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Sunday, 22 December, 2024
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हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को, संदिग्ध के दायरे से अलग कर देखें. वहां गिरोह, बंदूकें और भगवान हैं

हाल के सप्ताहों में खालिस्तानियों की हत्याएं संभावित भारतीय भागीदारी के बारे में सीधे तौर पर सवाल उठाती है.

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वे मुझे मारना चाहते हैं, वे मेरी जिंदगी जीना चाहते हैं,” एक शोक सभा में ऐसी बातें की जा रही हैं, ”विपक्षी लोग फोन पर बात कर रहे हैं, नहीं, क्या इससे मेरे भाई और मुझपर गलत बात फैलाई जा रही है.” ऐसे गाने और रंग रूप शिकागो या फिर लंदन की सड़कों पर खूब दिखाई देते हैं जिसमें कोई पंजाबी इसे खूब गाता है. पहले ये गाने हिट मैन एकेन एनिग्बो द्वारा मारे गए ब्रदर्स कीपर गैंग के प्रमुख गविंदर ग्रेवाल के लिए बनाए गए जिसमें उसके प्रतिद्वंद्वी रणदीप कांग की हत्या का बदला लेने के बाद बजाया गया था.

पिछले हफ्ते, जब हजारों लोग हरदीप सिंह निज्जर के दाह संस्कार में शामिल हुए, जिसके बारे में भारतीय अधिकारियों का दावा है कि वह पंजाब में सक्रिय आतंकवादी नेटवर्क का केंद्र था, तो इस बात पर चर्चा न के बराबर हुई कि कैसे खालिस्तान आंदोलन ने दो महाद्वीपों में फैली एक क्रूर गिरोह संस्कृति को जन्म दिया है.

हालांकि, ऐसे दावे किए गए हैं कि निज्जर की हत्या भारत की इंटेलीजेंस सर्विस द्वारा की गई थी, कुछ लोगों का कहना है कि उसकी हत्या के कारण घरेलू भी हो सकते हैं: कनाडा में अच्छी तरह से वित्त पोषित सिख धार्मिक संस्थानों पर नियंत्रण के लिए एक टॉक्सिक वार चल रहा है, जो तेजी से शक्तिशाली आपराधिक नेटवर्क के माध्यम से शुरु किया गया है.

इस लड़ाई ने करोड़पति व्यवसायी और पहले आतंकवादी रहे और बाद में पीएम मोदी समर्थक बने रिपुदमन मलिक को निज्जर के खिलाफ खड़ा कर दिया था. पिछले साल, हमलावरों द्वारा मलिक को माफिया शैली में फांसी दिए जाने से कुछ महीने पहले, निज्जर ने सार्वजनिक रूप से अपने प्रतिद्वंद्वी को गद्दार कहा था और मांग की थी कि उसे सबक सिखाया जाए. उसके पुराने पार्टनर और बिजनेस एसोसिएट्स ने भी मलिक जिस तरह से अपने बिजनेस, खालसा क्रेडिट यूनियन, सतनाम एजुकेशन ट्रस्ट और पैपिलॉन इम्पोर्ट्स को चला रहा था इसलिए खुद को पीड़ित माना.

भले ही हम हत्या के वास्तविक कारणों को कभी नहीं जान पाएंगे, लेकिन उनकी समानताएं चौंकाने वाली हैं: निज्जर को सिर में गोली मार दी गई थी जब वह पार्किंग में किसी का इंतजार कर रहा था – ऐसा ही कुछ मलिक की हत्या की परिस्थितियों के दौरान भी हुआ था.

वह प्लंबर जो खालिस्तान के लिए लड़ा

10 फरवरी 1997 को एक फर्जी पासपोर्ट पर टोरंटो के पियर्सन हवाई अड्डे पर उतरा रवि शर्मा, जो निज्जर था, जिसने वहां टोरंटों उतरते ही पुलिस पर उसे उत्पीड़ित करने का आरोप लगाया और शरण दिए जाने का दावा किया. अपने भाई जतिंदर सिंह की गिरफ्तारी के बाद, निज्जर ने दावा किया कि पंजाब पुलिस द्वारा उसे बार-बार प्रताड़ित किया गया. उन्होंने अधिकारियों को रिश्वत दी, अपने बाल कटवा लिए और उत्तर प्रदेश में एक रिश्तेदार के घर में छिपे.

