नई दिल्ली: वन सलाहकार समिति (एफएसी) ने पुराने आंकड़ों, स्थानीय समुदायों के विरोध और पर्यावरणीय मानदंडों के अनुपालन में राज्य के ‘खराब’ ट्रैक रिकॉर्ड का हवाला देते हुए अरुणाचल प्रदेश की दिबांग घाटी में एक विवादास्पद मेगा जलविद्युत परियोजना स्थापित करने के प्रस्ताव को रद्द कर दिया है.
जिंदल पावर और अरुणाचल प्रदेश के जलविद्युत विकास निगम द्वारा एक संयुक्त उद्यम के रूप में प्रस्तावित 3,097-मेगावाट एटालिन जलविद्युत परियोजना की स्थापना पर 2015 से एफएसी द्वारा बात चल रही है. परियोजना को पहली बार 2014 में प्रस्तावित किया गया था.
पिछले साल 27 दिसंबर को हुई एक बैठक में, एफएसी ने फैसला किया कि कई विसंगतियों के कारण प्रस्ताव को ‘वर्तमान स्वरूप में नहीं माना जा सकता.’
इससे पहले, 2020 में, यह बताया गया था कि परियोजना के लिए 2.7 लाख पेड़ों को काटना पड़ेगा. हालांकि, 27 दिसंबर की बैठक के विवरण के अनुसार, परियोजना के राज्य नोडल अधिकारी ने एफएसी को बताया कि 2.7 लाख एक अनुमानित आंकड़ा है, और ‘परियोजना शुरू होने के बाद पेड़ों की वास्तविक संख्या दी जाएगी.’
अपने फैसले में, एफएसी ने कहा, ‘राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत तथ्यों और आंकड़ों की समीक्षा करना अनिवार्य है, विशेष रूप से उन पेड़ों की संख्या के संबंध में जिन्हें गिराने की आवश्यकता है.’ इसने क्षेत्र में जैव विविधता और वन्य जीवन के अधिक मजबूत बहु-मौसम अध्ययन के साथ-साथ दिबांग घाटी में जलविद्युत परियोजनाओं के संचयी प्रभाव मूल्यांकन और परियोजना के संशोधित लागत-लाभ विश्लेषण के लिए भी कहा है.
यह परियोजना विवादास्पद रही है क्योंकि इससे हरे-भरे प्राकृतिक जंगल को नुकसान होगा. परियोजना प्रस्ताव के अनुसार 1165.66 हेक्टेयर वन भूमि को डायवर्ट करने की आवश्यकता होगी. स्थानीय समुदायों ने जलविद्युत संयंत्र के खिलाफ लगातार विरोध किया है और अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए एफएसी को भी लिखा है.
बैठक में, एफएसी ने राज्य सरकार को इन असहमतियों को हल करने के लिए एक समिति बनाने का निर्देश दिया. इसने यह भी कहा कि अरुणाचल प्रदेश सरकार के पास पहले की परियोजनाओं में एफएसी द्वारा निर्धारित शर्तों के साथ ‘अनुपालन का खराब रिकॉर्ड’ था, जिन्हें वन मंजूरी प्रदान की गई थी. हालांकि, उसने इन परियोजनाओं का नाम नहीं बताया.
एफएसी ने कहा कि बाद में परियोजना प्रस्तावकों द्वारा ‘संशोधित प्रस्ताव प्रस्तुत किया जा सकता है.’
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परियोजना का विरोध
दिबांग घाटी में परियोजना से प्रभावित होने वाले स्वदेशी समूहों और स्थानीय समुदायों ने परियोजना का लगातार विरोध किया है. 6 और 8 दिसंबर के बीच, एफएसी को इन समुदायों से कई पत्र मिले, जिनमें परियोजना की प्रगति पर स्पष्टता मांगी गई थी.
पहले से स्वीकृत दिबांग बहुउद्देश्यीय परियोजना- एक बाढ़ नियंत्रण-सह-जलविद्युत परियोजना के साथ एटालिन जलविद्युत परियोजना- ‘लोगों, नदियों, पहाड़ों और जानवरों के लिए गंभीर, अपरिवर्तनीय और संभावित विनाशकारी परिणाम होंगे’. एक पत्र में यह कहा गया जिस पर इदु मिश्मी जनजाति द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे.
पिछले साल मई में, एफएसी ने दो उप-समितियों का गठन किया था. एक का नेतृत्व एफएसी सदस्य डॉ. संजय देशमुख कर रहे थे और उन्हें परियोजना के खिलाफ किए गए रिप्रेसेंटेशन की जांच करने का काम सौंपा गया था. दूसरा, राज्य सरकार के नेतृत्व में, राज्य में पिछली जलविद्युत परियोजनाओं को दी गई वन मंजूरी शर्तों के अनुपालन की निगरानी करना था.
पहली उप-समिति ने जून में कुछ परियोजना प्रभावित समुदायों से मुलाकात की और अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया कि ‘परियोजना प्रभावित परिवारों को आर्थिक और सामाजिक लाभ का दायरा’, दिबांग में निचले समुदायों तक भी बढ़ाया जाए.
राज्य सरकार के अधीन दूसरी उप-समिति ने कभी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की.
एफएसी ने अपनी 27 दिसंबर की बैठक में कहा, ‘पूर्व में डॉ. संजय देशमुख की अध्यक्षता में एफएसी द्वारा गठित उप-समिति ने प्राप्त रिप्रेसेंटेशन पर गौर किया और सिफारिशों के साथ एक रिपोर्ट प्रस्तुत की. हालांकि, उप-समिति के दौरे के बाद भी इस मंत्रालय द्वारा और भी रिप्रेसेंटेशन प्राप्त हुए है.’ ‘विभिन्न रिप्रेसेंटेशन में उठाए गए मुद्दों को हल करने के लिए राज्य सरकार विभिन्न चिंताओं पर गौर करने और समाधान के लिए एक उच्च स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति का गठन कर सकता है.
एफएसी ने राज्य सरकार से अनुरोध किया कि वह जलविद्युत परियोजनाओं को वन मंजूरी और निर्धारित शर्तों के अनुपालन की स्थिति पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करे.
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(संपादन: कृष्ण मुरारी)
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