scorecardresearch
Monday, 18 November, 2024
होमदेश'हर रात गोलीबारी और बम की आवाज़', मैतेई और कुकी के बीच फंसा मुस्लिम गांव कर रहा शांति का इंतजार

‘हर रात गोलीबारी और बम की आवाज़’, मैतेई और कुकी के बीच फंसा मुस्लिम गांव कर रहा शांति का इंतजार

मैतेई-प्रभुत्व वाले बिष्णुपुर और कुकी-प्रभुत्व वाले चुराचांदपुर के बीच स्थित क्वाक्टा गांव में डर का माहौल है. गोलीबारी में फंसे ग्रामीण समाधान का इंतजार कर रहे है.

Text Size:

क्वाक्टा: पिछले दो महीनों से, 16 वर्षीय रोज़ी शेख डर के माहौन में सो रही है, हल्की सी आवाज़ भी उसकी नींद उड़ा देती है और वो घबराकर उठती और अपने पास रखे एक बैग की तलाश करती, जो ज़रूरत पड़ने पर भागने के लिए तैयार है. वह दिप्रिंट को बताती है कि वह इन सब से परेशान होती जा रही है.

वह अकेली नहीं है. बिष्णुपुर और चुराचांदपुर के बीच बसे एक मुस्लिम गांव क्वाक्टा में जैसे-जैसे अंधेरा छाता जाता है, जहां परस्पर विरोधी मैतेई और कुकी समुदायों का वर्चस्व है, डर भी बड़ता जाता है.

अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में शामिल करने की मैतेई की मांग का विरोध करने के लिए निकाले गए ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के बाद मणिपुर में पहली बार भड़की हिंसा को दो महीने से अधिक समय हो गया है.

झड़पों का केंद्र – पुलिस आंकड़ों के अनुसार, 3 मई से अब तक 157 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और 50,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं – बिष्णुपुर-चुराचांदपुर सीमा के पास फौगाकचाओ इखाई है.

दोनों तरफ के गांव – फौगाकचाओ, जहां गैर-आदिवासी मैतेई का वर्चस्व है, और इखाई, जहां ज्यादातर आदिवासी कुकी रहते हैं – हिंसा से तबाह हो गए हैं. चुराचांदपुर की ओर जाने वाला मार्ग अब एक गैर-आदमी की भूमि जैसा दिखता है, जहां सुरक्षा बलों की भारी सुरक्षा है, जिन्होंने दोनों समुदायों को अलग रखने के लिए एक बफर जोन बनाया है.

दोनों के बीच खड़े होकर, क्वाक्टा ने हिंसा को तीव्रता से महसूस किया है, वह अक्सर दोनों पक्षों के बीच गोलीबारी में फंसती रही है. गोलियां और पेट्रोल बम यहां घरों तक पहुंच गए हैं, जिससे कई निवासी गंभीर रूप से घायल हो गए हैं – मुख्य रूप से निर्दोष दर्शक.

परिणामस्वरूप, ग्रामीण अधिक सतर्क हो गए हैं, छोटी-छोटी आवाज़ों के प्रति भी संवेदनशील हो गए हैं. रातें विशेष रूप से लंबी और नींद रहित होती हैं, क्योंकि तब कई हमले होते हैं.

रोज़ी की तरह, कई लोगों के पास आवश्यक सामान से भरा एक बैग तैयार होता है, गोलियों की पहली आवाज़ सुनकर भागने के लिए और जब ऐसा होता है, तो वे अपना घर छोड़ देते हैं और केवल सुबह ही लौटते हैं.

रोज़ी कहती हैं, “कुकी और मैतेई के बीच में फंसकर, हम पीड़ित हैं… हर रात, गोलीबारी होती है, बम फेंके जाते हैं, और हम अपने घरों से भागने के लिए मजबूर होते हैं. गोलियां हमारी टिन की छतों से टकराती हैं, जिससे बहरा कर देने वाली आवाज पैदा होती है. यदि किसी बम की वजह से हमारी मौत हुई तो क्या होगा? कोई भी यह अनुमान नहीं लगा सकता कि कब हमारे घर पर पेट्रोल बम गिरेगा.”

A view of Kwakta Bazar in Manipur | Praveen Jain | ThePrint
मणिपुर में क्वाक्टा बाजार का एक दृश्य | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

यह भी पढ़ें: ‘अगर यह फिर हुआ तो?’ मणिपुर में 5 दिन से कोई हिंसा नहीं, लेकिन अविश्वास और डर पीड़ितों को सता रहा है


‘हम अपनी आजीविका कैसे कमायें, हमारी क्या गलती है?’

21 जून को, गांव से महज 50 मीटर की दूरी पर चुराचांदपुर जाने वाली मुख्य सड़क पर खड़े एक वाहन में विस्फोट हो गया. यह विस्फोटकों से भरा हुआ था. हालांकि किसी की मृत्यु की सूचना नहीं है, लेकिन 20 से अधिक ग्रामीणों को गंभीर चोटें आईं.

रोज़ी का 17 वर्षीय चचेरा भाई घायलों में से एक था.

वह कहती हैं, “वह अभी भी अस्पताल में है. उसने एक आxख खो दी; उसका हाथ टूट गया. हम सभी उनके इलाज के लिए पैसे इकट्ठा कर रहे हैं. उसकी गलती क्या थी? वह उस समय सड़क पर खड़ा था.”

विस्फोट में घायल होने वालों में इबिला खातून का 16 वर्षीय बेटा भी शामिल था.

उनके पति की मृत्यु हुए पांच साल हो गए हैं और इबिला बिष्णुपुर-चुराचांदपुर रोड पर कृत्रिम आभूषण बेचकर अपने तीन बच्चों का पालन-पोषण कर रही हैं. हालांकि, जब से संघर्ष शुरू हुआ, आय का वह स्रोत बंद हो गया है.

वह दिप्रिंट को बताती हैं, “घर चलाने के लिए मेरे पास पति नहीं है. मेरे बच्चे मुझ पर भरोसा करते हैं और मैं बहुत कम रकम कमाती हूं, बमुश्किल अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त पैसा.” “पिछले दो महीनों से एक भी रुपया नहीं आया है. ऊपर से मेरा बेटा इन झड़पों में घायल होने के कारण अस्पताल में है. मैं उसके इलाज के लिए पैसे का इंतजाम कैसे करूं?”

भोजन खरीदने के लिए पैसे नहीं होने के कारण, इबिला को खुद को बनाए रखने के लिए रिश्तेदारों और दोस्तों की सद्भावना पर निर्भर रहना पड़ता है. उसकी हालत देखकर क्वाक्टा निवासी उसकी मदद के लिए एकजुट हुए हैं.

वह कहती हैं, “क्या यही गरिमापूर्ण जीवन है? नहीं, मुझे अब पैसे के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है क्योंकि मैं कमाने के लिए बाहर नहीं जा सकती. वे कब तक मेरा समर्थन करते रहेंगे? वे स्वयं आय की कमी के कारण पीड़ित हैं.”

वह कहती हैं कि जब बम विस्फोट हुआ तो उनका बेटा घर लौट रहा था.

वह कहती हैं, “इस हिंसा को ख़त्म करने की ज़रूरत है. सरकार को जल्द से जल्द कोई समाधान निकालना चाहिए.”

‘हमें इस विवाद में मत घसीटो’

मणिपुर के मोइरांग कॉलेज में राजनीति विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर मोहम्मद रफीजुद्दीन शाह के अनुसार, क्वाक्टा गांव में 40,000 मुस्लिम और 12,000 पंजीकृत मतदाता हैं.

Md. Rafijuddin Shah speaking a peace rally organised by the Meitei Pangal Intellectual Forum at Kwakta Bazar in Manipur | Praveen Jain | ThePrint
मणिपुर के क्वाक्टा बाजार में मैतेई पंगल बौद्धिक मंच द्वारा आयोजित शांति रैली में बोलते हुए मोहम्मद रफीजुद्दीन शाह | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

सोमवार को, ग्रामीणों ने चुराचांदपुर सोमवार की सड़क पर संघर्ष के समाधान की मांग करते हुए शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया.

जब प्रदर्शनकारियों ने ‘हम शांति चाहते हैं’ का बोर्ड पकड़ रखा था, तो बिष्णुपुर में मणिपुरी मुसलमानों के एक मंच, मैतेई पंगल इंटेलेक्चुअल फोरम द्वारा आयोजित कार्यक्रम में शाह ने मंच संभाला. ‘मैतेई पंगल’ शब्द मैतेई-भाषी मणिपुरी मुसलमानों के एक समुदाय को संदर्भित करता है.

उन्होंने एकत्रित भीड़ से पूछा, “समस्या इस गांव में शुरू नहीं हुई, हम इस संघर्ष का हिस्सा भी नहीं हैं, हमें अपने घरों से क्यों भागना पड़ता है.” “हम यहां सदियों से सौहार्दपूर्ण ढंग से रह रहे हैं और हम एक तटस्थ शक्ति हैं. हमें यह सब क्यों सहना पड़ रहा है.”

Villagers attend a peace rally organised by the Meitei Pangal Intellectual Forum at Kwakta Bazar in Manipur | Praveen Jain | ThePrint
मणिपुर के क्वाक्टा बाजार में मैतेई पंगल इंटेलेक्चुअल फोरम द्वारा आयोजित शांति रैली में शामिल हुए ग्रामीण | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

उन्होंने दोनों समुदायों – कुकी और मैतेई से भी अपील की कि वे उन्हें विवाद में न खींचें.

“हम बीच में फसे हुए है.” हम, 3 लाख लोगों का समुदाय, एक डर में रह रहे हैं, जबकि हमारे इस हिंसा और विवाद से कोई लेना-देना नहीं है. हम सभी गरीब लोग हैं जो पिछले 67 दिनों से संघर्ष के इस केंद्र में डरे हुए हैं. उन्होंने कहा, ”यह सब अब बंद होना चाहिए.”

यह एक विचार है जिसे रोज़ी चीख चीख कर अपने गांव कहती है.

वह कहती हैं, “अब हम सब शांति की कामना करते हैं.” कृपया इसे ख़त्म करें. हम बहुत कुछ सहन कर चुके हैं.”

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन: अलमिना खातून)


यह भी पढ़ें: ‘मैं मैतेई या कुकी नहीं हूं, फिर भी हिंसा का शिकार’, मणिपुर के गांवों से घर छोड़ भाग रहे पड़ोसी


share & View comments