बेंगलुरु, 21 नवंबर (भाषा) अनिवार्य अधिग्रहण से प्रभावित भूमि मालिकों को बड़ी राहत देते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सुप्रिया एस शेट्टी द्वारा दायर एक रिट याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें राष्ट्रीय राजमार्ग विस्तार के लिए प्रदान किए गए मुआवजे पर आयकर काटे जाने को चुनौती दी गई थी।
मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति एस आर कृष्णकुमार ने की, जिसमें अधिवक्ता के वी धनंजय भारत संघ और केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के खिलाफ याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थित हुए।
याचिकाकर्ता और उनके पति ने एक वेलनेस रिसॉर्ट परियोजना के लिए लगभग दो दशकों में तेनकुलिपाडी गांव में लगभग 17.5 एकड़ जमीन जुटाई थी।
उनकी योजना 2020 में बाधित हो गई जब भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने राष्ट्रीय राजमार्ग-169 के चौड़ीकरण के लिए उनकी 33.50 सेंट भूमि का अधिग्रहण कर लिया।
यद्यपि मुआवजा राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम और आरएफसीटीएलएआरआर अधिनियम के तहत दिया गया था, लेकिन अधिकारियों ने 16 लाख रुपये से अधिक की राशि टीडीएस के रूप में काट ली, जबकि आरएफसीटीएलएआरआर अधिनियम की धारा 96 के तहत ऐसे मुआवजे को आयकर से छूट दी गई है।
यह विवाद कर्नाटक भर में हजारों भूमि मालिकों के सामने आने वाली एक बड़ी समस्या को दर्शाता है, जहां अधिकारी नियमित रूप से दस प्रतिशत टीडीएस काटते हैं और आयकर विभाग बाद में मुआवजे के कुछ हिस्सों को कर योग्य आय के रूप में मानता है। कई परिवार अपने मुआवजे का एक बड़ा हिस्सा खो देते हैं, जिससे अधिग्रहण के बाद जमीन पुनः खरीदना या अपनी आजीविका का पुनर्निर्माण करना कठिन हो जाता है।
अधिवक्ता धनंजय ने तर्क दिया कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और कर अधिकारियों ने संसद के इस स्पष्ट आदेश के विपरीत काम किया है कि अधिग्रहण मुआवजा कर-मुक्त रहना चाहिए।
उन्होंने दलील दी कि आयकर लगाने से उन नागरिकों पर अनुचित बोझ पड़ता है जिनकी संपत्ति सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए ली जाती है और यह आरएफसीटीएलएआरआर अधिनियम के कल्याणकारी उद्देश्य को विफल करता है।
न्यायमूर्ति कृष्णकुमार ने पहले भी इसी तरह के मुद्दों पर फैसला सुना चुके हैं। 2022 में, उन्होंने कहा था कि केआईएडीबी अधिग्रहण में आरएफसीटीएलएआरआर ढांचे के तहत निर्धारित मुआवजे पर टीडीएस या आयकर नहीं लगाया जा सकता। इस फैसले पर उच्चतम न्यायालय ने रोक लगाने से इनकार कर दिया था, जिससे यह पूरे कर्नाटक में लागू हो गया। इसी आधार पर वर्तमान मामले में अदालत ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया।
अब रिट याचिका को अनुमति मिलने के साथ, इस फैसले से राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण, केआईएडीबी, रेलवे और पाइपलाइन प्राधिकरणों जैसी एजेंसियों द्वारा किए जाने वाले भूमि अधिग्रहण पर दूरगामी परिणाम होने की उम्मीद है।
भाषा नेत्रपाल पवनेश
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