नयी दिल्ली, चार जून (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि उच्च न्यायालय पीड़ित, शिकायतकर्ता या सरकार द्वारा अपील दायर न किए जाने की स्थिति में सजा बढ़ाने या किसी अन्य आरोप में अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए खुद से पुनरीक्षण शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकते।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने नागराजन नामक व्यक्ति द्वारा दायर उस अपील पर यह फैसला सुनाया, जिसमें मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के आदेश को चुनौती दी गई थी। इस आदेश में उसे एक महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराया गया था और पांच वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी।
नागराजन को शील भंग करने और घर में जबरन घुसने के मामले में भी दोषी ठहराया गया था।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत ने उसे आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए आईपीसी की धारा 306 के आरोपों से बरी कर दिया था और उसे केवल महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने और घर में जबरन घुसने का दोषी ठहराया था।
नागराजन ने उच्च न्यायालय में अपील की, जिसने निचली अदालत के दोषसिद्धि के आदेश को बरकरार रखा, लेकिन स्वतः संज्ञान लेते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत उसकी दोषसिद्धि के लिए कार्यवाही शुरू की और उसे दोषी करार दिया।
यह बात रिकार्ड में आई कि सरकार, पीड़ित या शिकायतकर्ता द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत सजा बढ़ाने या बरी करने के लिए कोई अपील दायर नहीं की गई थी।
पीठ ने कहा, ‘‘आरोपी/दोषी द्वारा दायर अपील और पीड़ित, शिकायतकर्ता या सरकार द्वारा दायर किसी अपील के अभाव में, उच्च न्यायालय सजा बढ़ाने या अपीलकर्ता को किसी अन्य आरोप में दोषी ठहराने के लिए स्वत: संज्ञान लेकर पुनरीक्षण नहीं कर सकता है।’’
पीठ ने आईपीसी की धारा 306 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया, लेकिन ‘‘महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने’’ और ‘‘घर में जबरन घुसने’’ के लिए उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा।
न्यायालय ने कहा, ‘‘अपीलकर्ता को सत्र न्यायालय द्वारा दी गई सजा भुगतने और जुर्माना अदा करने का निर्देश दिया जाता है।’’
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने सजाएं एक साथ चलाने का आदेश दिया था।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि सरकार या शिकायतकर्ता या पीड़ित द्वारा दायर अपील में सजा बढ़ाने के लिए अपीलीय अदालत की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए, सीआरपीसी में प्रावधान है कि अपीलीय अदालत निष्कर्ष और सजा को उलट सकती है और आरोपी को बरी कर सकती है, या अपराध की सुनवाई करने के लिए सक्षम अदालत द्वारा उस पर फिर से मुकदमा चलाने का आदेश दे सकती है, या सजा को बरकरार रखते हुए निष्कर्ष को बदल सकती है।
नागराजन ने उच्च न्यायालय के 29 नवंबर, 2021 के आदेश को चुनौती दी थी
नागराजन पर 11 जुलाई, 2003 को अपनी पड़ोसी के घर में जबरन घुसकर उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया गया था।
अगले ही दिन महिला ने अपने शिशु के साथ आत्महत्या कर ली थी।
भाषा
देवेंद्र माधव
माधव
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