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बुधवार, 23 अप्रैल, 2025
होमदेशसजा में संशोधन करने संबंधी उच्च न्यायालय की प्रक्रिया पूरी तरह से अस्वीकार्य: उच्चतम न्यायालय

सजा में संशोधन करने संबंधी उच्च न्यायालय की प्रक्रिया पूरी तरह से अस्वीकार्य: उच्चतम न्यायालय

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नयी दिल्ली, 23 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि तीन व्यक्तियों की दोषसिद्धि की समीक्षा और उसमें संशोधन को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से अपनाई गई प्रक्रिया ‘‘पूरी तरह से अस्वीकार्य’’ है। इसके साथ ही न्यायालय ने संबंधित आदेश को खारिज कर दिया।

न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने पूर्ववर्ती दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 362 का हवाला दिया और कहा कि प्रावधान के अनुसार एक बार किसी मामले के निपटारे के लिए निर्णय और अंतिम आदेश पर हस्ताक्षर हो जाने के बाद, किसी भी अदालत को लिपिकीय या अंकगणितीय त्रुटि को ठीक करने के अलावा उसमें बदलाव या समीक्षा करने का अधिकार नहीं है।

पीठ ने कहा, ‘‘हम यह समझने में असफल रहे कि वर्तमान मामले में भी उच्च न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 362 के प्रावधानों में सरल और स्पष्ट शब्दों के इस्तेमाल के बावजूद ऐसी गलती कैसे कर दी।’’

उच्चतम न्यायालय का यह फैसला मामले के शिकायतकर्ता द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए दायर अलग-अलग अपीलों पर आया है।

एक आरोपी ने बरी किये जाने के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस मामले में मई, 2018 में दिये गये अपने फैसले में तीनों आरोपियों द्वारा दायर अपीलों को खारिज कर दिया था।

उच्च न्यायालय के समक्ष आरोपियों ने निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या के अपराध में दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

फरवरी 2019 में, उच्च न्यायालय ने आरोपी व्यक्तियों की याचिका पर मई 2018 के अपने फैसले को संशोधित किया था और उनकी सजा को आईपीसी की धारा 304, भाग-दो के तहत कमतर आरोप में बदल दिया। आईपीसी की धारा 304, भाग-दो गैर-इरादतन हत्या से संबंधित है।

इसके बाद उच्च न्यायालय ने उनमें से एक को 10 साल, जबकि बाकी को पांच-पांच साल जेल की सजा सुनाई गई।

उच्च न्यायालय ने मई, 2018 के फैसले में आरोपियों की दलील को खारिज कर दिया था और हत्या के लिए उनकी दोषसिद्धि की पुष्टि की थी।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अपने फरवरी 2019 के आदेश में पाया था कि यह घटना अचानक उकसावे का परिणाम प्रतीत होती है और उनकी सजा को आईपीसी की धारा 304 के भाग-दो में बदल दिया।

शिकायतकर्ता द्वारा दायर अपीलों को स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘आठ फरवरी, 2019 का निर्णय और आदेश रद्द किया जाता है क्योंकि उच्च न्यायालय द्वारा 21 मई, 2018 को दिये गये अपने ही निर्णय और आदेश की समीक्षा करना उचित नहीं था।’’

यह बात सामने आई थी कि दो परिवारों के बीच लंबे समय से भूमि विवाद था और आरोपी व्यक्तियों ने एक व्यक्ति पर हमला किया था, जिसकी मई 2012 में मृत्यु हो गई थी।

भाषा

देवेंद्र सुरेश

सुरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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