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Saturday, 18 May, 2024
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उत्तर महाराष्ट्र से दो लाख मजदूर परिवारों की घर वापसी के बाद सरकारी स्कूल हुए सूने

राज्य सरकार द्वारा ग्रामीण महाराष्ट्र में अनेक स्कूल खोलने का निर्णय लिया जा चुका है. लेकिन स्कूल प्रशासन इसलिए परेशान है कि इन स्कूलों में प्रवासी मजदूरों के बच्चे बड़ी संख्या में पढ़ते थे जो गांव लौट चुके हैं.

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सांगली: राज्य सरकार द्वारा ग्रामीण महाराष्ट्र में अनेक स्कूल खोलने का निर्णय लिया जा चुका है. लेकिन, अन्य राज्यों के मजदूरों द्वारा कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे के बीच अपने घरों की ओर लौटने के बाद खास तौर से उत्तर महाराष्ट्र में सरकारी स्कूलों को एक गंभीर परिस्थिति का सामना करना पड़ रहा है.

राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि जिला प्रशासन यह निर्धारित करें कि किन क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण का प्रभाव नहीं है. जिन क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण नहीं है वहां जिला प्रशासन अपने स्तर पर स्कूल खोलने की अनुमति दे सकता है.

दरअसल, लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद शासन द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक उत्तर महाराष्ट्र से एक लाख 54 हजार 476 मजदूर परिवार बस और ट्रेन से अपने-अपने राज्य चले गए हैं. हालांकि, यह संख्या दो लाख तक हो सकती है. कारण, लॉकडाउन के दौरान रोजगार का संकट खड़ा होने के बाद संगठित और असंगठित क्षेत्र के कई मजदूर पैदल और साइकिल से भी अपने-अपने घरों की ओर निकल गए थे. इससे जुड़े आंकड़े शासन के पास नहीं हैं.


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स्कूल में छात्र नहीं, शिक्षकों पर मंडराया संकट

लिहाजा, प्रवासी मजदूरों के स्थानांतरण का दुष्परिणाम विशेषकर उत्तर महाराष्ट्र के पांच जिलों नासिक, अहमदनगर, जलगांव, धुले और नंदुरबार में सरकारी स्कूलों के बच्चों की संख्या पर पड़ना तय है. यही वजह है कि शिक्षक से लेकर शिक्षाविद और अन्य वर्ग के लोग इस स्थिति को लेकर चिंता व्यक्त कर रहे हैं.

शिक्षा और प्रशासन से जुड़े जानकारों की मानें तो अकेले नासिक जिले में ‘केजी से लेकर पीजी’ तक करीब 27 हजार विद्यार्थी भी अपने परिजनों के साथ उनके अपने राज्य लौट गए हैं.

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महाराष्ट्र राज्य शिक्षण संस्था महामंडल के अध्यक्ष विजय नवल पाटिल मानते हैं कि प्रवासी मजदूरों के स्थानांतरण का सबसे ज्यादा नुकसान जिला परिषद और महानगर-पालिका के स्कूलों पर पड़ेगा. कारण, इन सरकारी स्कूलों में सबसे अधिक मजदूरों के बच्चे पढ़ते हैं.

वहीं, राज्य के ग्रामीण इलाकों में स्कूल खोलने के बारे में उनका कहना है, ‘सरकार को परिस्थिति के अनुसार नियमों में ढील देनी चाहिए. स्कूल खोलने के आदेश से लेकर अन्य मामलों में संस्था संचालकों को ज्यादा से ज्यादा अधिकार देना चाहिए. इसी तरह,.सरकारी स्कूलों में प्रधानाध्यापक की भूमिका महत्त्वपूर्ण है.’

नासिक शहर में एक निजी स्कूल के संचालक प्रवीण जोशी बताते हैं कि मजदूर परिवारों के स्थानांतरण के कारण खास तौर से औद्योगिक बसाहटों से आने वाले बच्चों की संख्या में कमी आ सकती है. वे कहते हैं, ‘सभी बच्चे तकनीक का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं इसलिए ऑनलाइन शिक्षण में बहुत कठिनाई आ रही है.’

महाराष्ट्र राज्य प्राथमिक शिक्षा निदेशक दत्तात्रेय जगताप के मुताबिक सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या कम होने पर शिक्षक समायोजन को लेकर एक बड़ी समस्या पैदा होगी. वर्तमान में मुंबई में कई अतिरिक्त शिक्षक हैं. ऐसी स्थिति में अब बच्चों की संख्या और अधिक कम होने से न के बराबर बच्चों के बीच बहुत अधिक शिक्षक नजर आएंगे. वे कहते हैं, ‘मजदूरों का स्थानांतरण स्कूल के छात्रों के लिए भी एक समस्या पैदा करेगा. इसलिए, इन छात्रों को शिक्षा की मुख्यधारा में वापस लाने के लिए प्रयास करना होगा.’


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इसी तरह, पूर्व माध्यमिक शिक्षण.संचालक एन. के. जर्ग भी मानते हैं कि मुंबई सहित राज्य के विभिन्न हिस्सों में काम करने वाले गरीब मजदूरों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाया जाता है. मुंबई में हिंदी स्कूलों में पढ़ने वाले मजदूरों के बच्चों की बड़ी संख्या है.

पूरे महाराष्ट्र के संदर्भ में देखा जाए तो वर्तमान में लाखों मजदूरों का स्थानांतरण हो चुका है. वहीं, कुछ मजदूर महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों से अपने गांवों में चले गए हैं. जाहिर है इससे सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या में गिरावट आएगी. वे कहते हैं, ‘ऐसी स्थिति में सभी को सरकारी स्कूलों को ध्यान में रखते हुए एक बड़ी पहल करनी चाहिए.’

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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