्जन, नेत्र सर्जन, रेडियोलॉजिस्ट और बाल रोग जैसे विशेषज्ञ हों. यह कमी अक्सर लोगों को निजी अस्पतालों की तरफ रुख करने को बाध्य करती है, जहां इलाज काफी महंगा है. कई लोगों के लिए तो हर बार परिवार में किसी के गंभीर रूप से बीमार पड़ने पर कर्ज लेने की नौबत आ जाती है। उन्होंने आगे कहा, ‘जो लोग इस स्थिति में भी नहीं होते, वे अक्सर घर पर ही खुद ही इलाज कर लेने का सहारा लेते हैं.’

दिप्रिंट ने जिन सरकारी अधिकारियों, राजनीतिक पदाधिकारियों और विशेषज्ञों से बात की, उनका यही कहना है कि इसके पीछे असल समस्या कहीं न कहीं पंजाब की खराब वित्तीय स्थिति है. और यही कुछ ही माह पहले सत्ता में आई भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है, जो सोमवार को अपना पहला बजट पेश करने वाली है. भारतीय रिजर्व बैंक के एक अध्ययन के मुताबिक, पंजाब भारत के सबसे अधिक वित्तीय तनाव वाले राज्यों में से एक है.

समस्या केवल राज्य के स्वास्थ्य क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है बल्कि शासन के लगभग सभी पहलुओं को प्रभावित करती है—जैसे शिक्षा, बिजली, परिवहन, पानी, पुलिस, सार्वजनिक कार्य और ग्रामीण विकास आदि, जो अक्सर ही फंड की कमी से जूझते रहे हैं.

नतीजा यह है कि स्कूलों में शिक्षकों की कमी है, इसके अलावा लंबी बिजली कटौती हो रही, जलापूर्ति की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध नहीं है, और बुनियादी ढांचा परियोजनाएं भी अटकी पड़ी हैं.

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सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, आप ने जब 10 मार्च को पंजाब में सत्ता संभाली तब राज्य पर कुल 2.82 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था. वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि सरकार के अपने ही अनुमानों के मुताबिक 2023-24 वित्तीय वर्ष के अंत तक इसके 3.15 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाने की संभावना है.

इससे पहले, जब 2017 में कांग्रेस सत्ता में आई तो पिछली शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) सरकार से उसे 1.82 लाख करोड़ रुपये का कुल कर्ज विरासत में मिला था—यह इस बात का संकेत है कि पंजाब किस तरह कर्ज के चक्रव्यूह में घिरा है.

2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में 53 प्रतिशत कर्ज के साथ पंजाब भारत के सभी राज्यों की तुलना में सबसे खराब स्थिति में था.

लगभग 3 करोड़ की अनुमानित आबादी वाले पंजाब में प्रति व्यक्ति कर्ज करीब 94,000 रुपये है.

पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने दिप्रिंट से कहा, ‘पंजाब की वित्तीय स्थिति मौजूदा समय में एक बड़ी चुनौती है क्योंकि पिछली सरकारों ने अपने निहित स्वार्थों के कारण राज्य के विकास के लिए ठोस नीतियां नहीं बनाईं, जिसकी वजह से राज्य हजारों करोड़ के कर्ज में डूब गया है.’

उन्होंने कहा, ‘आप सरकार राज्य को गंभीर वित्तीय संकट से उबारने के हरसंभव प्रयास कर रही है.’ चीमा ने आगे कहा कि इस समय उनकी सरकार की प्राथमिकता ‘नए कर लगाए बिना राजस्व बढ़ाने’ पर केंद्रित है.

उन्होंने कहा, ‘दो माह के शासन के दौरान हमने देखा है कि राजस्व बढ़ाने के कई विकल्प हैं, खासकर परिवहन, बिजली, खनन और उत्पाद शुल्क के क्षेत्रों में.’

पटियाला स्थित पंजाबी यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र विभाग प्रमुख रहे आर.एस. घुमन के मुताबिक, राज्य ‘कर्ज के जाल’ में फंसा है.

घुमन ने दिप्रिंट को बताया, ‘राज्य की तरफ से नए कर्ज का इस्तेमाल लगभग पूरी तरह पुराने कर्ज और ब्याज को निपटाने में किया जा रहा है.’

बजट रिकॉर्ड के मुताबिक, वर्ष 2019-20 के लिए पंजाब का वास्तविक ऋण 57,141 करोड़ रुपये था, जिसमें मूल भुगतान के साथ-साथ ब्याज भी शामिल है. उसी वर्ष, पंजाब की वास्तविक उधारी 54,766 करोड़ रुपये थी.

कर्ज के जाल ने पंजाब में ऐसे समय पर और भी ज्यादा वित्तीय तनाव उत्पन्न कर दिया है जब राज्य आय और व्यय के बीच एक बड़े असंतुलन का सामना कर रहा है.


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खर्च अधिक, और घटती आय

पंजाब सरकार के 2021-22 के बजट के मुताबिक, 2019-20 के लिए राज्य का वास्तविक कुल व्यय—जिसमें राजस्व व्यय, पूंजीगत व्यय और ऋणों का पुनर्भुगतान शामिल है—लगभग 1.34 लाख करोड़ रुपये था.

इसी अवधि के लिए वास्तविक कुल प्राप्ति, उधार को छोड़कर, 77,645 करोड़ रुपये थी. 2021-22 के बजट दस्तावेज के मुताबिक, इस स्पष्ट अंतर को पूरा करने के लिए 54,776 करोड़ रुपये का उधार लिया गया.

राज्य के वित्त विभाग में सेवारत एक वरिष्ठ सिविल सेवक ने कहा, राज्य को जब-तब समय पर वेतन भुगतान जैसे नियमित खर्चे पूरे करने के लिए भी जूझना पड़ रहा है, और इसीलिए बार-बार उधार लेना पड़ता है. ‘और फिर उसे पुराने कर्जों को निपटाने के लिए और पैसा उधार लेना पड़ता है.’

2019-20 के वास्तविक व्यय के आंकड़ों के मुताबिक, पंजाब ने 24,683 करोड़ रुपये का कुल वेतन का भुगतान किया. जैसा कि बजट दस्तावेजों से पता चलता है, उसी वित्तीय वर्ष में वेतन, पेंशन और उधार पर ब्याज पर वास्तविक सामूहिक खर्च पंजाब के राजस्व व्यय का 70 प्रतिशत था.

लेकिन राजस्व में कमी आ रही है.

बजट दस्तावेजों के मुताबिक, 2019-20 के लिए राज्य ने 61,575 करोड़ रुपये की वास्तविक राजस्व प्राप्ति दर्ज की, जो 2018-19 में 62,269 करोड़ रुपये से कम है.

2019-20 के वास्तविक व्यय आंकड़ों के मुताबिक, इसका करीब 85 फीसदी वेतन, पेंशन और उधार पर ब्याज चुकाने में चला गया.

राज्य के घटते राजस्व पर विस्तार से बताते हुए पंजाब के एक पूर्व सिविल सेवक ने कहा कि पिछले दो दशकों में संपत्ति, गृह और कई अन्य करों में महत्वपूर्ण छूट दी गई थी, राज्य ने सभी किसानों को बिजली छूट की सीमा में लाने के लिए सरकार ने सब्सिडी का दायरा बढ़ाने जैसे कदम भी उठाए हैं.

वित्तीय वर्ष 2018-19 और 2019-20 के लिए वास्तविक संग्रह के संदर्भ में राज्य के मूल राजस्व मदों का विश्लेषण बिखरते राजस्व ढांचे को ठीक से रेखांकित करता है.

