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Wednesday, 20 August, 2025
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हरियाणा सरकार ने वन की परिभाषा अधिसूचित की

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चंडीगढ़, 20 अगस्त (भाषा) हरियाणा सरकार ने वन के ‘‘शब्दकोशीय अर्थ’’ को परिभाषित किया है, तथा वन विशेषज्ञ ने चिंता व्यक्त की है कि इस परिभाषा से अरावली के संभावित वन का ज्यादातर भाग वन संरक्षण अधिनियम के दायरे से बाहर हो जायेगा।

हरियाणा के पर्यावरण, वन एवं वन्यजीव विभाग ने वन की परिभाषा अधिसूचित कर दी है।

राज्य सरकार ने 18 अगस्त की अधिसूचना में ‘‘वन शब्द को शब्दकोष के अर्थ के अनुसार परिभाषित किया है।’’

अधिसूचना में कहा गया है कि भूमि का कोई टुकड़ा ‘‘शब्दकोश अर्थ के अनुसार वन’’ माना जाएगा, बशर्ते यह कुछ शर्तें पूरी करता हो।

अधिसूचना में कहा गया है कि परिभाषा के अनुसार वन क्षेत्रों में न्यूनतम आच्छादित घनत्व 40 प्रतिशत होना चाहिए तथा पृथक होने पर कम से कम पांच हेक्टेयर क्षेत्र में फैला होना चाहिए, या सरकार द्वारा अधिसूचित वनों से सटे होने पर दो हेक्टेयर क्षेत्र में फैला होना चाहिए।

आच्छादित घनत्व का मतलब है किसी जंगल या वन क्षेत्र में पेड़ों के पत्तों और टहनियों से ढके हुए क्षेत्र का अनुपात।

हालांकि सरकार द्वारा अधिसूचित वनों के बाहर स्थित सभी रैखिक/कॉम्पैक्ट/कृषि-वानिकी वृक्षारोपण और बागों को इस परिभाषा के अंतर्गत वन नहीं माना जाएगा।

अधिसूचना में कहा गया है, ‘‘भूमि का एक टुकड़ा ‘शब्दकोश अर्थ के अनुसार वन’ माना जाएगा यदि वह निम्नलिखित शर्तों को पूरा करता है: यदि यह अलग-थलग है और इसका न्यूनतम क्षेत्रफल पांच हेक्टेयर है; तथा यदि यह सरकार द्वारा अधिसूचित वनों के समीप है तो इसका न्यूनतम क्षेत्रफल दो हेक्टेयर है।’’

अधिसूचना के अनुसार, ‘‘इसका आच्छादित घनत्व 0.4 या उससे अधिक है। बशर्ते कि, सरकारी अधिसूचित वनों के बाहर स्थित सभी रैखिक/सघन/कृषि-वानिकी वृक्षारोपण और बाग-बगीचों को उपरोक्त परिभाषा के अंतर्गत वन नहीं माना जाएगा।’’

इससे पहले, उच्चतम न्यायालय ने दिसंबर 1996 के अपने आदेश को दोहराया था, जिसमें राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा गया था कि वे ‘‘वन’’ की परिभाषा के अनुसार कार्य करें, जैसा कि शीर्ष न्यायालय ने 1996 में टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ के मामले में दिए गए फैसले में निर्धारित किया था।

अधिकारियों ने बताया कि ‘परिभाषा’ के अंतर्गत आने वाली जमीन की पहचान की जाएगी। राज्य सरकार द्वारा इस उद्देश्य के लिए पहले ही दो समितियां गठित की जा चुकी हैं, जिनमें से एक जिला स्तर पर और दूसरी राज्य स्तर पर है।

रिपोर्ट केंद्र को सौंपी जाएगी, जो इसे उच्चतम न्यायालय के समक्ष रखेगी।

इस बीच, वन विश्लेषक चेतन अग्रवाल ने बुधवार को कहा, ‘‘यह दुख की बात है कि हरियाणा ने गोवा जैसे राज्यों का अनुसरण करते हुए किसी क्षेत्र को वन के रूप में चिह्नित करने के लिए न्यूनतम 40 प्रतिशत वन आवरण की सीमा तय कर दी है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘कम से कम अरावली पहाड़ियों में, खुले वन (10-40 प्रतिशत) और झाड़ीदार (0-10 प्रतिशत) श्रेणियों को शब्दकोश के अर्थ के अनुसार वन माना जाना चाहिए था, और राज्य के बाकी हिस्सों में 10 प्रतिशत की सीमा होनी चाहिए थी।’’

अग्रवाल ने दावा किया, ‘‘वन आवरण की सीमा 40 प्रतिशत रखने का निर्णय, अरावली के संभावित वन क्षेत्र को वन संरक्षण अधिनियम के संरक्षण से वंचित कर देगा तथा उन्हें नगर एवं ग्राम नियोजन तथा खनन विभागों और उनके ग्राहकों के लाइसेंसों के लिए खोल देगा।’’

उन्होंने कहा कि दो और पांच हेक्टेयर की न्यूनतम क्षेत्र सीमा भी ‘‘ऐसे शुष्क राज्य के लिए अनुचित रूप से अधिक है’’ और इसे क्रमशः एक और दो हेक्टेयर रखा जाना चाहिए था।

भाषा

देवेंद्र प्रशांत

प्रशांत

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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