चंडीगढ़: हरियाणा में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने मंगलवार को वरिष्ठ आईएएस अधिकारी विजय सिंह दहिया को इस साल की शुरुआत में उनके खिलाफ दर्ज एक एफआईआर के सिलसिले में गिरफ्तार कर लिया है. अप्रैल में, कौशल विकास केंद्र चलाने वाले रिंकू मनचंदा से कथित तौर पर रिश्वत लेने के आरोप में पूनम चोपड़ा नाम की एक महिला को हिरासत में लिया गया था.
हरियाणा कैडर के 2001 बैच के आईएएस अधिकारी दहिया, हरियाणा कौशल विभाग, पंचकुला के आयुक्त थे, जब एसीबी ने चोपड़ा की गिरफ्तारी के बाद 20 अप्रैल को पहली बार उनसे पूछताछ की थी. उन्हें दहिया को फोन करने और उसी दिन मिली रिश्वत को सौंपने के लिए चंडीगढ़ के एक रेस्टोरेंट में आने के लिए कहा गया था. मनचंदा ने उस दिन दहिया, चोपड़ा और एक अन्य व्यक्ति को नामित करते हुए एक एफआईआर दर्ज कराई थी.
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इस साल 6 जून को दहिया की जमानत याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि “इसमें कोई दम नहीं है.”
एफआईआर दर्ज होने के बाद अधिकारी मेडिकल अवकाश पर चले गए थे.
इसके अलावा 28 जुलाई को हरियाणा सरकार द्वारा जारी पोस्टिंग एवं ट्रांसफर ऑर्डर में दहिया को कोई पोस्टिंग नहीं दी गई.
एसीबी के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि दहिया को मंगलवार को पंचकुला स्थित उनके मुख्यालय में पूछताछ के लिए बुलाया गया था और बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. बाद में उन्हें एक स्थानीय अदालत में पेश किया गया जहां उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
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मामला क्या है
दहिया की जमानत याचिका पर हाई कोर्ट के आदेश में अभियोजन पक्ष के रुख के अनुसार, एफआईआर रिंकू मनचंदा की शिकायत पर दर्ज की गई थी, जो गरीब परिवारों को कंप्यूटर में प्रशिक्षण प्रदान करने, एसी से जुड़े कार्य और ब्यूटी पार्लर कोर्स के लिए हरियाणा कौशल विकास मिशन के तहत एक भागीदार के रूप में ग्रामीण शिक्षा नामक संस्थान चलाते थे.
उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य के युवा सशक्तिकरण और उद्यमिता विभाग द्वारा उन्हें 50 लाख रुपये की राशि का भुगतान किया जाना था, लेकिन वह तीन साल से जारी नहीं किया गया है.
उन्होंने दावा किया कि उनकी मुलाकात विभाग में मुख्य कौशल अधिकारी (सीएसओ) के रूप में तैनात दीपक शर्मा – एफआईआर में नामित तीसरे व्यक्ति – से हुई थी, जिन्होंने बिलों को मंजूरी देने के लिए मनचंदा से कहा था कि अगर वह चाहते हैं कि बिल पास हो जाए तो उन्हें 5 लाख रुपये की रिश्वत देनी होगी और अगर वो बिल जल्दी चुकाने हों तो उसे पूनम चोपड़ा नाम की महिला से संपर्क करना चाहिए.
मनचंदा के अनुसार, चोपड़ा ने उनसे दहिया को 5 लाख रुपये की रिश्वत देने के लिए कहा था, “जिसमें से वह अपने बिलों को मंजूरी देने के लिए 5 प्रतिशत की सीमा तक हिस्सा लेगी”. 5 लाख में से मनचंदा ने उसे 2 लाख रुपये का भुगतान किया.
मनचंदा ने कहा कि चोपड़ा ने कथित तौर पर दहिया की ओर से उन्हें व्हाट्सएप संदेश भी भेजे थे, जिसमें पुष्टि की गई थी कि बिल का एक हिस्सा चुका दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि चोपड़ा ने उनसे कहा कि यदि वह शेष 3 लाख रुपये का भुगतान करने में विफल रहते हैं, तो वह बाकी बिलों का भुगतान नहीं करने देंगी.
शिकायतकर्ता, जिसने उनके और चोपड़ा के बीच बातचीत का ऑडियो रिकॉर्ड किया था, ने बाद में 20 अप्रैल को सतर्कता ब्यूरो को मामले की सूचना दी.
अभियोजन पक्ष ने जून में दहिया की जमानत याचिका पर दिप्रिंट द्वारा प्राप्त अपने जवाब में कहा कि सूचना प्राप्त होने के बाद, एक एफआईआर दर्ज की गई थी और चोपड़ा को इस कृत्य में पकड़ने के लिए जाल बिछाया गया था. योजना के अनुसार, उसे पंचकुला में मनचंदा से शेष राशि 3 लाख रुपये की अवैध रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया.
20 अप्रैल को पूछताछ के दौरान उसने बताया कि उसकी मुलाकात दहिया से प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत नौकरी के दौरान हुई थी. उन्होंने चंडीगढ़ के सेक्टर 8 में कैफे टोनिनो में, शाम 7.30 बजे मिलने की जगह का भी खुलासा किया यहां उन्हें पैसे सौंपने के लिए दहिया से मिलना था .
एसीबी उसके साथ उस स्थान पर पहुंची जहां दहिया पहले से ही उनका इंतजार कर रहे थे. वे एक घंटे तक रेस्टोरेंट में रहे. इसके बाद दहिया को पूछताछ के लिए एसीबी मुख्यालय ले जाया गया लेकिन बाद में उन्हें वापस जाने दिया गया.
दो दिन बाद 22 अप्रैल को दिल्ली के जनकपुरी इलाके में चोपड़ा के कार्यालय में डेस्क के दराज से 2 लाख रुपये की राशि बरामद की गई. उसी दिन सीएसओ दीपक शर्मा को गिरफ्तार कर लिया गया. वह इस मामले में सरकारी गवाह बन गया है.
याचिकाकर्ता की शिकायत ‘बड़े पैमाने पर’
दहिया की जमानत याचिका खारिज करते हुए, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने न्यायमूर्ति गुरविंदर सिंह गिल ने कहा कि याचिकाकर्ता (दहिया) की शिकायत बहुत बड़ी है.
अदालत ने कहा, “जैसा कि ‘व्हाट्सएप’ बातचीत के अंशों से पता चला…सह-अभियुक्त पूनम, हालांकि हरियाणा कौशल विभाग में कार्यरत नहीं थीं, उसे बिलों के भुगतान से संबंधित सभी घटनाक्रमों के बारे में अवगत कराया जा रहा था. जाहिर तौर पर, यह दोनों आरोपियों की मिलीभगत के कारण था कि याचिकाकर्ता बिलों के भुगतान में प्रगति के बारे में पूनम को अपडेट रख रहा था.”
अदालत ने कहा, “शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत बिल पिछले तीन वर्षों से अनुमोदन के लिए लंबित थे, लेकिन एक बार शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच सौदा हो जाने के बाद, फाइलें तेजी से आगे बढ़ने लगीं. याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता के बारह दिनों की अवधि के भीतर लगभग 11 लाख रु. के छह बिल स्वीकृत किये. ऐसे में यह ऐसा मामला नहीं है कि सह-आरोपी पूनम ने झूठा प्रतिनिधित्व करके शिकायतकर्ता को धोखा दिया था कि वह याचिकाकर्ता के माध्यम से काम करवा सकती है, लेकिन वह वास्तव में उसके साथ मिलकर काम कर रही थी. ”
इसमें कहा गया है कि हालांकि दहिया को 20 अप्रैल को पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया था, “इसे उसकी बेगुनाही का संकेत नहीं माना जा सकता”.
एचसी ने कहा, “बल्कि, यह दर्शाता है कि जांच एजेंसी ने याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने के लिए कोई भी कार्यवाही शुरू करने से पहले आश्वस्त होना चाहती थी और याचिकाकर्ता के खिलाफ पर्याप्त सबूत एकत्र किए.”
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