इन दो वर्षों में पंजाब के माल एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह में लगभग 4 प्रतिशत, मूल्य वर्धित कर (वैट) संग्रह में लगभग 20.5 प्रतिशत, उत्पाद शुल्क में 4.3 प्रतिशत और स्टाम्प शुल्क संग्रह में 1.7 प्रतिशत की गिरावट आई है. बजट दस्तावेजों से पता चलता है कि केवल वाहन रजिस्ट्रेशन पर मिलने वाले करों में लगभग 7 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है.

चीमा ने कहा, ‘मौजूदा प्रणाली में कुछ खामियां हैं और कर चोरी की समस्या भी है—खासकर व्यापार, परिवहन, संपत्ति और उत्पाद शुल्क जैसे मामलों में. हम कमियां दूर करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.’

पंजाब की खराब वित्तीय स्थिति के कारण वित्त पोषण भी कम होता है जो सार्वजनिक जीवन और शासन के लगभग सभी पहलुओं को प्रभावित करता है.

घुमन ने कहा, ‘राज्य के सभी महत्वपूर्ण क्षेत्र फंड की कमी के शिकार हैं. इसीलिए सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ नहीं हैं, सरकारी स्कूलों में विशिष्ट विषयों के शिक्षक नहीं हैं, राज्य बिजली कटौती से जूझ रहा है, आप बुनियादी ढांचा परियोजनाओं अक्सर अधर में लटकी देख सकते हैं.’

प्राथमिकता वाले क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित

पंजाब के पूर्व मुख्य सचिव और राज्य के वित्त आयोग के मौजूद अध्यक्ष के.आर. लखनपाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘पंजाब प्राथमिकताएं तय नहीं होने का बड़ा उदाहरण है. हर बार फंड की कमी होती है, स्वास्थ्य, शिक्षा और बिजली जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्र पहले निशाना बनते हैं. इसका खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ रहा है. राजनेताओं और नौकरशाहों पर इसका कोई सीधा असर नहीं होता, इसीलिए कोई सुधार भी नहीं हो रहा है.’

पिछले तीन बजटों में दर्ज वास्तविक खर्च आंकड़ों के मुताबिक, पंजाब औसतन हर साल स्वास्थ्य पर लगभग 3,170 करोड़ रुपये खर्च करता है और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों का कहना है कि अपर्याप्त आवंटन के कारण लोगों को स्वास्थ्य सेवा पर अपनी जेब से अधिक खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ता है.

पिछले साल जारी 2017-18 के राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा अनुमानों के मुताबिक, पंजाब सरकार प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर 1,086 रुपये व्यय करती है जो कई अन्य राज्यों—हरियाणा (1,428 रुपये), हिमाचल प्रदेश (3,177 रुपये), राजस्थान (1,369 रुपये) की तुलना में काफी कम है.

दूसरी ओर, पंजाब में प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर होने वाला व्यय 2,935 रुपये दर्ज किया गया, जो हरियाणा (2,181 रुपये), राजस्थान (1,688 रुपये), उत्तर प्रदेश (2,393 रुपये) और कई अन्य राज्यों की तुलना में बहुत अधिक है.

पंजाब में कई सरकारी स्कूलों की अक्सर बुनियादी ढांचे और शिक्षकों की कमी के लिए आलोचना की जाती है. मार्च के राज्य विधानसभा चुनावों से पहले आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने खुद इसे स्वीकारते हुए कहा था, ‘पंजाब में सरकारी स्कूलों की हालत खराब है.’

राज्य के सभी जिलों के लोगों से बातचीत के दौरान कोई ऐसा व्यक्ति मिलना मुश्किल था जो इससे असहमत हो.

पंजाब के स्कूल शिक्षा विभाग के रिकॉर्ड से पता चलता है कि राज्य में 28,568 स्कूल हैं, जिनमें से लगभग दो-तिहाई सरकारी हैं, जबकि बाकी निजी, गैर-सहायता प्राप्त, संबद्ध और अन्य श्रेणियों में आते हैं. पिछले साल तक पंजाब में लगभग 30 लाख छात्र सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे थे.