रिपोर्टर स्टीवर्ड बेल लिखते हैं, उसकी कहानी से कनाडाई इमीग्रेशन अधिकारियों को आश्वस्त नहीं हुए. एक मेडिकल रिपोर्ट जो कथित तौर पर निज्जर के दावों का समर्थन करती थी कि उसके “अंडकोष, [sic.]” में बिजली का झटका दिया गया था, अधिकारियों को ये कहानी सही नहीं लग रही थी और पुलिस की कड़ी पूछताछ के बाद निज्जर बार-बार बयान बदलता रहा.

उसके शरण के दावे को ग्यारह दिन बाद खारिज कर दिया गया जिसके बाद, उसने एक नया दावा पेश किया, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश कोलंबिया निवासी अपनी नई पत्नी के साथ कनाडा में रहने के अधिकार मांगा. फिर, इमीग्रेशन के अधिकारियों ने इसे सुविधा का विवाह मानते हुए याचिका खारिज कर दी. अदालतों ने भी निज्जर की अपील खारिज कर दी. फिर, किन परिस्थितियों में निज्जर को 2001 के बाद नागरिकता मिली वो अभी तक पता नहीं चल सका है.

कनाडा के अपने शुरुआती वर्षों में, निज्जर ने अपना सिर झुकाकर रखा और एक छोटा सा प्लंबिंग व्यवसाय चलाया. हालांकि, 2013 से वह तेजी से खालिस्तान समर्थक समूहों में शामिल हो गया, और 2013 में जिनेवा की यात्रा करके संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से 1984 के दंगों को नरसंहार के रूप में स्वीकार करने के लिए कहा. अगले वर्ष, उन्होंने खालिस्तान पर वैश्विक जनमत संग्रह कराने की योजना की घोषणा करते हुए एक पत्र पर हस्ताक्षर किए.

भारतीय पुलिस और ख़ुफ़िया एजेंसी के अनुसार, निज्जर भी आतंकवाद में शामिल हो गया. अधिकारियों का कहना है कि उसका नाम पहली बार 2007 में लुधियाना में श्रृंगार मूवी थियेटर में हुए बम विस्फोट की जांच के सिलसिले में सामने आया था. वह अभियोजन विफल हो गया, जिसमें तीन कथित अपराधी बरी हो गए, और चौथे की जेल में रहते हुए ही मृत्यु हो गई. कुछ कनाडाई कानून-प्रवर्तन अधिकारियों का मानना है कि निज्जर पर मुकदमा चलाने के प्रयासों ने उनके शरण के दावे को मजबूत किया होगा.

हालांकि, निज्जर से जुड़े आतंकवाद के मामले बड़ी संख्या में आरोप सामने आते रहे. उन्हें पटियाला में एक मंदिर पर बमबारी की जांच में नामित किया गया था, और 2015 में पंथ नेता पियारा सिंह भनियारा की हत्या के प्रयास का आरोप लगाया गया था, जो गुरु ग्रंथ साहब के दलित-केंद्रित विकल्प के लेखक थे, जिसे उन्होंने भवसागर ग्रंथ कहा था. निज्जर पर 2015 में प्रतिद्वंद्वी पंथ, डेरा सच्चा सौदा के एक अन्य सदस्य की हत्या करने का भी आरोप लगाया गया था.

सरकारी सूत्रों का कहना है कि पंजाब पुलिस और इंटेलिजेंस ब्यूरो ने भारत में हमले कराने के लिए गैंगस्टर अर्शदीप ‘अर्श दल्ला’ सिंह के साथ गठजोड़ करने के लिए कनाडा में संगठित अपराध समूहों के बीच संबंधों का इस्तेमाल किया. माना जाता है कि अर्शदीप कनाडा में रहता है, जहां वह 2017 में पर्यटक वीजा पर यात्रा के दौरान गायब हो गया था.


