इम्फाल: मृतकों का शरीर राज्य में हो रही बर्बरता का गवाह है. गंभीर चोट से विकृत चेहरे, क्रूरता के साथ काटा गया शरीर का मांस. यह सब कोई तभी कर सकता है जब घृणा अपने चरम पर हो. मौत की गंध हवा में चारों ओर तैर रही है, जो साधारण लकड़ी के ताबूतों के अंदर पॉलिथीन की परतों में लिपटी हुई लाशों से आ रही है. लाशें सड़ रही हैं लेकिन उन पर दावा करने वाला कोई नहीं है. साथ ही कोई उन्हें उचित तरीके से दफनाने वाला भी नहीं है.
मणिपुर के दो शीर्ष अस्पतालों, इम्फाल पूर्व स्थित जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान संस्थान (JNIMS) और इम्फाल पश्चिम स्थित क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान (RIMS) के पोस्टमार्टम कक्षों में डॉक्टर पहली हिंसा के बाद से ही शवों की संख्या और संकेतों को रिकॉर्ड कर रहे हैं. 3 मई से राज्य में शुरू हुई हिंसा अब तक जारी है.
इस सप्ताह के अंत में JNIMS के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने शवों पर लगी चोटों को “भयानक” और “परेशान करने वाला” बताया. नाम न छापने की शर्त पर एक डॉक्टर ने कहा, “ज्यादातर शवों पर चाकू से कई वार किए गए हैं. कई पर तेज हथियार से की गई चोटें हैं. चेहरे विकृत हो गए हैं. पूरे शरीर पर कट और स्लिट के निशान हैं. कई शव पूरी तरह से क्षत-विक्षत हैं.”
राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, ये जातीय हिंसा के 175 पीड़ितों में से कुछ हैं, जिसने मई से पूरे मणिपुर को हिलाकर रख दिया है. मई में राज्य के प्रमुख समुदाय मैतेई और आदिवासी समुदायों के बीच तनाव पूर्ण झड़प भारी हिंसा में बदल गया. यह हिंसा अपने पीछे रक्तपात, क्रूरता और भय का निशान छोड़ गई है.
क्षेत्र में हिंसा के इतिहास के बावजूद, डॉक्टर ने कहा कि मणिपुर में जो कुछ हुआ वह “अभूतपूर्व” था. डॉक्टर ने कहा, “डॉक्टर के रूप में, हम हत्याओं और दुर्घटनाओं के मामलों को देखने के आदी हैं, लेकिन ऐसी हत्याओं की संख्या बहुत अधिक थी.”
इसके अलावा, दोनों अस्पतालों को एक और चुनौती का भी सामना करना पड़ रहा है. मुर्दाघर में पड़े लावारिस शवों का निपटान करना बहुत जरूरी है और यह स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है. सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि घाटी में मैतेई और पहाड़ियों में कुकी के बीच विभाजन ने लोगों को दूसरे समुदाय के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में प्रवेश करने के डर से अपने मृतकों का दावा करने से रोक दिया है.
JNIMS के सूत्रों के मुताबिक ज्यादातर लावारिस शव कुकियों के हैं.
डॉक्टर ने कहा कि पहले कुछ महीने कठिन थे, लेकिन अब स्थिति धीरे-धीरे सामान्य होती दिख रही है. उन्होंने कहा, “अब, हमारे पास उतने शव नहीं आ रहे हैं. संख्या कम हो गई है, लेकिन शव अभी भी आ रहे हैं.”
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 3 मई से अब तक हुई हिंसा में 175 लोग मारे गए हैं और सबसे ज्यादा मौतों के लिए बंदूक की गोली जिम्मेदार हैं. 3 मई को प्रमुख मैतेई और आदिवासी कुकी समुदायों के बीच जातीय तनाव पूरी तरह से हिंसा में बदल गया.
जहां JNIMS ने केवल तीन महीनों में 61 शवों का पोस्टमार्टम किया, वहीं RIMS ने 56 शवों का पोस्टमार्टम किया है. अस्पताल के रिकॉर्ड के अनुसार, अधिकांश मामलों में अन्य चोटों के अलावा बंदूक की गोली लगने को मौत का कारण पाया गया.
JNIMS के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा कि चुराचांदपुर के जिला अस्पताल में भी कुछ पोस्टमॉर्टम किए गए, जहां JNIMS से डॉक्टरों की एक टीम भेजी गई थी.
डॉक्टर ने कहा, “ज्यादातर मामलों में मौत बंदूक की गोली लगने के कारण हुई, जिससे पता चलता है कि हत्या के लिए हथियारों का खुलेआम इस्तेमाल किया जा रहा है.”
उन्होंने कहा कि जो बात परेशान करने वाली है वह है चोटों की क्रूर प्रकृति.
उन्होंने कहा कि चार महीने से अधिक समय बीत चुके हैं लेकिन हथियारों की बरामदगी नहीं हो रही है. बता दें कि 200 से अधिक एके-47, 406 कार्बाइन, 551 इंसास राइफल, 250 मशीनगन और 6.5 लाख से अधिक गोला-बारूद पुलिस शस्त्रागारों और स्टेशनों से लूटे गए थे. हथियार अधिकतर मैतेई-प्रभुत्व वाले इंफाल घाटी में लूटे गए थे.
हालांकि, हथियारों की कोई ठोस बरामदगी नहीं होने के कारण स्थानीय लोगों के हाथों में हथियार का जखीरा रह गया और हिंसा का चक्र तेज हो गया है. पुलिस आंकड़ों के मुताबिक, चुराए गए 5,668 अत्याधुनिक स्वचालित हथियारों में से अब तक केवल 1,331 ही बरामद किए गए हैं.
चार महीने बाद भी राज्य में हिंसा जारी है. राज्य के विभिन्न हिस्सों से हत्या की कई घटनाएं सामने आ रही हैं. बुधवार को बिष्णुपुर के पास चुराचांदपुर की सीमा के करीब चिंगफेई गांव में कुकी पुलिस अधिकारी ओनखोमांग हाओकिप की कथित तौर पर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. पिछले हफ्ते तांगखुल नागा बहुल उखरुल जिले के एक गांव में तीन कुकी मारे गए, जो अब तक अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण था.
यह भी पढ़ें: मणिपुर हिंसा में अब तक 5,107 आगजनी, 71 हत्याएं: लेकिन पुलिस ने अभी तक नहीं शुरू की जांच
‘स्वास्थ्य के लिए ख़तरा, मरने वालों को भी सम्मान नहीं’
दो अस्पताल- JNIMS और RIMS – अब लावारिस शवों को संभालने की बढ़ती चुनौती से जूझ रहे हैं. उनके मुर्दाघर में कई लाश कई दिनों से पड़े हैं और यह एक गंभीर स्वास्थ्य का खतरा बन रहा है.
जब दिप्रिंट ने शनिवार को JNIMS का दौरा किया, तो मुर्दाघर के दो बंद कमरों में 26 लकड़ी के ताबूत पड़े थे. अंदर, क्षत-विक्षत शवों को पॉलिथीन की कई परतों में लपेटकर रखा गया था. अंदर तेज गर्मी थी और केवल एक हवा बाहर निकालने वाला पंखा चल रहा था. अंदर एयर कंडीशनिंग की कोई व्यवस्था नहीं थी.
इसी तरह, RIMS में 28 ऐसे शव रखे हुए थे जो अपने परिजनों का इंतजार कर रहे हैं. साथ ही चुराचांदपुर में भी 42 शव मुर्दाघर में रखे हैं. सभी शव सड़ रहे हैं और धीरे-धीरे खराब हो रहे हैं.
ऊपर उद्धृत डॉक्टर ने कहा कि ये सभी हिंसक झड़पों के शिकार हैं जो अब उनके संबंधित अस्पताल परिसर के भीतर एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य खतरा पैदा करते हैं. उन्होंने कहा कि अस्पताल के कर्मचारी बदबू से निपटने और स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं.
सूत्रों के अनुसार, दोनों अस्पतालों ने राज्य सरकार को पत्र लिखा है और बार-बार अनुस्मारक भेजकर इन शवों के तत्काल निपटान की मांग की है, हालांकि, अब तक कोई कार्रवाई शुरू नहीं की गई है, जिससे शव धीरे-धीरे सड़ने लगे हैं.
शुरू में शवों को फ्रीजर में रखा गया था. पर अब क्षमता की कमी के कारण नए शवों को रखने के लिए शवों को बाहर ले जाया गया है. जबकि JNIMS में केवल दो फ्रीजर हैं, जिनमें से एक चालू नहीं है. RIMS में केवल एक ही फ्रीजर है. प्रत्येक फ्रीजर में केवल छह शव रखे जा सकते हैं.
अस्पताल के एक सूत्र ने दिप्रिंट से कहा, “ये सभी शव पूरी तरह से विघटित हो गए हैं. कुछ बक्सों में केवल हड्डियां बची हैं.”
सूत्र ने कहा, “हमने जिला कलेक्टर को पत्र लिखा है और यह कहते हुए अनुस्मारक भेजा है कि यह एक स्वास्थ्य खतरा बन गया है और हमारे पास इसे पूरा करने की क्षमता नहीं है, लेकिन उनकी ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई है.”
पोस्टमॉर्टम के बाद शव पुलिस को सौंप दिए गए हैं. इसके बाद पुलिस यह सुनिश्चित करती है कि शव को उनके परिवारों को सौंप दिया जाए. ऐसे में शव लावारिस पड़े हुए हैं.
सूत्र ने कहा, “इन शवों को जल्द से जल्द निपटाने की जरूरत है. किसी को भी मृतकों के प्रति कुछ सम्मान होना चाहिए.”
दिप्रिंट इम्फाल ईस्ट की डिप्टी कमिश्नर खुमनथेम डायना देवी से बात करने के लिए पहुंचा. साथ ही किरणकुमार डिप्टी कमिश्नर, इंफाल पश्चिम से व्हाट्सएप मैसेज के माध्यम से संपर्क करने की कोशिश की. लेकिन उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
यह भी पढ़ें: AK-47 से कार्बाइन तक, लूटे गए 3,422 हथियार अब भी लोगों के पास, ‘रिकवरी तक मणिपुर में हिंसा नहीं होगी खत्म’
‘नो-गो जोन’
सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों के अनुसार मणिपुर के विभाजन के कारण घाटी में मैतेई और पहाड़ियों में कुकी का प्रभुत्व है. किसी भी समुदाय द्वारा दूसरे के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों की यात्रा करने में असमर्थता के कारण मुर्दाघरों में लावारिस शव पड़े हैं.
पुलिस के आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में हिंसा शुरू होने के बाद से मणिपुर में 50,000 से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं.
जबकि कुकी, जो इंफाल घाटी में रह रहे थे, पहाड़ियों की ओर चले गए हैं, पहाड़ियों में रहने वाले मैतेई लोग, हालांकि संख्या में कुछ कम हैं, घाटी में आ गए हैं.
कटोरे के आकार का मणिपुर नौ पहाड़ियों से घिरा हुआ है. जबकि मैतेई-प्रभुत्व वाली इम्फाल घाटी मध्य क्षेत्र में है जबकि दक्षिणी पहाड़ियां मुख्य रूप से कुकी जनजातियों का निवास स्थान है. उत्तरी पहाड़ियां नागाओं का घर हैं.
एक सूत्र ने दिप्रिंट से कहा, “इंफाल घाटी कुकी लोगों के लिए निषिद्ध क्षेत्र बन गई है, इसलिए कोई भी अपने परिजनों के शवों पर दावा करने के लिए घाटी की ओर नहीं जाता है क्योंकि उन्हें अपनी जान का डर है. इसी तरह, कुछ मैतेई के शव, जो चुराचांदपुर में रखे हैं, घाटी में वापस नहीं लाए जा सकते.”
दिप्रिंट से बात करते हुए, ऑल मणिपुर ट्राइबल यूनियन के महासचिव केल्विन नेहसियाल ने कहा कि उन्होंने इम्फाल में अधिकारियों से अपने मृतकों के शवों को चुराचांदपुर भेजने के लिए कई अनुरोध किए हैं, लेकिन अब तक कुछ नहीं किया गया है.
उन्होंने कहा, “अगर हम इंफाल में दाखिल हुए तो वे हमें मार डालेंगे. इंफाल में घुसने की हमारी हिम्मत नहीं है. कुकी के वे शव मुर्दाघर में हैं और पिछले चार महीने से अधिक समय से वहीं पड़े हुए हैं. हमने इंफाल में अधिकारियों से कई अनुरोध किए, लेकिन वे उन शवों को हमें भेजने के मूड में नहीं हैं. वे बस यही चाहते हैं कि वे वहीं सड़ जाएं.”
अगस्त में, चुराचांदपुर में 35 कुकी -ज़ो समुदाय के सदस्यों को सामूहिक रूप से दफनाने के लिए एक आदिवासी निकाय द्वारा एक आह्वान की घोषणा की गई थी.
जिस स्थान पर दफ़नाने का प्रस्ताव किया गया था वह तोरबंग में था. यह कुकी-ज़ोमी-प्रभुत्व वाले चुराचांदपुर जिले और मैतेई-प्रभुत्व वाले बिष्णुपुर जिले की सीमा पर एक क्षेत्र है.
हालांकि, कथित तौर पर गृह मंत्रालय (MHA) की अपील के बाद दफन को स्थगित कर दिया गया था, जिसने कुकी समुदाय को आश्वासन दिया था कि वे दफनाने के मामले पर बात करेंगे और इसे हल करने का प्रयास करेंगे.
हालांकि, मणिपुर उच्च न्यायालय ने 3 अगस्त को निर्देश दिया कि प्रस्तावित दफन स्थल पर यथास्थिति बनाए रखी जाए.
(संपादनः ऋषभ राज)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ें: मणिपुर में मारी गई महिलाओं के अंदर ‘शुक्राणु’ के सबूत नहीं मिले, लेकिन इससे रेप का आरोप खारिज नहीं होता