नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी (ईएसी), जिसे पर्यावरण मंजूरी देने से पहले परियोजनाओं की जांच करने का काम सौंपा गया था, ने दूरस्थ ग्रेट निकोबार द्वीप समूह को विकसित करने की नीति आयोग की योजना में कई विसंगतियों की पहचान की है। पैनल ने इस बारे में और अधिक जानकारी मांगी है, ताकि वह इस मामले पर ‘बेहतर निर्णय’ ले सके.
नीति आयोग ने 72,000 करोड़ रुपये का एक अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल, हवाई अड्डा, थर्मल पावर प्लांट और बड़े पैमाने पर जैव विविधता से संपन्न निर्जन द्वीप पर टाउनशिप बनाने का प्रस्ताव रखा है.
पर्यावरणीय मंजूरी मानदंडों के अनुरूप, इस वर्ष की शुरुआत में समिति को परियोजना पर एक पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी. ईआईए स्थानीय पारिस्थितिकी पर किसी परियोजना के प्रभावों और निर्माण के मूल्यांकन की एक प्रक्रिया है.
दो दिनों, 24 और 25 मई को आयोजित एक बैठक में, समिति ने पाया कि ईआईए रिपोर्ट में विशेष रूप से पहले मांग की गई मूल्यांकन योजनाओं को बाहर रखा गया था, जैसे कि तेल रिसाव के लिए जोखिम मूल्यांकन और परियोजना से प्रभावित कई प्रजातियों के लिए पुनर्वास योजनाएं.
ग्रेट निकोबार द्वीप समूह में जानवरों की 1,700 से अधिक प्रजातियां हैं, और यह देश के सबसे जैव विविधता वाले हिस्सों में से एक है, जिसमें प्राकृतिक, घने जंगल के बड़े हिस्से हैं.
पिछले हफ्ते सार्वजनिक किए गए मीटिंग के मिनट्स में कहा गया, ‘खारे पानी के मगरमच्छ प्रबंधन योजना के लिए ईएसी के अनुरोध के जवाब में, मानव-मगरमच्छ संघर्ष को समाप्त करने के लिए एक कार्य योजना का पालन करने के आश्वासन के अलावा कोई योजना प्रस्तुत नहीं की गई है.’
समिति ने यह भी स्वीकार किया कि ट्रांसशिपमेंट पोर्ट गंभीर रूप से लुप्तप्राय विशाल लेदरबैक कछुए की नेस्टिंग हैबिट ‘गड़बड़ कर सकता’ है, जो कि ईआईए रिपोर्ट में किए गए दावों के विपरीत है जिसमें कहा गया है कि कछुए ‘बिना किसी बाधा के नेस्टिंग साइट में प्रवेश कर सकते हैं.’
विशाल लेदरबैक कछुआ दुनिया भर में लुप्तप्राय प्रजातियों में शामिल है और वैश्विक स्तर पर इसके कुछ ही नेस्टिंग साइट्स हैं. उनमें से एक ग्रेट निकोबार द्वीप में गैलाथिया बे है, जो हजारों करोड़ रुपये के ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह के लिए भी चयनित स्थल है. पर्यावरणविदों ने कहा है कि बंदरगाह के निर्माण से कछुओं को और खतरा होगा, और आइलैंड की पारिस्थितिकी को ऐसा नुकसान पहुंचेगा जिसकी भरपाई नहीं हो सकेगी.
हालांकि, वहां पर रक्षा गतिविधियों को देखते हुए समिति ने बंदरगाह को स्थानांतरित करने का सुझाव नहीं दिया है. इसने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से वर्तमान नेस्टिंग साइट को बचाने का कोई और तरीका खोजने का सुझाव दिया है, और साथ ही कछुओं व मेगापोड बर्ड्स के लिए तीन वैकल्पिक नेस्टिंग साइट्स का भी प्रस्ताव रखा है. ग्रेट निकोबार द्वीप समूह भी इन मेगापोड्स के लिए एक नेस्टिंग साइट है जिस पर कि प्रोजेक्ट की वजह से प्रभाव पड़ेगा.
दिप्रिंट ने इस पर टिप्पणी के लिए शुक्रवार को ईमेल के जरिए नीति आयोग के प्रवक्ता से संपर्क किया. जब भी उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया आएगी तो खबर को अपडेट किया जाएगा.
