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Thursday, 19 December, 2024
होमदेश‘हिंदुत्व बनाम हिंदुत्व’- महाराष्ट्र में सांप्रदायिक तनाव की घटनाओं को कौन बढ़ावा दे रहा है?

‘हिंदुत्व बनाम हिंदुत्व’- महाराष्ट्र में सांप्रदायिक तनाव की घटनाओं को कौन बढ़ावा दे रहा है?

राज्य ने बीते 3 महीनों में सांप्रदायिक हिंसा की कम से कम 7 घटनाएं देखी गई है, क्योंकि कई पार्टियां और संगठन हिंदुत्व के एजेंडे पर अपना दावा ठोकने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं.

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मुंबई: अमेरिकी विद्वान पॉल ब्रास, जिन्होंने उत्तर भारत की राजनीति और सांप्रदायिक हिंसा पर व्यापक अध्ययन किया है, अपनी पुस्तक द प्रोडक्शन ऑफ हिंदू मुस्लिम वायलेंस इन कंटेम्पररी इंडिया में “संस्थागत दंगा प्रणाली” की बात करते हैं.

वह अपनी किताब में लिखते हैं कि इस संस्थागत प्रणाली में सांप्रदायिक दंगों की शुरुआत में अक्सर “चिह्नित व्यक्ति और एक विशेष ग्रुप महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं”. और यह अक्सर “पार्टियों की बीच तेज प्रतिस्पर्धा और बड़े पैमाने पर राजनीतिक लामबंदी” के साथ एक बड़े राजनीतिक लक्ष्य के कारण होता है. 

ब्रास अलीगढ़ में अपने शोध के आधार पर साम्प्रदायिक हिंसा की बात कर रहे थे. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अभी महाराष्ट्र में जो हो रहा है, वह इस थ्योरी से शायद ज्यादा दूर नहीं है.

पिछले तीन महीनों में, महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में सांप्रदायिक अशांति की कम से कम सात घटनाएं हुई हैं. सभी घटनाएं सामान्य विषयों के इर्द-गिर्द थीं जिसमें जुलूस, मंदिर, मस्जिद और सोशल मीडिया पोस्ट जैसी चीजें शामिल थी. और इन तीन-चार-पांच कारणों ने राज्य में हिंदू और मुस्लिम समूहों के बीच तनाव को जन्म दिया.

सबसे हालिया घटना नासिक जिले के त्र्यंबकेश्वर में हुई थी जब लोगों के कुछ समूहों ने पिछले हफ्ते आरोप लगाया था कि कुछ मुसलमानों ने जबरन मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की थी. बाद में शहर के कई निवासियों ने कहा कि यह एक पुरानी परंपरा थी जहां मुसलमान मंदिर की सीढ़ियों पर देवता को सुगंधित धुआं दिखाते हैं और मंदिर के पास से गुजरते हैं.

तनाव बढ़ने के डर से के कारण मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इस परंपरा को बंद करने का फैसला किया, जबकि कई हिंदुत्ववादी संगठनों के ग्रुप “सकल हिंदू समाज” के सदस्यों ने मंदिर में गोमूत्र छिड़का ताकि मंदिर को शुद्ध किया जा सके.

सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग की प्रमुख श्रुति तांबे ने दिप्रिंट को बताया, “पॉल ब्रास के सिद्धांत के अनुसार, इन सांप्रदायिक बीजों की बुवाई बहुत पहले हो चुकी है. अब बस बीजों को पानी देने, खाद डालने के लिए एक मशीनरी मौजूद है और वह काम कर रही है.” 

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि महाराष्ट्र में ऐसे कई कारक हैं जो इस बीज में खाद और पानी डाल सकते हैं.

