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Tuesday, 5 November, 2024
होमदेशगुजरात चुनावों की आहट के बीच केंद्र ने विवादित 'पार-तापी-नर्मदा नदी जोड़ परियोजना' को रोका

गुजरात चुनावों की आहट के बीच केंद्र ने विवादित ‘पार-तापी-नर्मदा नदी जोड़ परियोजना’ को रोका

जल शक्ति मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि ये परियोजना तब तक आगे नहीं बढ़ेगी, जब तक गुजरात और महाराष्ट्र ‘एकमत’ नहीं हो जाते. कांग्रेस का दावा है कि अस्ली कारण ग़ुस्साएं आदिवासियों को चुनावों तक ‘शांत रखना’ है.

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नई दिल्ली: गुजरात में जहां इसी साल विधान सभा चुनाव होने हैं, वहां आदिवासी समुदायों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के बाद केंद्र सरकार ने पार-तापी-नर्मदा नदी जोड़ परियोजना को, फिलहाल रोकने का फैसला किया है.

लेकिन, जल शक्ति मंत्रालय सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्र सरकार परियोजना को सिरे से ख़त्म करने की विपक्ष की मांग को नहीं मान रही है, और इसे तब तक के लिए रोका जा रहा है जब तक गुजरात और महाराष्ट्र (वो दो सूबे जिनसे होकर ये नदियां बहती हैं) एक ‘आम सहमति’ पर नहीं पहुंच जाते.

कांग्रेस ने थोड़े संशय के साथ इस घोषणा का स्वागत किया है. सोमवार को एक प्रेस वार्त्ता में, गुजरात विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष सुखराम रथवा ने कहा कि परियोजना को ठंडे बस्ते में डालने के पीछे अस्ली कारण ये है कि, ‘चुनाव होने तक’ सरकार आदिवासियों को ‘शांत रखना’ चाहती है.

इस बीच प्रदेश बीजेपी ने भी परियोजना से दूरी बना ली है. गुजरात सिंचाई मंत्री ऋषिकेश पटेल ने मंगलवार को प्रदेश असेम्बली में कहा, कि गुजरात ने केंद्र से कहा है कि इस परियोजना पर आगे न बढ़ा जाए.

क्या है पार-तापी-नर्मदा नदी जोड़ परियोजना?

पार-तापी-नर्मदा नदी जोड़ परियोजना में परिकल्पना की गई है, कि महाराष्ट्र के पश्चिमी घाटों के अतिरिक्त पानी को, ‘सिंचाई, पनबिजली और जल-आपूर्ति के लिए’, सौराष्ट्र और कच्छ के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों की ओर लाया जाए.

परियोजना में तीन नदियों- पार, तापी, और नर्मदा को, जो महाराष्ट्र और गुजरात के ज़िलों से होकर बहती हैं, एक नहर के ज़रिए आपस में जोड़ा जाना है. परियोजना में सात बांध, तीन मेड़ और छह बिजली घरों का निर्माण भी शामिल है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को अपने बजट भाषण में ऐलान किया था, कि पार-तापी-नर्मदा समेत पांच नदी जोड़ परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट्स (डीपीआर्स) को, अंतिम रूप दे दिया गया है. उन्हें आगे ये भी कहा था कि ‘एक बार लाभार्थी सूबों के बीच आम सहमति बन जाए, तो केंद्र क्रियान्वयन के लिए सहायता उपलब्ध कराएगा’.

लेकिन, घोषणा होने के साथ ही प्रस्तावित परियोजना में कठिनाइयां सामने आने लगीं, और आदिवासी पट्टियों के निवासी अपने अपेक्षित विस्थापन को लेकर भारी विरोध प्रदर्शन करने लगे. कांग्रेस ने मुखर रूप से इन प्रदर्शनों का समर्थन किया, जबकि गुजरात बीजेपी अध्यक्ष सीआर पाटिल ने भी, पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से परियोजना पर फिर से विचार करने की अपील की.

ग़ौरतलब है कि नदी जोड़ परियोजना, उन कई योजनाओं में से एक है, जो दशकों से पाइपलाइन में चली आ रही हैं.

2002 में अटल बिहारी के नेतृत्व में एनडीए सरकार, एक नई राष्ट्रीय जल नीति का प्रस्ताव लेकर आई, जिसमें कृषि तथा अन्य उद्देश्यों के लिए, पानी को ‘बेशी’ वाली नदियों के घाटों से, ‘कमी’ वाली नदियों के घाटों तक लाने की बात की गई थी.

राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी ने व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करने के लिए, 30 जोड़ों की पहचान की थी. अभी तक, ऐसे केवल छह जोड़ों की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की जा सकी है, जिनमें एमपी तथा यूपी में केन-बेतवा शामिल हैं.

विरोध प्रदर्शन

परियोजना की घोषणा के बाद से क्षेत्र के निवासी, ख़ासकर आदिवासी पट्टियों में रहने वाले लोग, ज़ोर-शोर से इसका विरोध कर रहे हैं. गुजरात कांग्रेस भी आदिवासियों की ओर से, इसके विरोध में खड़ी हो गई है, और उसने नदी जोड़ परियोजनाओं के खिलाफ रैलियों में हिस्सा लिया है.

वांसदा से कांग्रेस विधायक अनंत पटेल ने दिप्रिंट से कहा, ‘पिछले 30 वर्षों में, विभिन्न परियोजनाओं की वजह से आदिवासियों पर ख़तरा मंडराता रहा है. जंगल और ज़मीनें भी तबाह की जा रही हैं. हम विकास के विरोधी नहीं हैं, लेकिन हम उसे अदिवासियों के विनाश की क़ीमत पर नहीं चाहते’.

चुनावी साल में प्रदेश बीजेपी नेतृत्व भी, विरोध प्रदर्शनों के सामने निराश दिख रहा है, और आदिवासी समुदाय के अलगाव से बचना चाहता है.

इसी सप्ताह, प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष सीआर पाटिल और गुजरात के अन्य शीर्ष नेताओं ने, नई दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, और जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से मुलाक़ात की, और उनसे परियोजना को रोकने की अपील की.

पाटिल ने पत्रकारों से ये भी कहा, कि बीजेपी ‘कुछ भी ऐसा नहीं करेगी, जिसके नतीजे में आदिवासियों की ज़मीनें उनसे छिन जाएं, और उनके हितों को नुक़सान पहुंचे’.

आम सहमति का सवाल

जल शक्ति मंत्रालय ने प्रदर्शनों का ज़िक्र नहीं किया है, लेकिन कहा है कि प्रस्तावित नदी जोड़ परियोजनाएं, दमनगंगा-पिंजाल और पार-तापी-नर्मदा नदी जोड़, जिनमें गुजरात और महाराष्ट्र शामिल हैं- उसी सूरत में रद्द की जाएंगी, जब दोनों सूबे आपस में किसी आम सहमति पर नहीं पहुंच पाएंगे.

जल शक्ति मंत्रालय के एक सूत्र ने कहा, ‘फिलहाल कोई सहमति नहीं है. परियोजना तब तक कार्यान्वित नहीं होगी, जब तक सहमति नहीं बन जाती’.

लेकिन, गुजरात और महाराष्ट्र पहले डीपीआर पर सहमत हो गए थे, हालांकि अब वो ज़ाहिरी तौर पर एकमत नज़र नहीं आते.

मई 2010 में, गुजरात, महाराष्ट्र और केंद्र ने, पहले एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अंतर्गत पार-तापी-नर्मदा जोड़ के लिए, एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार की जानी थी.

2017 के कुछ दस्तावेज़ों के अनुसार, जो जल शक्ति मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं, तत्कालीन जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने, महाराष्ट्र और गुजरात के तब के मुख्य मंत्रियों- देवेंद्र फड़णवीस और विजय रूपाणी के साथ, 25 सितंबर 2017 को एक बैठक की थी. उस बैठक में दोनों बीजेपी मुख्यमंत्री, परियोजना को कार्यान्वित करने पर सहमत हो गए थे.

गडकरी ने स्थिति का जायज़ा लेने के लिए, 16 जनवरी 2018 को महाराष्ट्र और गुजरात सरकार के प्रतिनिधियों के साथ एक और बैठक की. उसके बाद भी कई बैठकें हुईं, जिनमें से एक 7 सितंबर 2018 को परियोजना के कार्यान्वयन की दिशा में, एमओयू को अंतिम रूप देने के लिए, दोनों सूबों के मुख्य सचिवों के बीच हुई.

बीजेपी अभी भी गुजरात की सत्ता संभाले हुए है, जबकि महाराष्ट्र में अब शिवसेना के उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में एक गठबंधन सरकार है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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