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Saturday, 11 May, 2024
होमदेशमारे गए कारसेवकों के परिवारों ने कहा- हमें खुशी है कि राम मंदिर बन रहा है, लेकिन कोई हमारी भी मदद करे

मारे गए कारसेवकों के परिवारों ने कहा- हमें खुशी है कि राम मंदिर बन रहा है, लेकिन कोई हमारी भी मदद करे

17 कारसेवक तब मारे गए थे जब एलके आडवाणी की रथयात्रा के साथ, राम जन्मभूमि अभियान तेज़ी पकड़ रहा था.

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अयोध्या: बुधवार का राम मंदिर भूमि पूजन उन 17 कार सेवकों के परिवारों के लिए ख़ुशी का मौक़ा लेकर आया है, जो अक्तूबर और नवम्बर 1990 में उत्तर प्रदेश पुलिस की फायरिंग में मारे गए थे. ये राम जन्मभूमि अभियान के तहत अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने से दो साल पहले हुआ था.

राम मंदिर न्यास ने, जो राम मंदिर निर्माण की निगरानी कर रहा है. उन्हें इस समारोह में आमंत्रित किया है, जिसमें अन्य लोगों के अलावा पीएम नरेंद्र मोदी भी शरीक होंगे. सुर्ख़ियों में आकर ये परिवार ख़ुश तो हैं लेकिन ये चाहते हैं कि इनके प्रिय जनों के ‘बलिदान’ के एवज़ में सरकार इनकी आर्थिक सहायता करे.

17 कार सेवक तब मारे गए थे जब एलके आडवाणी की रथयात्रा के साथ, राम जन्मभूमि अभियान तेज़ी पकड़ रहा था. 30 अक्तूबर और 2 नवम्बर 1990 को, वो उन कम से कम एक लाख लोगों में से थे, जो विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के आह्वान पर बाबरी मस्जिद की तरफ मार्च करने के लिए, अयोध्या में जमा हुए थे. लेकिन तब के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने पुलिस को गोली चलाने के आदेश दे दिए.

सरकार ने मरने वालों की संख्या 16 बताई, लेकिन जो लोग फायरिंग के निशाने पर थे, उनका दावा है कि इससे कहीं ज़्यादा लोग मारे गए थे.

‘किसी ने हमारी नहीं सुनी है’

कार सेवक वो स्वयं सेवक थे जो राम मंदिर आंदोलन में शामिल हुए थे. मरने वालों में एक राजेंदर प्रसाद धारकर भी था, जो उसके परिवार के मुताबिक़ सिर्फ 17 साल का था.

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उसके भाई रवींद्र प्रसाद धारकर, जो भूमि पूजन में शरीक होंगे, ने कहा, ‘मेरा भाई राजेंदर प्रसाद धारकर 30 अक्तूबर को फायरिंग में मारा गया था. वो कार सेवा में हिस्सा लेने गया था और वहां बहुत भीड़ जमा हो गई …पहले आंसू गैस छोड़ी गई और फिर फायरिंग हुई. वो केवल 17 साल का था, लोकिन अपने भर का कुछ करना चाहता था.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे न्योता मिला है और मुझे बहुत ख़ुशी है कि आख़िरकार राम मंदिर, जिसके लिए मेरे भाई समेत बहुत से लोगों ने अपनी जानें दे दीं, अब बन रहा है.’


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उन्होंने कहा, ‘लेकिन इस ख़ुशी के साथ, हम ये भी चाहते हैं कि कोई हमारे और हमारी स्थिति के ऊपर भी ध्यान दे. हम आज भी वैसे ही हैं जैसे पहले थे.’ उन्होंने आगे कहा, ‘किसी ने हमारी परेशानियों को नहीं सुना है, चाहे विधायक हो, सांसद हो या पार्षद हो. किसी ने ये देखने की ज़हमत नहीं उठाई कि एक शहीद का परिवार किन हालात में जी रहा है.’

धारकर ने कहा कि उनके तीन बेटे और कई बेटियां हैं, लेकिन वो ‘बांस की टोकरियां बनाकर दिन भर में 100-200 रुपए’ कमा पाते हैं. उन्होंने ये भी कहा ‘कोरोनावायरस की वजह से वो भी बंद हो गया है. ये पैसा मेरी दैनिक ज़रूरतों के लिए भी पूरा नहीं पड़ता, ऊपर से मुझे माता-पिता का लिया हुआ क़र्ज़ भी चुकाना पड़ता है.’

उन्होंने कहा कि वो ख़ुश हो जाएंगे, अगर उन्हें मंदिर परिसर के भीतर, एक दुकान लगाने की जगह मिल जाए. उन्होंने कहा, ‘पीएम मोदी और (उत्तर प्रदेश सीएम) योगी जी से मेरा आग्रह है कि या तो मुझे मंदिर के अंदर कोई जगह दे दें, जहां मैं एक दुकान कर सकूं, या फिर मुझे कोई नौकरी दिला दें, क्योंकि मैं अपना ख़र्च नहीं उठा पा रहा हूं.’

‘मेरे पिता ने अपनी जान दे दी’

सीमा गुप्ता के पिता वासुदेव गुप्ता की अयोध्या में मिठाई की दुकान थी. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि भगवा झंडा फहराने के बाद, घर लौटते हुए वो मारे गए.

उन्होंने कहा, ‘हमारी सारी समस्याएं इस वास्तविकता के सामने मामूली लगती हैं, कि ये मंदिर आख़िरकार बन रहा है. मेरे पिता ने मंदिर के लिए अपनी जान दे दी, और पीएम मोदी की बदौलत आज हम ये दिन देख रहे हैं.’

गुप्ता जो एक ग्रेजुएट हैं, अब एक गार्मेंट की दुकान चलाती हैं, और चाहती हैं कि सरकार उन्हें कोई नौकरी दिलाए. उन्होंने आगे कहा, ‘सड़क-चौड़ीकरण परियोजना के तहत इस दुकान को हटा दिया जाएगा. मेरे लिए जीविका का यही एक साधन है. मेरा आग्रह है कि या तो दुकान के लिए मुझे मंदिर के भीतर कुछ जगह दी जाए, या फिर कोई नौकरी.’

जनवरी में ख़बर दी गई थी कि वीएचपी ने कार सेवकों को सम्मानित करने का फैसला किया है, ख़ासकर उन कार सेवकों के परिवारों को, जो राम मंदिर निर्माण आंदोलन के दौरान मारे गए.

गायत्री देवी कार सेवक रमेश पाण्डे की विधवा हैं, जो 2 नवम्बर 1990 को 35 वर्ष की आयु में मारे गए थे. उन्होंने भी गुप्ता और धनकर जैसी ही इच्छा ज़ाहिर की.

उन्होंने कहा, ‘मेरे पास ज़्यादा पैसा नहीं था (जब मेरे पति की मौत हुई) और फिर भी मैंने अपने बच्चों की परवरिश की. मेरे बेटे कुछ प्राइवेट काम करते हैं, जो उनके लिए काफी नहीं पड़ता. आज भी, मेरे पास आय का कोई दूसरा साधन नहीं है…ये घर जिसमें मैं रहती हूं, किराए का है, इसलिए मैं उम्मीद करती हूं कि सरकार हमारी मदद करेगी.’

‘हमें बहुत ख़ुशी है कि भूमि पूजन हो रहा है. मेरे पति 35 साल के थे, जब वो पुलिस फायरिंग में मारे गए. वो आंदोलन से जुड़े हुए थे, और राम मंदिर के निर्माण से आख़िरकार उनकी आत्मा को शांति मिलेगी.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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