नई दिल्ली: नया भारत अब निज़ामों और अवौसियों के इतिहास को स्वीकार नहीं करेगा- ये बात असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंग्रेज़ी साप्ताहिक मुखपत्रऑर्गनाइज़र के साथ एक इंटरव्यू में कही है.
सरमा ने कहा, ‘वामपंथियों ने हमेशा उन्हें पूजनीय माना है, जिन्होंने भारतीय संघ को चुनौती दी. दुर्भाग्य से, सरदार बल्लभ भाई पटेल और सुभाष चंद्र बोस जैसी विख्यात शख़्सियतों की बजाय, निज़ाम और ओवैसी जैसे लोग हीरो बन गए हैं, लेकिन आधुनिक भारत निज़ामों और अवोसियों के इतिहास को स्वीकार नहीं करता, और मैं नए भारत की भावनाओं को व्यक्त कर रहा हूं’.
उनकी सरकार द्वारा सतरस (वैष्णवी मठों) की ज़मीनों से ‘कब्ज़ा करने वालों’ को हटाने की मुहिम, और अल्पसंख्यकों के बारे उनकी हालिया टिप्पणियों के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘आप हमेशा अल्पसंख्यकों के हिमायती हो सकते हैं’.
उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन, अगर किसी ऐसे मंदिर पर क़ब्ज़ा कर लिया जाए जो 4,000 साल पुराना है, अगर आज सतरस पर अतिक्रमण कर लिया जाए, तो क्या लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई किसी सरकार को, तथाकथित धर्मनिर्पेक्षता के नाम पर समझौता कर लेना चाहिए’.
मोदी बनाम भगवान विष्णु
पूर्व मोदी समर्थक और दक्षिण पंथी लेखक-पत्रकार हरि शंकर व्यास ने दावा किया कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, बीजेपी, आरएसएस, तथा भारत को खण्डहरों से वापस ला सकते हैं.
हिंदी दैनिकनया इंडिया के संपादक व्यास ने 9 अप्रैल को अख़बार के एक संपादकीय में लिखा, ‘वो नरेंद्र मोदी और अधिकारियों की परवाह नहीं करते. उन्हें बस काम चाहिए. वो संघ की ज़रूरतें अपनी ज़रूरतों से ऊपर रखते हैं’. उन्होंने आगे लिखा, ‘वो कैबिनट में बोलते हैं, और सत्तारूढ़ हिंदुओं तथा दरबारियों की भीड़ में अकेले मर्द हैं’. उन्होंने ये भी लिखा, ‘कांग्रेस और हमारे विरोधी भी भारत के हिंदू हैं’.
व्यास ने ये भी लिखा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा, प्रवर्त्तन निदेशालय और केंद्रीय जांच ब्यूरो के संभावित दुरुपयोग की चेतावनी दे दी थी.
उन्होंने अपने संपादकीय में लिखा, ‘दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों के आकर्षण से मंत्रमुग्ध होकर, भगवान विष्णु की तरह परम आनंद की स्थिति में शेषनाग के ऊपर सोते हैं, जहां धनी लोग उनके पांव दबाते हैं और आम जनता उनकी वाहवाही करती है’. उन्होंने आगे लिखा, ‘उनका चेहरा, संतों के जैसे उनके सफेद बाल, उनके रोम रोम से आती सत्ता की चमक, 21वीं सदी के हिंदुओं का भाग्य है, और धरती पर मौजूद बाक़ी इंसानी समाज के लिए एक रहस्य है’.
उन्होंने लिखा कि पूरा देश एक मंदिर है, जहां मोदी गर्भगृह में बैठे हैं और श्रद्धालुओं को ‘पांच-पांच किलो की अनाज और नमक की थैलियां आशीर्वाद में मिल रही हैं’.
राम माधव
बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव और आरएसएस के एक वरिष्ठ नेता राम माधव ने, सोमवार को आरएसएस के हिंदी साप्ताहिक मुखपत्र पाञ्चजन्य में लिखा, कि भारत के पड़ोसी देश ऐसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जिनके समाधान में भारत सहायता कर सकता है.
माधव ने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की तुलना कांग्रेस नेता राहुल गांधी से की, और कहा कि आरएसएस से नफरत करने के मामले में ये दोनों एक हैं.
उन्होंने ये बात गांधी की उन टिप्पणियों के संदर्भ में लिखी, जिनमें उन्होंने भारत की संस्थाओं को संघ परिवार से बचाने की ज़रूरत की बात की थी.
उन्होंने अपने कॉलम में लिखा, ‘1975 से 1977 तक जब राहुल गांधी की दादी भारत के लोकतंत्र को कुचल रहीं थीं और एक काला अध्याय लिख रहीं थीं, तो केवल एक संस्था ने तानाशाही के खिलाफ देश की ढाल बनने का संकल्प लिया था, और वो थी आरएसएस’.
उन्होंने ये भी लिखा कि भारत का लोकतंत्र अपने पड़ोसियों के लिए एक प्रेरणा है’.
माधव ने सोमवार को अपने पाञ्चजन्य कॉलम में लिखा, ‘श्रीलंका और पाकिस्तान में राजनीतिक संकट के साथ, सभी की निगाहें भारतीय लोकतंत्र पर लगी हैं. इन देशों की सरकारें आज भारत की लोकतांत्रिक विशेषताओं की प्रशंसा कर रही हैं, और उसके समर्थन की अपेक्षा कर रही हैं’.
वो लिखते हैं, ‘दक्षिण एशिया के देशों में लोकतंत्र की जड़ें जितनी मज़बूत होंगी, उतना ही उनके लिए अच्छा रहेगा, क्योंकि क्षेत्र की दूसरी बड़ी ताक़त चीन में, जिसके क्षेत्र के कई देशों के साथ क़रीबी रिश्ते हैं, एक अलग तरह की राजनीतिक व्यवस्था है’. वो आगे लिखते हैं, ‘चीन जितनी उदारता के साथ इस क्षेत्र में सहायता करता है, उसके पीछे उसका उतना ही स्वार्थ है’.
इस बीच, ऑर्गनाइज़र ने कहा है कि पाकिस्तान के नव-निर्वाचित प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ‘उतने शऱीफ नहीं हैं’, और ये भी कहा कि शरीफ परिवार का पिछला इतिहास कोई ज़्यादा उम्मीदें नहीं जगाता.
सोमवार को अपनी पत्रिका के मुखपत्र पर उसने लिखा, ‘इमरान ख़ान की जगह शहबाज़ शरीफ के आ जाने से, पाकिस्तान के हालात में कोई बदलाव नहीं होगा, क्योंकि वहां अभी भी सेना की ही चलती है’.
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‘भारतीय मुसलमानों का स्टॉकहोम सिंड्रोम’
हाल ही में रामनवमी के अवसर पर हुईं हिंसक घटनाओं पर प्रतिक्रिया देते हुए, विश्व हिंदू परिषद ने 16 अप्रैल को अपनी वेबसाइट पर कहा, ‘भारत के मुसलमान स्टॉकहोम सिंड्रोम से ग्रसित लगते हैं, जिन्होंने समय के साथ अपने बंधक बनाने वालों, और अपने से बदसलूकी करने वालों के प्रति पॉज़िटिव भावनाएं विकसित कर ली हैं’.
85 प्रतिशत मुसलमानों के पूर्वज हिंदू थे, जिन्होंने ‘तलवार की नोक पर’ इस्लाम क़बूल किया था.
वेबसाइट पर वीएचपी के संयुक्त सचिव सुरेंद्र कुमीर जैन ने लिखा, ‘जीती हुई आबादी को दो विकल्प दिए गए- धर्म परिवर्तन या मौत. परिवर्तित किए हुए लोगों के मन में स्वाभाविक रूप से, आक्रांताओं के प्रति सम्मान नहीं बल्कि घृणा होनी चाहिए. दुर्भाग्य से जिन लोगों के विचार आक्रांताओं से मेल खाते हैं, वही लोग मुस्लिम मानसिकता को नियंत्रित करने में आगे नज़र आते हैं’.
वीएचपी ये भी चाहती थी कि जिन लोगों ने कथित तौर पर राम नवमी के जुलूसों पर हमले किए, उनपर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत मुक़दमे चलाए जाने चाहिएं.
जैन ने लिखा, ‘ये हमले एक आतंकवादी हरकत हैं. रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून) के तहत हर हमलावर, उनके समर्थकों और मेज़बानों, एकाकी व्यक्तियों, और स्लीपर सेल्स के खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए. भारत के एक आतंकी संगठन- पीएफआई की भूमिका भी अब स्पष्ट रूप से सामने आ रही है’.
संदर्भ के लिए, ख़बरों में दावा किया गया है कि मध्य प्रदेश के खारगौन में 10 अप्रैल को हुई सांप्रदायिक हिंसा में, पुलिस एक इस्लामी संगठन- पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की संभावित भूमिका की जांच कर रही है.
जैन ने शोभायात्रा के दौरान भड़काऊ नारे लगाए जाने के आरोपों पर भी सवाल खड़े किए.
उन्होंने लिखा, ‘वाजिबुल क़त्ल’ (हत्या के योग्य), ‘सर धड़ से जुदा होगा’ जैसे नारों के बीच ‘भारत माता की जय’, और ‘जय श्री राम’ भड़काऊ नारे कैसे हो सकते हैं? दुनिया के इतिहास में सबसे भड़काऊ नारा है: ‘ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मदुर रसूलल्लाह’ (अल्लाह के अलावा कोई दूसरा भगवान नहीं है, और मुहम्मद अल्लाह के पैगंबर हैं’.
