(कुणाल दत्त)
(तस्वीरों के साथ, पीटीआई विशेष)
नयी दिल्ली, 18 नवंबर (भाषा) शीर्ष प्रौद्योगिकी कंपनियों के भारतीय मूल के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी ने सोमवार को कहा कि वे “आव्रजन अवसरों” के कारण उनके देश आए। उन्होंने कहा कि उनकी आशा और पुरजोर अनुशंसा है कि न केवल “इस पुल को बरकरार रखा जाए” बल्कि इसे “और भी मजबूत” बनाया जाए।
यहां अमेरिकन सेंटर में ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार के दौरान उनकी यह टिप्पणी अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के जनवरी में पदभार ग्रहण करने से पहले आई है।
अमेरिकी चुनाव में अपनी शानदार जीत के बाद आसन्न सत्ता परिवर्तन और दूसरे कार्यकाल के लिये ट्रंप प्रशासन के कार्यभार संभालने के साथ, कई भारतीयों के मन में एक सामान्य प्रश्न यह है कि क्या रिपब्लिकन प्रशासन के तहत सामान्य रूप से और विशेष रूप से भारतीय छात्रों के लिए वीजा नीतियों में कोई बदलाव होगा।
यह पूछे जाने पर कि क्या ट्रंप के नये प्रशासन द्वारा वीजा नीतियों में कोई बदलाव किया जा सकता है, गार्सेटी ने कहा, “मैं जानता हूं कि राष्ट्रपति ट्रंप भारत के बारे में बहुत दृढ़ता से सोचते हैं। उनके और प्रधानमंत्री मोदी के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं। इसलिए, यह निश्चित रूप से मेरी आशा होगी और यह मेरी पुरजोर सिफारिश होगी कि न केवल इस पुल को कायम रखा जाए, बल्कि इसे और भी मजबूत बनाया जाए।”
उन्होंने कहा, “अधिक अमेरिकियों को भारत लाइये, भारत से अमेरिका तक के किसी भी पुल को मत तोड़िये, इससे हमें ही फायदा होगा।”
हाल ही में संपन्न अमेरिकी चुनाव में ट्रंप की ऐतिहासिक वापसी हुई। इस चुनाव में आव्रजन और मुद्रास्फीति शीर्ष मुद्दों में से थे। ट्रंप ने अवैध आप्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई को अपने चुनाव अभियान में एक प्रमुख मुद्दा बनाया था।
राजदूत ने इस बात पर जोर दिया कि किस प्रकार आप्रवासन ने पिछले दशकों में अमेरिका में जीवन को समृद्ध बनाया है, जिसमें भारत से आए उन आप्रवासियों का योगदान भी शामिल है, जिन्होंने अपने पेशे में उत्कृष्टता हासिल की है।
गार्सेटी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “जब हम गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों के सीईओ को देखते हैं, जो अप्रवास के अवसरों के कारण यहां आए, जब हम उन भारतीयों को देखते हैं जो अमेरिकी शिक्षा के साथ यहां वापस आए हैं, जो सरकार में अग्रणी हैं, वाणिज्य और उद्योग में अग्रणी हैं, चिकित्सा और अनुसंधान में अग्रणी हैं। हम जानते हैं कि जब हमारे सामने कम बाधाएं होंगी तो दुनिया बेहतर हो सकती है।”
उन्होंने कहा, “और, यह एक द्विदलीय दृष्टिकोण रहा है, रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक राष्ट्रपतियों ने समान रूप से इस बंधन को मजबूत किया है। इसलिए, यह निश्चित रूप से मेरी आशा और मेरी सिफारिश है, हम भविष्य की भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं, लेकिन दुनिया में दीवारें बनाने की सभी बातों के बावजूद, मैं इसे अमेरिका और भारत के बीच एक विशाल खुले दरवाजे के साथ एक पुल के रूप में देखना जारी रखना चाहता हूं।”
भारत में अमेरिकी राजदूत ने दोनों देशों के बीच शिक्षा सहयोग की भी बात की और कहा कि हम मित्र हैं और हमारे दिल जुड़े हुए हैं।
उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि हमारे लोगों के बीच आपसी संबंध हमेशा हमारे रिश्ते की नींव रहे हैं। हमारे नेता आपस में बहुत अच्छे से मिलते हैं, वे एक-दूसरे को पसंद करते हैं, वे इस रिश्ते को आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन, वे वास्तव में वही दर्शाते हैं जो आम लोग महसूस करते हैं, अमेरिका में भी, भारत में भी।”
अमेरिकी राजदूत ने कहा, “हम दोस्त हैं, हमारे दिल मिले हुए हैं, हम दुनिया को एक जैसा देखते हैं और अब यह शिक्षा में भी झलकता है। और, अमेरिका के विश्वविद्यालयों में अंतरराष्ट्रीय छात्रों का नंबर एक स्रोत भारतीय हैं। यह लगातार दूसरा साल है। पिछले दो सालों में ही हमने 50 प्रतिशत की वृद्धि देखी है।”
उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि अधिकाधिक अमेरिकी छात्र भारत आएं, ठीक उसी तरह जैसे “मैं भारतीय छात्रों को अमेरिका आते देखकर उत्साहित हूं”।
भाषा प्रशांत रंजन
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