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Friday, 8 November, 2024
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हरियाणा ने कहा बढ़ती मौतों के लिए आंदोलनकारी जिम्मेदार तो किसान बोले-कोविड ‘सरकार की साज़िश’

किसान बारी-बारी से टिकरी और कुंडली सीमाओं की यात्रा करते हैं, अधिकारियों का कहना है कि वे गांवों में कोविड ला रहे हैं. लेकिन प्रदर्शनकारियों का दावा है कि कोविड 'काल्पनिक' है.

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जुलाना/कैथल: पिछले एक महीने में हरियाणा में जींद ज़िले के, जुलाना ब्लॉक में फैले 30 गांवों में, कोविड जैसे लक्षणों के साथ, 63 लोगों की मौत हो चुकी है, और दूसरे बहुत से लोग बीमार पड़ गए हैं.

26 हज़ार की आबादी वाला जुलाना, जिसमें अधिकतर लोग किसान हैं, जो हरियाणा और दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर, कृषि क़ानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन में, प्रमुखता से शामिल रहे हैं, और स्वास्थ्य संकट के बावजूद, यहां से हर हफ्ते बारी बारी से, कम से कम 15 लोगों को प्रदर्शन स्थल पर भेजा जाता है.

अधिकारियों का कहना है कि ‘ग्रामीण हरियाणा में कोविड फैलने का, ये एक प्रमुख कारण बन गया है’.

लेकिन किसानो के मन में, पिछले साल नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा पास किए गए, तीन कृषि क़ानूनों की वजह से, अपनी आजीविका छिन जाने का जो डर है, वो कोविड-19 से मरने के डर से कहीं ज़्यादा बड़ा है, और यही कारण है कि वो, पिछले छह महीने से आंदोलन में लगे हुए हैं.

उनकी नज़र में, कोरोनावायरस उनके विरोध को कमज़ोर करने, और तोड़ने के लिए, ‘सरकार की साज़िश’ के सिवाय कुछ नहीं है.

किसानों के एक बड़े संगठन, भारतीय किसान यूनियन के एक सदस्य, नरेंदर ढाण्डा ने कहा, ‘वो सिर्फ हमें दबाने और विरोध को ख़त्म करने के लिए, ‘कोरोना, कोरोना’ चिल्ला रहे हैं’.

उन्होंने कहा, ‘कोई वायरस, कोई बीमारी, हमें रोक या तोड़ नहीं सकती. ज़रूरत पड़ी तो हम 2024 तक भी प्रदर्शन स्थल पर बैठेंगे. ये वायरस हमें तोड़ने की साज़िश के अलावा कुछ नहीं है. वो हमें डराने की कोशिश कर रहे हैं, चूंकि वो चाहते है कि हम सब आइसोलेशन में चले जाएं, और मैदान छोड़ दें, लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे’.

ढाण्डा ने कहा, ‘हम अपनी रोज़ी-रोटी के लिए ये विरोध कर रहे हैं. हमें उसके खो जाने का डर है; हमें मौत का डर नहीं है. अगर वो कृषि क़ानूनों को वापस नहीं लेते, तो हम वैसे भी मर ही जाएंगे, तो फिर कोई वायरस हमें कैसे रोक पाएगा? जिस दिन सरकार इन क़ानूनों को वापस ले लेगी, उस दिन हम घर लौट जाएंगे’.


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DGP ने कहा सुपर-स्प्रैडर्स हैं सीमा पर प्रदर्शन

हरियाणा के सभी गांवों और ज़िलों के किसानों ने, दिल्ली सीमा पर प्रदर्शन स्थल जाने के लिए, एक साप्ताहिक ‘ड्यूटी रोस्टर’ बना लिया है. हर हफ्ते 10 लोगों का एक ग्रुप गांव से निकल जाता है. जब वो घर लौटता है तो 10 लोगों का दूसरा ग्रुप, बॉर्डर पर उनकी जगह ले लेता है.

लेकिन, हरियाणा के पुलिस महानिदेशक मनोज यादव ने कहा, कि टिकरी और कुण्डली जैसे बॉर्डर्स सुपर-स्प्रैडर्स बन रहे हैं, और गांवों को प्रभावित कर रहे हैं.

यादव ने दिप्रिंट से कहा, ‘हर हफ्ते 10 किसानों का एक समूह इन बॉर्डर्स पर जाता है, और एक हफ्ते बाद गांव लौट आता है. उनके लौटने के बाद अगली खेप जाती है. संक्रमण के इतने तेज़ी से फैलने, और मौतों की बढ़ती संख्या के बाद भी, उन्होंने ये काम बंद नहीं किया है, और (कोविड) हॉटस्पॉट्स पैदा कर दिए हैं’.

जब अधिकारियों का ध्यान इन गांवों में, मौतों की संख्या में असामान्य वृद्धि पर गया, तो हरियाणा पुलिस ने उन इलाक़ों से आंकड़े जमा किए, जहां से किसान लगातार दिल्ली के प्रदर्शनों के चक्कर लगा रहे थे.

आंकड़ों के अनुसार, 11 अप्रैल से 10 मई तक, सोनीपत के 13 गांवों में, 189 लोगों की मौतें हुईं, जहां हर गांव से पांच या छह किसान, बॉर्डर्स तक का सफर कर रहे थे. इसी तरह झज्जर में भी, नौ गांवों में 116 मौतें दर्ज की जा चुकी हैं, जबकि हिसार के नौ गांवों में, 114 लोग मारे जा चुके हैं, और रोहतक के सिर्फ तीन गांवों में, 73 लोग मर चुके हैं.

The community health centre in Julana block, which has seen over 60 deaths since 11 April | Photo: Reeti Agarwal | ThePrint
जुलाना ब्लॉक में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, जिसमें 11 अप्रैल से अब तक 60 से अधिक मौतें हुई हैं/रीति अग्रवाल/दिप्रिंट

डीजीपी यादव ने कहा, ‘जब हमने देखा कि हरियाणा के ग्रामीण हिस्सों में, मौतों की संख्या आसामान्य रूप से बढ़ रही है, तो हमने इन इलाक़ों से आंकड़े एकत्र किए, और पता चला कि इस संक्रमण को फैलाने में, किसानों का भी योगदान है. जिन गांवों से बहुत से किसान, अभी भी बॉर्डर्स पर जा रहे हैं, वहां से कोविड जैसे लक्षणों से, मरने वालों की ख़बरें बढ़ रही हैं’.

उन्होंने ये भी कहा कि सीमाओं से लोग संक्रमण लेकर अपने गांवों में न लौटें, ये सुनिश्चित करने के लिए अधिकारियों ने, टिकरी बॉर्डर पर,जो झज्जर ज़िले में है, और कुंडली बॉर्डर पर, जो सोनीपत में है, टेस्टिंग कैंप्स लगाने की कोशिश की. लेकिन किसानों ने नमूने देने से मना कर दिया.

यादव ने कहा, ‘हमारी मुख्य चिंता ये है कि गांवों में मौतें बढ़ रही हैं. उन्हें रोकने के लिए ज़िला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक ने, बॉर्डर्स के आसपास टेस्टिंग शिविर लगाने की कोशिश की, ताकि गांवों को लौट रहे किसानों की जांच की जा सके. विचार ये था कि संक्रमित होने की सूरत में उन्हें रोक लिया जाए, जिससे वो वापस घरों पर जाकर संक्रमण न फैलाएं. लेकिन उन्होंने टेस्ट नहीं होने दिए’.

‘दरअसल, किसान नेताओं ने उन्हें फरमान जारी कर दिया, कि किसी को अपनी जांच नहीं करानी है. क्या ये ज़िम्मेदाराना बर्ताव है?’

यादव ने माना कि मौतों के बढ़ने के पीछे, और भी कारण हो सकते हैं, क्योंकि बहुत से गांव वासियों का, दिल्ली भी आना-जाना लगा रहता है. लेकिन उन्होंने कहा कि एक ‘निरंतर गतिविधि’, जो ग्रामीणों के लिए जोखिम पैदा कर रही है, वो किसानों का बॉर्डर्स पर आना जाना है.

वायरस ‘एक साज़िश’

इस बीच किसानों को इस बात का पूरा यक़ीन है, कि कोरोनावायरस एक साज़िश के सिवाय कुछ नहीं है.

कैथल ज़िले के पाई गांव के किसान, राम मेहर सिंह का मानना है, कि कोविड-19 और कुछ नहीं बस सरकार की एक चाल है, कि ‘गिरती अर्थव्यवस्था जैसी इसकी विफलताओं से ध्यान भटकाया जाए’ और ‘किसानों के विरोध को कुचल दिया जाए’.

उन्होंने कहा कि गांवों में बढ़ती मौतें, ‘वायरल बुख़ार, कैंसर, और अधिकारियों द्वारा फैलाई गई घबराहट से हो रही हैं’.

