scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमदेशजादू-टोना के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित किया जाना संवैधानिक भावना पर धब्बा : न्यायालय

जादू-टोना के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित किया जाना संवैधानिक भावना पर धब्बा : न्यायालय

Text Size:

नयी दिल्ली, 19 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि जादू-टोने के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित किया जाना संवैधानिक भावना पर धब्बा है।

शीर्ष अदालत ने जादू-टोने के नाम पर महिलाओं को निर्वस्त्र करने और उनका उत्पीड़न करने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगाने वाले आदेश की निंदा की।

न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने मामले को परेशान करने वाले तथ्यों पर आधारित बताया।

पीठ ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति की गरिमा से समझौता किया जाता है, तो उसके मानवाधिकार खतरे में पड़ते हैं, जो उसे मनुष्य होने के आधार पर हासिल हैं और विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय अधिनियमों के तहत प्रदत्त हैं।

जादू-टोना से जुड़े मामलों में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि प्रत्येक मामला संवैधानिक भावना पर धब्बा था।

उसने कहा, ‘‘जादू-टोना, जिसका आरोप पीड़ितों में से एक पर लगाया गया है, निश्चित रूप से एक ऐसी प्रथा है, जिससे दूर रहना चाहिए। इस तरह के आरोपों का पुराना इतिहास है और अक्सर उन लोगों के लिए दुखद परिणाम होते हैं, जिन पर आरोप लगते हैं।’’

पीठ ने कहा, ‘जादू-टोना अंधविश्वास, पितृसत्ता और सामाजिक नियंत्रण के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ऐसे आरोप अक्सर उन महिलाओं के खिलाफ लगाए जाते थे, जो या तो विधवा हैं या बुजुर्ग।’

पीठ ने कहा कि बिहार के चंपारण जिले में 13 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी, लेकिन पुलिस ने केवल लखपति देवी के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया।

निचली अदालत ने 16 जुलाई 2022 को लखपति और प्राथमिकी में नामजद अन्य लोगों के खिलाफ संज्ञान लिया।

आरोपियों ने अपने खिलाफ दायर मामले को रद्द करने के अनुरोध के साथ पटना उच्च न्यायालय का रुख किया था। उच्च न्यायालय ने चार जुलाई को निचली अदालत में आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगाने का निर्देश दिया था।

उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए स्थगन आदेश से व्यथित शिकायतकर्ता ने शीर्ष अदालत का रुख किया, जिसे 26 नवंबर को सूचित किया गया कि संज्ञान आदेश को रद्द करने के अनुरोध वाली याचिका 22 नवंबर को वापस ले ली गई है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि प्राथमिकी में कहा गया है कि पीड़िता के साथ सार्वजनिक रूप से मारपीट और दुर्व्यवहार किया गया, जो निस्संदेह उसकी गरिमा का अपमान था। उसने पीड़िता के खिलाफ ‘कुछ अन्य कृत्यों’ का भी संज्ञान लिया, जिसने उसकी अंतरात्मा को झकझोर दिया, क्योंकि ऐसे कृत्य 21वीं सदी में हो रहे थे।

भाषा पारुल वैभव

वैभव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments