महाकुम्भ नगर, दो जनवरी (भाषा) महाकुम्भ क्षेत्र में सनातन धर्म के ध्वज वाहक अखाड़ों के प्रवेश का सिलसिला जारी है। इसी क्रम में बृहस्पतिवार को घोड़े, ऊंट पर नागा साधुओं की सवारी के साथ श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ने राजसी वैभव के साथ छावनी क्षेत्र में प्रवेश किया।
शहर में जगह-जगह पुष्प वर्षा कर संतों का भव्य स्वागत किया गया। कुम्भ मेला प्रशासन की तरफ से भी अखाड़े के महात्माओं का स्वागत किया गया।
सनातन धर्म के 13 अखाड़ों में सबसे धनवान कहे जाने वाले श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी का भव्य जुलूस, अलोपी बाग के निकट स्थित महानिर्वाणी अखाड़े की स्थानीय छावनी से निकला। सबसे पहले महामंडलेश्वर पद का सृजन करने वाले इस अखाड़े में इस समय 67 महामंडलेश्वर हैं।
अखाड़े की छावनी प्रवेश यात्रा में भी इसकी झलक देखने को मिली। अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानंद जी की अगुवाई में यह छावनी प्रवेश यात्रा शुरू हुई जिसमें आगे-आगे अखाड़े के इष्ट भगवान कपिल जी का रथ चल रहा था, जिसके बाद आचार्य महामंडलेश्वर का भव्य रथ श्रद्धालुओं को दर्शन दे रहा था।
अखाड़ा के सचिव महंत यमुना पुरी ने कहा कि नारी शक्ति को महानिर्वाणी अखाड़ा ने हमेशा विशिष्ट स्थान दिया है। उनके अनुसार अखाड़ों में मातृ शक्ति को स्थान भी सबसे पहले महानिर्वाणी अखाड़ा ने दिया तथा साध्वी गीता भारती को अखाड़ों की पहली महामंडलेश्वर होने का स्थान प्राप्त है जो उन्हें 1962 में प्रदान किया गया था।
उन्होंने बताया कि महानिर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी हरि हरानंद जी की शिष्या संतोष पुरी तीन साल की उम्र में अखाड़े में शामिल हुईं और उन्हें ही यह उपलब्धि हासिल है। उनके मुताबिक दस साल की उम्र में वह गीता का प्रवचन करती थी जिसके कारण राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें गीता भारती का नाम दिया और संतोष पुरी अब संतोष पुरी से गीता भारती बन गई।
छावनी प्रवेश यात्रा में भी इसकी झलक देखने को मिली जिसमें चार महिला मंडलेश्वर भी शामिल हुईं। छावनी यात्रा में पर्यावरण संरक्षण के कई प्रतीक भी साथ चल रहे थे। पांच किमी लंबा सफर तय करके शाम को अखाड़े ने छावनी में प्रवेश किया।
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राजकुमार
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