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Wednesday, 19 February, 2025
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ताजमहल में शाहजहां के उर्स के खिलाफ हिंदू महासभा ने किया अदालत का रुख, ASI ने कहा—आयोजन पर रोक नहीं

आगरा सिविल कोर्ट ने रिंग-विंग संगठन की याचिका स्वीकार कर ली, जिस पर 4 मार्च को सुनवाई होगी. हिंदू महासभा का दावा है कि एएसआई संरक्षित स्मारकों के अंदर किसी भी धार्मिक कार्यक्रम की अनुमति नहीं है.

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आगरा: ताज महल में मुगल बादशाह शाहजहां के 369वें उर्स से कुछ दिन पहले, एक दक्षिणपंथी संगठन ने शहर के सिविल कोर्ट में याचिका दायर कर इस आयोजन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है.

उर्स एक सूफी की बरसी पर मनाया जाने वाला आयोजन है. शाहजहां का उर्स हर साल तीन दिनों के लिए ताज महल में आयोजित किया जाता है, जिसका निर्माण उन्होंने खुद करवाया था. इस साल का उर्स मंगलवार से शुरू होना है.

शुक्रवार को याचिका दायर करने वाली हिंदू महासभा के जिला अध्यक्ष सौरभ शर्मा ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित स्मारकों के अंदर किसी भी धार्मिक कार्यक्रम की अनुमति नहीं है और इस प्रकार ताज महल के अंदर उर्स मनाया जाना भी “अवैध” था.

कोर्ट ने संगठन की याचिका स्वीकार कर ली है और इस पर 4 मार्च को सुनवाई होगी.

शर्मा ने कहा, “एएसआई ने पुष्टि की है कि उसने उर्स आयोजन समिति को पहले से कोई अनुमति नहीं दी है” और समिति को “स्मारक के अंदर किसी भी धार्मिक समारोह के आयोजन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए”.

उन्होंने कहा कि संगठन का इरादा वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर और उत्तर प्रदेश के मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटे शाही ईदगाह परिसर के सर्वेक्षण की तर्ज पर ताज महल परिसर के सर्वेक्षण के लिए भी अदालत में याचिका दायर करने का है.

शर्मा ने कहा, “मामले पर जल्द ही आगरा में एएसआई कार्यालय में चर्चा होगी.”

उर्स आयोजन समिति के अध्यक्ष सैयद इब्राहिम ज़ैदी ने दिप्रिंट को बताया कि एएसआई को परमिट देने की ज़रूरत नहीं है और वह हर साल कार्यक्रम की अनुमति देता है जब तक कि यह किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं करता है. उन्होंने कहा, “कुछ दिन पहले उर्स की तैयारियों पर चर्चा के लिए एएसआई कार्यालय में एक बैठक हुई थी.”

जब दिप्रिंट एएसआई अधीक्षक राज कुमार पटेल के पास पहुंचा, तो उन्होंने कहा कि प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के अनुसार, उर्स के लिए कोई अनुमति देने की ज़रूरत नहीं है.

उन्होंने कहा, “हम केवल ताज महल के कर्मचारियों और वहां तैनात केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल को सूचित करते हैं कि उर्स आयोजित किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, हमेशा की तरह, उर्स, ईद और शुक्रवार की नमाज जैसी पारंपरिक गतिविधियां ताज महल में जारी रहनी चाहिए.”

घटना के इतिहास का विवरण देते हुए, ज़ैदी ने कहा कि ताज महल के अंदर उर्स आयोजित करने की परंपरा इसके निर्माण के समय (1631 और 1648 के बीच) से चली आ रही है. शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में यह मकबरा बनवाने का आदेश दिया था.

उन्होंने कहा, “मुमताज महल का पहला उर्स 392 साल पहले 22 जून, 1632 को मनाया गया था. दूसरा उर्स 26 मई, 1633 को ताज महल के अंदर कब्र के निर्माण स्थल पर तंबू स्थापित करके मनाया गया था. शाहजहां ने लगातार 12 साल तक मुमताज महल के प्रत्येक उर्स में गरीबों के बीच 1 लाख रुपये वितरित किए थे.” ज़ैदी ने बताया, यह ऐतिहासिक रिकॉर्ड का मामला है.

