नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी में हमेशा से पसंदीदा रहा भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला (आईआईटीएफ) कोविड के कारण एक साल के अंतराल के बाद फिर से अपने चरम पर है.
मेले में हमेशा की ही तरह कई देशों के कारोबारी हिस्सा ले रहे हैं. इनमें नेपाल, बांग्लादेश, बहरीन, ईरान, श्रीलंका, ट्यूनीशिया, तुर्की, किर्गिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात के अलावा अफगानिस्तान भी शामिल है, जो देश पर तालिबान के कब्जे के बाद से संकटों का सामना कर रहा है.
हालांकि, आईआईटीएफ में पिछले सालों की तुलना में इस बार कम अफगान कारोबारी दिखाई दे रहे हैं.
देश के कारोबारियों ने दिप्रिंट से बात के दौरान बताया कि दिल्ली-काबुल के बीच सीधी उड़ानों की कमी के कारण उन्हें किस तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. साथ ही उन्होंने अपने यहां सुरक्षा स्थिति को लेकर अपनी चिंताओं पर भी चर्चा की.
पिछले तीन सालों से दिल्ली के द्वारका में ड्राई-फ्रूट की दुकान चला रहे हारून मुजाद्दीदी ने कहा, ‘2019 में, 40-50 अफगान व्यापारी मेले में शामिल हुए थे लेकिन इस साल करीब 12 ही आए हैं क्योंकि भारत और अफगानिस्तान के बीच कोई सीधी उड़ान नहीं है.’
हारून इस बात से आहत हैं कि उनके देश में सुरक्षा की स्थिति ने भारत में उनके कारोबार पर प्रतिकूल असर डाला है. उन्होंने कहा, ‘चूंकि दिल्ली-काबुल के बीच सीधी उड़ानें नहीं हैं, हमें वाघा बॉर्डर से सड़क के जरिए सूखे मेवे और बादाम आदि आयात करने पड़ रहे हैं. इसमें 20 से 25 दिन तक लग जाते हैं. पहले हम हवाई जहाज से आयात करते थे और उत्पाद सिर्फ दो दिनों में आ जाते थे. मेरा कारोबार पहले से ही महामारी के कारण प्रभावित हो रहा था लेकिन अब स्थिति और बदतर हो गई है.’
काबुल और नई दिल्ली के बीच सीधी उड़ानें जल्द फिर शुरू होने की संभावना नहीं है क्योंकि अगस्त में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से अफगानिस्तान में सुरक्षा की स्थिति भारत के लिए चिंता का विषय बनी हुई है.
मेले में हिस्सा ले रहे ज्यादातर अफगान व्यापारी वे हैं जो सालों पहले भारत आकर बस चुके हैं. 39 वर्षीय मोहम्मद रफी अनवरी और 32 वर्षीय एहसान अनवरी—जो 2007 से दिल्ली स्थित लाजपत नगर और अमर कॉलोनी में ड्राई फ्रूट्स की दुकानें चला रहे हैं—यहां आए ऐसे ही दो भाई हैं.
मोहम्मद रफी अनवरी ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं यहां सुरक्षित हूं और मेरा परिवार मेरे साथ है. हम भाग्यशाली हैं. मैं नहीं चाहता कि इस पर कुछ सोचूं कि अफगानिस्तान में क्या हो रहा है. यह बहुत पीड़ादायक है.’
यह भी पढ़ें: पाकिस्तान के भरोसा देने के बावजूद अफ़गान सहायता मार्ग को लेकर सतर्क है भारत
नेपाली मस्युरा, तुर्की लैंप, बांग्लादेशी हस्तशिल्प
आईआईटीएफ यानी व्यापार मेले का उद्घाटन रविवार को हुआ और यह 27 नवंबर तक चलेगा. इसका आयोजन वाणिज्य मंत्रालय के तहत एक निकाय भारत व्यापार संवर्धन संगठन (आईटीपीओ) की तरफ से किया जाता है.
मेले का उद्घाटन करते हुए वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, ‘आईआईटीएफ यह दिखा देगा कि भारत में कामकाज पटरी पर आ गया है.’
