scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेशतीन अगस्त को आएगा ज्ञानवापी मामले का फैसला, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तब तक सर्वेक्षण पर रोक को बरकरार रखा

तीन अगस्त को आएगा ज्ञानवापी मामले का फैसला, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तब तक सर्वेक्षण पर रोक को बरकरार रखा

मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर की अदालत में गुरुवार को अपराह्न तीन बजकर 15 मिनट पर सुनवाई शुरू हुई. चूंकि मुख्य न्यायाधीश की अदालत में नियमित कार्य पूरा हो गया था, इसलिए न्यायमूर्ति दिवाकर ने दोनों पक्षों के वकीलों को बहस करने के लिए कहा.

Text Size:

प्रयागराज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार को ज्ञानवापी सर्वेक्षण मामले में सुनवाई के बाद अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया. अदालत तीन अगस्त को निर्णय सुनाएगी. तब तक एएसआई सर्वेक्षण पर लगी रोक बरकरार रहेगी.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर की अदालत में गुरुवार को अपराह्न तीन बजकर 15 मिनट पर सुनवाई शुरू हुई. चूंकि मुख्य न्यायाधीश की अदालत में नियमित कार्य पूरा हो गया था, इसलिए न्यायमूर्ति दिवाकर ने दोनों पक्षों के वकीलों को बहस करने के लिए कहा.

सुनवाई शुरू होने पर भारतीय पुरात्व विभाग (एएसआई) के अपर निदेशक ने अदालत को बताया कि एएसआई किसी हिस्से में खुदाई कराने नहीं जा रही है. वह मुख्य न्यायाधीश के सवाल का जवाब दे रहे थे. मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि आपका का उत्खनन (एक्सकेवेशन) से क्या आशय है?

एएसआई के अधिकारी ने कहा कि काल निर्धारण और पुरातत्विक गतिविधियों से जुड़ी किसी गतिविधि को उत्खनन कहा जाता है, लेकिन हम स्मारक के किसी हिस्से की खुदाई (डिगिंग) करने नहीं जा रहे.

मस्जिद कमेटी के वकील ने दलील दी कि वाद की पोषणीयता स्वयं उच्चतम न्यायालय में लंबित है और यदि उच्चतम न्यायालय बाद में इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि यह वाद पोषणीय नहीं है तो संपूर्ण कवायद बेकार जाएगी. इसलिए सर्वेक्षण उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद किया जाना चाहिए.

हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने फैसला सुरक्षित किए जाने के बाद अदालत के बाहर संवाददाताओं को बताया, “मुस्लिम पक्ष के वकील ने दलील दी थी कि साक्ष्य एकत्रित करने के लिए विशेषज्ञ नहीं भेजा जा सकता, लेकिन हमने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के कई फैसलों का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि विशेषज्ञ भेजा जा सकता है.”

उन्होंने कहा, “हमने दलील दी कि एएसआई को राम मंदिर मामले में पैरा 361 में विशेषज्ञ निकाय माना गया है. इसके बावजूद मुस्लिम पक्ष कह सकता है कि इसकी स्क्रूटनी की जाए, लेकिन वह यह नहीं कह सकता कि विशेषज्ञ मत ना आए.”

जैन ने बताया कि एएसआई ने अपने हलफनामे में कहा है कि यह पूरी प्रक्रिया हम ढांचे को क्षति पहुंचाए बगैर करेंगे. माननीय मुख्य न्यायाधीश ने दोनों पक्षों को पूरी तरह से सुनने के बाद अपना निर्णय सुरक्षित रखा है.

सुनवाई के दौरान, राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजय मिश्रा ने कहा कि कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए राज्य सरकार है और सर्वेक्षण को लेकर कोई चिंता नहीं है.

वहीं हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि एक तार्किक परिणाम पर पहुंचने के लिए अदालत ने एएसआई सर्वेक्षण का आदेश पारित किया जोकि आवश्यक है.

जैन ने मस्जिद के पश्चिम तरफ के फोटोग्राफ भी दिखाए जिसमें हिंदू पूजा स्थल के संकेत मौजूद हैं. इससे पूर्व, मस्जिद कमेटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी ने कहा, “जब वादी के पास अपने मामले के समर्थन में कोई साक्ष्य ना हो तो अदालत साक्ष्य संग्रह करने के लिए विशेषज्ञ नहीं भेजा करती.”

इस पर जैन ने कहा, “देवताओं का अस्तित्व होना या ना होना, साक्ष्य का मामला है. साक्ष्य प्राप्त करने के लिए जोकि वहां है और पक्षकार स्वयं इसे पेश करने की स्थिति में नहीं हैं, तब अदालत साक्ष्य एकत्रित करने के लिए विशेषज्ञ भेज सकती है.’’

मुस्लिम पक्ष के वकील नकवी ने कहा, “हमने खुदाई के विभिन्न उपकरणों के फोटोग्राफ संलग्न किए हैं जिन्हें एएसआई की टीम मस्जिद परिसर लेकर पहुंची थी. यह दिखाता है कि उनका इरादा खुदाई करने का था.”

बाद में एएसआई के अपर निदेशक आलोक त्रिपाठी ने स्पष्ट किया कि चूंकि टीम पहली बार मस्जिद के स्थान पर गई थी, इसलिए वे अपने साथ कुछ उपकरण लेकर गए, लेकिन खुदाई के लिए नहीं, बल्कि स्थल से मलबा हटाने के लिए.

सुनवाई के दौरान, विष्णु शंकर जैन ने ढांचे की पश्चिमी दीवार के फोटोग्राफ दिखाते हुए कहा कि ढांचे की दीवार पर हिंदू धर्म के विभिन्न संकेत मौजूद हैं जिसमें दीवार के कुछ हिस्सों पर स्वास्तिक के चिह्न हैं. जैन ने कहा कि मस्जिद के केंद्रीय गुंबद के नीचे एक ध्वनि सुनाई पड़ती है जिससे पता चलता है कि इसके भीतर कुछ छिपा है.

उन्होंने कहा कि मस्जिद की दीवार और मस्जिद के भीतर की दीवारों पर कई हिंदू कलाकृतियां हैं. इसे विशेषज्ञ की राय से साबित किया जा सकता है और यह राय एएसआई द्वारा दी जा सकती है.

उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से अधिवक्ता पुनित गुप्ता ने कहा कि एएसआई सर्वेक्षण के लिए आवेदन अपरिपक्व है और यहां तक कि राम जन्मभूमि मामले में भी संबंधित पक्षों के मौखिक साक्ष्य दर्ज करने के बाद एएसआई सर्वेक्षण का आदेश दिया गया था. लेकिन मौजूदा मामले में मौखिक साक्ष्य अभी तक दर्ज नहीं किया गया है.


यह भी पढ़ें: ‘क्या पूरा विभाग अयोग्य लोगों से भरा पड़ा है?’, ED के निदेशक का कार्यकाल बढ़ाने पर सरकार को SC की फटकार


 

share & View comments