नयी दिल्ली, 25 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि उच्च न्यायालय अपनी पुनरीक्षण शक्ति के तहत किसी आरोपी को बरी किए जाने के निष्कर्ष को दोषसिद्धि में नहीं बदल सकता।
न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय को यह जांच करने की शक्ति है कि क्या कानून या प्रक्रिया आदि की स्पष्ट त्रुटि है, हालांकि, अपने स्वयं के निष्कर्ष देने के बाद, उसे मामले को निचली अदालत में और/या प्रथम अपीलीय न्यायालय में भेजना होगा।
पीठ ने कहा, ‘यदि निचली अदालत द्वारा बरी करने का आदेश पारित किया गया है, तो उच्च न्यायालय मामले को निचली अदालत को भेज सकता है और यहां तक कि फिर से सुनवाई के लिये भी कह सकता है। हालांकि, अगर बरी करने का आदेश प्रथम अपीलीय अदालत द्वारा पारित किया जाता है, तो उस मामले में, उच्च न्यायालय के पास दो विकल्प उपलब्ध हैं, (i) अपील पर फिर सुनवाई के लिए मामले को प्रथम अपीलीय न्यायालय में भेजना; या (ii) उपयुक्त प्रकरण में मामले को फिर से मुकदमे की सुनवाई के लिए निचली अदालत में भेजना।’’
शीर्ष अदालत मद्रास उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसे दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 401 के तहत अपने पुनरीक्षण अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते हुए प्रथम अपीलीय न्यायालय द्वारा पारित बरी करने के आदेश को रद्द कर आरोपी को दोषी ठहराया था।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि बरी करने के आदेश के खिलाफ पीड़ित को अपील दायर करने का अधिकार पूर्ण अधिकार है।
भाषा नेत्रपाल दिलीप
दिलीप
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