नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को आबकारी नीति मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ज़मानत देने के आदेश पर रोक लगा दी. कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने सीएम को राहत देते समय अपना विवेक नहीं लगाया.
21 मार्च को गिरफ्तार किए गए केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई को लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार करने के लिए 1 जून तक के लिए ज़मानत दी थी. इसके बाद पिछले हफ्ते गुरुवार देर शाम अवकाशकालीन जज नियाय बिंदु ने उन्हें ज़मानत दे दी. हालांकि, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने एक दिन बाद शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी.
जस्टिस सुधीर कुमार जैन ने शुक्रवार को रोक लगाने की अर्ज़ी पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. मंगलवार को आदेश सुनाते हुए न्यायाधीश ने कहा कि “अवकाश न्यायाधीश ने रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री और ईडी के कथनों का उचित मूल्यांकन नहीं किया”.
ईडी द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्क से सहमत होते हुए हाईकोर्ट ने ज़मानत आदेश पारित करने से पहले अवकाश न्यायाधीश द्वारा संपूर्ण रिकॉर्ड का अध्ययन न करने पर भी आपत्ति जताई.
20 जून को पारित अवकाश न्यायाधीश के आदेश में कहा गया था, “इस समय इन हज़ारों पन्नों के दस्तावेज़ को देखना संभव नहीं है, लेकिन यह न्यायालय का कर्तव्य है कि जो भी मामला विचार के लिए आए, उस पर काम करे और कानून के अनुसार आदेश पारित करे.”
उच्च न्यायालय ने कहा कि अवकाश न्यायाधीश की टिप्पणी “पूरी तरह से अनुचित” थी और यह दर्शाता है कि निचली अदालत ने सामग्री पर अपना विवेक नहीं लगाया है. इसके अतिरिक्त, हाईकोर्ट ने ईडी की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि उसे अपना मामला पेश करने का उचित मौका नहीं दिया गया.
न्यायमूर्ति जैन ने ईडी की इस दलील को भी स्वीकार किया कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा-45 के तहत ज़मानत की दोहरी शर्तों पर ट्रायल कोर्ट ने ठीक से चर्चा नहीं की. प्रावधान के अनुसार, धन शोधन मामले में आरोपी को ज़मानत तभी दी जा सकती है जब दो शर्तें पूरी हों — पहली नज़र में यह संतुष्टि होनी चाहिए कि आरोपी ने कोई अपराध नहीं किया और ज़मानत पर रहते हुए उसके कोई अपराध करने की संभावना नहीं है.
इस बीच, शुक्रवार को न्यायमूर्ति जैन द्वारा दिए गए अंतरिम स्थगन को केजरीवाल ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्थगन आदेश को “थोड़ा असामान्य” बताया था, लेकिन उसने हाईकोर्ट के अंतिम आदेश का इंतज़ार करना चुना और मामले की सुनवाई 26 जून के लिए टाल दी.
आम आदमी पार्टी (आप) ने मंगलवार को कहा कि वह मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अधीनस्थ अदालत की ओर से दी गई ज़मानत पर हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई अंतरिम रोक से असहमत है और इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी.
पार्टी ने कहा, ‘‘हम दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश से असहमत हैं. हम इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती देंगे.’’
‘जांच एक कला है’
केजरीवाल को ज़मानत देते हुए राउज़ एवेन्यू कोर्ट की अवकाशकालीन न्यायाधीश बिंदु ने कहा था कि ईडी अपराध की आय के बारे में मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य देने में विफल रही.
अदालत ने ईडी द्वारा केजरीवाल के खिलाफ अनुमोदकों के बयानों के इस्तेमाल के बचाव पर भी आपत्ति जताई. ईडी ने कहा था कि “जांच एक कला है और कभी-कभी एक आरोपी को ज़मानत और क्षमा का लालच दिया जाता है और अपराध के पीछे की कहानी बताने के लिए कुछ आश्वासन दिया जाता है.”
न्यायाधीश ने कहा, “अदालत को इस तर्क पर विचार करने के लिए रुकना होगा जो कि एक स्वीकार्य तर्क नहीं है कि जांच एक कला है क्योंकि अगर ऐसा है, तो किसी भी व्यक्ति को फंसाया जा सकता है और रिकॉर्ड से दोषमुक्ति सामग्री को कलात्मक रूप से टालने/वापस लेने के बाद उसके खिलाफ सामग्री को कलात्मक रूप से प्राप्त करके सलाखों के पीछे रखा जा सकता है.”
इसने कहा, “यही परिदृश्य अदालत को जांच एजेंसी के खिलाफ यह निष्कर्ष निकालने के लिए बाध्य करता है कि वह बिना किसी पूर्वाग्रह के काम नहीं कर रही है.”
इसके बाद न्यायाधीश ने केजरीवाल को एक लाख रुपये के मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया था.
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