नई दिल्ली: आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने अपनी प्रचार पत्रिका हिंद की आवाज़ में कर्नाटक के हिजाब विवाद पर टिप्पणी की है और आरोप लगाया है कि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने ‘मुस्लिम महिलाओं के कपड़े उतार कर उन्हें सार्वजनिक रूप से अपमानित करने के लिए हिजाब पर विवादास्पद प्रतिबंध’ की तैयारी की थी.
उसने आरोप लगाया कि पार्टी हिजाब मुद्दे के ज़रिए ‘युवा मुस्लिम महिलाओं को कमज़ोर करने और धर्म के आधार पर छात्रों को बांटने की कोशिश कर रही है’.
पत्रिका के मार्च संस्करण में जिसे आईएस के एनक्रिप्टेड ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर जारी किया जिसमें लिखा गया है कि ‘हमारी बहनों की इज़्ज़त पर नज़र डालने वाले हर बुज़दिल हिंदू के बेरहमी के साथ टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएंगे’.
मंगलवार को, कर्नाटक हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि मुस्लिम महिलाओं का हिजाब पहनना, इस्लामी आस्था के अनुसार धर्म का एक आवश्यक हिस्सा नहीं है.
ये फैसला छात्राओं की कई याचिकाओं पर आया जिनमें उडुपी के सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में हिजाब पर लगाए गए प्रतिबंध पर सवाल खड़े किए गए थे और उसके बाद के एक सरकारी आदेश को पाबंदी के समर्थन के तौर पर देखा गया था.
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‘एक समुदाय विशेष को आम दुश्मन में बदलने का प्रचार’
पत्रिका में कहा गया कि कर्नाटक हिजाब विवाद, ‘मुसलमानों को खलनायक बनाने’ की वैश्विक साज़िश का हिस्सा था और दावा किया गया कि भारत फ्रांस, नीदरलैंड्स और स्विजरलैंड जैसे देशों का अनुकरण करते हुए मुसलमानों को ‘बाक़ी आबादी में शामिल हो जाने के लिए’ मजबूर कर रहा है.
पत्रिका में दावा किया गया, ‘विश्व राजनीति का अपने-अपने देशों में मुस्लिम समुदायों पर निशाना साधना, साफ संकेत है कि एक सामूहिक प्रचार किया जा रहा है, कि एक समुदाय विशेष को एक आम दुश्मन बना दिया जाए ताकि असल मुद्दों पर सवाल ही न उठ पाएं’.
हिंद की आवाज़ में वैसे ही तर्क नज़र आते हैं जैसे भारत में वो समूह देते हैं जो स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब रोकने के प्रयासों के आलोचक रहे हैं.
मसलन, 2,000 बुद्धिजीवियों द्वारा लिखे गए एक खुले पत्र में- जिसमें वकील, पत्रकार, शिक्षाविद, और महिला अधिकार कार्यकर्त्ता शामिल थे, और जिसे फरवरी में जारी किया गया- ‘हिंदू श्रेष्ठतावादी समूहों’ के ख़िलाफ कार्रवाई की मांग की गई, जो ‘किसी न किसी बहाने मुसलमानों का बहिष्कार कर रहे थे’.
पत्र में ये दलील भी दी गई थी कि हिजाब मुसलमान महिलाओं के ख़िलाफ ‘रंगभेद’ थोपने का ताज़ा बहाना था.
हिंद की आवाज़ पत्रिका में ये भी दावा किया गया कि भारत के मुसलमानों ने ‘पश्चिमीकरण को अपनाकर’ ख़ुद अपना पतन किया है.
उसमें कहा गया, ‘आधुनिकता के आगमन और उसके बढ़ावे ने पश्चिम के उदय के साथ हिजाब ने अपना रूप बदल लिया और समकालीन फैशन के हिसाब उसे आधुनिक बना दिया गया’. उसने आगे कहा कि ‘इस विलय से विश्वास रखने वाले की नज़र में भी उसका पतन हुआ जिन्होंने पश्चिमी तरीक़ों के रंग में रंगकर उसे ख़ारिज करना शुरू कर दिया और उसे रूढ़िवादी समझते हैं’.
इस आलोचना के निशाने पर मुस्लिम महिलाओं के वो संगठन नज़र आते हैं जिन्होंने हिजाब को पितृसत्तात्मक सत्ता द्वारा थोपी गई प्रथा बताते हुए, जो इस्लाम का आवश्यक हिस्सा नहीं है, उसकी निंदा की है.
हिंद की आवाज़ पत्रिका ने तर्क दिया कि मुसलमानों को समझने की ज़रूरत है कि सिर्फ एक ‘ख़िलाफत’ ही महिला अधिकारों की गारंटी और सुरक्षा दे सकती है. उसने कहा, ‘इस्लामी राज क़ायम करने के लिए, एक अनुशासित और सामूहिक संघर्ष छेड़ना होगा’.
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