प्रयागराज, पांच नवंबर (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जमानत आदेशों के ‘डायरेक्ट इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन’ (डीईटी) और ‘बेल ऑर्डर मैनेजमेंट सिस्टम’ (बीओएमएस) के जरिए कैदियों की तत्काल रिहाई का निर्देश जारी किया है, ताकि जमानत मिलने के बाद कोई भी व्यक्ति अनावश्यक रूप से जेल में न रहे।
यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने अपहरण के एक मामले में आरोपी को जमानत देते हुए पारित किया।
अदालत ने कहा, ‘‘किसी व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है। इसलिए कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया को छोड़कर किसी व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘एक बार विचाराधीन या दोषसिद्ध कैदी को जमानत मिल जाती है तो जमानत के आदेश के बारे में तत्काल जानना उसका अधिकार है, ताकि न्यायिक व्यवस्था या जेल प्रशासन की शिथिलता के कारण वह जेल में बंद न रहे। उच्चतम न्यायालय ने भी जमानत मिलने के बाद व्यक्ति की देरी से रिहाई पर चिंता जताई है।’’
अदालत ने मंगलवार को अपने आदेश में कहा कि उच्चतम न्यायालय के 2024 के निर्देशों के बावजूद जमानत आदेशों की प्रतियां तुरंत जेल अधिकारियों तक नहीं पहुंच पातीं। निबंधक (अनुपालन) ने बताया कि कई बार जमानत याचिकाओं में जेल का विवरण नहीं दिया जाता, जिससे आदेश सीधे जेल अधीक्षक को भेजना मुश्किल हो जाता है।
इस पर अदालत ने निर्देश दिया कि जमानत याचिका दाखिल करते समय अधिवक्ताओं को आरोपी के जिले के विवरण का भी उल्लेख करना चाहिए, ताकि रिहाई की प्रक्रिया में देरी न हो।
भाषा सं राजेंद्र खारी
खारी
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.