सिंह ने, जिन्हें कोविड-19 से मरे लोगों के अंतिम संस्कार में, अलग प्रोटोकोल इस्तेमाल होने की जानकारी नहीं है, आरोप लगाया कि घबराहट फैलाने के लिए, प्राकृतिक मौतों को भी कोविड मौतों में गिना जा रहा है, और शवों को उनके परिवारों को भी नहीं दिया जा रहा, जिससे वो जांच सकें कि उस व्यक्ति की मौत, वास्तव में संक्रमण से हुई कि नहीं.

उन्होंने कहा, ‘मैं एक हफ्ते के लिए दिल्ली गया, वहां पर रुका, और तीन बॉर्डर्स पर गया, और मैं अभी भी ज़िंदा हूं. मुझे कुछ क्यों नहीं हुआ? ये सिर्फ सरकार की धोखाधड़ी है. ये एक साज़िश है कि लोगों में डर फैलाया जाए, और नीची जीडीपी (विकास दर) जैसी सरकार की नाकामियों से, उनका ध्यान भटकाया जाए’.

किसान ने आगे कहा, ‘लोगों में घबराहट फैलाने के लिए, प्राकृतिक मौतों को भी कोविड मौतों में गिना जा रहा है. गांव में जब कोई मरता है, तो वो उसे कोविड पॉज़िटिव घोषित कर देते हैं, और शव को लौटाते भी नहीं. हमें कैसे पता चलेगा कि वो व्यक्ति वास्तव में कोविड से मरा कि नहीं? ये सब एक धोखा है’.

Farmers from Julana block and adjoining villages of Hisar protesting at Khatkar toll plaza | Photo: Reeti Agarwal | ThePrint
जुलाना प्रखंड व हिसार के आसपास के गांवों के किसान खटकर टोल प्लाजा पर धरना प्रदर्शन करते हुए/रीति अग्रवाल/दिप्रिंट

ऊपर हवाला दिए गए बीकेयू नेता ढाण्डा, उन बहुत से लोगों में से हैं, जो कोरोनावायरस के लिए टीका लगवाने के विरोधी हैं. उन्होंने कहा कि इससे बीमार हो सकते हैं, या मौत भी हो सकती है, जिससे किसानों का आंदोलन कमज़ोर पड़ जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘अगर हम इंजेक्शन लेते हैं, तो हमारा आंदोलन कमज़ोर पड़ जाएगा. जिसने भी इंजेक्शन लिया, वो या तो बीमार पड़ा है, या उसे बुख़ार हुआ, या अस्पताल पहुंच गया, या उसकी मौत हो गई. हम ये जोखिम नहीं ले सकते. अगर हम अस्पताल पहुंच गए, तो धरने पर कौन बैठेगा? ये इंजेक्शन्स भी एक तरीक़ा हैं, हमें बीमार करने और बॉर्डर से हटाने का’.

बीकेयू के एक अन्य सदस्य विजय पाल ने आगे कहा, कि कोरोनावायरस कुछ और नहीं बस ‘मन का एक वहम है’.

पाल ने कहा, ‘ये बीमारी काल्पनिक है. मन के वहम का कोई इलाज नहीं होता. हम वो लोग हैं जो ताज़ा देसी घी खाते हैं, गाय का दूध पीते हैं, और मज़बूत हैं. कोई वायरस किसी आंदोलनकारी को नहीं छू सकता’.

लेकिन उनके रवैये से मेडिकल प्रोफेशनल्स के बीच चिंता है, जो गांवों में बढ़ते मामलों के पीछे का कारण, इसी अज्ञानता को मानते हैं.

जुलाना से सरकारी क्षेत्र के ऐसे ही एक प्रोफेशनल ने, नाम छिपाने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘यहां पर बहुत अज्ञानता है. गांव वाले इस वायरस में ही यक़ीन नहीं रखते, जबकि उनमें से बहुत लोग इससे मर रहे हैं. वो टेस्ट कराने से झिझकते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें पॉज़िटिव बताकर अलग कर दिया जाएगा. वो बिना मास्क लगाए घूमते हैं, सैनिटाइज़र्स का इस्तेमाल नहीं करते, और कोई एहतियात नहीं करते, क्योंकि उन्हें लगता है कि कोरोनावायरस कोरी कल्पना है. इससे हमें बहुत निराशा होती है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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