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Friday, 22 November, 2024
होमदेश'उम्मीद है, इंद्रधनुषी शादियों पर कानूनी मुहर लगेगी'- LGBTQIA+ के माता-पिता ने CJI को लिखा पत्र

‘उम्मीद है, इंद्रधनुषी शादियों पर कानूनी मुहर लगेगी’- LGBTQIA+ के माता-पिता ने CJI को लिखा पत्र

स्वीकार - दि रेनबो पेरेंट्स, एलजीबीटीक्यूआईए+ के माता-पिता के लिए एक सहायता समूह है, जो स्वीकृति की दिशा में काम करता है. देश के कोने-कोने से 400 से अधिक माता-पिता इस संस्था से जुड़े हैं.

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नई दिल्ली: भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ को लिखे एक पत्र में, भारतीय एलजीबीटीक्यूआईए+ बच्चों के माता-पिता ने विवाह समानता के लिए याचिका पर विचार करने की अपील की और कहा कि “हम अपने जीवनकाल में अपने बच्चों के इंद्रधनुषी विवाहों पर कानूनी मुहर देखने की उम्मीद करते हैं.”

स्वीकार – दि रेनबो पेरेंट्स नाम के समूह के भारतीय एलजीबीटीक्यूआईए+ बच्चों के माता-पिता द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है, “हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे और उनके पार्टनर अपने देश में स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत अपने रिश्ते के लिए कानूनी स्वीकृति हासिल करें. हमें यकीन है कि हमारा इतना बड़ा देश, जो अपनी विविधता का सम्मान करता है और समावेश के मूल्य के लिए खड़ा है, हमारे बच्चों के लिए भी विवाह समानता के कानूनी द्वार खोल देगा. हम बूढ़े हो रहे हैं. हम में से कुछ जल्द ही अस्सी को छू लेंगे. हम आशा करते हैं कि हमें अपने जीवन काल में अपने बच्चों की सतरंगी शादियों पर कानूनी मुहर देखने को मिले.”

स्वीकार – दि रेनबो पेरेंट्स, एलजीबीटीक्यूआईए+ के माता-पिता के लिए एक सहायता समूह है, जो स्वीकृति की दिशा में काम करता है. देश के कोने-कोने से 400 से अधिक माता-पिता इस संस्था से जुड़े हैं.

पत्र में आगे कहा गया है, “हम आपसे विवाह समानता की याचिका पर विचार करने की अपील कर रहे हैं.”

स्वीकार ने लिखा, “जेंडर और सेक्शुएलिटी के बारे में जानने से लेकर अपने बच्चों के जीवन को समझने, उनकी सेक्शुएलिटी और अपने प्रियजनों को स्वीकार करने तक – हमने भावनाओं के सभी पहलुओं को देखा है. हम उन लोगों के प्रति सहानुभूति रखते हैं जो विवाह समानता का विरोध कर रहे हैं क्योंकि हममें से कुछ लोग भी ऐसे ही थे. हमें अपने एलजीबीटीक्यूआईए+ बच्चों के साथ शिक्षा, बहस और धैर्य से यह एहसास हुआ कि उनका जीवन, भावनाएं और इच्छाएं मान्य हैं.”

उन्होंने आगे लिखा, “इसी तरह, हम उम्मीद करते हैं कि जो लोग विवाह समानता का विरोध करते हैं वे भी सामने आएंगे. हमें भारत के लोगों, संविधान और हमारे देश के लोकतंत्र पर भरोसा है.”

6 सितंबर, 2018 को, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सहमति से यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के लिए धारा 377 को पढ़ा. दि रेनबो पेरेंट्स ने कहा कि ऐसा करने में, अपने बयानों के साथ, यह पता चला कि उनके बच्चों के साथ सम्मान और स्वीकृति के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए.

पत्र में आगे कहा गया है कि जेंडर और सेक्सुएलिटी को चुनावी घोषणापत्रों में शामिल किया गया है और कॉरपोरेट इंडिया ने भी धीरे-धीरे समलैंगिक जीवन के विचार को खोलना शुरू कर दिया है. स्वीकार ने कहा, “समाज एक बदलती और विकसित घटना है. जिस तरह एक बढ़ती हुई ज्वार सभी नावों को उठा लेती है, माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने समाज पर एक लहरदार प्रभाव पैदा किया और सुई को नफरत से सहनशीलता की ओर ले जाने में मदद की है.”


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