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Friday, 22 November, 2024
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‘377 से आगे सोचना होगा’ – शादी के 9 साल बाद भारत के पहले प्रिंस गे ने कहा संघर्ष खत्म नहीं हुआ

गोहिल ने कहा कि जब तक उसके माता-पिता ने उन्हें मजबूर करना बंद नहीं किया, तब तक वह सदमे में रहे और उदास हो गया थे. वो अक्सर आत्महत्या के बारे में सोचता थे.

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नई दिल्ली: उन्हें सार्वजनिक तौर पर शाही परिवार ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया, सालों तक जबरन ‘कन्वर्जन थेरेपी’ लेने को मजबूर किया गया यहां तक कि ‘भारतीय संस्कृति को शर्मसार करने के लिए’ उस जान से मारने तक की धमकी दी गई.

लेकिन कहानी की ‘हैप्पी एंडिंग’ थी.

ट्रॉमा से बाहर निकलने के बाद, भारत के पहले गे प्रिंस मानवेंद्र सिंह गोहिल ने 6 जुलाई को अपने साथी डिएंड्रे रिचर्डसन के साथ शादी के नौ साल पूरे होने का जश्न मनाया.

रिचर्डसन ने फेसबुक पर लिखा, ‘ओहियो स्टेटहाउस – 1800 में अब्राहम लिंकन ने यहां ओहियो दर्शकों को संबोधित किया. 6 जुलाई, 2022 को राजपिपला के क्राउन प्रिंस मानवेंद्र सिंह गोहिल और ड्यूक डीएंड्रे रिचर्डसन ने अपनी शादी की प्रतिज्ञा (sic)को रिन्यू कराया. अमेरिके के इस राज्य में समलैंगिक विवाह कानूनी है.

इनसाइडर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, ’12 साल की उम्र में गोहिल जान गए थे कि वे गे हैं. इस बारे में उन्होंने अपने माता-पिता को 30 साल की उम्र में बताया और जब वो 41 वर्षीय हुए तो उन्होंन एक स्थानीय समाचार पत्र को इंटरव्यू के दौरान पूरी दुनिया को बताया.

उनके माता-पिता शुरू में स्पोर्टिव नहीं थे और गोहिल को एक महिला से शादी करने के लिए मजबूर किया गया था. उन्हें कई सालों तक ‘कन्वर्जन थेरेपी’ को भी सहन करना पड़ा लेकिन 2013 में उन्होंने अपने पति से शादी कर ली.

गोहिल को अपनी ‘यौन रूचि’ के लिए राजपीपला के लोगों से कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा. ‘जिस दिन मैंने अपने बारे में बताया, मेरे पुतले जलाए गए. बहुत विरोध हुआ, लोग सड़कों पर उतर आए और नारे लगाते हुए कहा कि मैं शाही परिवार और भारतीय संस्कृति को शर्मसार और उसका अपमान कर रहा हूं.

इनसाइडर लेख में गोहिल के हवाले से लिखा गया था कि मुझे जान से मारने की धमकी दी जा रही थी और मांग की जा रही थी कि मुझसे मेरा खिताब छीन लिया जाए.


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सार्वजनिक रूप से त्याग दिया गया

गोहिल के माता-पिता ने सार्वजनिक रूप से उसे अस्वीकार कर दिया था. समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित करके घोषणा की गई थी कि उन्हें उनके वारिस के रूप में त्याग दिया गया था. उन्होंने कहा कि वह ऐसी गतिविधियों में शामिल थे जो ‘समाज में अनुपयुक्त’ थीं.

‘मेरे माता-पिता ने सार्वजनिक रूप से मुझे शाही परिवार से अलग कर दिया और मुझे पुश्तैनी संपत्ति से बेदखल कर दिया था.’ गोहिल ने दिप्रिंट के लिए 2018 के एक लेख में लिखा था.

गोहिल के माता-पिता का गुस्से का आधार यह था कि वह गे नहीं हो सकता है क्योंकि उसकी ‘सांस्कृतिक परवरिश समृद्ध’ थी.

गोहिल ने इनसाइडर से कहा, ‘उन्होंने सोचा कि यह संभव नहीं हो सकता है कि मैं गे हूं क्योंकि मेरी सांस्कृतिक परवरिश इतनी समृद्ध थी. उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि किसी की सेक्शुएलिटी और उनकी परवरिश के बीच कोई संबंध नहीं है.’

गोहिल ने अपने माता-पिता के कहने पर एक क्रूर ‘कन्वर्जन थेरेपी’ से गुजरने के लिए मजबूर होने की दास्तान भी साझा की.

उनके माता-पिता ने उनकी सेक्शुएलिटी के लिए एक ‘इलाज’ की तलाश की और उन्हें इलेक्ट्रोशॉक जैसे कई मेडिकल प्रोसेस से गुजरना पड़ा. वे उसे ‘सामान्य व्यवहार’ करने के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शकों और धार्मिक नेताओं के पास भी ले गए.

गोहिल ने कहा कि जब तक उसके माता-पिता ने उन्हें मजबूर करना बंद नहीं किया, तब तक वह सदमे में रहे और उदास हो गया थे. वो अक्सर आत्महत्या के बारे में सोचता थे.

‘कन्वर्जन थेरेपी’ के खिलाफ संघर्ष और LGBTQIA+ के लिए ‘सेफ हाउस’

गोहिल का अपने माता-पिता के साथ तनाव बाद में हल हो गया और उन्होंने गुजरात में हनुमंतेश्वर की शाही स्थापना एक समझौते के रूप में की. सुप्रीम कोर्ट द्वारा नवतेज जौहर मामले में 2018 में एक ऐतिहासिक फैसले में धारा 377 को अपराध से मुक्त करने के बाद, गोहिल ने भारत में पहला LGBTQIA+ सामुदायिक केंद्र बनने के लिए अपना 15 एकड़ के महल का मैदान खोल दिया.

इसका उद्देश्य उस समुदाय के सदस्यों को सशक्त बनाना जिन्हें उनके परिवारों ने बहिष्कार कर दिया है.

गोहिल की ‘कन्वर्जन थेरेपी’ के खिलाफ लड़ाई जारी है क्योंकि देश में इस प्रथा को गैरकानूनी नहीं बनाया गया है. वह इस पर रोक लगाने में सबसे आगे हैं.

तमिलनाडु भारत का पहला और एकमात्र राज्य है जिसने पिछले साल जून में ‘कन्वर्जन थेरेपी’ पर रोक लगा दी थी.

हालांकि, गोहिल न सिर्फ ‘कन्वर्जन थेरेपी’ के खिलाफ लड़ रहे हैं बल्कि समान-विवाह, विरासत के अधिकार और गोद लेने जैसे मुद्दों के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं.

गोहिल ने कहा, ‘मेरे जैसे लोगों के लिए जो समाज में एक प्रतिष्ठा रखते हैं उनके लिए वकालत करते रहना अहम है. हम सिर्फ इसलिए नहीं रुक सकते क्योंकि देश ने धारा 377 को निरस्त कर दिया है.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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