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Thursday, 12 December, 2024
होमदेश‘उम्मीद है इससे FIFA बैन हटाने में मदद मिलेगी’ – SC ने अपने ही नियुक्त किए पैनल को भंग किया

‘उम्मीद है इससे FIFA बैन हटाने में मदद मिलेगी’ – SC ने अपने ही नियुक्त किए पैनल को भंग किया

FIFA ने भारतीय फुटबॉल इकाई AIFF को निलंबित कर दिया था. केंद्र ने SC से आग्रह किया कि FIFA का नियंत्रण उसके प्रशासन को सौंप दिया जाए और उसने FIFA की मांगें मान लीं.

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नई दिल्ली: विश्व फुटबॉल प्रबंध निकाय फीफा के भारत पर प्रतिबंध लगाने के एक सप्ताह बाद, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासकों की समिति (सीओए) को भंग कर दिया, जिसे उसने अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) का कामकाज को देखने के लिए नियुक्त किया था और प्रबंधन उसने वापस फेडरेशन के हवाले कर दिया.

ये उम्मीद जताते हुए कि इस कदम से ‘एआईएफएफ के निलंबन को वापस लेने और अंडर-17 (महिला) विश्व कप का आयोजन करने में सुविधा मिलेगी’. सुप्रीम कोर्ट ने एआईएफएफ चुनावों को भी पिछली निर्धारित तिथि 28 अगस्त से एक हफ्ता आगे बढ़ा दिया है ताकि एआईएफएफ कार्यकारी समिति के नए गठन के अनुसार, निर्वाचक मंडल में बदलाव करके नामांकन दाखिल किए जा सकें.

निर्वाचन मंडल में अब केवल राज्यों और केंद्र-शासित क्षेत्रों के एआईएफएफ सदस्य संघों के प्रतिनिधि होंगे और उसमें खिलाड़ी शामिल नहीं होंगे.

न्यायमूर्तियों डीवाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की बेंच ने आदेश दिया कि कार्यकारी समिति में 23 सदस्य होंगे जिनमें छह प्रसिद्ध खिलाड़ी शामिल होंगे. बाकी 17 सदस्य जिनमें, एआईएफएफ अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष और उपाध्यक्ष शामिल होंगे वो निर्वाचन मंडल द्वारा चुने जाएंगे.

छह जाने-माने खिलाड़ियों में चार पुरुष और दो महिलाएं होंगी. इन मशहूर खिलाड़ियों को कार्यकारी समिति में मनोनीत किया जाएगा जिससे समिति में उनका प्रतिनिधित्व करीब 25 प्रतिशत हो जाएगा, जैसा कि फीफा ने सुझाया था.

ये आदेश तब जारी किया गया जब केंद्र ने रविवार को एक याचिका दायर की थी कि एआईएफएफ का दैनिक का प्रबंधन सीओए की बजाए, उसके कार्यकारी महासचिव की अगुवाई में प्रशासन द्वारा किया जाना चाहिए. सरकार ने कोर्ट को फीफा के साथ हुई अपनी बातचीत के बारे में सूचित किया था और उसने शीर्ष फुटबॉल इकाई की लगभग सभी मांगों को मान लिया था.

केंद्र ने कहा था कि फीफा प्रतिबंध, ‘पूरे देश समेत उसके तमाम फुटबॉल खिलाड़ियों, फुटबॉल प्रेमियों के लिए विनाशकारी और गंभीर है क्योंकि उससे भारत न केवल ऐसे ऐतिहासिक आयोजन की मेजबानी के अधिकार खो देगा, बल्कि एआईएफएफ द्वारा चुनी गई टीम और उससे संबद्ध क्लबों की टीमें तुरंत प्रभाव से किसी अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉल मैच या प्रतियोगिता में हिस्सा लेने की पात्र नहीं रहेंगी जब तक निलंबन प्रभावी रहेगा’.

उसने आगे कहा कि एआईएफएफ चुनाव की प्रक्रिया फिलहाल नामांकन दाखिल किए जाने की अवस्था में है. साथ ही  रिटर्निंग ऑफिसर उमेश सिन्हा और सहायक रिटर्निंग ऑफिसर तपस भट्टाचार्य इसका संचालन कर रहे हैं’.

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये जोड़ी रिटर्निंग ऑफिसर्स बनी रहेगी क्योंकि चुनाव लड़ रहे किसी पक्ष ने उनके बने रहने पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई थी. हालांकि, निर्वाचन मंडल में सुझाए गए बदलावों की वजह से, चुनाव की प्रक्रिया फिर से शुरू करनी होगी, जिस कारण कोर्ट ने उसे अब एक हफ्ते के लिए बढ़ा दिया है.


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‘तीसरे पक्षों का अनुचित प्रभाव’

नवंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एआईएफएफ का संविधान तैयार करने, एआईएफएफ के लिए चुनाव कराने और उसकी कार्यकारी समिति का गठन सुनिश्चित कराने के लिए सीओए बनाया था.

इस लंबित मामले का हवाला देते हुए, एआईएफएफ के पूर्व विवादास्पद अध्यक्ष प्रफुल पटेल, जिनका तीसरा कार्यकाल दिसंबर 2020 में समाप्त हो गया था, अपने पद पर बने रहे. पटेल ने अपने कार्यकाल का विस्तार कर लिया, और तब तक चुनाव कराने से इनकार कर दिया, जब तक सुप्रीम कोर्ट एक नए संविधान का मामला तय नहीं कर लेती.

पटेल को 2009 में चुना गया था, जिसके बाद उन्हें 2012 और 2016 में फिर से चुना गया और आगे चलकर वो फीफा काउंसिल के एक सदस्य भी बन गए. दिसंबर 2020 में उन्होंने तीन कार्यकाल पूरे कर लिए थे- जो राष्ट्रीय खेल संहिता के अंतर्गत अधिकतम सीमा है.

18 मई को सीओए का फिर से गठन किया गया, जिसमें पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज एआर दवे, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी और भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान भास्कर गांगुली शामिल थे. उस आदेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने पटेल और उनकी कार्यकारी समिति को पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था.

जुलाई में, सीओए ने एआईएफएफ के संविधान का अंतिम मसौदा फीफा और सुप्रीम कोर्ट को भेज दिया. फीफा ने तब सुझाव दिया था कि एआईएफएफ अपनी कार्यकारी समिति में मनोनीत सदस्यों के तौर पर प्रसिद्ध खिलाड़ियों का प्रतिनिधित्व 25 प्रतिशत रखे, बजाय 50 प्रतिशत (36 सदस्यों) के जैसा कि संविधान के मसौदे में प्रावधान था.

हालांकि, 3 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने सीओए द्वारा सुझाए गए निर्वाचन मंडल को मंजूरी दे दी, जिसमें 36 प्रदेश संघों के प्रतिनिधि और 36 जाने-माने फुटबॉल खिलाड़ी शामिल होने थे. उसने सीओए द्वारा निर्धारित सुझाए गई समय सारणी को भी स्वीकार कर लिया और जोर देकर रहा कि चुनाव ‘शीघ्र कराए जाने चाहिएं’.

उसके बाद 16 अगस्त को फीफा ने ‘तीसरे पक्षों के अनुचित प्रभाव’ के चलते एआईएफएफ को निलंबित कर दिया, जो उसके मुताबिक ‘फीफा कानूनों का गंभीर उल्लंघन था’.

रविवार को, पूर्व भारतीय फुटबॉल टीम कप्तान बाईचुंग भूटिया ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और एआईएफएफ के नए संविधान तथा जाने-माने खिलाड़ियों के 36-सदस्यीय निर्वाचन मंडल के प्रति समर्थन का इजहार किया.

भूटिया की याचिका में कहा गया कि सीओए का मसौदा संविधान ‘भारतीय फुटबॉल के प्रशासन में वर्तमान और पूर्व खिलाड़ियों के कल्याण और भागीदारी को प्राथमिकता और बढ़ावा देता है- जो किसी भी खेल में प्रमुख हितधारक होते हैं- उन निहित हितों के ऊपर जो कई दशकों से भारतीय फुटबॉल पर नियंत्रण बनाए हुए हैं’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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