रमज़ान हिंसा
पाञ्चजन्य के कवर पर नमाज़ पढ़ते हुए एक मुसलमान व्यक्ति की छायाकृति थी, जबकि पृष्ठभूमि में एक मस्जिद और लाउडस्पीकर्स नज़र आ रहे थे.
पत्रिका के कवर पर प्रश्न था, ‘लाउडस्पीकरों पर अज़ान क्यों? क्या किसी व्यक्ति के शांति के साथ जीने की आज़ादी में, धार्मिक प्रथाओं के आधार पर कटौती की जा सकती है? क्या किसी धर्म विशेष को ये आज़ादी दी जा सकती है, कि वो दूसरे धर्मों के अनुयायियों की आस्था को चुनौती दे. और क्या किसी लोकतांत्रिक और सभ्य समाज में ये न्यायोचित है, कि किसी धर्म विशेष के ज़ोर देने पर अदालती निर्देशों की अनदेखी की जाए?’
पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने सोमवार को अपने कॉलम में दावा किया, कि रमज़ान में हुई हिंसा कोई ‘क्षेत्र-विशिष्ट घटना’ नहीं थी, बल्कि उसका संबंध ‘रमज़ान और इस्लाम’ से था.
हितेश शंकर ने लिखा, ‘क्या ये (रमज़ान के महीने में हुए हमले) पहली बार हुए हैं? लेकिन ये कोई अपवाद नहीं है. अगर पत्थर-बाज़ी किसी एक जगह तक सीमित रहती, तब आप इसे कोई हादसा मान सकते थे, लेकिन ये एक दर्जन से अधिक जगहों पर हुई है’
शंकर ने लिखा, ‘दंगों की तीन घटनाओं का संबंध रमज़ान और इस्लाम से है. ये कोई क्षेत्र-विशिष्ट समस्या नहीं है, ना ही कोई ऐसी बात है कि इस दौर मुसलमानों को कुछ ज़्यादा समस्याएं पेश आ रही हैं’.
ऑर्गनाइज़र ने हालिया सांप्रदायिक झगड़ों को ‘सिंक्रोनाइज़्ड (एक ही समय पर होने वाला) जिहाद’ क़रार दिया.
‘गंगा-जमनी तहज़ीब एक झूठा नैरेटिव’
वरिष्ठ पत्रकार और दक्षिण-पंथी सोच के लेखक राजीव सचान ने, 13 अप्रैल को दैनिक जागरण में प्रकाशित अपने लेख में कहा, कि देश के अलग अलग हिस्सों में राम नवमी की यात्राओं पर पथराव की हालिया घटनाओं से साबित हो गया है, कि ‘गंगा-जमनी तहज़ीब’ का नैरेटिव झूठा है, या फिर इसकी अपने हिसाब से व्याख्या की गई है.
सचान ने लिखा, ‘देश में अगर कोई गंगा-जमनी तहज़ीब है, तो फिर अयोध्या मामले को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को क्यों आगे आना पड़ा, और क्या कारण है कि बहुत से मुसलमान नेता उसके फैसले को मानने के लिए तैयार नहीं हैं. आख़िर गंगा-जमुना जिनका मूल हिमालय में एक ही जगह से है, और जो प्रयागराज में आकर मिल जाती हैं, दो अलग अलग संस्कृतियों का प्रतीक कैसे हो सकती हैं’.
उन्होंने लिखा, ‘जब भी ओवैसी या दूसरे मुस्लिम नेताओं को ‘जय श्री राम’ कहना होता है, तो वो ‘जेएसआर’ कहना पसंद करते हैं. इसी तरह ‘भारत माता की जय’ उनके लिए ‘बीएमकेजे’ है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव ख़ालिद सैफुल्लाह पहले ही कह चुके थे, कि अपनी धार्मिक परंपराओं और रीति रिवाजों के मामले में, भारत के मुसलमान एक मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं- क्या कोई बयान इससे ज़्यादा भड़काऊ हो सकता है’.
वरिष्ठ पत्रकार और दक्षिण पंथी बुद्धिजीवी एस गुरुमूर्ति ने स्वदेशी जागरण मंच की पत्रिका के अप्रैल संस्करण में, रूस-युक्रेन संकट और विश्व राजनीति में भारत के बढ़ते क़द पर एक लेख लिखा.
गुरुमूर्ति ने लिखा, ‘हालांकि भारत ने रूस के लिए वोट नहीं किया है, लेकिन उसने यूक्रेन में अमेरिका द्वारा वित्त-पोषित एक जैव-हथियार सुविधा का पता चलने पर, एक मज़बूत रुख़ इख़्तियार किया है. और अमेरिका ने ढिलाई के साथ यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख़ को ढुल-मुल क़रार देने के बावजूद, भारत को रूसी मिसाइल प्रणाली की बिक्री रोकने के लिए, काटसा (काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सैंक्शंस एक्ट) क़ानून को लागू नहीं किया है. इसमें कोई शक नहीं है कि यूक्रेन युद्ध कूटनीति ने भारत के बढ़ते क़द को दिखा दिया है’.
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