हालांकि, कई उदाहरण हैं जो इस बात की पुष्टि भी करते हैं. जैसे पिछले साल अप्रैल और मई में राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना द्वारा लाउडस्पीकर के खिलाफ एक उत्साही अभियान चलाया गया था. इसके अलावा मुंबई की श्रद्धा वाकर की कथित तौर पर उसके मुस्लिम प्रेमी द्वारा हत्या के बाद “लव जिहाद” पर हंगामा और राज्य भर में सकल हिंदू समाज द्वारा आयोजित 50 से अधिक ‘हिंदू जन आक्रोश’ रैलियों में कथित ‘लव जिहाद’ के खिलाफ लोगों को सचेत करने के लिए चलाया गया आंदोलन शामिल है. 

इसके साथ ही शहरों के नाम को बदलने की मांग भी इसमें शामिल है. औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर और धाराशिव करना की बात की गई ताकि उनके इस्लामी प्रभाव को मिटा दिया जा सके. साथ ही  शिवसेना में विभाजन के साथ महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में हुए बदलाव भी इसके लिए जिम्मेवार है. अब तीन पार्टियां महाराष्ट्र पर अपने “हिंदुत्व एजेंडा” के प्रति वर्चस्व का दावा करने के लिए संघर्ष कर रही हैं. 

“लव जिहाद” एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग कुछ लोग कथित तौर पर हिंदू लड़कियों को अन्य धर्मों में परिवर्तित करने के इरादे से किए गए अंतर धार्मिक विवाह या संबंधों को बताने के लिए करते हैं.

जबकि “भूमि जिहाद” एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग कुछ गैर-हिंदुओं द्वारा भूमि पार्सल प्राप्त करने और हिंदुओं को बाहर निकालने के लिए कथित साजिश के संदर्भ में किया जाता है.

ताम्बे के अनुसार, सामाजिक रूढ़िवादिता और धार्मिक कट्टरवाद इस ग्लोबलाइजेशन की उपज है. और सामाज का ताना-बाना दुर्भाग्य से डर के इर्द-गिर्द बुना गया है.

वह कहती हैं, “कभी चीन का डर दिखाया जाता है तो कभी पाकिस्तान का, कभी जिंगोइज्म और जेनोफोबिया को तो कभी इस्लामोफोबिया का. डर के माध्यम से नागरिकों को अपने गुलामों और अंधभक्तों में बदला जा सकता है.” 

इस बीच, राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई आज की स्थिति की तुलना 1992 में तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के अध्यक्ष एल.के. आडवाणी के द्वारा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के प्रचार के लिए 10 राज्यों से होते हुए 10,000 किलोमीटर की रथ यात्रा से करते हैं. 

दिप्रिंट से बात करते हुए देसाई ने कहा, “मैं वहां था जब यात्रा दादर में शिवसेना भवन को पार कर रही थी. जो माहौल मैंने तब वहां देखा था, अभी मैं राज्य में वही देख सकता हूं.”

एक हिंदुत्व राजनीतिक कथा

राज्य के गृह मंत्री देवेंद्र फडणवीस ने त्र्यंबकेश्वर की घटना के बाद पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि कुछ संगठन और लोग हैं “जो चाहते हैं कि राज्य में अशांति फैले.”

वहीं विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के नेताओं ने इसके लिए बीजेपी को दोषी ठहराया है और सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के लिए हिंदुत्व के नाम पर गिरोह बनाने की “साजिश” की ओर इशारा किया है.

हालांकि, न तो सत्तारूढ़ दल- एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और भाजपा- और न ही एमवीए, जिसमें शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस शामिल हैं, ने इसका मुखर और जोरदार तरीके से विरोध किया. राज्य में इस तरह के सांप्रदायिक संघर्षों की संख्या बढ़ने के बारे में किसी ने भी मजबूती से आवाज नहीं उठाई.

देसाई के अनुसार, शिवसेना टूटने से पहले हिंदुत्व के मुद्दे पर निश्चित तौर पर बीजेपी के साथ प्रतिस्पर्धा में थी कि दोनों पार्टियों में से कौन हिंदुत्व के लिए सबसे अधिक प्रतिबद्ध है.

