नयी दिल्ली, 11 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को उत्तराखंड सरकार को उन 50 हजार लोगों के पुनर्वास के लिए ठोस प्रस्ताव पेश करने के लिए दो महीने का समय दिया, जिन्हें हल्द्वानी में रेलवे की जमीन से अतिक्रमण रोधी अभियान के तहत हटाये जाने की आशंका है।
ये लोग दशकों से रेलवे की जमीन पर कथित तौर पर अवैध कब्जा जमाये बैठे थे और इस अभियान के कारण इन लोगों पर विस्थापन की तलवार लटक रही है।
उत्तराखंड सरकार ने न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति उज्जवल भुइयां की पीठ को बताया कि अदालत के पहले के आदेश के अनुपालन में राज्य, रेलवे और अन्य हितधारकों की एक संयुक्त बैठक हुई थी और रेलवे की परियोजना के लिए आवश्यक जमीन की पहचान की प्रक्रिया प्रगति पर है।
पीठ ने कहा, ‘‘परियोजना को पूरा करने के लिए भूमि की पहचान करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसी प्रकार, जिन लोगों के प्रभावित होने की आशंका है, उनके पुनर्वास का मामला भी सक्रियता से विचाराधीन है और दो महीने का समय दिए जाने पर एक ठोस प्रस्ताव रिकॉर्ड में रखा जाएगा।’’
उच्चतम न्यायालय केंद्र द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें उसके पिछले साल पांच जनवरी के आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया गया है। न्यायालय ने हल्द्वानी में लगभग 30 एकड़ भूमि से अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी, जिस पर रेलवे ने दावा जताया है।
केंद्र द्वारा एक अंतरिम आवेदन में अनुरोध किया गया है कि रेलवे परिचालन को सुगम बनाने के लिए उक्त भूमि तत्काल उपलब्ध कराई जानी चाहिए क्योंकि पटरियों की सुरक्षा के वास्ते बनाई गई दीवार पिछले साल मानसून के दौरान ढह गई थी।
संक्षिप्त सुनवाई के दौरान उत्तराखंड सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता बलबीर सिंह ने पुनर्वास प्रस्ताव को अंतिम रूप देने के लिए दो महीने का समय मांगा।
उन्होंने कहा कि इस जमीन पर लगभग 4,500 परिवार रहते हैं और उनके पुनर्वास के लिए रेलवे और राज्य के बीच वित्तीय व्यवस्था की जानी है। उन्होंने कहा, ‘‘इसके लिए हम समय मांग रहे हैं, क्योंकि कुछ बैठकों के बाद हम किसी आम सहमति पर नहीं पहुंच सके।’’
वकील ने कहा कि एक नई पुनर्वास नीति पर भी काम जारी है।
सिंह ने कहा कि रेलवे उनके पुनर्वास के लिए आवश्यक भूमि की पहचान करने की प्रक्रिया में है और यह पता लगाने के लिए एक सर्वेक्षण भी हो रहा है कि कितने लोगों को स्थानांतरित करने की आवश्यकता होगी।
प्रभावित परिवारों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्वेस ने कहा कि चूंकि बाढ़ के कारण टूटी हुई दीवार का फिर से निर्माण करने का काम लगभग पूरा हो चुका है, इसलिए रेल पटरियों पर पानी भरना अब संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी को भी उस स्थान से स्थानांतरित करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
रेलवे हालांकि चाहता है कि अधिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए परिवारों को स्थानांतरित किया जाए।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक का उसका अंतरिम आदेश जारी रहेगा।
उच्चतम न्यायालय ने 24 जुलाई को उत्तराखंड के मुख्य सचिव को निर्देश दिया था कि वह हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण करने वाले लोगों के पुनर्वास के लिए केंद्र और रेलवे के साथ बैठक करें।
पीठ ने कहा था कि राज्य सरकार को यह योजना बतानी होगी कि इन लोगों का कैसे और कहां पुनर्वास किया जाएगा।
रेलवे के मुताबिक, उक्त जमीन पर 4,365 अतिक्रमणकारी हैं जबकि जमीन पर काबिज लोगों का दावा है कि वे जमीन के मालिक हैं।
विवादित जमीन पर 4,000 से अधिक परिवारों के लगभग 50,000 लोग रहते हैं, जिनमें से ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के हैं।
उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल पांच जनवरी को हल्द्वानी में रेलवे के दावे वाली 29 एकड़ जमीन पर से अतिक्रमण हटाने संबंधी उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी। न्यायालय ने कहा था कि यह एक ‘मानवीय मुद्दा’ है और 50 हजार लोगों को रातोंरात नहीं हटाया जा सकता।
भाषा देवेंद्र शफीक
शफीक
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