सांगली: महाराष्ट्र के कई अच्छे पुस्तकालय पिछले 6 महीनों से अनुदान न मिलने के कारण पहले से ही मुश्किलों का सामना कर रहे थे. लेकिन, कोरोना-काल में लंबे समय से जारी लॉकडाउन और पाठक सदस्यों की अनुपस्थिति ने उनकी कमर ही तोड़ दी है.
राज्य के अधिकतर पुस्तकालयों में सदस्यों द्वारा शुल्क जमा न करने और आय के अन्य स्रोतों के लगभग बंद होने से यह स्थिति पैदा हुई है. लिहाजा, महानगरों सहित दूर-दराज के कुछ महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक पुस्तकालय भारी संकट में हैं.
मुंबई मराठी संग्रहालय के अधीक्षक सुनील कुबल बताते हैं कि कई पुस्तकालयों के लिए सदस्य पंजीकरण की दृष्टि से अप्रैल, मई और जून महीनों की अवधि महत्त्वपूर्ण होती है. लेकिन, इसी दौरान सभी स्थानों पर लॉकडाउन प्रभावी था. यही वजह है कि अधिकतर पुस्तकालयों को सदस्य पंजीकरण से होने वाली आय प्राप्त नहीं हो सकी. पिछले चार महीनों से पुस्तकालय और उनके अध्ययन-कक्ष बंद होने के कारण हालात बद से बदतर होते चले गए.
सुनील कुबल कहते हैं, ‘सदस्यता से होने वाली आमदनी तो एक कारण है ही. श्राद्ध और गणेशोत्सव के अवसर पर पुस्तकालयों को मिलने वाले दान भी लगभग बंद हो गए हैं. इसलिए, जब पुस्तकालय शुरू होंगे तो सदस्यों से दान के लिए अपील की जाएगी.’
इसी तरह, पुस्तकालय से जुड़े कई कार्यकर्ताओं को भी लगता है कि यदि इस दिशा में बेहतर जनसंपर्क किया जाए तो खासी वित्तीय सहायता प्राप्त की जा सकती है.
दादर सार्वजनिक पुस्तकालय के मुख्य कार्यकारी अधिकारी दत्ता कामठे के मुताबिक पुस्तकालय के पास फिलहाल कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने के लिए पैसे नहीं हैं. वजह, महानगर पालिका ने उन दो सभागारों को अपने अधिकार में ले लिया है जो पहले पुस्तकालय की आमदनी का एक प्रमुख स्रोत हुआ करते थे.
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ग्रामीण पुस्तकालयों के अस्तित्व पर संकट
ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में कई पुस्तकालय अस्तित्व के सवाल से जूझ रहे हैं. उदाहरण के लिए, चिपलुन के लोकमान्य तिलक वाचन मंदिर में सदस्यों की संख्या डेढ़ हजार हैं. इस पुस्तकालय के प्रबंधकों के मुताबिक उन्हें साढ़े तीन सौ आजीवन सदस्यों सहित अन्य सदस्यों से शुल्क के रूप में 20 से 30 रुपये हर महीने प्राप्त होता रहा है. यहां हर महीने न्यूनतम 40 सदस्य बनते रहे हैं. वर्तमान में सदस्यता बंद होने से इस पुस्तकालय को 55 हजार रुपए का नुकसान हुआ है.
इस तरह के कई पुस्तकालय हैं जो लोगों की भागीदारी और प्रबंधकों की वर्षों की मेहनत से स्थापित हुए थे. लेकिन, बीते चार महीने में संग्रहालय बंद होने के कारण अन्य स्त्रोतों से होने वाली आय भी बंद गई है. इस बारे में लोकमान्य तिलक वाचन मंदिर, चिपलून के कार्यकारी अध्यक्ष कहते हैं, ‘यह एक ग्रामीण क्षेत्र है, यहां सदस्यों की संख्या नहीं बढ़ाई नहीं जा सकती है. मेरी पत्नी द्वारा दिए गए 51 हजार रूपए के दान से हमने पिछले महीने कर्मचारियों को वेतन दिया है.’
तूफान ने भी पहुंचाया नुकसान
रायगढ़ में म्हसला सार्वजनिक पुस्तकालय को तूफान के कारण दो बार नुकसान उठाना पड़ा है. कुछ दिनों पहले तूफान के चलते इस पुस्तकालय की छत ढह गई. इस पुस्तकालय के प्रबंधकों के मुताबिक इस बार तूफान में छह से सात हजार किताबें भीग गईं. इसमें बाबासाहेब अम्बेडकर के कई महत्त्वपूर्ण भाषण सहित मराठी-अंग्रेजी के कई विश्वकोश शामिल हैं. किताबों को सुखाने में बिजली के उपकरण, बिल और छत की मरम्मत आदि कामों पर करीब ढाई लाख रुपए खर्च हो गए.
