scorecardresearch
Sunday, 5 May, 2024
होमदेशहाथरस केस के सह-अभियुक्त को UAPA के अंतर्गत जमानत मिली, पत्नी ने कहा 23 महीने बाद दिखी उम्मीद की किरण

हाथरस केस के सह-अभियुक्त को UAPA के अंतर्गत जमानत मिली, पत्नी ने कहा 23 महीने बाद दिखी उम्मीद की किरण

मोहम्मद आलम को 5 अक्टूबर 2020 को पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन तथा अन्य के साथ गिरफ्तार किया गया था, जब वो उन्हें ड्राइव करके हाथरस ले जा रहा था. कोर्ट को उसके खिलाफ कोई ‘फंसाने वाले सबूत’ नहीं मिले.

Text Size:

नई दिल्ली: गिरफ्तारी के करीब 23 महीने बाद, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोहम्मद आलम को ज़मानत दे दी, जिस पर 2020 में हाथरस मामले में कड़े ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मुक़दमा क़ायम किया गया था. 30 वर्षीय आलम कथित रूप से उस कार का ड्राइवर था, जिसमें पत्रकार सिद्दीक कप्पन और दो अन्य लोग हाथरस जा रहे थे, जहां चार ऊंची जाति के लोगों ने एक 20 वर्षीया दलित युवती का सामूहिक बलात्कार किया था.

आलम को कप्पन और कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) के पदाधिकारियों अतीक़-उर-रहमान, मसूद अहमद तथा तीन अन्य के साथ- 5 अक्टूबर 2020 को गिरफ्तार किया गया था. यूपी स्पेशल टास्क फोर्स ने पिछले साल अप्रैल सभी सातों व्यक्तियों के खिलाफ एक चार्जशीट दायर की थी, जिसमें उनपर ‘देशद्रोह’ और हाथरस घटना के बाद कथित रूप से ‘हिंसा भड़काने की कोशिश’ का आरोप लगाया गया था.

आलम को ज़मानत देते हुए न्यायमूर्तियों रमेश सिन्हा और सरोज यादव की बेंच ने कहा, कि उसके क़ब्ज़े से कोई ‘फंसाने वाली चीज़’ बरामद नहीं की गई, और आलम के फोन से कोई ऐसी ‘सामग्री नहीं मिल पाई’, जिससे उसका किसी आतंकवादा या आतंकी गतिविधियों से रिश्ता स्थापित हो पाता. इसके अलावा, बेंच ने ये भी कहा कि ऐसा विश्वास करने का कोई ‘उचित आधार नहीं है’ कि आलम पर लगाए गए आरोप पहली नज़र में सही हैं.

लेकिन, जेल से बाहर आने के लिए आलम को अभी थोड़ा और इंतज़ार करना होगा, क्योंकि उसका नाम प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अपनी एक अभियोजन शिकायत में भी शामिल किया है, जो धन-शोधन निवारण अधिनियम के तहत चार लोगों के खिलाफ दर्ज कराई गई थी.

उसके वकील सैफन शेख़ ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम जल्द ही ईडी केस में ज़मानत याचिका डालेंगे. पहले अभियुक्त रऊफ शरीफ को फरवरी 2021 में ज़मानत मिल गई थी.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

हालांकि, आलम की पत्नी बुशरा को आख़िरकार अपनी मुसीबतों का अंत नज़र आने लगा है.

दिप्रिंट से बात करते हुए उसने कहा: ‘आज मुझे एक नई ज़िंदगी मिली है. मेरे पति को यूएपीए के तहत ज़मानत दे दी गई है. इसे तक़रीबन 23 महीने या 688 दिन हो गए हैं. मैंने हर दिन दुआ मांगी है. अल्लाह ने आज मेरी दुआएं सुन ली हैं.’

बुशरा और आलम की शादी को तीन साल से कुछ अधिक हुए हैं, और ज़्यादातर समय इन्होंने अलग ही गुज़ारा है. आलम की गिरफ्तारी के बाद वो दिल्ली के त्रिलोकपुरी में अपने माता-पिता के घर चली गई थी. उसने आलम को आख़िरी बार 29 जून को एक सुनवाई के दौरान देखा था.

बुशरा के मुताबिक़, घटना से पहले आलम किसी भी दूसरे अभियुक्त को नहीं जानता था, लेकिन अब उसके उनके साथ दोस्ताना रिश्ते बन गए हैं. उसने कहा, ‘उन्हें एक साथ जेल भेजा गया था. मुसीबत के समय लोग एक दूसरे के साथ खुल जाते हैं.’

बुशरा ने याद किया कि किस तरह आलम ने 5 अक्टूबर 2020 को उसे बताया था, कि उसे हाथरस जाना था. उसने कहा, ‘कोविड की वजह से वो बहुत मुश्किल समय था’. उसे कई बार कॉल करने के बाद, उस शाम जब वो आलम से संपर्क नहीं कर पाई तो बुशरा घबरा गई थी. अगले दिन जाकर उसे एक कॉल आई, जिसमें बताया गया कि उसे गिरफ्तार कर लिया गया था.

‘मैं उसे लेने जाउंगी. उसकी पसंद का खाना भी तैयार रहेगा. आख़िरकार, अंधेरे में उम्मीद की एक किरण दिखी है.’


यह भी पढ़ें : अगवा होने के 5 साल बाद मिले दिल्ली के लड़के की DNA रिपोर्ट का इंतज़ार, ‘मां’ ने कहा- नहीं है मेरा बेटा


‘कोई फंसाने वाले सबूत नहीं’

बेंच ने कहा कि आलम का केस कप्पन के मामले से ‘अलग’ था, चूंकि उसके (कप्पन) पास से कथित रूप से फंसाने वाली सामग्री बरामद हुई थी. वो एक प्रेस रिपोर्टर है और उसके पास से लैपटॉप और मोबाइल फोन बरामद किए गए, और दूसरी चीज़ों के अलावा उसके पास से फंसाने वाले लेख और वीडियो क्लिप्स भी बरामद हुए.’

बचाव पक्ष की दलील थी कि आलम सिर्फ अपनी टैक्सी में यात्रियों को लेकर गया था, और उसके खिलाफ किसी आतंकी संगठन से जुड़े होने, कोई फंडिंग हासिल करने, या पीएफआई या उसकी छात्र इकाई कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) के साथ किसी तरह के संबंधों के कोई आरोप नहीं थे. इसके अलावा ये भी कहा गया कि उसके पास से कोई फंसाने वाले सबूत बरामद नहीं किए गए.

अभियोजन पक्ष के अनुसार, आलम और दूसरे सह-अभियुक्त एक ऐसे संगठन के सदस्य थे, जो हाथरस में क़ानून व्यवस्था की स्थिति को भंग करना चाहता था. ये भी दलील दी गई कि हालांकि उसकी टैक्सी ओला के अंतर्गत पंजीकृत थी, लेकिन बुकिंग कैब सर्विस के ज़रिए नहीं की गई थी. अभियोजन ने ये भी कहा कि आलम ने घटना से 10 दिन पहले ही, वो टैक्सी किसी और व्यक्ति से 2,25,000 में ख़रीदी थी, और उसने ये भी कहा कि इसके लिए उसे पीएफआई-सीएफआई से पैसा मिला था.

बचाव वकील का तर्क था कि वो पैसा उसने अपने एक कज़िन से उधार लिया था, और इसी आशय का एक हलफनामा दायर किया गया था.

कोर्ट ने कहा, ‘मौजूदा मामले में, इस स्टेज पर अपीलकर्ता के खिलाफ जो एक मात्र सबूत- आरोप पत्र दायर किया गया है, उसमें कहा गया है कि घटना से कुछ कुछ दिन पहले ही, उसने मोहम्मद अनीस नाम के एक शख़्स को कार की ख़रीद के लिए 2,25,000 रुपए अदा किए, और वो दानिश नाम के व्यक्ति का रिश्तेदार है जिसका आपराधिक इतिहास रहा है, और जो सीएए-विरोधी प्रदर्शनों के दौरान दिल्ली में हुए दंगों में शामिल था.’ यहां पर सिर्फ एक कनेक्शन पाया गया, कि ये दानिश था जिसने बुकिंग के लिए आलम को फोन किया था.

न्यायमूर्तियों सिन्हा औ यादव ने कहा कि अभियोजन अपीलकर्ता के दानिश के साथ संबंध को साफ तौर से नहीं बता सका, कि अपीलकर्ता आतंकवादी गतिविधियों और आतंकवादी फंडिंग के मामले में, किसी भी तरह से उसके साथ जुड़ा था.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें : दिल्ली में हर साल मिलते हैं सैकड़ों अज्ञात शव, हर लाश के साथ जुड़ी है ट्रेजेडी, कुछ रह जाती हैं गुमनाम


 

share & View comments