अब, शिवसेना में विभाजन के बाद तीन दल हैं जो राज्य में हिंदुत्व के रक्षक होने का दावा करने की कोशिश कर रहे हैं- शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना, शिवसेना (यूबीटी) और बीजेपी.


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देसाई कहते हैं, “महाराष्ट्र की राजनीति पहले अर्थव्यवस्था, कृषि, आपराधिक गठजोड़, अंडरवर्ल्ड और विकास से संबंधित मुद्दों पर चलती थी, जो अब हिंदुत्व बनाम हिंदुत्व की लड़ाई पर चला गया है और अब सब कुछ इसी के इर्द-गिर्द घूमता है.”

उन्होंने कहा कि कांग्रेस और एनसीपी स्पष्ट रूप से यह नहीं कह रहे हैं कि वे इस उग्र हिंदुत्व के खिलाफ हैं जिसका शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और भाजपा समर्थन कर रही है. इसके बजाय, ये पार्टियां भावनात्मक हिंदुत्व के मुद्दों को भी आगे बढ़ा रही हैं जैसे कि वे छत्रपति शिवाजी और संभाजी महाराज का अपमान कैसे बर्दाश्त नहीं करेंगे.

मुंबई स्थित एसआईईएस कॉलेज में राजनीति के सहायक प्रोफेसर अजिंक्य गायकवाड़ ने कहा कि यह केवल कुछ नागरिक समाज संगठन हैं जो राजनीति के इस तनाव और सांप्रदायिक अशांति की हालिया घटनाओं के बारे में बात कर रहे हैं.

वह कहते हैं, “विपक्षी दल काफी हद तक मौन हैं. शरद पवार इस तरह के पेचीदा बयान में नहीं पड़ेंगे क्योंकि वह जानते हैं कि उनकी पार्टी मराठी हिंदुओं के लिए एक विकल्प है, जो शिवसेना या बीजेपी से खुश नहीं हैं.”

‘हिंदू संगठन’

ऑल इंडिया उलेमा काउंसिल के महासचिव मौलाना महमूद दरियाबादी ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि कुछ लोग 2024 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए इस तरह का माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, “पिछले कुछ महीनों में, कुछ लोगों द्वारा इसके लिए ठोस प्रयास किया गया है. पूरे महाराष्ट्र में रैलियां की जा रही थीं. यह हालिया सांप्रदायिक घटनाएं उसी का नतीजा है.”

हालांकि, उन्होंने किसी का नाम लिए बिना कहा कि महाराष्ट्र में स्थिति अभी भी कुछ अन्य राज्यों की तुलना में उतनी खराब नहीं है. उन्होंने कहा, “लेकिन, अगर इसे नियंत्रित नहीं किया जाता है, तो चीजें हाथ से निकल सकती हैं.”

दरियाबादी अप्रत्यक्ष रूप से जिस बात का जिक्र कर रहे थे, वह पिछले साल नवंबर से लेकर इस साल मार्च तक 50 से अधिक रैलियों की एक श्रृंखला के बारे में थी, जिसे कई हिंदुत्व संगठनों को महाराष्ट्र में जोड़ने के लिए आयोजित किया था. ये सभी रैलियां “लव जिहाद” और “भूमि जिहाद” के विरोध के अलावा मुसलमानों के आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार करने के आह्वान पर केंद्रित थीं.

जबकि एक पार्टी के रूप में बीजेपी ने इन रैलियों से खुद को यह कहते हुए दूर कर लिया कि उनका इस आयोजन से कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन पार्टी के नेताओं, सांसदों, विधायकों के साथ-साथ बीजेपी के राज्य मंत्रियों ने इसमें उत्साहपूर्वक भाग लिया. इनमें से कुछ रैलियों में सत्तारूढ़ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के नेता भी शामिल हुए थे.