यह भी पढ़ेंः हाथापाई, गोली-चाकू से हमला व मौत—मध्य प्रदेश के निहत्थे वनकर्मियों के लिए तो यह आए दिन की बात है
विंसगतियों का ‘कोई औचित्य नहीं’
समिति ने ईआईए में प्रस्तुत योजना के कुछ हिस्सों में पूरी तरह से बदलाव करने के लिए कहा है.
मई में हुए मीटिंग के मिनट्स के मुताबिक, ‘टाउनशिप, हवाई अड्डे और बिजली संयंत्र के निर्माण की वजह से कई जानवरों के ‘जंगल से समुद्र के किनारे तक और वहां से फिर जंगल तक जाने में बाधा डालेगा, और नीति आयोग की योजना में इस तरह के किसी भी गलियारे के लिए कोई प्रावधान नहीं है.
समिति ने कहा, ‘इसलिए, हर तीन किलोमीटर की दूरी पर 300-500 मीटर की चौड़ाई के साथ प्राकृतिक वन गलियारे को ध्यान में रखते हुए मास्टर प्लान लेआउट को संशोधित करने की आवश्यकता है.’
समिति ने आगे कहा कि नीति आयोग ने ‘कोई भी मैंग्रोव संरक्षण योजना / कोरल संरक्षण योजना प्रस्तुत नहीं की है जो आमतौर पर ईआईए / पर्यावरण प्रबंधन योजना का हिस्सा है.’
यह कहा गया, ‘मैंग्रोव संरक्षण योजना को शामिल नहीं करने के लिए कोई कारण नहीं बताया गया है, जिसमें मैंग्रोव कवर के नुकसान के बदले प्रतिपूरक रोपण की योजना भी शामिल है. इसी तरह, कोरल संरक्षण योजना को शामिल नहीं किया गया है.’
प्रोजेक्ट प्लान के मुताबिक, लगभग 12 से 20 हेक्टेयर मैंग्रोव कवर खत्म हो जाएगा, 8 लाख से अधिक पेड़ों को काट दिया जाएगा, और प्रोजेक्ट के कारण एक वर्ग किलोमीटर से अधिक कोरल नष्ट हो जाएगा.
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भी भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के आने की संभावनाओं से भरे हैं, और समिति ने कहा कि योजना में इसका कोई उल्लेख नहीं किया गया है।
समिति ने कहा, ‘प्राकृतिक आपदा के लिए निकासी योजनाओं को स्पष्ट रूप से और विस्तार से स्पष्ट करने की आवश्यकता है क्योंकि इस क्षेत्र में सुनामी, लगातार भूकंप और चक्रवात आदि के आने की काफी संभावनाएं हैं.’
इसने यह भी मांग की कि भारतीय वन्यजीव संस्थान अगले 10 वर्षों के लिए विशाल लेदरबैक कछुओं, निवास स्थान की बहाली और घोंसले की सुरक्षा की गतिविधियों की निगरानी के लिए लागत का ‘विस्तृत रोड मैप’ प्रस्तुत करे।
नीति आयोग की योजना के खिलाफ पर्यावरण विशेषज्ञों द्वारा उठाई गई चिंताओं में ईएसी द्वारा पूछे गए सवालों को दोहराया गया है. इससे पहले भी, ईआईए रिपोर्ट को संशोधित करने की मांग उठाते हुए कई पर्यावरण संगठनों, शोधकर्ताओं और नागरिकों ने अंडमान और निकोबार प्रशासन प्रदूषण नियंत्रण समिति को लिखित प्रस्तुतियां दी थीं.
पर्यावरण अनुसंधान संगठन मंथन अध्ययन केंद्र की शोधकर्ता अवली वर्मा ने कहा कि समिति की टिप्पणियों ने ईआईए की कई कमियों की ओर इशारा किया है.
उन्होंने दिप्रिंट से बात करते हुए पूछा, ‘समिति ने विभिन्न प्रकार के मुद्दों की ओर इशारा किया है जो दिखाते हैं कि ईआईए में कितनी कमी थी. यह दिखाता है कि इस परियोजना के प्रभावों पर बहुत कम विचार किया गया था. सवाल यह है कि इस गुणवत्ता की ईआईए की बातों पर विचार क्यों किया जा रहा है? और क्या इस पर विचार किया जाना चाहिए?’
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ेंः वायु प्रदूषण भारतीयों के जीवन को पांच साल कम कर रहा है : शिकागो विश्वविद्यालय की स्टडी