नई दिल्ली: बिहार के सहरसा जिले के निवासी 60 साल के विश्वनाथ सिंह (बदला हुआ नाम) अपनी जमीन के बीचों-बीच खड़े हैं जिसपर अब कोई खेती नहीं होती है. उनकी जमीन पर तीन से चार फीट तक बालु भरा है. जमीन पर बालू भर जाने के कारण अब उस पर खेती करना लगभग नामुमकिन है. हालांकि, ऐसा नहीं था कि उनकी जमीन पर कभी खेती नहीं होती थी. साल 2008 में आई भयंकर बाढ़ से पहले उनकी जमीन उपजाऊ जमीन मानी जाती थी, जिसपर अच्छी उपज होती थी. वह कहते हैं कि उस जमीन पर घान, गेहूं और मूंग की अच्छी फसल होती थी, लेकिन 2008 में आई भयंकर बाढ़ के बाद सबकुछ बदल गया. 18 अगस्त 2008 को नेपाल के कुसहा नामक गांव के पास कोसी तटबंध टूट गया जिसके बाद इलाके में भयंकर बाढ़ आ गई.
विश्वनाथ सिंह के अलावा कोसी इलाके में सैकड़ों की संख्या में ऐसे किसान हैं जिनकी जमीन पर तीन-चार फीट तक, और कहीं-कहीं तो इससे भी ज्यादा बालू भर गया था. बाद में सरकार ने बालू हटाने की बात कही थी लेकिन जमीन पर काम न के बराबर हो पाया. कुछ अमीर किसानों ने अपने खर्च पर अपनी जमीन से बालू हटवाया लेकिन विश्वनाथ सिंह जैसे छोटे किसानों के लिए यह संभव नहीं था.
विश्वनाथ सिंह कहते हैं, “मैं उस समय को याद भी नहीं करना चाहता. आज भी उन दिनों को याद कर शरीर में सिहरन पैदा हो जाती है.”
कोसी क्षेत्र के लोग अभी तक कुसहा त्रासदी की विभिषका को याद कर सहम जाते हैं.
आज कुसहा त्रासदी के 15 साल पूरे हो गए. लेकिन आज तक बिहार के कोसी, सीमांचल के लोगों के जेहन में इसका दर्द झलक रहा है. साल 2008 में नेपाल के कुसहा नामक स्थान पर कोसी नदी का तटबंध टूटा और उसके बाद बिहार के सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, खगड़िया, दरभंगा के लगभग 450 गांव इसके चपेट में आ गए. साथ ही नेपाल के लगभग 50 गांव पर भी इसका प्रभाव पड़ा. चारों ओर भयंकर पानी भर गया. कई गांव नदी के बीच में आ गए. कोसी नदी ने अपनी धारा बदल ली जिसके कारण कई गांव नदीं के बीच में आने के कारण पूरी तरह से बह गए. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक लगभग 526 लोगों की मौत इस बाढ़ की चपेट में आने से हो गई, जिसमें सबसे अधिक मधेपुरा जिले में 213 लोगों की मौत हुई. इसके अलावा सहरसा जिले में 41 लोगों की मौत हुई जबकि सुपौल जिले में 213 लोगों की मौत हुई थी. इस त्रासदी में कई लोग लापता भी हो गए, जिसका आजतक कोई पता नहीं चला. हालांकि, स्थानीय लोगों के मुताबिक सरकारी आंकड़े और वास्तविक आंकड़े में आसमान धरती का फर्क था, क्योंकि कई लोगों की मृत्यु का रिकार्ड सरकारी स्तर पर दर्ज ही नहीं हो पाया.
सरकार ने बाद में मृतकों के परिवार के लिए 2.50 लाख रुपए के मुआवजे की घोषणा की थी लेकिन लोगों के मुताबिक अधिकतर परिवारों को इसका मुआवजा भी नहीं मिल पाया था.
तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी मृतकों के परिवार को प्रधानमंत्री राहत कोष से एक-एक लाख रुपए सहायता राशि देने की घोषणा की थी.
यह भी पढ़ें: ‘सैटेलाइट इमेजरी, रिमोट सेंसर’, भारत में अवैध रेत खनन से लड़ने के लिए नए प्लेटफ़ॉर्म की क्या है योजना
चेहरे पर अभी भी त्रासदी का ख़ौफ
कुसहा त्रासदी का नाम सुनकर अभी भी कोसी इलाके लोगों का तन सिहर जाता है. कोसी की लहर ने इलाके में ऐसा तांडव मचाया था कि चारो ओर कोहराम मच गया था. सहरसा, मधेपुरा और सुपौल के कई गांव, कस्बे और शहर टापू में तब्दील हो गये थे. सड़के, पुल-पुलिया, बिजली के खंभे सबकुछ बह गए थे. जिस खेत में कभी फसले लहलहाती थी वह या तो गड्ढे में तब्दील हो गई या फिर उसपर कई फीट तक बालू भर गया. लाखों लोगों को अपना घर छोड़कर कहीं सुरक्षित स्थान पर शरण लेनी पड़ी थी. हजारों मकान ढ़ह गए. लोग बेघर हो गए थे जिसका प्रभाव अभी भी लोगों पर है. कई ग्रामीण सड़के पूरी तरह से बह गई थी जिसकी मरम्मत अभी तक नहीं हो पाई.
इसके अलावा लोगों को अपने बेशकीमती समान से हाथ धोना पड़ा था. बाढ़ के कारण हजारों पशु बह गए थे. साथ ही घरों में पानी भर जाने के कारण लोगों के हजारों क्विंटल आनाज सड़ गए थे. लोगों को मजबूरन अपने पशुओं को बाढ़ के पानी में छोड़ना पड़ा था, क्योंकि चारों ओर पानी भर जाने के कारण पशुओं के चारे की दिक्कत हो गई थी.
गुनहगार कौन, आज तक पता नहीं
कुसहा त्रासदी को हुए आज 15 साल हो चुके हैं, लेकिन आज तक सरकार पीड़ित लोगों को यह नहीं बता पाई कि यह क्यों और किसकी लापरवाही के कारण हुआ. त्रासदी के बाद जांच के लिए सरकार द्वारा गठित की गई वालिया समिति की रिपोर्ट को भी आजतक सार्वजनिक नहीं किया गया और न ही उसके आधार पर कोई कार्रवाई की गई.
बाद में सरकार ने कोसी के अध्ययन के लिए सुपौल जिले के वीरपुर में एक फिजिकल मॉडलिंग सेंटर बनवाया. इसके अलावा कई और सरकारी मदद की भी घोषणा की. कोसी क्षेत्र को बेहतर बनाने के लिए प्लान लाने की भी घोषणा की गई. लेकिन इलाके के लोगों का मानना है कि इसपर वह आज भी सिर्फ उम्मीद का दामन थामे सिर्फ इंतजार ही कर रहे हैं.
यह भी पढ़ें: ‘बिखरा परिवार और पछतावा’, हिमाचल में बादल फटने से मलबे में तब्दील हुआ 100 साल पुराना शिव मंदिर