प्रदर्शनी में हिस्सा लेने वाले भारत और विदेशों के लगभग प्रतिनिधियों के साथ आईआईटीएफ 2021 का आयोजन कुल 70,000 वर्ग मीटर क्षेत्र में किया जा रहा है जो पिछली बार 2019 में लगे मेले की तुलना में तीन गुना बड़ा है.
हालांकि, विदेशी व्यापारियों का कहना है कि पिछले वर्षों की तुलना में इस बार कम लोग पहुंच रहे हैं.
इस्तांबुल स्थित टिलो हेडियालिक के मालिक और आईआईटीएफ में अपने भाइयों के साथ सजावटी लैंप, चीनी मिट्टी की चीजें और क्रॉकरी बेचने के लिए आए तुर्की के व्यापारी हेरुल्लाह कारपुज का कहना है, ‘यह 22वीं बार है जब हम भारत के व्यापार मेले में आए हैं. पहले तो ऐसी भीड़ होती थी कि हम और आप पांच मिनट भी बात नहीं कर पाते लेकिन अब चारों ओर देखिए बहुत कम लोग नजर आ रहे हैं.’ साथ ही जोड़ा, ‘उम्मीद है कि समय बीतने के साथ लोगों की संख्या बढ़ेगी.’
उन्होंने बताया कि इस्तांबुल में पारिवारिक व्यवसाय के लिए लगभग 150 महिलाएं काम करती हैं जो खासतौर पर हाथ से बनने वाले लैंप और लालटेन तैयार करती हैं.
विदेशी व्यापारियों द्वारा बेची जाने वाली अन्य वस्तुओं में नेपाली भोजन, ईरान के जेवर, ट्यूनीशिया की पारंपरिक क्रॉकरी जैसे सजावटी सामान और बांग्लादेश से लकड़ी को तराश कर तैयार किए गए हस्तशिल्प शामिल हैं.
उदाहरण के तौर पर नेपाली व्यापारी सोमप्रसाद मुदबारी मसाला मस्युरा बेच रहे हैं, जो काले चने, कोलोकेशिया और विभिन्न मसाले को मिलाकर बना एक अत्यधिक पौष्टिक नेपाली भोज्य पदार्थ है.
मस्युरा धूप में सुखाया जाता है और यह अधिकांश नेपाली घरों की रसोई में मिलता है.
मुदबारी के मुताबिक, ‘नेपाली सूप में इस मस्युरा का इस्तेमाल किया जाता है और यह विटामिन और मिनरल से भरपूर होता है. हम इसे सर्दियों के लिए स्टोर करते हैं और इससे करी या सूप बनाते हैं.’
पूर्व में चीन और उज्बेकिस्तान जैसे देशों के उत्सवों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके 34 वर्षीय बांग्लादेशी शिल्पकार रफीकुल इस्लाम ने कहा, ‘मेरे दादा और मेरे पिता लकड़ियों को तराशते थे. मुझे किसी ने नहीं सिखाया, मैंने बस उन्हें देखकर सीखा. अब, मैं पिछले नौ सालों से पारिवारिक व्यवसाय को चला रहा हूं. मुझे अपना हुनर दिखाने के लिए भारत आने पर गर्व है.’
इस्लाम की बांग्लादेश की राजधानी ढाका से लगभग 15 किमी दूर नारायणगंज में हस्तशिल्प की एक छोटी सी दुकान है.
‘हुनर हाट’ का शुभारंभ
मेले में हिस्सा लेने वाले भारतीय व्यापारी राजस्थान से तामचीनी कुंदन आभूषण, गुजरात से हैंड-ब्लॉक प्रिंटेड कपड़े और जम्मू और कश्मीर से किश्तवाड़ कंबल और शॉल जैसे आइटम लाए हैं.
केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने सोमवार को मेले में ‘हुनर हाट’ के 33वें संस्करण का उद्घाटन किया जो पारंपरिक उत्पादों और हस्तशिल्प की एक विशेष प्रदर्शनी है.
नकवी ने कहा, महामारी के दौरान वैश्विक मंदी के बीच स्वदेशी उत्पादन क्षमता भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ‘सुरक्षा कवच’ बन गई है.
इस साल ‘हुनर हाट’ में कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 550 से अधिक कारीगर और शिल्पकार हिस्सा ले रहे हैं.
(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: दिल्ली सुरक्षा वार्ता में भारत, रूस समेत देशों का संकल्प, अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंक के लिए न हो