scorecardresearch
मंगलवार, 27 मई, 2025
होमदेशग्रेट निकोबार परियोजना: जुएल ओरांव ने कहा कि आदिवासी समुदायों की आपत्तियों का अध्ययन कर रहा मंत्रालय

ग्रेट निकोबार परियोजना: जुएल ओरांव ने कहा कि आदिवासी समुदायों की आपत्तियों का अध्ययन कर रहा मंत्रालय

Text Size:

नयी दिल्ली, 26 मई (भाषा) केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री जुएल ओरांव ने सोमवार को कहा कि उनका मंत्रालय ग्रेट निकोबार द्वीप पर प्रस्तावित एक विशाल अवसंरचना परियोजना को लेकर जनजातीय समुदायों द्वारा उठाई गई आपत्तियों का अध्ययन कर रहा है।

‘ग्रेट निकोबार का समग्र विकास’ नामक इस परियोजना में 160 वर्ग किलोमीटर से अधिक भूमि पर एक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट, एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक टाउनशिप और एक बिजली संयंत्र का निर्माण प्रस्तावित है।

इसमें लगभग 130 वर्ग किलोमीटर का प्राचीन जंगल शामिल है, जहां स्थानीय निकोबारी और शोम्पेन समुदाय रहते हैं जिन्हें ‘विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय समूह’ (पीवीटीजी) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

भाषा

जब उनसे पूछा गया कि क्या मंत्रालय परियोजना के बारे में जनजातीय समुदायों की शिकायतों की जांच कर रहा है, तो मंत्री ने संवाददाताओं से कहा, ‘हां, इसकी जांच की जा रही है। मैंने संसद में (इस संबंध में) एक प्रश्न का उत्तर भी दिया था। हम वर्तमान में उनके द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की जांच कर रहे हैं। उसके बाद, हम कार्रवाई का तरीका तय करेंगे।’

मंत्रालय क्या पता लगाना चाहता है, इस बारे में आगे पूछे जाने पर ओराम ने कहा, ‘सबसे पहले, हमें यह निर्धारित करने की आवश्यकता है कि क्या ‘ग्राम सभा’ ​​(इस मामले में आदिवासी परिषद) आयोजित की गई थी, ‘ग्राम सभा’ ​​ने क्या सिफारिश की थी और क्या कोई उल्लंघन हुआ है।’ दिलचस्प बात यह है कि 12 मार्च को राज्यसभा में चर्चा के दौरान ओराम ने कहा कि उन्हें ग्रेट निकोबार के आदिवासी समुदायों द्वारा परियोजना पर उठाई गई किसी भी आपत्ति के बारे में जानकारी नहीं है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, लिटिल और ग्रेट निकोबार की आदिवासी परिषद ने 84.1 वर्ग किलोमीटर आदिवासी रिजर्व को गैर-अधिसूचित करने और 130 वर्ग किलोमीटर जंगलों को मोड़ने के लिए अगस्त 2022 में जारी किए गए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) को वापस ले लिया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि एनओसी मांगते समय महत्वपूर्ण जानकारी का खुलासा नहीं किया गया था। आदिवासी परिषद एक स्थानीय निर्वाचित निकाय है और भूमि मोड़ और वन मंजूरी के लिए इसकी मंजूरी ग्राम सभा की मंजूरी की तरह ही महत्वपूर्ण है। द्वीप के कुल 910 वर्ग किलोमीटर में से लगभग 853 वर्ग किलोमीटर को अंडमान और निकोबार (आदिवासी जनजातियों का संरक्षण) विनियमन, 1956 के तहत आदिवासी रिजर्व के रूप में नामित किया गया है। आदिवासी रिजर्व में, आदिवासी समुदाय भूमि के मालिक हैं और उन्हें अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए इसका उपयोग करने का पूरा अधिकार है। हालांकि, इन क्षेत्रों में भूमि को हस्तांतरित करना, अधिग्रहण करना या बेचना सख्त वर्जित है। शोम्पेन जनजाति की सुरक्षा और संरक्षण के लिए, अंडमान और निकोबार प्रशासन ने 22 मई, 2015 को ग्रेट निकोबार द्वीप के शोम्पेन जनजाति पर नीति पेश की। जनजातीय मामलों के केंद्रीय राज्य मंत्री दुर्गादास उइके ने पिछले साल 12 दिसंबर को लोकसभा को सूचित किया कि ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना के संबंध में, शोम्पेन नीति ‘संबंधित अधिकारियों के साथ उचित परामर्श के अधीन विकास प्रस्तावों की अनुमति देती है, जो किया गया है’। उन्होंने कहा, ‘अंडमान और निकोबार प्रशासन ने सूचित किया है कि परियोजना किसी भी शोम्पेन पीवीटीजी को परेशान या विस्थापित नहीं करेगी।’ वैभव शोभना

शोभना

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments