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Wednesday, 20 August, 2025
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हरियाणा ने सख्त किए रिटायरमेंट के बाद सरकारी नौकरी के नियम: पैनल की मंज़ूरी ज़रूरी, 2 साल की सीमा तय

नए उम्मीदवारों के लिए नौकरी के अवसर रोकने और दोबारा नियुक्त कर्मचारियों पर वेतन खर्च को लेकर उठे सवाल.

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गुरुग्राम: हरियाणा सरकार ने रिटायरमेंट (58 साल) के बाद सरकारी कर्मचारियों की दोबारा नियुक्ति को लेकर नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं. हालांकि, इस कदम की आलोचना हो रही है क्योंकि इसका असर राज्य में नई भर्तियों पर पड़ सकता है.

सरकार का कहना है कि इन दिशा-निर्देशों का मकसद रिटायर कर्मचारियों की भर्ती की प्रक्रिया को व्यवस्थित करना है और यह सुनिश्चित करना है कि ऐसा केवल तभी हो जब इसकी वास्तव में ज़रूरत हो. सोमवार को मुख्य सचिव अनुराग रस्तोगी के दफ्ततर से जारी दिशा-निर्देशों (जिसे दिप्रिंट ने एक्सेस किया) के मुताबिक, अब सभी पोस्ट-रिटायरमेंट नियुक्तियों की जांच के लिए एक विशेष समिति बनाई जाएगी. यह नियम एक व्यक्ति या एक जैसे कई पदों के लिए लागू होगा. यह पहले की प्रक्रिया से अलग है.

दिशा-निर्देशों में यह भी साफ किया गया है कि हरियाणा में सरकारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट आयु 58 साल है. हालांकि, अपवाद की स्थिति में जैसे किसी विभाग को किसी पुराने कर्मचारी की सेवाओं की तुरंत ज़रूरत हो, तो राज्य सरकार उन्हें दोबारा नियुक्त कर सकती है. पहले भी ऐसी व्यवस्था थी, लेकिन अब नियमों में सख्त जांच-परख जोड़ी गई है ताकि इस प्रावधान का दुरुपयोग न हो.

जून और जुलाई 2018 तथा हाल ही में मई 2023 में जारी गाइडलाइंस में पोस्ट-रिटायरमेंट नियुक्ति के प्रस्तावों की जांच के लिए कोई समिति नहीं थी. उस समय विभाग अपने स्तर पर ही फैसला लेते थे, लेकिन अब मामलों को समिति के पास भेजना होगा, जो महीने में एक बार बैठक करेगी. सरकार के मुताबिक, इससे फैसले ज़्यादा निष्पक्ष और एक समान होंगे तथा केवल वास्तविक ज़रूरतों जैसे ज़रूरी सेवाओं की कमी पूरी करने के लिए ही मंज़ूरी मिलेगी, ताकि युवा अधिकारियों के प्रमोशन में बाधा न आए.

नए नियमों में एक और बड़ा बदलाव यह है कि रिटायरमेंट के बाद दोबारा नियुक्ति की अधिकतम सीमा अब दो साल तय की गई है. अगर किसी विभाग को दो साल बाद भी उस व्यक्ति की सेवाएं चाहिए होंगी, तो उन्हें कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्त करना होगा.

पिछले नियमों में यह सीमा इतनी सख्ती से लागू नहीं होती थी और कई बार सेवानिवृत्ति के बाद लंबे समय तक पुनर्नियुक्ति की अनुमति दे दी जाती थी.

दिप्रिंट से बातचीत में जानी-मानी भर्ती कार्यकर्ता और कांग्रेस नेता श्वेता धुल ने इन नई गाइडलाइन्स की आलोचना करते हुए कहा कि इससे राज्य में नई भर्तियों की संभावनाएं कम होंगी.

उन्होंने कहा, “लाखों बेरोज़गार युवा नौकरी का इंतज़ार कर रहे हैं और सरकार उनकी संभावनाओं को और कम कर रही है, एक तरह से उन लोगों की सेवानिवृत्ति को टालकर जो सुपरएन्यूएशन की उम्र पूरी कर चुके हैं.”

धुल ने आरोप लगाया कि एक तरफ हरियाणा सरकार राज्य के युवाओं को रोज़गार के लिए दूसरे देशों में भेजने की बात कर रही है क्योंकि राज्य में अवसर नहीं हैं और दूसरी तरफ खाली पदों को नई नियुक्तियों से भरने के बजाय सेवानिवृत्त कर्मचारियों को फिर से नौकरी पर रखा जा रहा है.

मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि हरियाणा में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के कर्मचारी वेतन न मिलने की वजह से चार महीने से आंदोलन कर रहे हैं.

इसी तरह, हरियाणा कौशल रोज़गार निगम के तहत काम करने वाले कुछ कर्मचारी भी वेतन में देरी की शिकायत कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, “दोनों ही मामलों में सरकार बजट की कमी का हवाला देती है, लेकिन सवाल यह है कि फिर उसके पास सेवानिवृत्त कर्मचारियों को दोबारा नौकरी देने और वेतन देने का बजट कहां से आ रहा है?”

हालांकि, हरियाणा सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि पुनर्नियुक्त कर्मचारियों को उतना पूरा वेतन नहीं दिया जाएगा जितना वे सेवानिवृत्ति से पहले पाते थे.

उन्होंने कहा, “पुनर्नियुक्त कर्मचारियों का वेतन हरियाणा सिविल सर्विसेज़ (पे) रूल्स 2016 के तहत तय होता है. इसमें यह देखा जाता है कि अगर वह कर्मचारी सेवानिवृत्त नहीं हुए होते तो उनका वर्तमान वेतन कितना होता. उसमें से उनकी पेंशन घटा दी जाती है. इस तरह उनकी कुल आय (पेंशन + पुनर्नियुक्ति का वेतन) लगभग उतनी ही होती है जितनी उस पद पर काम कर रहे नियमित कर्मचारी की आय, जिसमें नई सैलरी पर महंगाई भत्ता भी शामिल है.”


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क्या कहती हैं नई गाइडलाइन्स?

नई गाइडलाइन्स में हरियाणा सरकार के विभागों के लिए साफ नियम और शर्तें तय की गई हैं.

सबसे पहले, विभागीय अधिकारियों को यह बताना होगा कि जिस पद पर रिटायर कर्मचारी की पुनर्नियुक्ति की जा रही है, उसे जूनियर अधिकारियों को प्रमोट करके या नए लोगों की भर्ती करके क्यों नहीं भरा जा सकता. इसके अलावा, पुनर्नियुक्ति केवल उसी पूर्व कर्मचारी की हो सकती है जिसका रिकॉर्ड साफ हो यानी कोई मामला लंबित न हो और कामकाज में भी कमी न रही हो. साथ ही, यह भी ज़रूरी है कि इस नियुक्ति से बाकी कर्मचारियों के करियर पर बुरा असर न पड़े.

गाइडलाइन्स में कहा गया है, “विभागों को केवल उन्हीं मामलों में पुनर्नियुक्ति करनी चाहिए जहां सेवाएं बिल्कुल ज़रूरी हों, जैसे किसी विशेष क्षेत्र में. इसके अलावा, आवेदन आमंत्रित करते समय अधिकतम उम्र सीमा 63 साल रखी जानी चाहिए ताकि कर्मचारी 65 साल तक कम से कम दो साल और सेवा दे सके.”

हालांकि, स्वास्थ्य विभाग और कर्मचारी राज्य बीमा (ESI) से जुड़े डॉक्टरों के मामले अलग हैं. उनकी पुनर्नियुक्ति के लिए समय-समय पर उन विभागों द्वारा अलग नियम जारी किए जाते हैं.

उपरोक्त अधिकारी के मुताबिक, डॉक्टरों को आमतौर पर 65 साल तक पुनर्नियुक्त किया जाता है ताकि अस्पतालों और क्लीनिकों में स्टाफ की कमी पूरी हो सके. इससे मेडिकल सेवाओं की निरंतरता बनी रहती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां विकल्प ढूंढना मुश्किल होता है.

ध्यान देने वाली बात यह भी है कि यह बदलाव उन लोगों पर लागू नहीं होंगे जो पहले से ही पुनर्नियुक्ति पर काम कर रहे हैं.

अधिकारी ने कहा, “गाइडलाइन्स का मकसद अनुभव और नए मौक़ों के बीच संतुलन बनाना है, ताकि सरकारी कामकाज बिना रुकावट चलता रहे और यह व्यवस्था स्थायी विस्तार का ‘बैकडोर’ न बन जाए. हरियाणा में भी कई जगह स्टाफ की कमी है, ऐसे में यह नीति ज़रूरी जगहों को भरने और आम लोगों के लिए पारदर्शिता लाने में मददगार साबित हो सकती है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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