हिंदू महासभा की दलीलों को खारिज करते हुए, आगरा टूरिस्ट वेलफेयर चैंबर के अध्यक्ष प्रहलाद अग्रवाल ने कहा कि शाहजहां का उर्स एक सदियों पुरानी परंपरा है और एएसआई ने इसकी अनुमति दी है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “महासभा का यह दावा कि केंद्र सरकार द्वारा उर्स की अनुमति नहीं है, निराधार है और इसका उद्देश्य केवल एक अनावश्यक विवाद पैदा करना है जो शहर के पर्यटन उद्योग को नुकसान पहुंचा सकता है.”

सदियों से ‘उर्स’

ज़ैदी के मुताबिक, ऑस्ट्रियाई इतिहासकार एब्बा कोच ने अपनी किताब द कम्प्लीट ताज महल में लिखा था कि ईरानी इतिहासकार जलाल-अल-दीन ने उर्स का विवरण देते हुए कहा था कि मुमताज महल का शरीर बुरहानपुर से आगरा लाया गया था, जहां प्रसव के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी, जनवरी 1632 में, जिस वर्ष पहला उर्स आयोजित किया गया था.

पहले उर्स में शाहजहां, मुमताज के पिता आसफ खान, मुगल दरबार में ईरानी राजदूत मुहम्मद अली बेग और देश भर के अन्य गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए थे. शाहजहां ने कुरान की आयतें पढ़ने के साथ-साथ मुमताज के लिए फातिहा भी पढ़ा. उन्होंने गरीबों और ज़रूरतमंदों को 50,000 रुपये भी बांटे. ज़ैदी ने किताब का हवाला देते हुए कहा, उर्स में हिस्सा लेने वाली शाही परिवार की महिलाओं ने गरीब महिलाओं को 50,000 रुपये भी बांटे.

ज़ैदी ने कहा, कोच की किताब में दिए गए विवरण के अनुसार, मुमताज का दूसरा उर्स 26 मई, 1633 को मनाया गया था. तब तक यमुना नदी के तट पर उनकी कब्र की निचली मंज़िल तैयार हो गई थी. इसमें देशभर से करीब 1,000 लोगों ने हिस्सा लिया. शाम को शाहजहां और शाही परिवार के सदस्य आगरा किले से नाव द्वारा यमुना के तट पर आए. वे अस्थायी सीढ़ियों पर चढ़े और फातिहा पढ़ने के बाद गरीबों को कपड़े समेत एक लाख रुपये का दान दिया. इसके बाद शाही परिवार के सुनार ने 6 लाख रुपये में सोने की जाली बनाई, जिसे कब्र के चारों ओर लगाया गया. वर्ष 1643 में, सोने की जाली को मौजूदा संगमरमर की जाली से बदल दिया गया था.

15 जनवरी, 1645 तक शाहजहां ने ताज महल में मुमताज़ के उर्स में भाग लिया. इसके बाद उन्होंने साल 1654 में आखिरी बार ताज महल का दौरा किया था. ज़ैदी ने कहा, साल 1658 में कैद होने के बाद उनके उर्स या ताज महल जाने का कोई रिकॉर्ड नहीं है.

1666 में बादशाह की मृत्यु के बाद उस दिन की याद में उर्स आयोजित किया जाने लगा, जो अब तक जारी है. ताज महल के तहखाने में शाहजहां और मुमताज़ की वास्तविक कब्रें केवल तीन दिवसीय उर्स के दौरान ही देखी जा सकती हैं.

कार्यक्रम में चढ़ावे की जिम्मेदारी संभालने वाली खुद्दाम-ए-रोज़ा समिति के अध्यक्ष हाज़ी ताहिर उद्दीन ताहिर ने कहा कि मुख्य मकबरा मंगलवार को खोला जाएगा. ‘गुस्ल’ के बाद, ‘फ़ातिहा’ और ‘मुशायरा’ होगा. बुधवार को चंदन की रस्म और कव्वाली होगी. गुरुवार को ‘चादरपोशी’ होगी, जिसमें सांप्रदायिक सौहार्द की प्रतीक 1560 मीटर लंबी रंगीन चादर चढ़ाई जाएगी.

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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