नयी दिल्ली, 25 अप्रैल (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने नर्स संघों द्वारा दायर उस याचिका पर शुक्रवार को केंद्र और एम्स से जवाब मांगा, जिसमें वैवाहिक स्थानांतरण नीति के क्रियान्वयन का अनुरोध किया गया है और कहा गया है कि इस नीति का न होना महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण है।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने केंद्र और दिल्ली, भोपाल, भुवनेश्वर, पटना और अन्य स्थानों पर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा।
अदालत के समक्ष अखिल भारतीय सरकारी नर्स फेडरेशन, नर्सिंग प्रोफेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन, एम्स ऋषिकेश, एम्स पटना नर्स यूनियन और मंगलागिरि एम्स नर्सिंग ऑफिसर्स एसोसिएशन ने याचिका दाखिल की थी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विभा दत्ता मखीजा ने कहा कि याचिकाएं ‘नर्सों के परिवार’ के अधिकार से संबंधित है और वैवाहिक आधार पर स्थानांतरण के मुद्दे पर एक ‘शून्यता’ है, क्योंकि स्वास्थ्य संस्थानों के कर्मचारियों के ऐसे स्थानांतरण के लिए फिलहाल कोई नियम नहीं हैं।
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता सत्य सभरवाल और पलक बिश्नोई ने भी किया। उन्होंने दो एम्स अस्पतालों के बीच, एम्स और राष्ट्रीय महत्व के अन्य संस्थानों, एम्स और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन कोई भी संस्थानों, तथा एम्स और राज्य सरकार के अधीन किसी भी संस्थान में स्थानांतरण की नीति की मांग की।
याचिका में कहा गया है कि एम्स में वैवाहिक आधार पर स्थानांतरण नीति के न होने के कारण ‘महिलाओं के विरुद्ध अप्रत्यक्ष तौर पर भेदभाव’ हुआ, जिन्हें ‘‘परिवार की प्राथमिक देखभालकर्ता’’ होने के कारण अपने रोजगार के अवसरों को छोड़ना पड़ा और इसलिए यह अवैध है तथा अनुच्छेद 14 के तहत गैर-भेदभाव की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन है।
याचिका में कहा गया कि यह संविधान के अनुच्छेद 16 और 15 के तहत समान अवसर और लैंगिक समानता का भी उल्लंघन है। मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी।
भाषा शोभना सुरेश
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