स्टाफ और बुनियादी ढांचे की कमी ने राज्य के कई स्कूलों को डबल शिफ्ट में चलाने के लिए मजबूर कर दिया है.

स्कूल शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘राज्य में लगभग 13,000 प्राइमरी स्कूल हैं, जिनमें करीब एक तिहाई अकेले एक शिक्षक के बलबूते पर चल रहे हैं. इनमें करीब 15 फीसदी स्कूलों में विशिष्ट विषयों के शिक्षक नहीं हैं. यह पंजाब जैसे राज्य के लिए अच्छा नहीं है, जहां स्कूल ड्रॉपआउट की दर बहुत अधिक है.’

अधिकारी ने कहा, ‘जो लोग अपने बच्चों को निजी स्कूल भेजते हैं, उनमें से बड़ी संख्या में छात्रो की फीस चुकाने के लिए कर्ज लिया जाता है.’

इस बीच, पंजाब के कई जिलों में लगातार और लंबी बिजली कटौती हो रही है. बिजली विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राज्य लगभग 2,000 मेगावाट बिजली की कमी का सामना कर रहा है, इसका कारण कोयले की कमी है. इसके पीछे भी पंजाब की खराब वित्तीय स्थिति ही एक बड़ी वजह है.

वरिष्ठ बिजली अधिकारी ने कहा कि पंजाब राज्य विद्युत निगम लिमिटेड (पीएसपीसीएल) कोयले की खरीद के लिए समय पर भुगतान करने में असमर्थ है क्योंकि राज्य सरकार ने निगम को लगभग 11,500 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया है, जिसमें सब्सिडी बिल और अन्य विभिन्न विभागों की बकाया राशि शामिल है.

सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए राज्य का कुल बिजली सब्सिडी बिल 10,668 करोड़ रुपये था. इसमें 7,180 करोड़ रुपये उन किसानों को दी गई सब्सिडी है, जिन्हें बिजली बिल नहीं चुकाना है.

जब आप मार्च में पंजाब में सत्ता में आई तो उसके समक्ष पीएसपीसीएल की कुल बकाया राशि 12,600 करोड़ रुपये थी जिसमें लगभग 9,000 करोड़ रुपये का बकाया बिजली सब्सिडी भुगतान शामिल है.

हर घर को 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने की आप की नई योजना के साथ सब्सिडी बिल और बढ़ जाएगा.


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आगे का रास्ता

वित्त आयोग अध्यक्ष लखनपाल ने कहा, ‘अगर पंजाब खुद को कर्ज के जाल से बाहर निकालना चाहता है तो उसे सब्सिडी और राजस्व पुनर्गठन जैसे कठिन बजट विकल्पों को अपनाना होगा.’

पूर्व में उद्धृत प्रो. घुमन के मुताबिक, पंजाब को सभी के लिए मुफ्त की घोषणा की ‘मौजूदा प्रवृत्ति’ के बजाय अपनी सब्सिडी सबसे ज्यादा हाशिये पर रहने वाले वर्ग तक सीमित करनी होगी.

उन्होंने आगे कहा, ‘मेरे अनुमान के मुताबिक, पंजाब में इस समय उत्पाद शुल्क, जीएसटी, स्टाम्प एवं पंजीकरण शुल्क, खनन, संपत्ति कर, पेशेवर कर आदि की वसूली और बिजली चोरी, परिवहन और केबल तथा सामाजिक कल्याण योजनाओं में धांधली पर लगाम कसकर सामूहिक तौर पर 28,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व जुटाने की क्षमता है.’

हालांकि, राज्य के वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि फिलहाल अभी राज्य की मौजूदा सब्सिडी व्यवस्था में बड़े बदलाव की योजना नहीं है, लेकिन राजस्व पुनर्गठन पर विचार किया जा रहा है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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