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कट्टरवादी परंपरावादियों से मुकाबला करते हैं

जब से निज्जर कनाडा पहुंचा था, प्रवासी राजनीति तेजी से उथल-पुथल भरी हो गई थी, युवा कट्टरपंथियों की एक नई पीढ़ी परंपरावादियों से मुकाबला कर रही थी. 1996 में मंदिर के झगड़े में तेजी आई और फिर कई मामले सामने आए जिसमें कई और चीजें भी सामने आईं, खासकर इस बात पर कि क्या बुजुर्ग लोगों को कुर्सियों और मेजों पर बैठकर लंगर समुदाय का भोजन साझा करना चाहिए, जैसा कि वे सड़क के पार मैकडॉनल्ड्स में खाते थे, या केवल लंबे समय तक फर्श पर बिछी चटाई पर ही. कनाडा भर के गुरुद्वारों और भारत के कुछ गुरुद्वारों में लंबे समय से यही प्रथा चली आ रही थी.

एक टेबल से शुरू हुई बहस एक बड़े विवाद में बदल गई, जिसमें एक तलवार का इस्तेमाल एक पीड़ित के शरीर को काटने के लिए किया गया और दूसरे व्यक्ति की बाजू में वार किया गया. एक किशोरी के सिर पर रसोई के उपकरण से वार किया गया.

अकाल तख्त के दक्षिणपंथी जत्थेदार रणजीत सिंह द्वारा जारी आदेश में कहा गया कि यह वह संस्था है जिसे श्रद्धालु अपने लौकिक और आध्यात्मिक अधिकार के अंतिम स्रोत के रूप में देखते हैं यहां पर कुर्सियों के उपयोग पर प्रतिबंध रहेगा और फिर प्रतिबंध लगा दिया गया. वैंकूवर में रॉस स्ट्रीट जैसे कुछ गुरुद्वारों में, सफल उम्मीदवारों ने कनाडाई सिख समुदाय की इच्छा से अपनी वैधता का दावा किया.

कट्टरपंथी, जो चुनाव हार गए थे, ने कई साल पहले ही गुरुद्वारे के प्रबंधन का कार्यभार संभालना शुरू कर दिया था, उन्होंने दीवारों पर प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारों सहित मारे गए आतंकवादियों की तस्वीरें लगानी शुरू कर दी थीं.

व्यवसायी हरमोहिंदर सिंह बैंस जैसे उदारवादी सिख – जिन्होंने अपनी दाढ़ी मुंडवा ली थी और काउबॉय जूते पसंद करते थे – काफा डरो हुए थे. हरमोहिंदर सिंह बैंस ने पत्रकार एंटनी डीपाल्मा से कहा, “यह टेबल और कुर्सी का मुद्दा नहीं है.” “पूरी बात सत्ता, अहंकार और पैसे के बारे में है.”

कनाडाई और यूनाइटेड किंगडम प्रवासी भारतीयों में इसी तरह की बहसें चल रही थीं. एक गुरुद्वारे में, सदस्यों ने एक प्रस्ताव पर बहस की, जिससे सिगरेट और शराब बेचने वाली छोटी दुकानें चलाने वाले सिखों को मंडली में शामिल होने की अनुमति मिल जाती.

उदारवादी अधिकतर तर्क हार गए. कश्मीर सिंह धालीवाल और बलवंत सिंह गिल, जिन्होंने अकाल तख्त की अवहेलना की थी और बुजुर्गों और विकलांगों के लिए लंगर की व्यवस्था की थी, उन्हें अकाल तख्त ने बहिष्कृत कर दिया था. पंद्रह साल बाद, वे माफी के लिए अकाल तख्त पहुंचे.

गिरोह, बंदूकें और भगवान

1990 के दशक के मध्य से, लगभग उसी समय जब गुरुद्वारों में खालिस्तान की बहस छिड़नी शुरू हुई, पंजाबी मूल के गैंगस्टरों की एक नई पीढ़ी ने भी देश के अपराध परिदृश्य को बदलना शुरू कर दिया. रंजीत सिंह दोसांझ और जिमशेर सिंह दोसांझ भाई कोकीन वितरण पर नियंत्रण को लेकर गैंगलैंड वॉर में जान लेने वाले पहले लोगों में से थे. उनका कथित हत्यारा, भूपिंदर सिंह जोहल, कुछ युवाओं के लिए जीवनशैली का प्रतीक बन गया – लेकिन अंततः एक नाइट क्लब के बाहर उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई.

एक पूर्व पुलिस अधिकारी ने शोधकर्ता लुईस पगलियारो और ऐनी मैरी पगलियारो को बताया कि गुरुद्वारा सत्ता-संघर्ष गिरोहों को पानी देने वाली सहायक नदी बन गई है. “प्रसिद्ध कट्टरपंथियों के लिए यह असामान्य बात नहीं थी कि वे दिन में मंदिर के पुजारियों और वरिष्ठ समुदाय के नेताओं की प्रशंसा और आशीर्वाद लेते थे और फिर रात में उनकी आंखें मूंद लेते थे क्योंकि वही युवा नशीली दवाओं की तस्करी करते थे.”

खालिस्तान ने नई पीढ़ी की सांस्कृतिक चिंताओं को दूर करने के लिए एक भाषा प्रदान की – भले ही गिरोह के कुछ सदस्य व्यक्तिगत रूप से धार्मिक रूप से चौकस थे. दरअसल, जैसा कि रेनू बख्शी ने कहा, पंजाबी गिरोह के कई सदस्य अच्छे परिवारों से आते थे, जो उनके हिंसक व्यवहार को मर्दाना मानते थे.

पिछले साल, ब्रिटिश कोलंबिया में पुलिस द्वारा नामित ग्यारह सबसे खतरनाक अपराधियों में से नौ के पंजाबी सरनेम थे जो एक चौंकाने वाली संख्या था, यह देखते हुए कि प्रांत की आबादी में सिर्फ 6.4 प्रतिशत ही सिख हैं.

कनाडा के गिरोहों ने घर पर भी एक महत्वाकांक्षी संस्कृति को जन्म दिया. 2005 में संयुक्त राज्य अमेरिका में नशीली दवाओं के आरोप में पकड़े गए हरजीत मान, जसदेव सिंह और सुखराज धालीवाल के बारे में पंजाब में उनके गांव के निवासियों ने बताया था कि वे धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों के लिए बड़े दानदाता थे. गिरोह के नाम अक्सर पंजाब गांव से संबंधित होते थे जैसे – ढाक-दोहरे, संघेरा, मल्ही-बुट्टर.

हाल के सप्ताहों में खालिस्तानियों की बड़ी संख्या में हत्याएं संभावित भारतीयों की भागीदारी के बारे में सीधेतौर पर सवाल उठाती हैं – लेकिन संभावना यह भी है कि कम से कम कुछ हत्याओं का संबंध फ्रैक्टिसाइडल गिरोह-विश्व नरसंहार से है. हरविंदर सिंह ‘रिंदा’ की लाहौर में नशीली दवाओं के अत्यधिक सेवन से मृत्यु हो गई. हरमीत सिंह, जिन्हें ‘हैप्पी पीएचडी’ के नाम से भी जाना जाता है, की भी लाहौर में नशीले पदार्थों के सौदे में गड़बड़ी के बाद गोली मारकर हत्या कर दी गई. परमजीत सिंह पजवार की लाहौर में सन फ्लावर हाउसिंग सोसाइटी में उनके घर के बाहर बंदूकधारियों ने हत्या कर दी थी.

निज्जर की तरह, विद्वान अजय साहनी ने कहा, इनमें से प्रत्येक व्यक्ति बंदूक चलाने, नशीले पदार्थों की तस्करी और जबरन वसूली में लगा हुआ था – ऐसे उद्यम जो भारत की खुफिया सेवाओं से परे, कई संभावित हत्यारों को मकसद देते थे.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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