scorecardresearch
Wednesday, 24 April, 2024
होमदेशहेल्थकेयर सिस्टम का मॉडल कहे जाने वाला गुजरात भारत में सबसे खराब कोविड मृत्यु दर से जूझ रहा है

हेल्थकेयर सिस्टम का मॉडल कहे जाने वाला गुजरात भारत में सबसे खराब कोविड मृत्यु दर से जूझ रहा है

गुजरात में कोविड के 50 हज़ार से अधिक मामले दर्ज हो चुके हैं और जून के बाद से मृत्यु दर में कमी के बावजूद, इंफेक्शन फिर से पीक पर पहुंचता दिख रहा है.

Text Size:

अहमदाबाद: किसी समय गुजरात के कारगर हेल्थकेयर सिस्टम की सराहना की जाती थी जो स्वाइन फ्लू, इबोला और क्रीमियन कॉन्गो हेमरेजित फीवर जैसी गंभीर बीमारियों के प्रकोपों से कामयाबी के साथ निपटा है. इसीलिए ये देखकर हैरत होती है कि कोविड-19 महामारी में, यहां देशभर में सबसे अधिक मृत्यु दर- 4.38 प्रतिशत दर्ज हुई है जो 2.49 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है.

राज्य में कोविड मामलों की कुल संख्या इस समय 51,399 है और 20 जुलाई को इसमें एक दिन का सबसे अधिक उछाल- 1,026 दर्ज किया गया.

प्रकोप के शुरूआती हफ्तों में गुजरात का सरकारी अस्पताल खासकर अहमदाबाद सिविल हॉस्पिटल, ऊंची मृत्यु दर को लेकर सुर्ख़ियों में आया था. गुजरात हाईकोर्ट ने ये कहते हुए राज्य सरकार की कड़ी आलोचना की थी कि सिविल अस्पताल के हालात ‘बेहद खराब’ हैं और ये अस्पताल ‘काल कोठरी या शायद उससे भी खराब’ था.

जून में राज्य में मृत्यु दर बहुत ऊंची- 6.2 प्रतिशत थी, जो बहुत चिंताजनक थी क्योंकि वो राष्ट्रीय औसत 2.8 प्रतिशत के दोगुने से भी ज़्यादा थी. लेकिन वो इसे घटाकर 4.38 प्रतिशत पर ले आया है हालांकि ये अभी भी देश में सबसे अधिक है.

फिर 21 जुलाई को एक दिन में मौतों की संख्या फिर से उछलकर 34 हो गई जो कि 4 जुलाई के बाद से, 20 के पार नहीं हुई थी.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

तो, महामारी के दौरान गुजरात मृत्यु दर से क्यों जूझ रहा है?


यह भी पढ़ें: बेंगलुरु में कोविड के बेड की कमी नहीं, सरकार का कहना है कि निजी अस्पताल नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं


देर से पहचान

स्वास्थ्य सचिव के ऑफिस से मिले आंकड़ों से पता चलता है कि लोग इलाज के लिए अस्पतालों में काफी देर से आ रहे हैं. गुजरात में डिस्चार्ज हुए मरीज़ों के अस्पताल में रहने की औसत अवधि 11.03 दिन है, जबकि मरने वालों में ये 6.24 दिन है.

डॉक्टरों का कहना है कि बीमारी का देर से पता चलना, गुजरात में ऊंची मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण है. प्रकोप के शुरूआती दिनों में मरीज़ों को कोविड-19 के लिए अस्पतालों में देर से भर्ती किया जाता था. इससे उनके लक्षण और आक्रामक हो जाते थे जिससे मृत्यु दर बढ़ जाती थी.

गुजरात में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ चंद्रेश जारदोश ने दिप्रिंट से कहा, ‘मरीज़ इलाज के लिए बहुत देर से आ रहे हैं, हम उन्हें इलाज बताते हैं और जाकर टेस्ट कराने के लिए कहते हैं. लेकिन वो खुद अपना इलाज करने लगते हैं और यहां देर से आते हैं, जिससे मरने की संभावना बढ़ जाती है’.

बीमारी का देर से पता चलने से मरीज़ का वायरल लोड भी बढ़ जाता है, जिससे उनका केस और अधिक जानलेवा हो जाता है.

A healthcare worker tests a man for Covid-19 in Ahmedabad | Photo: Praveen Jain | ThePrint
अहमदाबाद सिविल अस्पताल में कोविड जांच करता स्वास्थ्यकर्मी | फोटो: प्रवीन जैन | दिप्रिंट

डॉक्टरों ने ये भी कहा कि मरीज़ अस्पतालों को मृत्यु दर से जोड़कर देख रहे थे और उनसे इलाज नहीं करा रहे थे.

अहमदाबाद मेडिकल एसोसिएशन की अध्यक्ष डॉ मोना देसाई ने कहा, ‘समस्या मरीज़ों में जागरूकता की नहीं थी. चूंकि अस्पतालों में मृत्यु दर अधिक थी, इसलिए मरीज़ इन अस्पतालों में जाने से डरते थे’.

उन्होंने कहा कि खुद बनाई इस दृष्टिकोण की वजह से मृत्यु दर बढ़ गई.


यह भी पढ़ें: सचिन पायलट मामले में राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने किया इंकार


अन्य बीमारियां

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत, इंटीग्रेटेड डिज़ीज़ सर्वेलेंस प्रोग्राम में, सरकार द्वारा कराए गए मौतों के विश्लेषण के अनुसार, गुजरात में मरने वाले मरीज़ों में 83.2 प्रतिशत, किसी दूसरी बीमारी से भी ग्रसित थे, जो राष्ट्रीय औसत 57 प्रतिशत (2 जुलाई को) से काफी अधिक था.

अहमदाबाद सिविल अस्पताल में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी, डॉ एमएम प्रभाकरन ने कहा, ‘गुजरात में डायबिटीज़ बीमारियां बहुत पाई जाती हैं. ये सबसे सामान्य को-मॉर्बिडिटी है’.

इसके अलावा, कोविड-19 से मारे गए मरीज़ों में आधे से अधिक (56.4 प्रतिशत) 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के थे. इसका मतलब है कि मरने वाले मरीज़ों में 40 प्रतिशत से अधिक कम जोखिम वाले आयु वर्ग में थे, जो कि बाकी देश के विपरीत था.

सरकारी विश्लेषण के अनुसार, मौतों को उम्र के हिसाब से बांटें तो 39.02 प्रतिशत 60 से 74 के आयु वर्ग में थीं और मरने वाले 12.88 प्रतिशत मरीज़ 75 से अधिक के थे.

भीड़-भाड़, घबराहट और गाइडलाइन्स में गड़बड़ियां

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के निदेशक डॉ दिलीप मावलंकर ने बताया कि शुरू में अहमदाबाद के भीड़ भरे हॉटस्पॉट्स ने किस तरह ऊंची मृत्यु दर में योगदान दिया.

उन्होंने कहा, ‘गुजरात में महामारी की शुरूआत, अहमदाबाद के बीच के भीड़ भाड़ वाले इलाक़ों में हुई, जैसे जमालपुर, शाहपुर वगैरह’. पहले कुछ मामलों में वायरल लोड बहुत अधिक था क्योंकि ये बहुत घने इलाके थे इसीलिए शुरू में मौतें ज़्यादा हुईं’.

मावलंकर ने कहा कि लॉकडाउन की वजह से काफी घबराहट फैल गई थी और लोग सरकारी अस्पतालों में जाने से डर रहे थे.

अहमदाबाद के जमालपुर-खादिया इलाके से, जो शहर के सबसे बड़े हॉट-स्पॉट्स में था, विधायक इमरान खेड़ावाला ने, जो खुद भी वायरस से संक्रमित हो गए थे, इस भ्रम और डर पर अपनी राय रखी.

खेड़ावाला ने कहा, ‘उस समय दवाओं की सभी दुकानें और क्लीनिक्स बंद करा दिए गए थे. इसलिए लोग कोविड-19 के अलावा, दूसरी बीमारियों का इलाज नहीं करा सके. इस वजह से भी मौतों में इज़ाफा हुआ’.

उन्होंने समझाया, ‘लोगों को सरकारी सुविधाओं और अस्पतालों पर भरोसा नहीं था. वो इतने डरे हुए थे कि जब डॉक्टरों ने उनके घरों तक पहुंचना चाहा, तो लोग दरवाज़े बंद कर देते थे’.

खेड़ावाला ने कहा कि उनके इलाके में हालात अब लगभग काबू में आ गए हैं. जमालपुर में इंफेक्शन के पीक पर जून में जितने मामले थे, अब उससे बीस गुना कम दर्ज हो रहे हैं.

सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों ने ये भी कहा कि कोविड मरीज़ों की भर्ती कैसे होनी चाहिए, इस बारे में सरकार ने जो गाइडलाइन्स जारी कीं थीं, उन्हें लेकर भी भ्रम की स्थिति थी.

अहमदाबाद सिविल अस्पताल के एडीशनल मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ राकेश जोशी ने दिप्रिंट से कहा, ‘पहले ये गाइडलाइन्स थीं कि जिनमें भी लक्षण हों, उन्हें ज़रूर भर्ती करना है. इससे सुविधाओं पर बहुत बोझ बढ़ गया. उसके बाद गाइडलाइन्स आईं कि जिनके टेस्ट पॉज़िटिव हों, सिर्फ उन्हें भर्ती करना है’.

‘अब अंतिम सिफारिश ये है कि सिर्फ वो मरीज़, जिनके टेस्ट पॉज़िटिव हैं और जिनमें गंभीर लक्षण हैं, अस्पताल में भर्ती किए जाने चाहिए. इसकी वजह से कोविड सुविधाओं का बोझ कुछ कम हुआ है’.


यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ सरकार का दावा, गोधन योजना से 5 लाख भूमिहीन किसानों को होगा फायदा, 2300 करोड़ का है राजस्व मॉडल


पर्याप्त टेस्टिंग नहीं

डॉ जरदोश, जिन्होंने मामलों की देर से पहचान की बात की थी, कम टेस्टिंग को भी ऊंची मृत्यु दर का कारण बताया, जबकि डॉ देसाई की अहमदाबाद मेडिकल एसोसिएशन ने गुजरात हाईकोर्ट में याचिका डाली कि टेस्ट जनसंख्या के अनुपात से कराए जाने चाहिए.

देसाई ने दिप्रिंट से कहा, ‘दूसरे राज्यों में, 25,000 से 30,000 टेस्ट कराए जा रहे हैं, यहां तक कि दिल्ली में भी, जिसकी आबादी गुजरात से कम है. इसी तरह तमिलनाडु में भी, जिसकी आबादी गुजरात के लगभग बराबर है, 30 हजार टेस्ट हो रहे हैं’.

A Covid-19 test kit box at Ahmedabad Civil Hospital | Praveen Jain | ThePrint
अहमदाबाद सिविल अस्पताल में रखा कोविड टेस्ट किट | फोटो: प्रवीन जैन | दिप्रिंट

लेकिन 20 और 21 जुलाई के दिन गुजरात में ये संख्या क्रमश: 12,867 और 13,693 थी.

देसाई ने कहा कि ‘फिलहाल सबसे बड़ी समस्या’ ये है कि राज्य बिना लक्षण वाले मरीज़ों के टेस्ट नहीं करने दे रहा है.

ये पूछे जाने पर कि क्या गुजरात में टेस्टिंग बढ़ाए जाने की ज़रूरत है, प्रमुख सचिव स्वास्थ्य, जयंती रवि ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम लगातार टेस्टिंग को बढ़ा रहे हैं. अब हमारे पास काफी संख्या में लैब्स हैं. इसके अलावा, अगर आप प्रति दस लाख पर टेस्टों की संख्या देखें, तो हम राष्ट्रीय औसत से कहीं ज़्यादा हैं’.

लेकिन हर दस लाख पर टेस्टों का राष्ट्रीय औसत 10,486 है जबकि गुजरात में प्रति दस लाख, ये संख्या 8,809 दर्ज हुई है.

टेस्टिंग को बढ़ाने के प्रयास में नरेंद्र मोदी सरकार ने एक जुलाई को राज्यों और केंद्र-शासित क्षेत्रों को एक पत्र लिखा था, जिसमें टेस्ट के लिए किसी सरकारी डॉक्टर के नुस्खे की अनिवार्यता को खत्म करने की सलाह दी गई थी. सही से कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग न करने के लिए, उसने कुछ प्रांतों की खिंचाई भी की. पत्र लिखने के पीछे एक वजह, गुजरात की ‘प्रतिबंधित टेस्टिंग’ भी थी.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘राज्य ने एक समय अपने यहां टेस्टिंग को काफी प्रतिबंधित कर दिया था. उन्होंने इसके लिए सरकारी डॉक्टर के दस्तखत ज़रूरी कर दिए थे. इसीलिए भारत सरकार की ओर से एक पत्र भेजकर, राज्यों से ऐसे प्रतिबंध हटाने के लिए कहा गया’.

‘वायरस का अलग स्ट्रेन’

इस दावे के बारे में पूछे जाने पर कि गुजरात का वायरल लोड बहुत ऊंचा था, प्रमुख सचिव रवि ने दिप्रिंट को बताया, ‘ये अभी एक परिकल्पना है लेकिन गुजरात में वायरस का स्ट्रेन उस स्ट्रेन से अलग था, जो देश के दूसरे बहुत से हिस्सों में पाया गया था. विश्व स्तर पर दो स्ट्रेन थे, एक वो जो इटली से आया और दूसरा ईरान से.

‘इसे अभी स्टडीज़ से तय किया जाना है लेकिन एक ‘एल’ स्ट्रेन है और एक ‘एस’ स्ट्रेन है. ‘एस’ स्ट्रेन कम विषैला है, जबकि ‘एल’ स्ट्रेन से उबरना ज़्यादा मुश्किल है. एक्सपर्ट्स की राय ये लगती है कि गुजरात में जो वायरस है, उसका ताल्लुक ‘एल’ स्ट्रेन से है’.

लेकिन आईसीएमआर में महामारी विज्ञान और संक्रामक रोग विभाग के प्रमुख, डॉ रमन आर गंगाखेड़कर, जो अब रिटायर हो चुके हैं ने कहा, ‘देश में नोवेल कोरोनावायरस की प्रमुख अर्ध-प्रजातियों का पता लगाने में, हमें समय लगेगा. लेकिन इन म्यूटेशंस से संभावित वैक्सीन्स के बेअसर होने की संभावना नहीं है क्योंकि वायरस के तमाम सब-टाइप्स में, एक जैसे एंज़ाइम्स होते हैं. इसके अलावा, इसे भारत में अब तीन महीने हो गए हैं और इसमें तेज़ी से बदलाव नहीं होते’.


यह भी पढ़ें: कोविड वैक्सीन के लिए भारत की उम्मीद भारत बायोटेक एक डॉलर की रोटावायरस वैक्सीन के लिए प्रसिद्ध हो चुका है


जून के बाद मृत्यु दर कैसे गिरी?

एक्सपर्ट्स का मानना है कि हो सकता है कि वायरस अब कमज़ोर पड़ने लगा हो.

डॉ मावलंकर ने कहा, ‘मृत्यु दर कम हो गई है, हालांकि मामले बढ़ गए हैं. ये मामले हल्के हैं, इनमें वो गंभीरता नहीं है, जो अप्रैल में थी’.

‘सेंट्रल अहमदाबाद में एक तरह की इम्यूनिटी विकसित हो गई है और संक्रमण कम हो गए हैं. लेकिन अब ये बीमारी अहमदाबाद के दूसरे हिस्सों में फैल गई है’.

इन इलाकों में संक्रमण एक ‘हल्का रूप’ ले रहा है, चूंकि ये सेंट्रल अहमदाबाद जितने घने नहीं हैं और यहां ‘ज़्यादा पैसे वाले लोग हैं जिनकी इम्यूनिटी बेहतर है’.

मावलंकर ने समझाया, ‘इस वायरस में बदलाव भी होते हैं. इसमें कुछ कमज़ोरी भी आई है, जिसका मतलब है कि ये कम विषैला हो गया है. ये महामारी पटाखों की टोकरी की तरह है, जैसे ही पहली बार माचिस लगाई, ये जलनी शुरू हो जाती है. सबसे पहले ये आग अहमदाबाद में लगी और वहीं पर महामारी खत्म होगी. जल्दी ही ये सूरत और वडोदरा में होगी- इसे कर्व का सपाट होना कहते हैं’.

Jayanti Ravi, Gujarat's principal secretary, health | Photo: Praveen Jain | ThePrint
गुजरात की प्रिंसिंपल सेक्रेटरी स्वास्थ्य जयंती रवि | फोटो: प्रवीन जैन | दिप्रिंट

प्रमुख सचिव स्वास्थ्य, जयंती रवि ने भी इन हल्के मामलों को समझाने के लिए वायरस के ‘कमज़ोर पड़ने’ की बात कही.

उन्होंने कहा, ‘कुछ एक्सपर्ट्स वायरस के कमज़ोर पड़ने की बात करते हैं. जैसे-जैसे ये वायरस लोगों को प्रभावित करता है और इंसानी संक्रमण के विभिन्न चक्रों से गुज़रता है, इसमें कमज़ोरी आ जाती है और धीरे-धीरे इसका ज़हरीलापन कम हो जाता है’. उन्होंने आगे कहा, ‘अब जो मरीज़ आ रहे हैं, वो इतनी नाज़ुक हालत में नहीं हैं, जितना पहले वाले थे’.

ये पूछने पर कि क्या गुजरात जल्दी ही पीक की अपेक्षा कर रहा है, उन्होंने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि पूरा सूबा एक ही रास्ते पर है. अहमदाबाद में हम उम्मीद कर रहे हैं कि पीक का रिवर्स शुरू हो रहा है’.

उन्होंने कहा, ‘अब हमारे सामने स्थिति पहले से कहीं ज़्यादा स्पष्ट है कि वायरस से कैसे डील करना है. अगर हम सख़्ती से निगरानी करते रहें, धनवंत्री रथ (एक मोबाइल वैन जो लोगों के दरवाज़े पर गैर-कोविड आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराती है) इस्तेमाल करते रहें, हॉटस्पॉट्स पर नियंत्रण रखें, लोगों की जांच सुनिश्चित कराएं, तो हम वायरस को काबू कर सकते हैं’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments