नई दिल्ली: तेजी से आगे बढ़ने की चाह ने हड़प्पावासियों को दुनिया के दूसरे हिस्सों से समुद्री संपर्क बनाने के लिए प्रेरित किया. उनके पास तकनीक थी और वे अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक थे.
“एक समय ऐसा आया जब उन्हें महसूस हुआ कि जो आमदनी वे कमा रहे हैं, वह अगले स्तर तक पहुंचने के लिए काफी नहीं है. तभी उन्होंने समुद्री संपर्क बनाना शुरू किया, और सबसे पहले उन्होंने ओमान से इसकी शुरुआत की,” ऐसा कहना है प्रसिद्ध पुरातत्वविद और नेशनल मेरीटाइम हेरिटेज कॉम्प्लेक्स (एनएमएचसी), लोथल के पूर्व महानिदेशक वसंत शिंदे का. वे ‘भारतीय समुद्री इतिहास और लोथल में राष्ट्रीय समुद्री संग्रहालय का विकास’ विषय पर एक व्याख्यान दे रहे थे, जो नई दिल्ली में इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटैक) में आयोजित किया गया.
यह लेक्चर इंटैक की ‘भारत की समुद्री धरोहर’ सीरिज का हिस्सा था, इसमें पुरातत्वविदों और समुद्री विशेषज्ञों जैसे राजीव निगम भी शामिल हुए. शिंदे का एक घंटे का व्याख्यान भारत की समृद्ध समुद्री विरासत और एनएमएचसी लोथल के महत्व को आसान और समझदारी से समझाता है.
हड़प्पा लोगों को व्यापारिक संबंध बनाने के लिए दो बड़ी वजहों ने प्रेरित किया.
पहला कारण था हड़प्पा क्षेत्र में जरूरी संसाधनों की कमी. शिंदे के अनुसार, दूसरा कारण यह था कि “वे नवाचार करने वाले लोग थे जो अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाना चाहते थे.” इसलिए उन्होंने अंदरूनी इलाकों की बस्तियों से रिश्ते बनाना शुरू किया, ताकि वहां से मनके बनाने के लिए पत्थर जैसे कच्चे माल मिल सकें.
यही विकास और समुद्री खोज का उत्साह एनएमएचसी लोथल दिखाना चाहता है.
2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने लोथल में समुद्री धरोहर परिसर के विकास को मंजूरी दी थी. इसका उद्देश्य भारत के 4,500 वर्षों से अधिक पुराने समुद्री इतिहास को मनाना और प्रदर्शित करना है. इस परियोजना के पहले चरण (फेज-1ए) के तहत छह म्यूजियम गैलरीज़ पर काम इस साल सितंबर तक पूरा हो जाने की उम्मीद है. पूरा परिसर दो पेज में पूरा किया जाएगा.
शिंदे ने कहा, “पहले हमारे पास कोई ऐसा म्यूजियम नहीं था जो हमारी पूरी समुद्री विरासत को दिखा सके.” उन्होंने यह भी बताया कि सरकार के हाल के अनुमान के अनुसार भारत की समुद्री सीमा लगभग 11,000 किलोमीटर है.
लोथल समुद्री परिसर
पुरातात्विक सबूतों से पता चलता है कि लोथल दुनिया का सबसे पहला बंदरगाह है.
और इसी समृद्ध समुद्री इतिहास को दिखाया जाएगा लोथल में बन रहे नेशनल मरीन हेरिटेज कॉम्प्लेक्स (NMHC) में. इस जगह की खुदाई 1955 से 1960 के बीच भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने कई बार की थी, और यह खुदाई अनुभवी पुरातत्वविद शिकारिपुरा रंगनाथ राव के नेतृत्व में हुई थी.
एनएमएचसी लोथल का खाका तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाले शिंदे ने बताया कि यहां बनने वाली 14 गैलरीज़ में अलग-अलग काल के समुद्री केंद्रों से मिले पुरातात्विक सबूतों को दिखाया जाएगा — हड़प्पा काल से लेकर मध्यकाल तक. इस कॉम्प्लेक्स में एक पुराना भारतीय नौसेना का युद्धपोत और एक नौसेना का परिवहन विमान भी रखा जाएगा. शिंदे ने अपने व्याख्यान में सभी गैलरीज़ का विस्तार से ज़िक्र किया. इनमें से कुछ थीं: ‘हड़प्पावासी – समुद्री यात्रा की शुरुआत करने वाले’, ‘हड़प्पा के बाद की दिशा’, ‘यूनानी-रोमन दुनिया से संपर्क’, ‘भारतीय नौसेना और कोस्ट गार्ड का विकास’, ‘दक्षिण-पूर्व एशिया और अन्य जगहों से व्यापार और सांस्कृतिक संबंध’, ‘गुजरात की समुद्री परंपराएं.’
शिंदे ने बताया कि मोदी का जन्मस्थान वडनगर भी इस हेरिटेज कॉम्प्लेक्स का हिस्सा होगा.
उन्होंने कहा, “गुजरात की मूर्त और अमूर्त समुद्री विरासत को इन गैलरीज़ में शामिल किया जाएगा. लोथल, भरूच और कमरोज जैसे कुछ प्रमुख बंदरगाहों की व्यापार और वाणिज्य में भूमिका को भी खास तौर पर दिखाया जाएगा. संग्रहालय परिसर में प्राचीन वल्लभीपुर विश्वविद्यालय और वडनगर के बाहरी दुनिया से ऐतिहासिक संबंधों को भी प्रस्तुत किया जाएगा.”
‘भारतीय संस्कृति के संस्थापक’
हड़प्पा सभ्यता के लोग लगभग 2,000 साल तक जीवित रहे और उन्होंने अपनी संस्कृति को बचाए रखा. जब उन्हें यह समझ आया कि कठोर जलवायु में जीना मुश्किल हो सकता है, तो वे सिंधु और सरस्वती नदी के इलाकों से निकलकर गंगा-यमुना दोआब की तरफ चले गए.
शिंदे के अनुसार, यह बदलाव अचानक नहीं हुआ.
शिंदे ने कहा, “हम इसे हड़प्पा संस्कृति का धीमा पतन कहते हैं, जहां लोग अलग-अलग दिशाओं में जाने लगे.” हड़प्पा क्षेत्र के बाहर पहले से ही कई शुरुआती खेती करने वाले समुदाय बसे हुए थे. हड़प्पावासी वहां पहुंचे और उनसे घुलमिल गए, उन्होंने कहा.
शिंदे के अनुसार, हड़प्पावासी “भारतीय संस्कृति के जनक हैं.”
उन्होंने कहा, “ज्यादातर परंपराएं और ज्ञान की जो प्रणालियां आज हम जानते हैं, वे हड़प्पावासियों ने ही विकसित की थीं. और ये आज तक बिना किसी रुकावट के चली आ रही हैं.”
शिंदे ने यह भी कहा कि हड़प्पावासियों की अपनी अलग सोच थी, अलग प्रशासनिक प्रणाली थी, और उनके यहां निश्चित तौर पर एक लोकतांत्रिक व्यवस्था थी. मेसोपोटामिया में राजशाही थी, इसलिए वहां का विकास केवल राजघरानों तक ही सीमित रहा.
“हड़प्पावासियों की संपत्ति का उपयोग ढांचा (इंफ्रास्ट्रक्चर) बनाने और आम लोगों की भलाई के लिए किया जाता था. इसीलिए उन्होंने आम लोगों के लिए शहर और कस्बे बनाए.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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