इस साल मार्च में रैलियों के बारे में दिप्रिंट से बात करते हुए, विश्व हिंदू परिषद के मुंबई और गोवा के प्रवक्ता और संयुक्त सचिव श्रीराज नायर ने कहा, “हिंदू महिलाओं के खिलाफ अत्याचार मनगढ़ंत कहानियां नहीं हैं. हम अतिशयोक्ति नहीं कर रहे हैं. हम सिर्फ दिखा रहे हैं कि क्या हो रहा है. रैलियों में शामिल लोग सभी हिंदू हैं. इसका जाति, भाषा या राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है.” 

नायर ने कहा कि रैलियों में देखा गया कि लोग बिना किसी खास प्रयास “सकल हिंदू समाज” द्वारा आयोजित रैली में शामिल हुए.

वह एक सकल हिंदू समाज के विचार की बात करते हैं जो पूरे हिंदू समुदाय का एक सहज समूह है. सकल एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ संपूर्ण होता है. 

राजनीतिक विशेषज्ञों ने कहा कि यहां प्रमुख शब्द “हिंदू समुदाय,” अनिवार्य रूप से “हिंदू संगठन” है, जिसका अनुवाद “हिंदू संघीकरण” के रूप में बेहतर है.

गायकवाड़, जो महाराष्ट्र में दक्षिणपंथी राजनीति के उदय पर शोध कर रहे हैं, ने कहा, राज्य में हिंदू विभिन्न भाषाओं, जातियों और संप्रदायों में बंटा एक बिखरा हुआ समुदाय है.

उन्होंने बताया, “एक राजनीतिक समूह के रूप में, आप संस्कृति में निहित एक समुदाय को चुनौती देना चाहते हैं और जिसके पास दुनिया भर में भाईचारा है. तो कौन सी एक चीज है जो हिंदुओं को भाषाई और जाति-आधारित पहचानों पर छलांग लगाने से रोक सकती है? यही वह जगह है जहां संगठन खेल में आता है.”

उन्होंने कहा कि अगर यह कोशिश हिंदू महासभा ने की है तो इससे यह समझ सकते हैं कि यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और बीजेपी ने कोशिश की है. “अब, सकल हिंदू समाज वही है जो संगठन का विचार है. लेकिन तथ्य यह है कि यह आरएसएस के साथ मौजूद है और बीजेपी सत्ता में है, जिसके बारे में हमें सोचना होगा.”

उनके अनुसार, वैश्विक मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली और केंद्र की सत्ता पर काबिज बीजेपी अपने आप में इतनी सही नहीं हो सकती है.

गायकवाड़ कहते हैं, “बीजेपी के कार्यकर्ता काफी मजबूत हैं, लेकिन वे इसे जमीन पर सभ्य रखते हुए ऑनलाइन लड़ाई लड़ने की कोशिश करेंगे. तो हिंदुओं को कौन साथ लाएगा? आरएसएस को एक बहुत ही स्वच्छ छवि के रूप में देखा जाता है, और इसलिए सकल हिंदू समाज इसमें उसकी मदद करता है.”

उन्होंने समझाया कि यह कई उद्देश्यों को पूरा करता है.यह एक नागरिक समाज संगठन के रूप में खुद का प्रतिनिधित्व करता है और बीजेपी को उदारवादी रहने में मदद करते हुए दूर-दराज़ राजनीति के लिए एक प्रॉक्सी के रूप में काम करता है. साथ ही यह कुछ कानूनों और नीतियों को सही ठहराने के लिए ऐसी रैलियों का सहारा लेता है. 

गायकवाड़ की बात पर, इस साल मार्च में राज्य विधान परिषद में बोलते हुए, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, जिनके पास राज्य का गृह विभाग भी है, ने कहा, “प्रथम दृष्टया तो ऐसा प्रतीत होता है कि इस तरह की चीजों (लव जिहाद) के पीछे किसी तरह की बड़ी साजिश है. जब बहुसंख्यक समुदाय (इस मुद्दे पर) द्वारा बड़ी संख्या में रैलियां की गई हैं, तो सरकार इस मामले को नजरअंदाज नहीं कर सकती है.”

फडणवीस ने कहा, “उन्हें उनकी मांगों पर संज्ञान लेने की जरूरत है.”

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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