यह पुस्तकालय पहले अकेले हॉल से प्राप्त किराए से हर महीने लगभग 15 हजार रुपए कमा रहा था. लेकिन, तालाबंदी के कारण यह कमाई भी बंद हो गई. इस पुस्तकालय के अध्यक्ष संजय खांबेटे कहते हैं, ‘रायगढ़ जिला पुस्तकालय संघ और पाठकों द्वारा किए गए दान से अब तक किसी तरह कर्मचारियों के वेतन का भुगतान और भवन की मरम्मत संभव हो पाई है.’
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समर्पित पाठकों को भी इतंजार
पुस्तकालयों के बंद होने से उन पाठकों को एक वैचारिक झटका लगा है जो पठन-पाठन को एक संस्कृति के रूप में देखते हैं. इस लिहाज से कई वरिष्ठ नागरिक, पाठक और विद्वानों को पुस्तकालयों के बंद होने से नुकसान हो रहा है. इसलिए, वर्षों से पुस्तकालयों में रखीं कई दुर्लभ और आधुनिक ग्रंथों से दूरी ऐसे समर्पित पाठकों को परेशान कर रही हैं.
इस बारे में कई पाठक कह रहे हैं कि यदि पुस्तकालयों को फिर से शुरू किया जाता है तो वे कोरोना संक्रमण रोकने से जुड़े नियमों का पालन करेंगे.
एक अस्सी वर्ष की पाठक वसुधा मेहेंदले कहती हैं, ‘कई वरिष्ठ नागरिक किताब की दुकानों तक नहीं पहुंच सकते हैं. फिर किसी व्यक्ति को किताबें खरीदने में भी बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है. इसी कारण से पुस्तकालयों का महत्त्व रहा है. आप वहां जाकर अपनी मनपसंद किसी भी पुस्तक को पढ़ सकते हैं. लेकिन, इन दिनों हम पढ़ने की इस आदत से दूर हो गए हैं.’
एक अन्य पाठक मिलिंद बापट के अनुसार पुस्तकालय में आकर पढ़ने से घर के कामों के कारण आने वाले दबाव और अन्य मानसिक तनाव से कुछ देर के लिए राहत मिलती है. इसलिए, पुस्तकालय को एक मानसिक जरूरत के रूप में भी देखा जाना चाहिए.’
वहीं, सेवानिवृत्त शिक्षिका मुग्धा बर्वे कहती हैं कि उन्हें संदर्भ पुस्तकों का अध्ययन करने के लिए पुस्तकालय जाना पड़ता है. लेकिन, अब ऐसा संभव नहीं हो रहा है. इसलिए पाठकों को चाहिए कि वे पुस्तकालय खुलवाने के लिए मुहिम चलाए और इस संबंध में शासन पर दबाव बनाएं.’
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पुस्तकालयों पर आई आफत
तथ्य यह हैं कि मुंबई मराठी पुस्तकालय की 44 शाखाओं से हर महीने 600 नए सदस्य पंजीकृत होते थे. पुस्तकालय को प्रति वर्ष अप्रैल से जुलाई तक अपने हर सदस्य से हर महीने 70 रुपये की दर से.एक लाख 68 हजार रुपये प्राप्त होते थे. लेकिन, लॉकडाउन के कारण सभी आर्थिक गतिविधियां बंद हो गई हैं.
दूसरी तरफ, कई पाठक वाचनालय कक्ष में आकर पुस्तकों का अध्ययन करते थे. वे इसके लिए सामान्यत: हर दिन दस रुपए जमा करते थे. यदि पुस्तकालय नियमित खुलता तो इससे चार महीने में लगभग एक लाख 20 हजार रुपए की आय प्राप्त होती. लेकिन, तालाबंदी के कारण इस पुस्तकालय को यह आमदनी खोनी पड़ी.
खेड में राजगुरुनगर सार्वजनिक पुस्तकालय के सचिव राजेंद्र सुतार कहते हैं कि इस समय पाठकों के पास दांत हैं, पर खाने लायक अच्छा भोजन नहीं है. लोगों के लिए पढ़ाई के लिए बहुत अधिक समय रहने के बावजूद पुस्तकालय बंद हैं.
वे कहते हैं, ‘जब जीवन पहले की तरह शुरू हो जाएगा तो लोगों के लिए जीवन की लड़ाई शुरू हो जाएगी. फिर पढ़ने का समय नहीं रहेगा. इन दिनों लोग टेलीविजन और मोबाइल फोन पर समय बिताने से तंग आ रहे हैं. मुद्रित पुस्तकों को पढ़ने का आनंद ई-पुस्तकों में नहीं मिलता है. पुस्तकालय ज्ञान वृद्धि के माध्यम से सभ्य समाज का केंद्र है. इसलिए, पुस्तकालय का संरक्षण और विकास होना चाहिए.
(शिरीष खरे शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हैं और लेखक हैं)